पाम ऑयलः सब्सिडी के सहारे बढ़ती तेलंगाना में ताड़ की खेती, भविष्य में नुकसान की आशंका
तेलंगाना में अभी 90,000 एकड़ में ताड़ की खेती की जा रही है. राज्य सरकार ने अब यह निर्णय लिया है कि अगले चार साल में राज्य में 20 लाख एकड़ में ताड़ की खेती का विस्तार किया जाएगा.
तेलंगाना का खम्मम जिला पूरे राज्य में ताड़ की खेती के लिए जाना जाता है. यह राज्य के चार ऐसे चुनिन्दा जिलों में से है जहां 1990 के दशक में सबसे पहले ताड़ की खेती शुरू हुई थी. यहां ताड़ की खेती करने वाले बहुत से पुराने और नए किसान आपको आसानी से मिल जाएंगे. छप्पन वर्ष के विद्या सागर ऐसे ही एक किसान हैं जो इस जिले के मेदीपल्ली गांव में रहते हैं. नवम्बर के महीने में ताड़ के दूसरे किसानों की तरह यह भी अपने आठ एकड़ के ताड़ के बगीचे में मजदूरों की मदद से इन पेड़ों में लगे फलों (गरी) को कटवाने में व्यस्त थे. दोपहर के कुछ घंटों के काम के बाद शाम तक विद्या सागर ने एक ट्रॉली में इन फलों को 100 किलोमीटर दूर स्थित एक फैक्ट्री में भेज दिया जहां ताड़ का तेल निकाला जाएगा.
इस तेल का इस्तेमाल रसोई में खाना बनाने में किया जाता है. साथ ही, इसका प्रयोग साबुन, शैम्पू, बिस्कुट आदि चीजों में भी किया जाता है. विद्या सागर की ट्रॉली फैक्ट्री तक पहुँचने के 3-4 दिनों के अंदर इसका पैसा उनके बैंक अकाउंट में आ जाएगा. तेलंगाना में ताड़ की खेती करने वाले सभी किसानों का उस जिले में स्थित तेल प्रोसेसिंग फैक्ट्री के साथ पहले से ही करार हुआ रहता है. इसके अंतर्गत इन फलों के कटने के 24 घंटों के अंदर यह कंपनियां इन किसानों से इनकी पूरी उपज खरीद लेती हैं. इन सब की दरें राज्य सरकार खुद तय करती हैं.
विद्या सागर अभी आठ एकड़ की जमीन पर इसकी खेती करते हैं लेकिन अब वे तीन एकड़ की अतिरिक्त जमीन पर भी करने की सोच रहे हैं. उनका कहना है कि किसानों के लिए ताड़ की खेती एक फायदे का सौदा है.
“ताड़ की खेती इस राज्य में किसी भी किसान के लिए एक फायदे का सौदा है. हमें सरकार की सहायता से अपने आसपास की तेल के प्रोसेसिंग फैक्ट्री से जोड़ा जाता है जो हमारे पूरे उत्पाद की खरीद की गारंटी लेती है. हमें सिंचाई की सुविधा और ताड़ के पौधे पर भी भारी सब्सिडी मिलती है. इन पेड़ों को बंदर या जंगली सूअर भी जल्दी खराब नहीं करते जबकि तेलंगाना में बहुत सी फसलें पशुओं द्वारा खराब कर दी जाती हैं. इन पेड़ों की यह भी खासियत है कि यह प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, तूफान के समय में भी जल्दी खराब नहीं होते. बस इनकी सिंचाई में थोड़ा अधिक पानी लगता है लेकिन चूंकि इस राज्य में किसानों के लिए बिजली मुफ्त है हमें अपने कुएं से मोटर के माध्यम से इसकी सिंचाई करने में कुछ खर्च नहीं आता,” विद्या सागर ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया.
इसी गांव के 62 वर्षीय हरिप्रसाद एस. भी ताड़ की खेती करते हैं. हरिप्रसाद कुछ वर्षों पहले अपनी 10 एकड़ जमीन पर आम उगाते थे लेकिन ताड़ के क्षेत्र में मुनाफे को देखते हुये उन्होने अपने आम के बगीचे को ताड़ के खेत में बदल दिया. उन्होंने अपने पास रखी एक डायरी भी दिखाई जिसमें पिछले छह महीने में फैक्ट्री से मिली दरें लिखी थीं. इन छह महीनों में जो सबसे अच्छी दर उन्हें मिली वह 13,000 रूपए प्रति टन थी. समान्यतः हरिप्रसाद और दूसरे ऐसे किसान हर महीने दो बार ताड़ के फलों को काटते और बेचते हैं. उनका कहना है कि अगर इस दर पर बिक्री होती रही तो प्रति एकड़ पर एक किसान 3.32 लाख रुपये सालाना तक कमा सकता है. हालांकि यह दरें अक्सर अंतरराष्ट्रीय बाज़ार की कीमतों के आधार पर ऊपर नीचे होती रहती हैं. पिछले छह महीने में खम्मम के सतुपल्ली के फैक्ट्री पर मिले दरों पर नज़र डालें तो यह 5,000 रूपए प्रति टन से 13,000 रूपए प्रति टन के बीच थीं.
