कहानी Emami की...दो दोस्त, 20000 रुपये और 50 साल पहले शुरू हुई एक कंपनी, आज 25000 करोड़ का रेवेन्यु
आरएस गोयनका एक अप्रैल से गैर-कार्यकारी चेयरमैन हैं, जबकि आरएस अग्रवाल मानद चेयरमैन हैं. दोनों इन भूमिकाओं के लिए कोई भुगतान नहीं ले रहे हैं.
अब आपको बाजार में इमामी (Emami) के मसाले भी मिलेंगे. इमामी लिमिटेड की अनुषंगी इमामी एग्रोटेक लिमिटेड ने अब मसाला क्षेत्र में कदम रखा है. कंपनी ने मसाला ब्रांड ‘मंत्रा’ को राष्ट्रव्यापी स्तर पर उतारने की घोषणा की है. दैनिक उपयोग का सामान बनाने वाली कंपनी इमामी की जर्नी आजकल की नहीं है. यह दो दोस्तों की गहरी दोस्ती और एकदम परिवार जैसे रिश्तों से खड़े हुए एक बिजनेस की कहानी है.
राधेश्याम अग्रवाल (Radheshyam Agarwal) और राधेश्याम गोयनका (Radheshyam Goenka) की ऐसी दोस्ती जो बचपन से शुरू हुई और कारोबारी पार्टनरशिप बनने के बाद भी आज तक जारी है. दोनों दोस्तों ने 20000 रुपये से अपना बिजनेस शुरू किया था आज उनके द्वारा खड़े किए गए इमामी ग्रुप (Emami Group) का कारोबार 25000 करोड़ रुपये से ज्यादा का है. आइए जानते हैं क्या है Emami की कहानी...
कैसे मिले दो बच्चे और बन गए हमेशा के लिए दोस्त
राधेश्याम गोयनका और राधेश्याम अग्रवाल कोलकाता के एक ही स्कूल में थे. दोनों का परिचय एक कॉमन फ्रेंड के जरिए हुआ. राधेश्याम अग्रवाल, राधेश्याम गोयनका से सीनियर थे. अग्रवाल जल्द ही स्कूल के पाठ्यक्रम पर अपने जूनियर को पढ़ाने के लिए कमोबेश रोजाना गोयनका के घर जाने लगे. राधेश्याम गोयनका के पिता वैसे तो काफी अनुशासनप्रिय और गुस्से वाले थे लेकिन राधेश्याम की जोड़ी के लिए उनके पास स्नेह के अलावा कुछ नहीं था. 1964 में अग्रवाल बीकॉम पास करके चार्टर्ड अकाउंटेंसी की पढ़ाई करने लगे और पहले ही अटेम्प्ट में मेरिट के साथ इसे पूरा किया. गोयनका ने एक साल बाद अपना बीकॉम पूरा किया और आगे एमकॉम और एलएलबी करने लगे. गोयनका की देखादेखी अग्रवाल ने भी अपने कानूनी कौशल सुधारने का फैसला किया और लॉ करने के लिए गोयनका के साथ हो लिए. 1968 तक दोनों ने अपनी शिक्षा पूरी कर ली थी.
कॉलेज के दौरान कई कामों में आजमाया हाथ
कॉलेज में रहते हुए, दोनों दोस्त कॉलेज स्ट्रीट में सेकेंड हैंड बुकशॉप में घंटों बिताते थे, जिसमें कॉस्मेटिक्स के लिए केमिकल फॉर्मूलों वाली किताबें होती थीं. वे कोलकाता के बड़ा बाजार में हाथोंहाथ बिक जाने वाले प्रॉडक्ट बनाना चाहते थे. कॉलेज खत्म करने से पहले ही अग्रवाल और गोयनका ने कई बिजनेसज में खुद को आजमाना शुरू कर दिया. इसबगोल और टूथ ब्रश की रीपैकेजिंग से लेकर प्रसिद्ध जैसोर कॉम्ब्स में ट्रेडिंग, लूडो जैसे बोर्ड गेम्स की मैन्युफैक्चरिंग जैसे बिजनेस उन्होंने किए. बोर्ड गेम्स की मैन्युफैक्चरिंग के लिए अग्रवाल कम लागत वाला, घर का बना गोंद बनाते थे और बोर्ड को चिपकाने के लिए श्रमिकों के साथ खुद बैठते थे. कॉलेज के बिजी शिड्यूल के बावजूद, दोनों अपने सामान को हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शा पर ले जाते, बड़ा बाजार में दुकान-दुकान बेचा करते.
