साठ की उम्र में भी रोजाना रात दो बजे से बुजुर्गों, मरीजों के खाना पकाती हैं विनाया
केरल की साठ वर्षीया विनाया पाई बैंक की नौकरी छोड़कर रोजाना रात दो बजे से ही लगभग 50 बुजुर्गों, मरीजों के लिए डॉक्टर के हिसाब से डाइट तैयार करने के साथ ही अब तक वह दस हजार गरीबों को पापड़-चिप्स बनाने का प्रशिक्षण देकर उन्हे अपने पैरों पर खड़ी कर चुकी हैं। इस उम्र में भी वह खुद को पूर्ण स्वस्थ महसूस करती हैं।
त्रिश्शूर (केरल) की विनाया पाई साठ की उम्र में भी उन लोगों की सेवा करती हैं, जिन्हे अस्थमा, जोड़ों में दर्द, पाचन संबंधी समस्याएं हैं। उन्हे अपने ग्राहकों की जरूरतों का अच्छी तरह पता रहता है। वह उनके लिए खाना पकाते समय उनकी जरूरत और अभिरुचि, दोनो का भरपूर ध्यान रखती हैं। इसके लिए उन्होंने एक चार्ट भी बना रखा है। यह चार्ट कमोबेश रोजाना अदलता-बदलता रहता है।
वह अपने ग्राहकों से साझा होकर रोजाना चार्ट अपडेट कर लेती हैं। बुजुर्ग विनाया अपने क्षेत्र के बुजुर्गों और रोगियों की देखभाल भी करती हैं। वह ऐसे 50 लोगों का नाश्ता तैयार करने के लिए रोजाना रात को 2 बजे उठ जाती हैं। इतना ही नहीं, वह वह रोगियों के सहयोग के लिए डॉक्टरों के भी संपर्क में रहती हैं। वह मरीजों, बुजुर्गों का खाना डॉक्टरों से परामर्श के बाद ही तैयार करती हैं।
विनाया कहती हैं,
"मेरा दिमाग और शरीर ठीक काम कर रहा है। अब तो मुझे बस इतना करना है कि अपनी पाक कला का वह लोगों के लिए जितना बेहतर इस्तेमाल हो सके, करती रहें। भोजन तैयार करने में उनके दो सहायक भी सहायता करते हैं। इस नेक काम के लिए सुबह जल्दी उठना कोई बहुत बड़ी बात नहीं।"
वह सुबह 7.30 से 8 बजे के बीच नाश्ता तैयार कर देती हैं। ज्यादातर ग्राहक सीधे उनके घर से खाना उठा ले जाते हैं। जो लोग उन तक पहुंचने में असमर्थ होते हैं, उनके लिए वह होम डिलीवरी की सुविधा देती हैं। उन्होंने भोजन का शुल्क भी विनाया ने कम से कम रखा है क्योंकि वह दृढ़ता से इस बात में यकीन करती हैं कि मुफ्त में मिलने वाली कोई भी चीज महत्वपूर्ण नहीं होती है। कमोबेश रोजाना ही विनाया पाई के दिन की शुरुआत रात के दो बजे से ही हो जाती है।
विनाया डॉक्टर की हिदायतों का ध्यान रखती हुई बुजुर्गों और मरीजों के पौष्टिक खाने में मसाले का सेहत के हिसाब से ध्यान रखती हैं। वह होम डिलीवरी का नाम मात्र का चार्ज लेती हैं।
वह बताती हैं कि कोडुंगल्लर (केरल) में उनके घर वालों का एक होटल था। वह होटल की किचन में पकाने के तौर-तरीके सीखने के बाद खुद की फूड चेन चलाने के सपने देखा करती थीं। वह पचीस-छब्बीस की उम्र में बैंक की नौकरी के साथ-साथ पापड़ और चिप्स का बिजनेस भी करने लगीं। करैला, कटहल, केला, गाजर आदि के चिप्स खुद बनाकर आसपास के गांवों में बेचने लगीं। काम चलने लगा तो उन्होंने बैंक की नौकरी हमेशा के लिए छोड़ दी। उसके बाद वह कम पढ़े- लिखे और गरीब लोगों को पापड़, चिप्स बनाना सिखाने लगीं। इस तरह उन्होंने लगभग 10 हजार ऐस लोगों ट्रेंड कर उन्हे अपने पैरों पर खड़ा कर दिया।