कभी रहा अकेलापन तो कभी किया गया बुली, अब कोविड सेंटर हेड करने वाली पहली ट्रांसवीमेन बनीं डॉ. अक्सा शेख
कोविड सेंटर हेड करने वाली पहली ट्रांसवीमेन डॉ. अक्सा शेख
"डॉ अक्सा शेख के अनुसार जब लोग उनकी मेडिकल सुविधा में आते हैं तो वे उनके साथ सम्मान से पेश आते हैं। लोग उन्हे एक ऐसे मेहनती मेडिकल प्रोफेशनल की तरह देखते हैं जो रोगियों के लिए पूरी तरह समर्पित है। उनका मानना है कि वो ‘सशक्त’ हुईं हैं, लेकिन अभी समुदाय के भले के लिए काफी काम किया जाना बाकी है।"
साल 2011 की जनगणना के अनुसार देश में ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों की संख्या 48 लाख के करीब थी, लेकिन इस बड़ी संख्या के बावजूद इस समुदाय के लोगों को विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिनिधित्व के बेहद मौके ही हासिल हुए हैं। अब ट्रांसजेंडर समुदाय से आने वाली डॉ. अक्सा शेख ने कोविड वैक्सीनेशन सेंटर की हेड बनकर इस दिशा में पहला बड़ा कदम बढ़ा दिया है।
डॉ. अक्सा शेख फिलहाल देश की एकलौती ऐसी ट्रांसजेंडर शख्स हैं जिन्हें एक कोविड वैक्सीन सेंटर का प्रमुख बनाया गया है। डॉ. अक्सा शेख इसी के साथ रूसी वैक्सीन स्पूतनिक वी के क्लीनिकल ट्रायल के दौरान एक इन्वेस्टिगेटर की भूमिका निभा रही थीं, जबकि ट्रांसकेयर प्रोजेक्ट के साथ भी जुड़ी हुई हैं।
डॉ अक्सा आज एक सामुदायिक चिकित्सा विशेषज्ञ होने के साथ ही जामिया हमदर्द में एक सहयोगी प्रोफेसर, लेखक और ह्यूमन सॉलिडेरिटी फाउंडेशन नाम के एक एनजीओ की संस्थापक और निदेशक भी हैं।
डॉ अक्सा शेख के अनुसार जब लोग उनकी मेडिकल सुविधा में आते हैं तो वे उनके साथ सम्मान से पेश आते हैं। लोग उन्हे एक ऐसे मेहनती मेडिकल प्रोफेशनल की तरह देखते हैं जो रोगियों के लिए पूरी तरह समर्पित है। उनका मानना है कि वो ‘सशक्त’ हुईं हैं, लेकिन अभी समुदाय के भले के लिए काफी काम किया जाना बाकी है।
महामारी ने बढ़ाई मुश्किलें
महामारी ने ट्रांसजेंडर समुदाय को किस तरह प्रभावित किया है इस बारे में डॉ. अक्सा ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए बताया है कि महामारी ने यूं तो सभी के लिए मुश्किलें खड़ी की हैं,लेकिन ट्रांसजेंडर समुदाय इससे बुरी तरह प्रभावित हुआ है।
डॉ. अक्सा कहती हैं कि
‘महामारी से पहले भी इस समुदाय के लोगों को आय अर्जित करने के लिए भीख मांगने, बधाई देने या सेक्स वर्क पर निर्भर रहना पड़ता था, लेकिन अब कोरोना महामारी के चलते लागू हुए लॉकडाउन ने आजीविका के इन साधनों को भी बंद कर दिया है। वर्तमान में अधिकतर ट्रांसपर्सन ने अपनी आजीविका के सभी साधन खो दिये हैं।'
खुद को किया स्वीकार
डॉ. अक्सा कहती हैं करीब 20 साल की उम्र में उन्हें यह पूरी तरह समझ आ चुका था कि वो कौन हैं, लेकिन इसके पहले उन्हें भी कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ा जिसमें उन्हें बुली किया जाना और अकेलापन भी शामिल रहा है। डॉ. अक्सा के अनुसार इसके पहले उन्हें भ्रम या कहें कि दुविधा थी लेकिन वह खुद को लैंगिक आधार पर समझने की कोशिश कर रही थीं।
डॉ. अक्सा के अनुसार उनके परिवार के लिए यह सब समझ पाना और फिर उसे स्वीकार कर पाना इतना आसान नहीं था। परिवार की स्वीकृति डॉ. अक्सा के लिए एक दिन का मसला नहीं था, बल्कि यह एक यात्रा जैसी रही। समय के साथ परिवार के बीच में उनके लिए स्वीकार्यता बढ़ती रही। अब डॉ. अक्सा अपनी माँ के साथ रहती हैं और उन्हें उनके दोस्तों और शुभचिंतकों का पूरा समर्थन प्राप्त है।
डॉ. अक्सा अभी जेंडर रिअसाइनमेंट सर्जरी और हॉरमोन रिप्लेसमेंट सर्जरी की प्रक्रिया से गुजर रही हैं। डॉ. अक्सा के अनुसार डिस्फोरिया से छुटकारा पाने के लिए कुछ लोगों के लिए ये सर्जरी महत्वपूर्ण हैं, आमतौर पर देखा गया है कि ये ट्रांसजेंडर व्यक्तियों में आत्महत्या के प्रमुख कारणों में से एक है।
डॉ. अक्सा कहती हैं कि आज LGBTQ समुदाय के प्रति जागरूकता फैलाने लिए काफी प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन फिर अभी भी एक लंबी दूरी तय की जानी बाकी है।
Edited by Ranjana Tripathi