दोनों दोस्तों को करना तो बहुत कुछ था लेकिन पूंजी की कमी रुकावट बन रही थी. उन्होंने महसूस किया कि बिना पर्याप्त सीड फंडिंग उनका व्यापार फल-फूल नहीं पाएगा. तब उनकी मदद को आगे आए गोयनका के पिता केशरदेव. केशरदेव गोयनका ने दोनों दोस्तों को 20000 रुपये दिए और अपने बेटे और उसके दोस्त के बीच 50:50 की साझेदारी की. इस तरह जन्म हुआ केमको केमिकल्स का.
कहां लगाई पहली यूनिट
उत्तरी कलकत्ता में मार्बल पैलेस के आसपास के क्षेत्र में 48, मुक्ताराम बाबू स्ट्रीट में केमको केमिकल्स की एक छोटी निर्माण इकाई शुरू की गई. केशरदेव की ओर से मिली 20000 रुपये की मदद ने गोयनका और अग्रवाल का उत्साह बढ़ाया लेकिन माहौल ठीक नहीं था. ऐसी प्रतिकूलता छाई कि कई सालों पुरानी कंपनियों पर भी व्यवसाय से बाहर होने का खतरा पैदा होने लगा. केमको केमिकल्स की स्थापना के एक साल के भीतर, गोयनका और अग्रवाल ने देखा कि उनकी पूंजी पूरी तरह से खत्म हो गई है. व्यवसाय उधारी पर चलता था, तो ग्राहकों से धोखा भी खाने को मिला. इस झटके से दोनों दोस्तों ने सबक सीखा कि उचित हिसाब रखना जरूरी है. शर्मिंदा और पछतावे से भरे हुए, दोनों केशरदेव के पास वापस गए और बताया कि वे कारोबार समेटना चाहते हैं. लेकिन यह सुनकर केशरदेव आगबबूला हो गए. उन्होंने अपने बेटे और उसके दोस्त से कहा कि वह उन्हें 1 लाख रुपये और देने को तैयार हैं, लेकिन पीछे हटने का कोई सवाल पैदा नहीं होता है. उसके बाद दोनों दोस्त चीजों को कैसे प्राप्त किया जाए, इस बारे में बेहतर निर्णय के साथ व्यवसाय में वापस आ गए.
बिड़ला समूह में नौकरी भी की
1968 में केमको केमिकल्स की शुरुआत में, कंपनी ने बुलबुल और कांति स्नो, पॉमेड या गरीब आदमी की वैसलीन जैसे सस्ते सौंदर्य प्रसाधनों की रिपैकेजिंग शुरू की. ये ऐसे उत्पाद थे, जिन्हें देश के नए सौंदर्य प्रसाधन बाजार में बहुत संरक्षण मिला था. लेकिन मार्जिन कम था. दोनों दोस्त बड़ा बाजार में थोक विक्रेताओं को पूरे कार्टन 36 रुपये प्रति ग्रूस या 3 रुपये दर्जन के हिसाब से बेचा करते थे. कुछ साल और निकल गए. केमको का विस्तार घोंघे की रफ्तार से चल रहा था. इस सब के बीच अग्रवाल और गोयनका दोनों की शादी हो गई. जिम्मेदारियां बढ़ीं तो अधिक पैसा बनाने का दबाव भी बढ़ा. इसी बीच कलकत्ता के तत्कालीन प्रमुख कॉर्पोरेट घराने बिड़ला समूह के लिए काम करने का अवसर निकला. दोनों दोस्त इसे गंवाना नहीं चाहते थे. 1970 के दशक के मध्य तक गोयनका, केके बिड़ला समूह में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के प्रमुख बन गए. वहीं अग्रवाल, आदित्य बिड़ला समूह के उपाध्यक्ष बन गए. नौकरी के दौरान भी साइड में उनका बिजनेस भी चलता रहा.
Emami ब्रांड की कैसे हुई शुरुआत
बिड़ला समूह जैसे बड़े कॉर्पोरेट सेटअप के कामकाज से अवगत होने के बाद गोयनका और अग्रवाल ने महसूस किया कि अगर उन्हें बड़ी लीग में आना है तो प्रॉडक्ट लाइन में अंतर लाना होगा. लीक से हटकर सोच और मार्जिन में सुधार जरूरी है. उन दिनों इंपोर्टेड कॉस्मेटिक्स और विदेशी लगने वाले ब्रांड नामों का क्रेज था. लाइसेंस राज के तहत ऐसी विवेकाधीन वस्तुओं पर प्रतिबंध था, लेकिन फिर भी उनके लिए बड़ी सीक्रेट मांग थी. इंपोर्टेड आइटम्स पर 140 प्रतिशत उत्पाद शुल्क लगता था, लिहाजा उन्हें खरीद पाना हर किसी के बस में नहीं था. गोयनका और अग्रवाल ने इस मौके को भुनाने का फैसला किया और नौकरी छोड़कर 1974 में इमामी ब्रांड लॉन्च किया.
