समुद्री जीवों को प्लास्टिक प्रदूषण से बचाने पर आगे बढ़ी चर्चा, अंतरराष्ट्रीय संधि के लिए प्रस्ताव पारित
अक्टूबर 2022 में 68वें अंतर्राष्ट्रीय व्हेलिंग आयोग सम्मेलन (IWC68) में समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण पर प्रस्ताव अपनाने के बाद, सदस्य देशों को समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण की स्थिति, कमी और फिर से इस्तेमाल के प्रयासों पर रिपोर्ट देनी होगी.
समुद्री जीवों को प्लास्टिक के प्रदूषण से बचाने के लिए कई देश एक वार्ता पर सहमत हुए हैं. इसके लिए एक प्रस्ताव पर सहमति जताई गई है. अक्टूबर में स्लोवानिया में हुए 68वें अंतर्राष्ट्रीय व्हेलिंग आयोग सम्मेलन (IWC68) में सदस्य देशों ने भविष्य में एक संधि करने पर भी सहमति जताई. ये देश अब समुद्री प्लास्टिक मलबे की स्थिति को रिपोर्ट करने कोशिश करेंगे. अगर भारत की बात करें तो समुद्री प्लास्टिक से निपटने में स्थानीय समुदाय की महत्वपूर्ण भूमिका होगी.
अंतरराष्ट्रीय व्हेलिंग आयोग (IWC) व्हेलिंग के प्रबंधन और व्हेल के संरक्षण के लिए जिम्मेदार एक अंतर-सरकारी निकाय है.
फिलहाल भारत सहित दुनिया भर की 88 सरकारें इस आय़ोग की सदस्य हैं. भारत ने सदस्य देशों द्वारा समुद्री प्लास्टिक की स्थिति पर रिपोर्टिंग प्रतिबद्धताओं को शामिल करने के लिए प्रस्ताव के मसौदे में संशोधन करने में अहम भूमिका निभाई है.
आयोग ने माना कि सेटासीन (व्हेल, डॉलफिन जैसे समुद्री जीव) पर समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण का प्रभाव “मुख्य चिंता” है. बैठक में अपनाए गए प्रस्ताव ने समुद्री पर्यावरण समेत समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतरराष्ट्रीय साधन पर बातचीत शुरू करने के लिए संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा के मार्च 2022 के फैसले की सराहना की.
हालांकि IWC का मुख्य फ़ोकस व्हेल के स्टॉक पर नियंत्रण रखना और यह पक्का करना है कि व्हेलिंग उद्योग में संतुलन बना रहे. यह प्लास्टिक और समुद्री मलबे से भी संबंधित है क्योंकि वे अन्य समुद्री प्रजातियों के बीच व्हेल, डॉल्फ़िन और पोरपॉइज़ के अस्तित्व को प्रभावित करते हैं.
समुद्री जीवों का प्लास्टिक को निगलना और जालों में फंसना अन्य मुद्दे हैं जो चोट लगने और मौत का कारण बनते हैं. IWC68 प्रस्ताव का स्वागत करते हुए वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के समुद्री जीवविज्ञानी साजन जॉन कहते हैं, “व्हेल और व्हेल शार्क फिल्टर फीडर जीव हैं. वे पानी को साफ करते हैं. जब वे प्लास्टिक निगलते हैं, तो यह उनके पाचन तंत्र में जा सकता है और कई समस्याएं पैदा कर सकता है.”
सम्मेलन में शामिल विशेषज्ञों ने बताया, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) का अनुमान है कि लगभग एक करोड़ 30 लाख टन प्लास्टिक हर साल महासागरों में पहुंचता है. इससे सेटासीन की लगभग 68% प्रजातियां प्रभावित होती हैं. प्लास्टिक निगलने के मामले 90 ज्ञात सेटासीन प्रजातियों (63.3%) में कम से कम 57 में पाए जाते हैं. समुद्री कछुओं की सभी प्रजातियों में प्लास्टिक निगलना दर्ज किया गया है. यही नहीं, सर्वे किए गए सभी समुद्री पक्षी और समुद्री स्तनपायी प्रजातियों में लगभग आधे में भी ये देखा गया हैं. इसके अलावा, वे प्रजातियां जो खाने या जाल में उलझने से सीधे प्रभावित नहीं होती हैं, वे कुपोषण, प्रतिबंधित गतिशीलता और कम प्रजनन या विकास जैसे द्वितीयक प्रभावों से पीड़ित हो सकती हैं.
भारत के संशोधनों के साथ यह प्रस्ताव आयोग की बैठक में प्रमुख सफलताओं में से एक था. व्हेलिंग के नियमन के लिए अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में यूरोपीय संघ के सदस्य देशों की ओर से चेक गणराज्य द्वारा समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण पर मसौदा प्रस्ताव रखा गया था. संकल्प को संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, कोरिया गणराज्य, पनामा गणराज्य और भारत द्वारा सह-प्रायोजित किया गया था.