मेदीपल्ली और इसके आसपास के कुछ गांव में लगभग एक दर्जन किसान ताड़ की खेती करते हैं. इसमें बहुत से ऐसे किसान भी हैं जिन्होंने इसकी शुरुआत 30 साल पहले की थी. विद्या सागर वैसे ही एक किसान हैं जिन्होंने सबसे पहले 1990 के दशक में इसकी खेती शुरू की थी.
“पूरे राज्य में लगभग 23,000 ऑयल पाम के किसान हैं और लगभग 90,000 एकड़ पर ताड़ की खेती हो रही है. इसमें से लगभग 37,000 एकड़ में पाम के पेड़ वयस्क हैं और फल दे रहे हैं. बचे हुये ऐसे नए खेत है जिनकी आयु 4 साल से कम है जहां इन पेड़ों ने फल देना शुरू नहीं किया है,” हैदराबाद में स्थित राज्य बागवानी विभाग के एक उच्च अधिकारी ने मोंगाबे-हिन्दी को नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया.
ताड़ के तेल की बढ़ती मांग के मद्देनजर तेलंगाना के किसान इन पेड़ों को लगाने में लगे हैं. बहुत से मध्यम या बड़े किसान धान या दूसरी फसलों को छोड़ इसकी खेती करना चाहते हैं. सरकारी सहायता इसमें एक बड़ा योगदान दे रही है. भारत लंबे समय से खाने के तेल का आयात करता आया है और ताड़ के तेल के आयात में भारत पूरे विश्व में अग्रणी है. देश में कुल उत्पादन और कुल खपत में 61.80% का अंतर है. देश में हर साल लगभग 9 मिलियन मेट्रिक टन ताड़ के तेल की खपत होती है.
भारत सरकार इस तेल के बढ़ते आयात को कम करने के किए देश के कई राज्यों में ताड़ को खेती तो प्रोत्साहन दे रही है. केंद्र सरकार ने 2021 में इसको बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन (ऑयल पाम) की शुरुआत की. इसका लक्ष्य देश में 2025-26 तक 25 लाख एकड़ में ताड़ की खेती का विस्तार करना है जो 2019-20 तक केवल 8.6 लाख एकड़ तक सीमित था. तेलंगाना जो अभी भारत में ताड़ के तेल के उत्पादन में दूसरे नंबर पर है वहां इस नीति का अच्छा खासा असर होने जा रहा है. केंद्र सरकार ने तेलंगाना को अगले चार वर्षों में 3 लाख एकड़ की जमीन पर ऑयल पाम का विस्तार करने का लक्ष्य दिया है लेकिन राज्य सरकार इस लक्ष्य को 20 लाख एकड़ तक उसी समय अवधि में ले जाना चाहती है.
साल 2021-22 में तेलंगाना में 47,171 मैट्रिक टन ताड़ के कच्चे तेल का उत्पादन दर्ज किया गया था. राज्य में अब तक ज़्यादातर ताड़ की खेती चार जिलों-खम्मम, सूर्यपेठ, भद्रदादरी कोथागुदेम और नाल्कोंडा तक सीमित है लेकिन राज्य सरकार अब इसे 33 में से 27 जिलों में बढ़ाना चाहती है. इन 27 जिलों में ताड़ की खेती का विस्तार केंद्र सरकार के एक विशेष कमिटी की सिफारिश से किया जा रहा है जिन्हों इस राज्य का दौरा करने के बाद बताया कि राज्य में 27 ऐसे जिले हैं जहां ताड़ की खेती करना संभव है. अतः अब यह राज्य अपने ताड़ का 22% विस्तार 90,000 एकड़ जमीन से 20 लाख एकड़ जमीन तक करने के प्रयास में है.
इस साल के राज्य के बजट में राज्य के वित्तीय मंत्री टी हरीश राव ने इस साल ताड़ की खेती को बढ़ावा देने के लिए 1,000 करोड़ रुपए के खर्च का भी ऐलान किया है जिसके अंतर्गत इस साल 2.5 लाख एकड़ जमीन को ताड़ की खेती के विस्तार के लिए इस्तेमाल किया जाएगा. आंकड़ें बताते हैं कि 2022-23 से 2026-27 तक सरकार इस काम के लिए 7,200 करोड़ रुपए खर्च करेगी.
