कहानी यूपी टॉपर की: पिता के देहांत के बाद ट्यूशन पढ़ाकर संभाला घर
पिता के देहावसान के बाद एग्जाम के समय में भी ट्यूशन और नेचुरोपैथी इलाज से चार पैसे कमाकर पैसठ वर्षीय मां, छह बहनों, एक छोटे भाई की परिवरिश करती हुई बागपत की निशा अग्रवाल ने जब यूपी बोर्ड की उत्तर मध्यमा परीक्षा में पूरे प्रदेश में टॉप किया तो उनके संघर्षों की इबारत पत्थर की लकीर बन गई।
पिता के निधन के बाद गरीबी में घिसटती गृहस्थी को अपनी मेहनत से पाल-पोस रहीं बारहवीं की टॉपर छात्रा निशा अग्रवाल की कामयाबी से कवयित्री येलेना रेरिख़ की ये पंक्तियां बरबस याद आ जाती हैं कि 'बीहड़ से गुज़रते हाथियों की तरह झाड़ियों को रौंदते हुए, हटाते हुए पेड़ों को अपने रास्ते से, तुम भी चलो महान् तपस्या की राह पर। इसलिए तुम्हें संघर्ष करना आना चाहिए, बहुतों को आमंत्रित किया जाता है ज्ञान-प्राप्ति के लिए पर बहुत कम हैं जिन्हें ज्ञान प्राप्त होता है हमारे निर्णय-रहस्यों का। इसलिए तुम्हें संघर्ष करना आना चाहिए।' उत्तर प्रदेश माध्यमिक संस्कृत शिक्षा परिषद-लखनऊ (उ.प्र.) की उत्तर मध्यमा द्वितीय (समकक्ष 12वीं) के बोर्ड एग्जाम में दादू बलराम संस्कृत विद्यालय-ग्वालीखेड़ा (बागपत) की छात्रा निशा अग्रवाल ने व्यक्तिगत परीक्षा देकर पूरे प्रदेश में टॉप किया है। निशा मूलतः साहूकारा (पीलीभीत) की रहने वाली हैं।
निशा अग्रवाल कहती हैं कि किसी भी व्यक्ति की सफलता की कहानी कोई दूसरा नहीं लिखता है। अपनी कामयाबी का इतिहास खुद ही लिखना पड़ता है। यदि इंसान में कुछ करने का जज्बा और मेहनत-लगन हो तो निश्चित रूप से सफलता मिलती है। वह बताती हैं कि कुछ वर्ष पहले जब उनके पिता बैजनाथ अग्रवाल चल बसे तो उनके गरीब परिवार में और कोई कमाने वाला नहीं रहा। घर-गृहस्थी संभालने की जिम्मेदारी उनके ही कंधे पर आ पड़ी। वह पढ़ाई के साथ-साथ नेचुरोपैथी से लोगों का इलाज और बच्चों का ट्यूशन करने लगीं। इसी कमाई से मां-बहनों का पेट भरता। ट्यूशन और नेचुरोपैथी से लोगों के इलाज से जो समय बचता, उसमें में वह रोजाना कम से कम आठ-दस घंटे अपनी पढ़ाई-लिखाई का काम कर लेतीं ताकि आगे चलकर वह डिग्री कॉलेज में शिक्षक बनने का अपना सपना पूरा कर सकें।
निशा को चूंकि पैंसठ वर्षीय विधवा मां ज्योति अग्रवाल, छह बहनों और एक छोटे भाई का अपना घर-परिवार भी संभाले रखना था, इसलिए रेगुलर एडमिशन लेकर तो पढ़ाई कर नहीं सकती थीं। कक्षा आठ के बाद उनका मन संस्कृत में रमने लगा। लिहाजा पीलीभीत के एक इंटर कालेज से संस्कृत में हाईस्कूल करने के बाद उत्तर मध्यमा प्रथम एवं द्वितीय वर्ष की व्यक्तिगत परीक्षा का फार्म बागपत के दादू बलराम संस्कृत विद्यालय से भरा। हालात कुछ ऐसे रहे कि जब बोर्ड एग्जाम का समय सिर पर आ गया, उन्होंने व्यक्तिगत फॉर्म भर दिए, साथ ही परीक्षा के दिनो में भी उन्हे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते रहना पड़ा, साथ-साथ नेचुरोपैथी इलाज भी करती रहीं ताकि चार पैसा घर में आएं और रोजी-रोटी चलती रहे। उस दौरान उन्हे कलेजा मजबूत कर बड़ी हिम्मत से काम लेना पड़ा।
पिछले दिनो जब उनका उत्तर मध्यमा का रिजल्ट आया, उनको 600 में 559 यानी 93.16 फीसदी अंक मिले, कड़ी मेहनत का फल मिल गया। पीलीभीत, बागपत में ही नहीं, पूरे प्रदेश में उन्हें आदर से लिया गया। इससे पहले उन्हे उत्तर मध्यमा प्रथम वर्ष में 300 में 270 अंक और द्वितीय वर्ष में 300 में 289 अंक मिले थे। इस बार उन्हें संस्कृत व्याकरण में 50 में 47 अंक, अनिवार्य हिंदी में 50 में 49, चतुर्थ साहित्य में 50 में 46, पंचम साहित्य में 50 में 48, गृह विज्ञान में 49, अतिरिक्त विषय अंग्रेजी में 50 में 30 अंक मिले। उन्होंने कुल सात पेपर्स में से छह में विशेष श्रेणी हासिल की है। निशा कहती हैं कि संस्कृत हमारी आदि भाषा है। संस्कृत और संस्कृति एक-दूसरे के पर्याय हैं। संस्कृति मजबूत होगी तो देवभाषा यानी संस्कृत मजबूत होगी।
यह भी पढ़ें: कॉलेज में पढ़ने वाले ये स्टूडेंट्स गांव वालों को उपलब्ध करा रहे साफ पीने का पानी