नए ब्रांड के तहत उन्होंने जो कोल्ड क्रीम, वैनिशिंग क्रीम और टैल्कम पाउडर लॉन्च किया, उसे बाजार से काफी अच्छा रिस्पॉन्स मिला. यह रिस्पॉन्स इतना तगड़ा था कि इमामी को एक घरेलू नाम बनने में देर नहीं लगी. केमको के पास अपने प्रतिद्वंद्वियों पॉन्ड्स और एचयूएल जैसी भव्य विज्ञापन और प्रचार गतिविधियों पर खर्च करने के लिए पैसा नहीं था. तो उन्होंने पुरानी शराब को नई बोतल में बेचने जैसा उपाय किया. पैकेजिंग को पूरी तरह से नया रूप दिया. शुरुआत में दोनों दोस्त फुटपाथ पर बैठकर चाय पीते हुए डिस्कस करते थे कि प्रॉडक्ट कैसे बेचे जाएं. वे खुद स्टोर्स में जाते थे अपने प्रॉडक्ट दिखाते थे. बाद में पैसे कलेक्ट करने भी खुद ही जाते थे.
फिर जब कॉस्मेटिक्स मार्केट को हिलाकर रख दिया
पुराने जमाने में टैल्कम पाउडर टिन के कंटेनर में बिकते थे. ब्रांड नाम सीधे टिन पर स्क्रीन प्रिंट किया जाता था. इसमें कुछ भी आकर्षक नहीं था. इमामी को भारतीय बाजार में पहली बार फोटो टोन लेबल वाले ब्लो मोल्डेड प्लास्टिक कंटेनर में पेश किया गया. गोल्डन लेबलिंग वाला सुंदर हाथीदांत रंग का कंटेनर ऐसा लग रहा था, जैसे इसे विदेश से भेजा गया हो. उस समय भारत सरकार ने कंटेनर पर एमआरपी मुद्रित करना अनिवार्य नहीं किया था. इससे अग्रवाल और गोयनका को काफी मदद मिली. इमामी का प्रॉडक्ट, विशेष रूप से टैल्क इतना हिट रहा कि दुकानदार इसे स्टॉक में रखने के लिए हरसंभव कोशिश करने लगे. इसके बाद जब इमामी ब्रांड ने माधुरी दीक्षित को ब्रांड एंबेसडर के रूप में साइन किया तो ब्रांड पूरे देश की नजर में आ गया.
इमामी की सफलता ने एचयूएल जैसे बाजार के तत्कालीन दिग्गजों को हैरान कर दिया. कंपनी के अन्य प्रॉडक्ट्स ने भी इसी तरह की हलचल पैदा की. वैनिशिंग क्रीम ने कुछ ही महीनों में पॉन्ड्स को कड़ी टक्कर दी और कुछ ही वर्षों में इमामी की बाजार हिस्सेदारी बढ़कर 25 प्रतिशत हो गई. कंपनी इस क्षेत्र में अग्रणी बन गई. 1978 में अग्रवाल और गोयनका ने हिमानी लिमिटेड को खरीदा.
