यूनिकॉर्न, 28.4 लाख नौकरियाँ, स्मार्टफ़ोन: कैसे सस्ते डाटा और UPI ने खोला रोज़गार का रास्ता
किसी भी स्टार्टअप इकोसिस्टम को सही ढंग से फलने फूलने के लिए मज़बूत इंफ़्रास्ट्रकचर की ज़रूरत होती है और पिछले छह सालों में भारत सरकार ने वह उपलब्ध कराया है जिसकी बदौलत लाखों लोगों को रोज़गार मिला है.
भारत में एक अरब डॉलर के वैल्यूएशन वाली यूनिकॉर्न कम्पनियां अब 100 हो गई हैं और उन्होंने मिलकर 28 लाख 40 हज़ार लोगों को नौकरियाँ दी हैं. इस बड़ी उपलब्धि का जश्न मनाते हुए, यह ज़रूरी है कि हम इसे मुमकिन करने वाले इंफ़्रास्ट्रकचर – ख़ासकर सस्ते इंटरनेट डेटा और यूपीआई - की भूमिका को रेखांकित करें.
जिन छह सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने स्टार्टअप इंडिया अभियान शुरू करके उसके लिए आधारभूत ढाँचा निर्मित किया, उस दौर ने देश के कुछ सबसे प्रतिभाशाली लोगों को खुद का व्यवसाय करने और उद्यमिता की ओर प्रेरित किया.
स्टार्टअप इकोसिस्टम की मदद करने के सरकार के सतत प्रयासों के कारण रजिस्टर्ड स्टार्टअप्स की संख्या में ज़बरदस्त वृद्धि हुई है. वित्तीय वर्ष 2017 में जहां कुल रजिस्टर्ड स्टार्टअप्स की संख्या 726 थी, वह मार्च 2022 में 66,359 तक पहुँच गयी है.
भारत सरकार के उद्योग एवं वाणिज्य मंत्रालय के Department for Promotion of Industry and Internal Trade (DPIIT) के अंतर्गत रजिस्टर हुए इन स्टार्टअप्स ने अब तक 7 लाख 7 हजार लोगों को नौकरियाँ दी हैं. पिछले साल जून में यह आँकड़ा 5.50 लाख पर था यानि महामारी डेढ़ लाख से अधिक नौकरियाँ और दी गई हैं.
अपने स्तर पर 100 Unicorns of India में से हरेक ने औसतन 3,489 फ़ुल टाइम जॉब दिए हैं. इसमें से 34 में काम करने वालों की संख्या 1,000 से कम है, बाक़ी 66 यूनिकॉर्न ने 28.4 लाख नौकरियों में से 28.3 लाख दी हैं.
कुल रोज़गार का 90.5% यानि 25 लाख 80 हजार नौकरियाँ टॉप 10 यूनिकॉर्न कंपनियों ने प्रदान की हैं.
12 हजार कर्मचारियों और 15 लाख ड्राइवर्स के साथ
अकेले ही 53% रोज़गार के लिए ज़िम्मेवार है. 4,259 कर्मचारियों और 3.5 लाख डिलीवरी पार्टनर्स के साथ दूसरे नम्बर हैं. (7.85%), (7.19%), और (3.10%) इसके बाद तीसरे, चौथे और पाँचवे नम्बर पर हैं.लेकिन इसने रफ़्तार तब पकड़ी जब 2016 में पीएम मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने यूपीआई [Unified Payment Interface] को लाँच किया.
2021 में प्रकाशित UBS Securities Asia की रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने बताया है कि यूपीआई को सरकार ने इस तरह शुरू किया कि उसमें मर्चेंट डिस्काउंट रेट [MDR] न हो. उसी रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि 2020 में यूपीआई से 373 अरब डॉलर मूल्य के 11 अरब ट्रांजेक्शन हुए जबकि 2019 में लेनदेन का कुल मूल्य 287 अरब डॉलर था.
और तब से यह संख्याएँ बढ़ती ही गयी हैं. इस साल 29 मार्च तक National Payments Corporation of India (NPCI) ने 83.45 लाख करोड़ के ट्रांजेक्शन रिकार्ड किये जो कि पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में दुगुना है.
निस्संदेह यूपीआई ने टेक स्टार्टअप्स द्वारा महानगरों से परे उपभोक्ताओं को सीधे उत्पाद और सेवाएँ प्रदान करने में की महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है.
इसी तरह इंटरनेट विस्तार ने भी स्टार्टअप्स को महानगरों से आगे बढ़ने में सक्षम किया है. TRAI (Telecom Regulatory Authority of India) का डाटा बताता है कि भारत में मार्च 2022 तक 1.14 अरब वायरलेस इंटरनेट उपभोक्ता हो चुके थे जिनमें 24.23 अरब शहरी और 17.86 अरब ग्रामीण क्षेत्रों में हैं.
इंटरनेट विस्तार के साथ सरकार ने डाटा की क़ीमत कम करने के लिए भी गम्भीर प्रयास किये हैं. TRAI की रिपोर्ट के मुताबिक़ 2015 में जहां एक GB डाटा के लिए 226 रुपये लगते थे, वहीं 2018 में महज़ 11.78 रुपये लगने लगे. 2020 में यह क़ीमत और गिरकर 10.9 रुपये प्रति GB तक आ गई.
सस्ते डाटा के कारण ड्राइवर और डिलीवरी पार्टनर स्टार्टअप अर्थव्यवस्था से जुड़ गये जिसका गरीब परिवारों पर सीधा सकारात्मक प्रभाव पड़ा है. Tata Institute of Social Sciences (TISS), Hyderabad ने खाना सप्लाई करने वाली कंपनियों पर प्रकाशित अपने स्टडी Understanding food delivery platform: Delivery persons’ perspective में बताया है कि डिलीवरी पार्टनर चाहे स्थायी हों या अस्थायी इससे उनकी आमदनी पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है.
फुल टाइम खाना डिलीवरी पार्टनर्स की मासिक आमदनी जहां 15,500 से 35,500 के बीच है, वहीं पार्ट टाइम करने वालों की 14,647 से 34,000 के बीच है.
जब TISS के अध्येताओं ने उनसे पूछा कि क्या उनसे काम के दौरान सम्मानपूर्वक व्यवहार होता है तो 56% ने सकारात्मक जवाब दिया. स्पष्ट है ऐसे परिवारों के लिए नौकरी ग़रीबी से बाहर निकलने और सम्मानपूर्वक जीवन जीने में अपनी भूमिका निभा रही है.
100 Unicorns of India की कहानी पर वापस लौटें तो 2011 से अब तक इन्होंने कुल 62.0 अरब डॉलर का फंड जुटाया है और बाज़ार में इनकी मिलीजुली क़ीमत 331 अरब डॉलर आंकी जाती है. कोरोना महामारी ने भी इनकी ग्रोथ को रोका नहीं बल्कि 2021 में 44 स्टार्टअप और 2022 में अब तक 15 स्टार्टअप 1 अरब डॉलर मार्केट वैल्यू वाले क्लब में शामिल हुए यानि यूनिकॉर्न बने.
और यह कहानी यहाँ से और आगे जाने वाली है. वेंचर कैपिटल फ़र्म Iron Pillar का दावा है कि 2025 तक भारत में 250 यूनिकॉर्न कंपनियाँ हो जाएँगी.
दिनोंदिन मज़बूत होता स्टार्टअप इकोसिस्टम और यूनिकॉर्न की बढ़ती संख्या पीएम मोदी की आत्मनिर्भर भारत की महत्वाकांक्षाओं को मूर्त रूप देने में निश्चय ही मददगार होंगी.