[सर्वाइवर सीरीज़] मैं फॉर्मर सेक्सवर्कर्स से कहती हूं कि वे अपने लिए आवाज़ उठाएं; समाज का सामना करने से नहीं डरें
इस हफ्ते की सर्वाइवर सीरीज़ की कहानी में, रशीदा बताती हैं कि कैसे उन्हें सेक्स वर्क के लिए मजबूर किया गया था, लेकिन अब वह अन्य महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित कर रही हैं।
मेरे पति ने मुझे अपने दो छोटे बच्चों के साथ छोड़ दिया। हम पोन्नूर में रहते थे, जो आंध्र प्रदेश के गुंटूर के पास एक छोटा सा शहर है, और मेरे पास आय का कोई स्रोत नहीं था। हम बहुत ही विकट परिस्थितियों में जी रहे थे। तब मेरी एक सहेली मुझे मिली और उसने मुझे मदद और रहने के लिए एक छोटी सी जगह की पेशकश की। कुछ दिनों बाद उसने मुझसे पूछा कि क्या मुझे अपनी जरूरतों को पूरा करने में मदद करने के लिए सेक्स वर्क करने में दिलचस्पी है। उसने मुझे विश्वास दिलाया कि वे सब अपना पेट भरने के लिए ऐसा कर रही हैं।
चीजें बहुत चुनौतीपूर्ण थीं लेकिन मेरे दो बच्चे थे जिन्हें खाना खिलाना था। एक वक्त ऐसा भी आया जब मुझे एक नहीं बल्कि दो आदमियों के साथ जाने के लिए मजबूर होना पड़ा और उन्होंने मुझसे जो कुछ भी कहा, मुझे करना पड़ा। बहुत बार, मुझे उनके साथ बिताए समय के लिए भुगतान नहीं मिलता था। वे बस मुझे जाने के लिए कहते थे और मैं खाली हाथ घर लौट जाती थी।
तभी मेरी एक दूसरी सहेली मस्तानी ने मुझे गुंटूर के एक सामुदायिक संगठन से मिलवाया, जिसने सेक्सवर्कर्स को मैनस्ट्रीम वर्कफॉर्स में पुनर्वास के लिए काम किया। मैंने पहली बार महसूस किया कि मुझे सामान खरीदने के लिए राशन कार्ड, लाभों का दावा करने के लिए आधार कार्ड या अपने अधिकारों की रक्षा के लिए पुलिस अधिकारी, वकील या परामर्शदाता की मदद लेने की आवश्यकता है। मस्तानी ने मुझे फूल विक्रेता के रूप में काम शुरू करने में भी मदद की।
मैं फूल बेचकर अपने परिवार का भरण पोषण करती रही हूं। मैं संगठन की फुल-टाइम मेंबर भी हूं। हम अक्सर एक साथ मिलते हैं और अपनी सभी चुनौतियों पर चर्चा करते हैं और समाधान खोजने के लिए एक समूह के रूप में मिलकर काम करते हैं। इस समूह का हिस्सा बनने के बाद मैंने बहुत कुछ सीखा है।
उदाहरण के लिए, मुझे कभी नहीं पता था कि मेरी पहचान के लिए आधिकारिक दस्तावेज होना और सरकार से लाभ प्राप्त करना कितना महत्वपूर्ण है। मेरे पास एक काउंसलर भी है जो किसी भी चुनौती का सामना करने में मेरी मदद करता है।
मैं अन्य महिलाओं को भी सक्रिय रूप से सलाह देती हूं जो मेरे जैसी स्थिति में रही हैं। मैं उन्हें बताती हूं कि मैं भी एक बार उन्हीं परिस्थितियों में थी। मैं उन्हें संगठन में शामिल होने, जीवन में अपनी इच्छित चीजों के लिए लड़ने और समाज का हिस्सा बनने के लिए प्रोत्साहित करती हूं। उन्हें लोगों का सामना करने और अपनी बात कहने में शर्म नहीं आनी चाहिए। अगर वे ऐसा कर सकती हैं तो दूसरों के जीवन में भी बदलाव ला सकती हैं।
मैं उन्हें बताती हूं कि मैं 'मूर्ख रशीदा' हुआ करती थी, लेकिन आज मैं 'स्मार्ट रशीदा' हूं।
अंग्रेजी से अनुवाद : रविकांत पारीक