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मिलें उत्तराखंड की ‘मशरूम गर्ल’ से, जो मशरूम कल्टीवेशन के जरिये कर रही हैं करोड़ों का कारोबार

इस 'मशरूम गर्ल' ने दिल्ली एनसीआर में अपनी नौकरी छोड़कर वापस अपने गृह नगर की ओर रुख किया और अपने काम और अपनी लगन के जरिये क्षेत्र में हो रहे किसानों के पलायन को रोकने में सफलता हासिल की है।

मिलें उत्तराखंड की ‘मशरूम गर्ल’ से, जो मशरूम कल्टीवेशन के जरिये कर रही हैं करोड़ों का कारोबार

Friday September 11, 2020 , 3 min Read

उत्तराखंड राज्य के चमोली (गढ़वाल) जिले की दिव्या रावत आज महिला किसान से जुड़े हुए वो सारे भ्रम तोड़ रही हैं, जो इस पित्तृसत्ता से जूझते हुए समाज ने सदियों से बुने हैं। दिव्या ने महिला किसान होने को एक नई परिभाषा देने का काम किया है, जहां उन्होने यह साबित किया है कि एक महिला खुद को किसान के रूप में स्थापित करते हुए अच्छी कमाई के साथ ही समाज में अपनी विशेष जगह भी बना सकती है। दिव्या आज मशरूम कल्टीवेशन के क्षेत्र में एक जाना माना नाम बन चुकी हैं और उन्हे ‘मशरूम गर्ल’ से संबोधित भी किया जाता है। मशरूम के जरिये दिव्या आज करीब 2 करोड़ रुपये से अधिक का सालाना कारोबार कर रही हैं।


दिव्या को अब तक कई बड़े अवार्ड्स से सम्मानित किया जा चुका है, कुछ साल पहले उन्हे राष्ट्रपति द्वारा नारी शक्ति अवार्ड से भी नवाजा गया था। दिव्या की कहानी बेहद दिलचस्प और प्रेरणा देने वाली है कि किस तरह उन्होने दिल्ली एनसीआर में अपनी अच्छी नौकरी छोड़कर वापस अपने गृह नगर की ओर रुख किया और अपने काम और अपनी लगन के जरिये क्षेत्र में हो रहे किसानों के पलायन को रोकने में सफलता हासिल की है।

दिव्या रावत

दिव्या रावत



ऐसे हुई शुरुआत

उत्तराखंड के देहरादून की रहने वाली दिव्या के पिता रिटायर्ड आर्मी अधिकारी हैं। दिव्या की शुरुआती पढ़ाई नोएडा से हुई, जिसके बाद उन्होने एनसीआर क्षेत्र में एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते हुए अपने करियर की शुरुआत की, इस दौरान दिव्या ने एक के बाद एक करीब 8 नौकरियाँ छोड़ी। अपनी नौकरियों में मिली असंतुष्टि और कुछ अलग करने की चाह दिव्या को वापस उनके गृह राज्य उत्तराखंड ले आई। दिव्या का गाँव कोट कंडारा चमोली जिले से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।


साल 2013 में जब दिव्या उत्तराखंड वापस लौटीं तब उन्होने पाया कि रोजगार के अभाव में लोग वहाँ से पलायन करने को मजबूर थे और तभी दिव्या ने इस दिशा में कुछ अलग करने का संकल्प लिया। साल 2015 में दिव्या ने मशरूम उत्पादन का खुद प्रशिक्षण लिया। दिव्या ने महज 3 लाख रुपये के निवेश के साथ मशरूम का कारोबार शुरू किया और धीरे-धीरे उनके साथ क्षेत्र के कई लोग जुड़ने शुरू हो गए। दिव्या ने खुद मशरूम की खेती करते हुए क्षेत्र के अन्य लोगों को भी मशरूम की खेती के लिए प्रेरित किया।

मशरूम की खेती ने क्षेत्र के कई लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया है।

मशरूम की खेती ने क्षेत्र में बड़े स्तर पर रोजगार उपलब्ध कराया है।



मशरूम की ब्रांड एम्बेस्डर

दिव्या के इस सराहनीय प्रयास के लिए राज्य सरकार ने उन्हे ‘मशरूम की ब्रांड एम्बेस्डर’ घोषित कर दिया। दिव्या ने अब तक उत्तराखंड के कई जिलों में 50 से अधिक यूनिटों की स्थापना की है, इसी के साथ वह अपनी टीम के साथ गाँव-गाँव जाकर लोगों को मशरूम की खेती के लिए प्रोत्साहित करते हुए उन्हे प्रशिक्षण भी देती हैं।


दिव्या ‘सौम्या फूड प्राइवेट कंपनी’ चलाती हैं, जिसका सालाना टर्नोवर आज करोड़ों रुपये में है। मोथरोवाला में उनका मशरूम प्लांट भी है, जहां साल भर मशरूम का उत्पादन किया जाता है। प्लांट में सर्दियों के मौसम में बटन, मिड सीजन में ओएस्टर और गर्मियों के मौसम में मिल्की मशरूम का उत्पादन किया जाता है।


दिव्या हिमालय क्षेत्र में पाए जाने वाली कीड़ाजड़ी की एक प्रजाति कार्डिसेफ मिलिटरीज़ का भी उत्पादन करती हैं, जिसकी बाज़ार में कीमत 2 से 3 लाख रुपये प्रति किलो तक हो सकती है। कीड़ाजड़ी के व्यावसायिक उत्पादन के लिए दिव्या ने कई लैब की स्थापना की है। कीड़ाजड़ी के उत्पादन के लिए दिव्या ने थाईलैंड जाकर प्रशिक्षण लिया था और इसकी अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में काफी मांग है, जबकि भारत में इसका उत्पादन व्यवसायिक स्तर पर ना के बराबर होता है।