क्यूँ इस वर्ल्ड चैंपियन बॉक्सर ने अपने देश के लिए युद्ध लड़ने से इंकार कर दिया था?
July 24, 2022, Updated on : Wed Jul 27 2022 17:48:46 GMT+0000

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1964 में बाईस साल के काले मोहम्मद अली ने अपने से दस साल बड़े सोनी लिस्टन को हराकर वर्ल्ड हैवीवेट चैम्पियनशिप जीती थी. इसके बाद के तीन साल मुक्केबाजी में उसकी असाधारण उपलब्धियों के साल थे. वह बहुत छोटी उम्र में सारी दुनिया का चहेता खिलाड़ी बन गया था. प्रायोजक उस पर करोड़ों डॉलर बरसाने को तैयार रहते.
फिर 1966 में अमेरिका ने वियतनाम के ऊपर हमला बोल दिया. युद्ध में अनिवार्य तौर पर हिस्सा लेने के लिए सारे युवाओं को सरकारी आदेश हुआ. मोहम्मद अली को भी इस आशय की चिठ्ठी मिली. उसने युद्ध में भाग लेने से मना कर दिया. उस पर राजद्रोह का मुक़दमा चलाया गया, जिसकी जिरह के दौरान उसने कहा –
“मुझसे यूनिफॉर्म पहनकर घर से दस हजार मील दूर जाकर वियतनाम के लोगों पर बम और गोलियां चलाने को क्यों कहा जा रहा है, जबकि यहाँ अमेरिका के लुईसविल में नीग्रो लोगों के साथ कुत्तों जैसा सुलूक हो रहा है. उन्हें साधारण मानवाधिकार भी मुहैया नहीं हैं?”
“नहीं जी, मैं अपने भाई या गहरी रंगत वाले किसी भी आदमी की हत्या करने को दस हजार मील दूर सिर्फ इसलिए नहीं जा रहा कि दुनिया भर में गोरों का राज चलाया जाते रहे. आज वह दिन आ गया है, जब ऐसी दुष्टता पर रोक लगाई जाय. मुझे चेताया जा चुका है कि मेरे ऐसा करने से मेरी साख दांव पर लग जाएगी और मैं करोड़ों डॉलर की उस रकम से हाथ धो बैठूंगा, जो एक चैम्पियन के तौर पर मुझे मिलना तय है.”
“मैंने पहले भी कहा है और आज भी कह रहा हूँ कि मेरे लोगों का असली दुश्मन यहीं हमारे बीच है. सरकार का आदेश मान मैं अपने धर्म, अपने जन और खुद को शर्मसार नहीं कर सकता.”

“अंतरात्मा इजाजत नहीं देती कि मैं एक शक्तिशाली अमेरिका की खातिर अपने भाइयों की हत्या करने जाऊं. मैं उन पर गोली चलाऊँ भी तो किस लिए? उन्होंने मुझे कभी गाली नहीं दी, मुझे ज़िंदा जलाने की कोशिश नहीं की, न मुझ पर अपने कुत्ते छोड़े. उन्होंने मुझसे मेरी नागरिकता नहीं छीनी. उन्होंने मेरे माँ-बाप के साथ हत्या और बलात्कार जैसे पाप नहीं किये. उन पर गोली चलाऊँ तो क्यों? मैं उन गरीबों पर कैसे गोली चला सकता हूँ? आप मुझे सीधे जेल भेज दीजिये. सच तो यह है कि हम चार सौ सालों से जेल में हैं.”
मोहम्मद अली को पांच साल जेल की सजा मिली. उसका पासपोर्ट छीन लिया गया. उसका बॉक्सिंग लाइसेंस निरस्त कर दिया गया. मार्च, 1967 से अक्टूबर, 1970 तक वह एक बार भी बॉक्सिंग रिंग में नहीं उतर सका. ये 25 से 30 की उसकी उम्र के साल थे, जब एक खिलाड़ी अपनी क्षमताओं के चरम पर होता है.
1971 में सरकार को अपना आदेश वापस लेना पड़ा. अली फिर से रिंग में लौटा और फिर से वर्ल्ड चैम्पियन बना. इस बार वह संसार भर के कालों, मजदूरों, गरीबों और वंचितों का भी चैम्पियन भी था.
जानते हैं न उसकी आत्मकथा का शीर्षक क्या है – ‘द ग्रेटेस्ट’!
बड़ा खिलाड़ी होना एक बात है, बड़ा इंसान होना एक.
Edited by Manisha Pandey
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