नैनो-माइक्रो इंफ्लुएंसर्स के जरिए अपना सोशल कॉमर्स गेम बदल रहे ब्रैंड्स
डिजिटल स्पेस ने इंफ्लुएंसर्स और ऑनलाइन कम्यूनिटीज के बीच एक बेहद पारदर्शी माहौल बना दिया है. फॉलोअर्स और इंफ्लुएंसर्स के बीच एक भरोसे का रिस्ता कायम हो जाता है और इसी वजह से सोशल कॉमर्स काफी तेजी से ग्रो कर रहा है.
भारत में कंज्यूमर्स पैटर्न बिहेवियर में काफी कुछ बदल रहा है. कंज्यूमर की कंजम्प्शन चॉइसेज बड़ी तेजी से बदल रही हैं और अलग तरह की चीजों की तरह जा रही हैं.
अब वो जमाना बीत रहा है जब लोग सिर्फ अपने पसंदीदा एक्टर या एक्ट्रेस को देखकर कोई चीज या सर्विस खरीद लें. अब लोग अपनी पसंद, अपनी खासियत, अपने प्रोफेशन और तमाम चीजों को और गहराई से समझ रहे हैं और उस आधार पर फैसले ले रहे हैं.
अगर इंफ्लुएंस भी रहे हैं तो उन्हीं लोगों या ब्रैंड से जो उन्हें लगता है कि सच बोल रहे हैं और किसी तरह की जानकारी छुपा नहीं रहे हैं. कंजम्पशन बिहेवियर में इस बदलाव का बहुत बड़ा क्रेडिट सोशल कॉमर्स को जाता है.
दरअसल सोशल कॉमर्स ने नैनो और माइक्रो इन्फ्लुएंसर्स के लिए काफी मौके खोले हैं. सोशल कॉमर्स के जरिए नैनो और माइक्रो इंफ्लुएंसर्स को इस डिजिटल स्पेस में अपने लिए जगह बनाने और खुद को साबित करने का मौका मिला है.
आज की तारीख में इस डिजिटल दौर में हर इंफ्लुएंसर अपने लिए एक लॉयल कम्यूनिटी बिल्ड करने में जुटा है. ऑनलाइन कंटेंट लोगों को ओरिजनल कंटेंट कंज्यूम करने का, उन लोगों को फॉलो करने का मौका देता है जिनसे वो खुद को रिलेट कर पाते हैं.
डिजिटल स्पेस ने इंफ्लुएंसर्स और ऑनलाइन कम्यूनिटीज के बीच एक बेहद पारदर्शी माहौल बना दिया है. फॉलोअर्स और इंफ्लुएंसर्स के बीच एक भरोसे का रिस्ता कायम हो जाता है और इसी वजह से सोशल कॉमर्स काफी तेजी से ग्रो कर रहा है.
सोशल कॉमर्स में मौजूद कई बड़ी कंपनियां इसी ट्रेंड का फायदा उठाते हुए अब माइक्रो और नैनो क्रिएटर्स के साथ पार्टनरशिप को पसंद कर रही हैं. उनके जरिए ब्रैंड्स में देश के दूर दराज वाले इलाकों में भी अपनी मौजूदगी दर्ज करा पा रहे हैं.
छोटे शहरों में नैनो और माइक्रो इंफ्लुएंसर्स के उभरते ट्रेंड पर WhizCo की को-फाउंडर और सीएमओ प्रेरणा गोयल का कहना है, टियर II, III, और IV में ढेरों में माइक्रो और नैनो इंफ्लुएंसर मौजूद हैं. इन क्रिएटर्स के पास फॉलोअर्स का अच्छा खासा बेस है, हाई एंगेजमेंट रेट है. उनके फॉलोअर्स की कम्यूनिटी उनके प्रति लॉयल भी हैं क्योंकि उन्हें इन इंफ्लुएंसर्स पर भरोसा है.
लेकिन सोशल कॉमर्स के लिए छोटे शहरों में जितने अवसर हैं उतनी ही चुनौतियां भी हैं. भारत में सोशल सेक्टर के सामने मुख्यतः दो चुनौतियां हैं. पहला है छोटे शहरों में कंज्यूमर्स को कुछ खास यूजर एक्सपीरियंस और ऑप्टिमाइजेशन नहीं दिया जाता है.
इस वजह से वहां कंज्यूमर्स एक्सपीरियंस भी लो ग्रेड का होता है. ब्रैंड्स अब इस मोर्चे पर काम कर रहे हैं क्योंकि जो स्ट्रैटजी, लॉजिस्टिक्स टियर1 में काम करते हैं वो छोटे शहरों में काम नहीं करेंगे. क्योंकि वहां हर टारगेट ग्रुप का ऑनलाइन बिहेवियर बिल्कुल अलग है.
WhizCo की को-फाउंडर और सीओओ ने आस्था गोयल ने कहा, छोटी से लेकर बड़ी कैसी भी कंपनी हो वह सोशल कॉमर्स के जरिए सामान बेच सकती है. हर कंपनी मार्केट में अपनी जगह बना सकती है. यहां पर छोटे ब्रैंड्स और आंत्रप्रेन्योर्स के लिए नैनो और माइक्रो इंफ्लुएंसर बड़े काम आते हैं क्योंकि इनके जरिए उस मार्केट तक पहुंच मिलती है जहां तक उनकी पहुंच नहीं थी.
ई-कॉमर्स बिजनेस अक्सर ये मानते हैं कि नैनो और माइक्रो इंफ्लुएंसर मार्केटिंग के शुरुआती दौर में कारगर होते हैं, जो सोचना पूरी तरह गलत है. कंटेंट क्रिएटर्स आपके ब्रैंड के बारे में अवेयरनेस फैलाने के अलावा मार्केटिंग के कई अन्य चरमों में भी कारगर होते हैं.
फोर्ब्स की एक स्टडी बताती है कि जेन Z और मिलेनियल्स के सोशल कॉमर्स से प्रभावित होने के ज्यादा चांसेज होते हैं. स्टडी में शामिल 84 फीसदी मिलेनियल्स ने कहा कि किसी अनजान शख्स का बनाया हुआ यानी यूजर जेनरेटेड इन्फॉर्मेशन काफी हद तक उनके पर्चेजिंग डिसिजन को किसी न किसी तरह से इंफ्लुएंस करता है.
वहीं 75 फीसदी से ज्यादा कस्टमर्स ने माना कि सोशल मीडिया के इस्तेमाल ने उनके अंदर इंपल्स बाइंग को बढ़ावा दिया है. इन आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि ब्रैंड्स आने वाले समय में भी छोटे शहरों में प्रोडक्ट या सर्विसेज बेचने के लिए नैनो और माइक्रो क्रिएटर्स पर भरोसा करते रहेंगे.
नैनो और माइक्रो इंफ्लुएंसर्स न सिर्फ ब्रैंड्स के लिए किफायती पड़ते हैं बल्कि उन्हें देश के दूर दराज के इलाकों में जाने का अपनी मौजूदगी दर्ज कराने का भी मौका देते हैं.