प्रस्ताव को अपनाने के बाद, IWC68 में भारत ने बताया कि 2019 में उनके यहां “2.034 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा पैदा हुआ था. वहीं दुनिया के औसत 20% के मुकाबले महज 60% को रिसायकल किया गया था. इस तरह भारत में ठोस कचरे के प्रबंधन की क्षमता 2014 में महज 18% के मुकाबले 2021 में बढ़कर 70% हो गई. भारतीय मानक ब्यूरो सौंदर्य प्रसाधनों में माइक्रोबीड्स को असुरक्षित के रूप में वर्गीकृत करता है और उसने सौंदर्य प्रसाधनों में माइक्रोबीड्स पर प्रतिबंध लगा दिया है. इसे 2020 में प्लास्टिक कचरे के आयात पर प्रतिबंध के साथ लागू किया गया था.”
बैठक में प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान, भारत के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में वनों के अतिरिक्त महानिदेशक बिवाश रंजन ने कहा कि भारत प्लास्टिक को समुद्री जलीय जीवों के लिए शुरुआती खतरों में से एक मानता था.
रंजन ने कहा, “सिंगल यूज प्लास्टिक और माइक्रोबीड्स पर प्रतिबंध लगाने के अलावा, भारत ने तटों को साफ करने और उन्हें प्लास्टिक मुक्त बनाने के लिए भी कदम उठाए हैं.” उन्होंने कहा कि यह कदम (तटों के पार प्लास्टिक कचरे को हटाने) डॉल्फ़िन को बचाने की योजना को और मजबूत करेगा.
प्रस्ताव के बाद उठाए जाने वाले कदम
आयोग के प्रस्ताव पर कार्रवाई के रूप में देशों के लिए अगला कदम समुद्री प्लास्टिक कचरे पर रिपोर्ट देना है.
भारत ने सदस्य देशों को अपने देश के आसपास समुद्री मलबे की स्थिति और प्लास्टिक रीसाइक्लिंग और उपयोग की मात्रा के बारे में रिपोर्ट देने का बात कहते हुए प्रस्ताव में संशोधन किया.
सेटासीन और व्हेल के संरक्षण के लिए IWC68 के प्रस्ताव पर, भारतीय वन्यजीव संस्थान की वैज्ञानिक कोलीपक्कम ने कहा, “इससे हमें यह पहचानने में मदद मिलेगी कि समस्या कहां है और क्या है. नहीं तो यह सिर्फ एक प्रस्ताव है जो कहता है कि हम प्लास्टिक का इस्तेमाल कम करें. सदस्य देश टिकाऊ इस्तेमाल का रास्ता अपनाएंगे और सिंगल यूज वाले प्लास्टिक को कम करेंगे. यह एक तरह से व्यापक सामान्य प्रस्ताव है और कई देश पहले से ही ऐसा कर रहे हैं. लेकिन भारत के हस्तक्षेप के कारण, हमने सुझाव दिया कि सदस्य देशों को प्लास्टिक की स्थिति और रिसायकल के उपयोग पर रिपोर्ट देनी होगी. अब, यह ज़्यादा प्रासंगिक होगा क्योंकि हम उन लोगों और सरकारों का नाम ले सकते हैं जो सक्रिय रूप से कुछ नहीं कर रही हैं.”
लागू करने में चुनौतियां और समाधान
हालांकि जॉन बताते हैं, IWC68 प्रस्ताव को लागू करने की सफलता कई कारकों पर निर्भर करेगी. मसलन उष्णकटिबंधीय देश भारत में प्लास्टिक प्रदूषण एक जगह से पैदा नहीं होता है. नदियों की कई सहायक नदियां समुद्र में गिरती हैं. कई मानवीय गतिविधियां नदियों के अपस्ट्रीम में होती हैं और नदियों में फेंका गया प्लास्टिक आखिरकार महासागरों में समा जाता है.
जॉन ने मोंगाबे-इंडिया से कहा, “ज्यादातर समय जब हम समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण पर बात करते हैं, तो यह तटीय समुद्र तट से इसे हटाने और सफाई गतिविधियों के बारे में होता है. सब कुछ तटीय क्षेत्र के आसपास केंद्रित है. हम परिधि के आसपास मुद्दे को हल करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन हम अपस्ट्रीम से जुड़े मुद्दों को हल करने की कोशिश नहीं कर रहे हैं. अपस्ट्रीम में बहुत कुछ नहीं होता है और सामान्य जागरूकता या कार्रवाई जैसी चीजें होती है.”
उन्होंने बताया कि प्लास्टिक की पूरी ट्रैकिंग और डाटा एकत्र कर उसकी गणना करना संभव नहीं है. जॉन ने कहा, “एक, हम महासागरों के उष्णकटिबंध की तरफ हैं. दो, हम डिस्पोजेबल प्लास्टिक पर बहुत अधिक निर्भर हैं, इसलिए इसकी मात्रा तय करना चुनौतीपूर्ण होगा.”
IWC68 प्रस्ताव को लागू करने के लिए स्थानीय समुदाय महत्वपूर्ण होंगे.
वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया में, जॉन भारत की समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण समस्या से निपटने के लिए अलग-अलग दृष्टिकोणों पर विचार कर रहे हैं. वह मछुआरा समुदाय के साथ काम करते हैं. उन्हें समुद्र में पाए जाने वाले समुद्री मलबे को वापस लाने के लिए कहते हैं. समुद्र में हर दिन जाने वाले स्थानीय मछुआरा समुदायों को शामिल करना समुद्र से प्लास्टिक को प्रभावी ढंग से हटाने का एक तरीका है.
जॉन ने कहा, “भारत में समुद्र तट 8,000 किलोमीटर लंबा है और मछुआरे परिवार लगभग तीन गुना हो गए हैं. अगर हम उन्हें पूर्वी तथा पश्चिमी तट और हमारे दो द्वीप क्षेत्रों में शामिल करते हैं, तो हम प्लास्टिक को रीसायकल कर सकते हैं.”
भारतीय तटों में प्रमुख मुद्दे बोतलें, पॉलिथीन बैग, प्लास्टिक रैपर और कवर हैं. उन्होंने कहा कि जाल मलबे के एक छोटे हिस्से हैं.
साथ ही प्लास्टिक पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाना शायद संभव नहीं होगा. जॉन कहते हैं, “हम बायोडिग्रेडेबल से प्लास्टिक की ओर बढ़ चुके हैं, इसलिए अब सब कुछ प्लास्टिक के इर्द-गिर्द घूम रहा है. चिकित्सा उद्योग में प्लास्टिक का उपयोग ज्यादा है, खासकर महामारी के दौरान. पॉलिमर विज्ञान भी उन्नत हो गया है. अगर सिंगल यूज प्लास्टिक का कोई विकल्प है तो उसे रियायती दर पर दिया जा सकता है. लेकिन अगर वैकल्पिक उत्पाद की कीमत ज्यादा है, तो लोग सस्ते प्लास्टिक का विकल्प चुनेंगे.”
समुद्री प्लास्टिक पर IWC की पहल
लगभग दो दशक पहले, IWC ने सेटासीन यानी समुद्री जीवों पर समुद्री मलबे के प्रभावों के महत्व को पहचाना. IWC की वैज्ञानिक समिति द्वारा पहचाने गए पर्यावरणीय चिंता के आठ प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में से पांच में प्लास्टिक प्रदूषण है. साल 1997 में IWC के प्रस्ताव में इसका समर्थन किया गया था. इसके अलावा, सतत विकास लक्ष्य 14 (SDG 14) का उद्देश्य 2025 तक सभी प्रकार के समुद्री प्रदूषण को रोकने और कम करने सहित महासागरों, समुद्रों और समुद्री संसाधनों का संरक्षण और स्थायी रूप से उपयोग करना है.
IWC फ्रेमवर्क के भीतर, 2018 में सेटासीन में घोस्ट गियर उलझने पर एक और अहम प्रस्ताव था. आयोग ने मछली पकड़ने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले गियर को चिह्नित करने पर संगठनों से बात करने के लिए संरक्षण समिति, वैज्ञानिक समिति और व्हेल हत्या के तरीकों और कल्याणकारी मुद्दों पर काम करने वाले समूह को प्रोत्साहित किया है, ताकि समुद्री जीवों के उलझने वाले मुद्दों की पूरी तरह जांच की जा सके.
IWC68 प्रस्ताव में, संगठन ने समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण की सीमा-पार प्रकृति और IWC में शामिल सरकारों और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के महत्व को भी मान्यता दी गई है. इसमें संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP), जैविक विविधता पर सम्मेलन (CBD), प्रवासी प्रजातियां (CMS), खाद्य और कृषि संगठन (FAO), आर्कटिक परिषद और अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) शामिल हैं.
परिणामस्वरूप, IWC सचिवालय को उन तरीकों पर ध्यान देने को कहा गया था जिसमें वे अंतर-सरकारी वार्ता समिति (INC) प्रक्रिया के भीतर एक हितधारक के रूप में शामिल हो सकते हैं.
यह सुझाव दिया गया था कि शामिल देश अपनी मर्जी से वैज्ञानिक प्रगति समितियों को स्थिति, प्लास्टिक की कमी और रीसायकल और असहाय समुद्री जीवों में प्लास्टिक निगलने पर रिपोर्ट प्रस्तुत करें. आयोग ने हाल के प्रस्ताव में अहम समुद्री स्तनपायी क्षेत्रों (IMMAs) के साथ समुद्री मलबे के मैपिंग के लिए IWC सचिवालय को सुझाव दिए. इसके अलावा, IWC के दैनिक संचालन में सिंगल-यूज प्लास्टिक को कम करने के अनुरोध भी थे. इस सब पर अगली बैठक IWC 69 में आगे चर्चा की जाएगी.
[यह स्टोरी अर्थ जर्नलिज्म नेटवर्क के बायोडायवर्सिटी मीडिया इनिशिएटिव के सहयोग से की गई है]
(यह लेख मूलत: Mongabay पर प्रकाशित हुआ है.)
बैनर तस्वीर: समुद्र में टूटे हुए जाल (भूतिया जाल) जैसे मलबे समुद्री वन्यजीवों के लिए खतरा बने हुए हैं. तस्वीर – टिम शीरमैन / विकिमीडिया कॉमन्स