मानसिक दिव्यांग लोगों के मसीहा बन चुके हैं ये सब-इंस्पेक्टर, ड्यूटी के साथ अपने खर्च पर करते हैं सेवा
इस पहल की शुरुआत जगत सिंह ने साल 2008 से की थी और तब उन्हें इस नेक काम में अपने तमाम साथी पुलिसकर्मियों का भी सहयोग मिला है।
इन दिनों हरियाणा के एक सब-इंस्पेक्टर की चर्चा हर ओर हो रही है। ये सब इंस्पेक्टर आज क्षेत्र के मानसिक रूप से दिव्यांग और बेसहारा लोगों के लिए मसीहा बने हुए हैं। सोनीपत पुलिस में तैनात सब-इंस्पेक्टर जगत सिंह ने ऐसे लोगों की सेवा के लिए एक अनूठी पहल की शुरुआत की है जिसके बाद उनके इस नेक काम की सराहना राज्य के साथ ही पूरे देश में हो रही है।
मीडिया से बात करते हुए सब इंस्पेक्टर जगत सिंह ने बताया है कि उनकी माँ ने खुद शरीर दान करने का फैसला लिया था और उनकी मृत्यु के बाद उनके शरीर के सभी अंगों को दान कर दिया गया था। अपनी माँ के इस कदम से प्रभावित होने के बाद सब इंस्पेक्टर जगत सिंह ने ना सिर्फ अपना शरीर दान किया बल्कि उनके परिवार के अन्य सदस्यों ने भी इस पहल में आगे बढ़ कर हिस्सा लिया। जगत सिंह के अनुसार उनकी माँ ने उनसे कहा था कि उनके द्वारा लोगों की जितनी अधिक सेवा जो सके उन्हें वह करनी चाहिए।
2008 से जारी है ये नेक काम
माँ की बात को याद रखते हुए जगत सिंह ने जीवन भर जरूरतमंद लोगों की सेवा करने का प्रण लिया और वे तब से इस नेक काम को लगातार कर रहे हैं। मीडिया प्लेटफॉर्म न्यूज़ के अनुसार अपनी इस पहल की शुरुआत जगत सिंह ने साल 2008 से की थी और तब उन्हें इस नेक काम में अपने तमाम साथी पुलिसकर्मियों का भी सहयोग मिला है।
इस पहल की शुरुआत के बाद से जगत सिंह ने कभी भी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। जगत सिंह ने अब तक करीब 80 से अधिक मानसिक रूप से दिव्यांग लोगों को सड़कों से उठाकर देखभाल आश्रम पहुंचाने का काम किया है। मीडिया से बात करते हुए जगत सिंह ने यह भी बताया है कि उन लोगों में से करीब 10 लोग ठीक होकर अपने घर भी वापस जा चुके हैं।
ड्यूटी के साथ जारी है सेवा
जगत सिंह अपनी ड्यूटी के साथ ही इस सेवा के लिए भी समय निकाल रहे हैं। जगत सिंह इसकी शुरुआत हर रोज़ सुबह ही कर देते हैं और इस दौरान वे ऐसे जरूरतमंद और असहाय लोगों की देखभाल का भी काम करते हैं। इसी के साथ जगत सिंह उन्हें अपने खर्चे पर आश्रम पहुंचाने का भी काम करते हैं।
जगत सिंह इस दौरान ऐसे लोगों के लिए खाने-पीने की भी व्यवस्था करते हैं। इतना ही नहीं, जगत सिंह खुद भी आश्रम जाते हैं और वहाँ भी वे इन लोगों की सेवा में लगे रहते हैं। जगत सिंह कहते हैं कि ‘ऐसे बेसहारा लोगों के पास ना तो रहने के लिए छत है, ना पहनने के लिए कपड़े हैं और ना ही उनके पास खाने के लिए रोटी है, ऐसे में ये लोग किसी जानवर की तरह सड़कों पर रह रहे हैं। ऐसे लोगों की मदद करना हम सभी का कर्तव्य है।’
इन जरूरतमंद लोगों की सेवा में आने वाले खर्च को जगत सिंह खुद अपनी जेब से वहन करते हैं और इस काम में उनके कुछ साथी भी उनकी मदद करते हैं। जगत सिंह के अनुसार ये कम करके उन्हें एक तरह के आंतरिक सुख की प्राप्ति होती है।
Edited by रविकांत पारीक