आज इमामी ग्रुप का कारोबार कितना बड़ा
अभी इमामी ग्रुप का कारोबार 64 देशों में फैला हुआ है. 130 से ज्यादा इमामी प्रॉडक्ट हर सेकंड बिकते हैं. इमामी लिमिटेड, जो ग्रुप की फ्लैगशिप कंपनी है, उसका रेवेन्यु वित्त वर्ष 2021-22 में 2,866.87 करोड़ रुपये दर्ज किया गया. बीएसई पर कंपनी का मार्केट कैप 20,803.24 करोड़ रुपये है. इमामी ग्रुप एफएमसीजी, न्यूजप्रिंट, बॉल पेन टिप्स मैन्युफैक्चरिंग, रिटेल, फार्मेसी, इंफ्रास्ट्रक्चर एंड डेवलपमेंट, आर्ट, इडिबल तेल, हेल्थकेयर, सीमेंट, बायो डीजल क्षेत्र में कारोबार करता है. इमामी के पोर्टफोलियो में बोरोप्लस, नवरत्न, फेयर एंड हैंडसम, झंडू बाम, सोना चांदी च्यवनप्राश जैसे ब्रांड शामिल हैं. इमामी की कामयाबी की दास्तान में ये तारीखें अहम हैं-
- 1978 में हिमानी लिमिटेड को खरीदा
- 1982 में बोरोप्लस को लॉन्च किया
- 1989 में पुडुचेरी में दूसरी फैक्ट्री लगाई
- 1995 में बीएसई पर लिस्ट हुई
- 1998 में हिमानी, इमामी में मर्ज हुई
- 2015 में केश किंग का अधिग्रहण
झंडू को भी बना चुकी है अपना
इमामी ने पहले खुले बाजार के माध्यम से झंडू में 3.9 प्रतिशत की अल्पमत हिस्सेदारी का अधिग्रहण कर लिया. बाद में और 24 फीसदी हिस्सेदारी के अधिग्रहण की प्रक्रिया सितंबर 2007 से लेकर मई 2008 के बीच पूरी हुई. इसके लिए इमामी ने 130 करोड़ रुपये दिए. यह हिस्सेदारी इमामी ने देव कुमार वैद्य और अनीता वैद्य से खरीदी थी, जिनके ग्रेट ग्रैंडफादर जगतराम वैद्य ने 1920 में झंडू की शुरुआत की थी. झंडू में अब 27 प्रतिशत शेयरधारक के रूप में, देश में टेकओवर कोड नियमों के अनुसार इमामी के पास कंपनी में अन्य 20 प्रतिशत हिस्सेदारी के लिए एक खुली पेशकश करने का अधिकार था. जब इमामी ने इस आशय की सार्वजनिक घोषणा की, तो काफी सालों से झंडू के ऑपरेशंस संभाल रहे पारिख परिवार ने सेबी के समक्ष अधिग्रहण नियमों के उल्लंघन की याचिका रखी और तर्क दिया कि वैद्य के अपने शेयर बेचने के फैसले से इनकार करने का उनका पहला अधिकार था। पारिख परिवार की झंडू में 18 फीसदी हिस्सेदारी थी.
इमामी की खुली पेशकश की घोषणा के चार दिनों के अंदर, झंडू बोर्ड ने इमामी की हिस्सेदारी को कम करने के लिए प्रमोटर्स को तरजीही आवंटन पर चर्चा करने के लिए बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज को एक नोटिस भी भेजा. मामला पहले सेबी, फिर कंपनी लॉ बोर्ड और फिर बॉम्बे हाई कोर्ट पहुंचा. पारिख अदालतों में अपना आरओएफआर (पहले इनकार का अधिकार) साबित नहीं कर सके. सितंबर 2008 तक, सेबी ने इमामी के खुले प्रस्ताव को भी मंजूरी दे दी, पारिख के पास समझौते के लिए बातचीत करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा. पारिख, झंडू में अपनी 18.18 प्रतिशत हिस्सेदारी इमामी को 15,000 रुपये और 1,500 रुपये प्रति इक्विटी शेयर के गैर-प्रतिस्पर्धी शुल्क पर बेचने पर सहमत हुए. इमामी ने खुले बाजार में 28.5 फीसदी की और खरीदारी की, जिससे झंडू में उसकी कुल हिस्सेदारी करीब 71 फीसदी हो गई. यह सब सौदे की समग्र अधिग्रहण लागत को 730 करोड़ रुपये तक ले गया.
दोनों फाउंडर्स ने साथ में छोड़ा एग्जीक्यूटिव रोल
फरवरी 2022 में दोनों फाउंडर्स आर एस गोयनका (RS Goenka) और आर एस अग्रवाल (RS Agarwal) ने इमामी लिमिटेड में अपने एग्जीक्यूटिव रोल छोड़ने का फैसला किया था. आरएस गोयनका के बड़े बेटे मोहन गोयनका और आरएस अग्रवाल के छोटे बेटे हर्ष अग्रवाल के क्रमश: कंपनी के वाइस-चेयरमैन और प्रबंध निदेशक का पद संभालने का ऐलान हुआ था. हालांकि, कंपनी के संस्थापक कंपनी के बोर्ड में बने रहेंगे. आर एस गोयनका एक अप्रैल से गैर-कार्यकारी चेयरमैन हैं, जबकि आर एस अग्रवाल मानद चेयरमैन हैं. दोनों इन भूमिकाओं के लिए कोई भुगतान नहीं ले रहे हैं.