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देश के गरीब बच्चों की विदेश में पढ़ाई का सपना साकार कर रहे यह NRI पति-पत्नी

पेशे से कंप्यूटर साइंटिस्ट एनआरआई कपल अमित सिंघल और उनकी पत्नी शिल्पा सिंघल ने भारत के गरीब बच्चों को क्वालिटी और फ्री एजुकेशन मुहैया कराने के लिए सितारे फाउंडेशन की स्थापना की है.

देश के गरीब बच्चों की विदेश में पढ़ाई का सपना साकार कर रहे यह NRI पति-पत्नी

Monday November 28, 2022 , 7 min Read

भारत जैसे विकासशील देश को एजुकेशन के मामले में अभी लंबी दूरी तय करनी है. सबसे बड़ी चुनौती देश के अभावग्रस्त बच्चों तक क्वालिटी और अफोर्डेबल एजुकेशन पहुंचाने की है. क्वालिटी और अफोर्डेबल एजुकेशन की चिंता तब और बढ़ जाती है जब बात उच्च शिक्षा की आती है.

1 अप्रैल, 2010 को शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 को लागू कर भारत उन 135 देशों की सूची में शामिल हो गया था, जिन्होंने एजुकेशन को हर बच्चे के लिए मौलिक अधिकार घोषित किया है. इसका मतलब है कि 6-14 साल यानी क्लास 8 तक के बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा उपलब्ध कराई जाएगी.

हालांकि, यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस (UDISE+) रिपोर्ट में कहा गया है कि उच्च प्राथमिक छात्रों के ड्रॉप आउट की दर 1.9 से बढ़कर 3.02 प्रतिशत हो गई है। वहीं, सेकेंडरी स्कूलों में ड्रॉप आउट रेट 14.6 फीसदी है. कई अन्य कारकों के इसका एक महत्वपूर्ण कारण परिवार की आर्थिक स्थिति मानी जाती है. यही कारण है कि आज भी 18 साल तक के बच्चों के लिए फ्री एजुकेशन की मांग आज भी जारी है.

इन्हीं सब चुनौतियों को देखते हुए पेशे से कंप्यूटर साइंटिस्ट एनआरआई कपल अमित सिंघल और उनकी पत्नी शिल्पा सिंघल ने भारत के गरीब बच्चों को क्वालिटी और फ्री एजुकेशन मुहैया कराने के लिए सितारे फाउंडेशन की स्थापना की है. पहले केवल स्कूली शिक्षा पर फोकस करने के बाद अब एनआरआई कपल ने ऐसे छात्रों को कंप्यूटर साइंटिस्ट बनाने की ठान ली है और इसके लिए उन्होंने सितारे यूनिवर्सिटी की स्थापना की है.

NRI कपल का दिल है हिंदुस्तानी...

अमित सिंघल और उनकी पत्नी शिल्पा सिंघल अमेरिका में रहते हैं और एनआरआई हैं. हालांकि, अमित मूल रूप से उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के रहने वाले हैं. कई सालों तक अमेरिका में नौकरी के दौरान उनका हिंदुस्तानी दिल देश के गरीब और अभावग्रस्त बच्चों के लिए कुछ करने के लिए बेचैन हो रहा था.

अमित कहते हैं, 'हम दोनों (शिल्पा और मेरे) के परिवार ही दो पीढ़ी पहले तक बेहद गरीब थे. शिक्षा के कारण ही हम गरीबी से बाहर निकलकर आ पाए हैं. यही कारण है कि हमने अपनी कमाई केवल शिक्षा के माध्यम से वापस देने का फैसला किया.'

परदादा पंक्चर बनाते थे, लेकिन एजुकेशन ने बदल परिवार की दशा

दरअसल, अमित के परदादा बुलंदशहर में सड़क किनारे चार बांस लगाकर साइकिल का पंक्चर जोड़ते थे. हालांकि, उन्होंने अपने बेटे यानी अमित के दादा को बीए कराया तो वह मुजफ्फरनगर स्थित डीएवी इंटर कॉलेज में टीचर बन गए. हालांकि, वहां उनको इसके पैसे नहीं मिलते थे. वह पूरी जिंदगी साइकिल पर चले और स्कूटर तक नहीं खरीद पाए.

