अच्छी सैलरी वाली नौकरी छोड़ कर आज बना रही हैं मिट्टी के घर, पर्यावरण को लेकर बड़े मिशन पर हैं शगुन
शगुन ने अपने एक इंटरव्यू में बताया कि वह कुछ नया करना चाहती थीं, कुछ ऐसा जिससे वह समाज, पर्यावरण, पृथ्वी और खुद के भले के लिए अपना योगदान दे सकें।
हमेशा पर्यावरण को प्राथमिकता देने वाली शगुन सिंह ने मिट्टी के घरों का निर्माण करने के उद्देश्य से अपनी बेहतरीन सैलरी वाली कॉर्पोरेट नौकरी छोड़ दी थी। शगुन ने अपने एक इंटरव्यू में बताया कि वह कुछ नया करना चाहती थीं, कुछ ऐसा जिससे वह समाज, पर्यावरण, पृथ्वी और खुद के भले के लिए अपना योगदान दे सकें।
कई सालों तक कॉर्पोरेट ऑफिस में नौकरी करने बाद शगुन को अपने जीवन में एक कमी का अनुभव हुआ और इसे पहचानते हुए उन्होंने साल 2015 में अपनी वह कॉर्पोरेट नौकरी छोड़ दी। नौकरी छोड़ने के साथ ही अपना यह उद्देश्य लेकर शगुन दिल्ली से उत्तराखंड शिफ्ट हो गईं।
शुरू किया ‘गीली मिट्टी फाउंडेशन’
शगुन के अनुसार इसके बाद उन्होंने कई सारी नई स्किल्स को सीखना शुरू कर दिया, जिसमें खेती करना भी शामिल था। इसी के साथ वह कई अन्य जगहों पर बतौर वॉलेंटियर भी अपनी सेवा देने लगीं। इसी दौरान ही शगुन ने प्राकृतिक साधनों की मदद लेकर मिट्टी के घरों का निर्माण भी सीखना शुरू कर दिया था।
इसके एक साल बाद ही शगुन ने उत्तराखंड में गीली मिट्टी फाउंडेशन की स्थापना की। शगुन के अनुसार नौकरी छोड़ने के साथ ही शुरुआत में उनके परिवार को भी उनके इस कदम से बेहद आश्चर्य हुआ, लेकिन वह अपने इरादों पर अडिग थीं। महज एक या दो सालों में ही सभी को यह पता चल गया था कि अब वह अपने पुराने कॉर्पोरेट करियर में वापस नहीं जाने वाली हैं।
तोड़ रही हैं मिथक
फाउंडेशन के तहत पंगोट स्थित गीली मिट्टी फार्म्स में शगुन और उनकी टीम ने मिट्टी के घरों का निर्माण करना शुरू किया। इन खास घरों को बनाने के लिए शगुन ने कॉब तकनीक को चुना, जिसके तहत मिट्टी, पानी, गाय के गोबर और लकड़ी के मिश्रण का इस्तेमाल घर के निर्माण में बुनियादी तौर पर किया जाता है।
शगुन के अनुसार मिट्टी से बने इस घरों में बहुत लंबे समय तक गर्मी को सोखने की क्षमता होती है लेकिन कई बार अधिकतर लोग इस बात को समझ नहीं पाते हैं।
मिट्टी के घरों को रंगने के लिए चूने का इस्तेमाल किया जाता है और इसके साथ ही घरों को मनचाहे रंग में रंगा जा सकता है। शगुन और उनकी टीम अब तक 16 से अधिक प्रोजेक्ट पर काम कर चुकी है जिसमें सैलानियों के लिए कॉटेज, जानवरों के लिए आश्रय स्थल और स्कूल का निर्माण शामिल है।
मिट्टी के इन घरों के निर्माण से जुड़े तमाम मिथकों के बारे में शगुन का मानना है कि यह महज एक धारणा बनाई गई है कि मिट्टी और चुने से बने घर गरीबों के लिए होते हैं। शगुन के अनुसार उन्होंने अपने इन मिट्टी के घरों को इतना खूबसूरत बनाया है कि कोई भी इनमें रहना चाहेगा। गीली मिट्टी फाउंडेशन इस के साथ ही महिला सशक्तिकरण के लिए भी काम करता है।
बेचना पड़ा था घर और गाड़ी
इस काम की शुरुआत के साथ ही शगुन को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा जिसमें जमीन खरीदना, NGO शुरू करना, घर निर्माण के इस काम में क्षेत्रीय लोगों को साथ जोड़ना, ये सभी एक चुनौती की तरह उनके सामने थे। इन सब के साथ इसके लिए शगुन के लिए पैसों का इंतजाम करना भी आसान नहीं रहा। उन्हें इसके लिए अपना घर और कार को बेचना पड़ा, साथ ही उन्हें अपनी सारी बचत पूंजी बैंक खाते से निकालनी पड़ी।
शगुन आज युवाओं के लिए इस तरह के घरों के निर्माण के लिए वर्कशॉप का आयोजन भी करती हैं। वर्कशॉप से मिलने वाली आर्थिक सहायता उन्हे फाउंडेशन को जारी रखने में मदद करती है।
Edited by रविकांत पारीक