बच्चों की आदतों और रुचियों को महत्व देने वाली शिक्षिका रेवा परमार की कहानी
रेवा के विद्यालय का सफलता मंत्र है - "हर बच्चे को सिखाना है, हर बच्चे को आगे बढ़ाना है." उनका मानना है कि हर बच्चे को अपने तरीके से सीखने का मौक़ा मिलना चाहिए और विद्यालय को इसका माध्यम बनाना चाहिए.
मध्यप्रदेश के सीहौर ज़िले के भारुन्दा प्रखंड के खलसनिया गाँव में स्थित प्राथमिक विद्यालय की चर्चा आज पूरे प्रदेश में है. यहां की शिक्षिका रेवा पवार ने शिक्षा को एक नया जीवन दिया है और बच्चों के जीवन में प्रेरणा से भरपूर बदलाव लाया है.
रेवा के विद्यालय में सबसे खास बात है यहां के छात्रों का उत्साह और पढ़ाई में लगाव. प्रार्थना सभा के बाद बच्चे जब आते हैं, तो उनके चेहरों पर मुस्कान बिखरी होती है.
रेवा ने बच्चों को यह सिखाया है कि स्माइल करते हुए अंदर आना एक आदत होनी चाहिए. रेवा का मकसद है कि हर बच्चे का विकास हो. इसलिए वो उनकी आदतों और रुचियों को महत्व देती हैं. उनके विद्यालय में पिछले सत्र में 20 बच्चे प्राइवेट स्कूलों से आए थे.
रेवा खलसनिया गाँव की बहू भी हैं और इस लिहाज़ से जब भी वो गाँव में निकलती हैं तो पेरेन्ट्स बगैर झिझक के उनसे मिलकर अपने बच्चों के बारे में बात करते हैं. जब पेरेन्ट्स रेवा को बताते हैं कि मेरे बच्चे ने आज ये कहानी सुनाई है या फलां पेंटिंग बनाई है तो उनका मन गदगद हो जाता है. उन्हें लगता है बच्चे कुछ सीख रहे हैं.
मिशन अंकुर ने मध्यप्रदेश में शिक्षकों को बेहतर तरीके से पढ़ाने की एक वजह दी है. रेवा को भी इसका काफी फायदा मिला है. उन्हें पहले पाठ योजना बनाना पड़ता था लेकिन अब शिक्षक संदर्शिका मिलने से उनका काम आसान हो गया है. अब बच्चों से पहले मौखिक भाषा पर बात करनी होती है फिर ध्वनि जागरुकता पर और फिर वर्ण पढ़ाया जाता है.
रेवा बताती हैं, “शुरुआत में पहली क्लास के ज़्यादातर बच्चों से कुछ पूछने पर वे बताते नहीं थे, डरे-सहमें से रहते थे लेकिन अब वे खुलकर बातें करने लगे हैं. प्रश्नों और चित्रों को देखकर बताने लगे हैं. बंद छोर और खुले छोर वाले प्रश्नों के भी जवाब देने लगे हैं.”
वो आगे कहती हैं, “मौखिक भाषा से लेकर स्वतंत्र पठन तक बच्चों पर काम होता है. बच्चे वर्कबुक में भी काफी दिलचस्पी के साथ काम करते हैं, उन्हें अच्छा लगता है काम करना. हम कोशिश करते हैं कि हर बच्चे का विकास हो, कोई बच्चा पिछड़े ना, हर बच्चा आगे बढ़े. बच्चा अगर एक तरीके से नहीं सीख रहा है तो कोशिश रहती है कि उसे दूसरे तरीके से सिखाया जाए.”
विद्यालय के वृक्षों में जयामिती आकृतियां बनवाई गई हैं और उन पर अलग-अलग रंग किए गए हैं ताकि स्कूल परिसर में आते ही बच्चे सीखना शुरू कर दें. बच्चों को पता है कि ये वृत है, ये वर्ग है और ये आयत है.
पेड़ों पर गणित के सूत्र भी लिखे दिखाई पड़े. बच्चे जब विद्यालय प्रांगण में प्रवेश कर रहे थे तब आपस में वे अपने दोस्तों संग इन सूत्रों पर चर्चाएं कर रहे थे. ऐसा लगता है जैसे परिसर में प्रवेश करते ही उनकी सीखने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है.
हमने देखा कि बच्चों को सम या विषम बताने का तरीका भी बड़ा नायाब है. इसमें जो गतिविधि कराई जाती है उसमें बच्चों को एक लाइन में खड़ा कर दिया जाता है. फिर रेवा उनसे कहती हैं ‘सम’ तो उन्हें बैठना होता है और ‘विषम’ बोलने पर खड़ा होना पड़ता है. जो गलत करते हैं उन्हें निकाल दिया जाता है, ऐसे में खेल के माध्यम से वे सीखते हैं. इस तरह से वे सम और विषम संख्या को आसानी से समझ जाते हैं.
कक्षा तीन की 9 वर्षीय छात्रा राधिका विश्वकर्मा एक शिक्षिका बनना चाहती हैं. वो बताती हैं कि स्कूल में हम सीख रहे हैं और हमें जीवन में कुछ अच्छा बनना है इसलिए मैं रोज़ स्कूल आती हूं.
रेवा के विद्यालय का सफलता मंत्र है - "हर बच्चे को सिखाना है, हर बच्चे को आगे बढ़ाना है." उनका मानना है कि हर बच्चे को अपने तरीके से सीखने का मौक़ा मिलना चाहिए और विद्यालय को इसका माध्यम बनाना चाहिए.
खलसनिया गाँव का यह प्राथमिक विद्यालय ना केवल शिक्षा के क्षेत्र में अद्वितीय है, बल्कि यहां के छात्र भी नई दिशाओं में अपने जीवन को ढाल रहे हैं.