अपने पिता की तरह ही अमित के दौरान ने भी अपने बेटे की पढ़ाई पर ध्यान दिया और अमित के पिता को इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए रुड़की भेज दिया. इसके बाद अमित के पिता पीडब्ल्यूडी में इंजीनियरिंग चीफ बनकर रिटायर हुए.

अमित ने आगे कहा, 'इस तरह देखें तो शिक्षा के माध्यम से पंचर बनाने वाले का लड़का मास्टर बना, मास्टर का लड़का इंजीनियर बना और इंजीनियर का लड़का आज आपके सामने इतना बड़ा आदमी बनकर बैठा है. सच्चाई यह है कि यह केवल शिक्षा का ही कमाल है.'

अमित ने रुड़की से कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई की. उसके बाद उन्होंने अमेरिका जाकर न्यूयॉर्क की कॉर्नेल यूनिवर्सिटी (Cornell University) से कंप्यूटर साइंस में पीएचडी की. उसके बाद उन्होंने दुनिया की नामी लैब बेल लैब्स में काम किया है. उन्होंने 16 सालों तक गूगल की सर्च टीम को लीड भी किया.

आज अमित और शिल्पा सितारे फाउंडेशन के माध्यम से एक स्कॉलरशिप और एक यूनिवर्सिटी चलाते हैं. पूरी चैरिटी की राशि वह और शिल्पा अपनी जेब से देते हैं.

पहले स्कूल एजुकेशन पर किया फोकस

अमित और शिल्पा ने अपनी कमाई केवल शिक्षा के माध्यम से भारत को वापस देने का फैसला किया और इस तरह से उन्होंने साल 2016 में सितारे फाउंडेशन की स्थापना की. सितारे फाउंडेशन ने साल 2016 में ‘सितारे फाउंडेशन होप एंड ड्रीम स्कॉलरशिप’ की शुरुआत की थी.

अमित कहते हैं, '6 साल में हमारी लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि पिछले साल हमारे पास 72 हजार आवेदन आए. हम इन बच्चों को अपनी पार्टनरशिप वाले प्रतिष्ठित प्राइवेट स्कूलों में भेजते हैं. इस स्कॉलरशिप के तहत हम बच्चों का A-Z पूरा खर्च उठाते हैं और इसमें प्रत्येक बच्चे पर सालाना करीब 1.5 लाख रुपया खर्च होता है. फिलहाल हमारे पास इस प्रोग्राम के तहत 400 बच्चे हैं. पहले साल में हमारे पास 50 बच्चे आए थे तब प्रति बच्चा 2.5 लाख खर्च होता था.'

वह बताते हैं, 'हमने 6 से 12वीं के बच्चों को पढ़ाकर अमेरिका तक पहुंचा दिया. पहली बैच के 24 में 5 बच्चे आज अमेरिका में हैं, 3 सितारे यूनिवर्सिटी में हैं और बाकी दिसंबर में क्लैट की परीक्षा देने वाले हैं.'

हाल ही में, क्लास 12th के पांच स्टूडेंट्स कुसुम चौधरी, महेंद्र कुमार, मिलन रामधारी, निशा चौधरी और तनीशा नागोरी ने अमेरिका की टॉप यूनिवर्सिटीज में कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई के लिए एडमिशन ले लिया है. इनमें यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड, यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना, यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा, ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, केस वेस्टर्न रिजर्व यूनिवर्सिटी और एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी शामिल हैं.

हर साल 1000 बच्चों को कंप्यूटर साइंटिस्ट बनाने पर जोर

भारत के गरीब बच्चों की स्कूली एजुकेशन पर कई सालों तक काम करने और उन्हें देश और दुनिया के बेहतरीन संस्थाओं में भेजने के बाद अब अमित और शिल्पा ने उनके उच्च शिक्षा पर काम करने का फैसला किया है.

अमित कहते हैं, 'मैं कंप्यूटर साइंटिस्ट हूं और मेरी पत्नी शिल्पा भी कंप्यूटर साइंटिस्ट हैं. हमें पता है कि भारत ही नहीं दुनियाभर में कंप्यूटर साइंटिस्ट की कितनी कमी है. मैं एक वेंचर कैपिटलिस्ट भी हूं और मेरी कंपनियां कह रही हैं कि उन्हें कंप्यूटर साइंटिस्ट नहीं मिल रहे हैं. एक तरफ तो कंपनियां यह कहती हैं जबकि दूसरी तरफ भारत में 2 लाख 15 हजार कंप्यूटर साइंटिस्ट की डिग्री बांटी जाती है.'

अमित बताते हैं कि हमने इसके इकोसिस्टम में जाकर देखा तो पता चला कि 2 लाख 15 हजार में से केवल 8000 कंप्यूटर साइंटिस्ट की डिग्रियां ऐसी हैं जो अमेरिका के 65 हजार से कंपीट कर सकती हैं. बाकी के 2 लाख 7 हजार अमेरिका के 65 हजार से कंपीट नहीं कर सकते हैं. यही कारण है कि आपको यह सुनने के लिए मिलता है कि आईटी में अच्छे टैलेंट की कितनी कमी है.

वह आगे कहते हैं, 'एक तरफ तो इतने सारे गरीब बच्चे हैं और दूसरी तरफ कंपनियों को कंप्यूटर साइंटिस्ट की आवश्यकता है. इसलिए हमने सितारे यूनिवर्सिटी की स्थापना की जो कि एक ब्रिज का काम करेगा और गरीब बच्चों को कंप्यूटर साइंटिस्ट बनाएगा. हमने हाल ही में 27 बच्चों के साथ सितारे यूनिवर्सिटी का पहला बैच शुरू किया है. मैं हर साल भारत के 1000 बच्चों को विश्वस्तरीय कंप्यूटर साइंटिस्ट बनाना चाहता हूं.'

योग्यता

सितारे फाउंडेशन की स्कॉलरशिप और यूनिवर्सिटी दोनों के लिए पहला क्राइटेरिया परिवार की 3 लाख सालाना या 25000 मासिक आय है. दूसरा क्राइटेरिया बच्चों के मेधावी होने का है.

अमित ने कहा, 'मेधावी छात्रों की पहचान हम जेईई-मेंस के फिजिक्स और मैथ के स्कोर के आधार पर करते हैं. इसका कारण यह है कि कंप्यूटर साइंस के लिए फिजिक्स और मैथ बहुत जरूरी है. हमारे सबसे अच्छे बच्चे की जेईई मेंस में परसेंटाइल 99 फीसदी से ऊपर है. 98 और 97 वाले भी बहुत हैं.'

हाइब्रिड ही एजुकेशन का भविष्य

अमित बताते हैं कि सच्चाई यह है कि आप न तो पूरी तरह से ऑनलाइन पढ़ा सकते हैं और न ही पूरी तरह से ऑफलाइन. केवल ऑनलाइन पढ़ने से बच्चे ऑनलाइन फिटिक हो जाते हैं यानी वे थक जाते हैं. लेकिन आप पूरी तरह से ऑफलाइन भी नहीं पढ़ा सकते हैं क्योंकि आपके पास वह फैकल्टी ही उपलब्ध नहीं है. इसलिए पढ़ाई का हाइब्रिड मॉडल ही अपनाया जाना चाहिए. हालांकि, हाइब्रिड का मतलब केवल बच्चों के सामने टीवी लगा देना नहीं होता है. हम बच्चों के लिए फिजिकल और वर्चुअल दोनों एजुकेशन मॉडल मुहैया करा रहे हैं. कोविड-19 के दौरान हमने अपने बच्चों को टैबलेट और लैपटॉप देकर पढ़ाया.