ताड़ की खेती से लाभ
शामणिनी नागेशर राव मेदीपल्ली गांव के एक और किसान हैं जो ताड़ की खेती करते हैं. राव ने ताड़ की खेती पर आने वाले खर्च का हिसाब भी मोंगाबे-हिन्दी को समझाया. उन्होंने बताया कि चूंकि तेलंगाना में किसानों के लिए बिजली मुफ्त है उन्हें इन पेड़ों की सिंचाई में उपयोग होने वाली मोटर का कुछ खर्चा नहीं आता. राव बताते हैं कि 1 एकड़ में लगभग 56 लगते हैं जबकि प्रति एकड़ में सालाना 15,000-20,000 रुपए तक की लागत उर्वरक आदि के लिए लगती है, जबकि वार्षिक फायदा प्रति एकड़ लगभग 3.32 लाख रुपए तक है.
“जब हम ताड़ के पौधे खेतों में लगाते हैं तो शुरू के चार सालों तक इन पौधों में कोई फल नहीं आता और हमें इनसे कोई फायदा नहीं होता लेकिन चार सालों के बाद इनमें फल लगने लगते हैं जिसे हम बाज़ार में बेच सकते हैं. मैंने और मेरे गांव के चार और किसानों ने कुछ महीनों पहले इसकी खेती शुरू की है और इन पेड़ों के बीच की जगह में दूसरी फसलें जैसे मूँगफली, सब्जियां उगाई ताकि इन ज़मीनों से कुछ आय शुरू के चार सालों तक होती रहे. सरकार ताड़ के पौधों के बीच की जगहों पर दूसरी फसल लगाने के लिए भी वित्तीय सहायता देती है. बागवानी विभाग के अधिकारी हमें पेड़ों के बीच 9 मीटर की जगह छोड़ने के लिए बतातें हैं जहां हम दूसरी फसल उगा सकतें हैं,” सूर्यपेठ जिले के थिरुमलगिरी गांव में ताड़ के किसान प्रताप कुमार रेड्डी ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया. रेड्डी पहले कपास की खेती करते थे और हाल ही में उन्होंने ताड़ की खेती शुरू की है.
हालांकि तेलंगाना में बहुत से किसान धीरे धीरे ताड़ की खेती की ओर रुख कर रहे हैं, लेकिन यह वातावरण के लिए एक अलग संकट पैदा कर सकता है. खुद इसकी खेती करने वाले किसान बताते हैं कि हर एक वयस्क पेड़ को प्रति दिन 200 लीटर से 250 लीटर तक पानी की जरूरत होती है. राज्य सरकार कम पानी में खेती करने वाली तकनीक जैसे ड्रिप सिंचाई के लिए भी भारी सब्सिडी दे रही है. राज्य में सरकार ताड़ की खरीद के लिए एक अच्छा संगठित बाज़ार भी तैयार कर रही है. कुछ वर्षों पहले राज्य में पांच ऑयल प्रोसेसिंग फैक्ट्री थी जो अभी के समय में बढ़ कर 11 हो चुकी हैं.
नियमों के अनुसार कंपनियां विदेशों से आयात किये ताड़ के बीजों को खरीदती हैं और खुद की नर्सरी में एक साल तक उगाती हैं और फिर किसानों को खेतों में लगाने के लिए देती हैं. कंपनियां किसानों के खेतों में होने वाले ताड़ के फलों के पूरे उत्पाद की खरीद का जिम्मा भी लेती हैं. इससे इन किसानों की फसल इनके ही जिले की फैक्ट्रियों में सरकार के तय किये हुये दामों पर बिक जाती है. तेलंगाना सरकार कहती है कि उनके पास 11 ऐसी फैक्ट्रियां हैं, जो देश में सबसे ज्यादा है.
राज्य सरकार राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन (ऑयल पाम) के अंतर्गत किसानों को कम पानी उपयोग करने वाली तकनीक पर 80% तक की सब्सिडी देती है. तेल प्रोसेसिंग की कंपनियों द्वारा दिए गए ताड़ के पौधे भी भारी सब्सिडी के अंतर्गत दिये जाते हैं. इस योजना के अंतर्गत शुरू के चार साल ताड़ के बीच दूसरी फसल उगाने के लिए सरकार हर वर्ष 10,5000 रूपए प्रति एकड़ तक देती है. तेलंगाना सरकार के आंकड़ें कहते हैं कि सरकार शुरू के पहले वर्ष में प्रति एकड़ 26,000 रूपए तक का योगदान देती है जबकि दूसरे और तीसरे साल यह 5000 रुपए प्रति वर्ष तक की होती है.
इस क्षेत्र में काम कर रहें विशेषज्ञ बताते हैं कि ताड़ उगाने से किसानों को बहुत से फायदे भी हैं. आई. वी. श्रीनिवास रेड्डी, प्रोफेसर जयशंकर तेलंगाना राज्य कृषि विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर हैं. उन्होने मोंगाबे-हिन्दी को बताया कि ताड़ के बगीचों में कार्बन को सोखने के खूबी होती है और यह कुछ अध्ययनों में भी बताया गया हैं जबकि यह किसानों की आय बढ़ाने में एक अच्छा काम करती है.
“पहली बात ताड़ के पेड़ धान की फसल से कम पानी की मांग करते हैं. इसकी खेती में दूसरी फसलों की खेती की तरह बहुत मेहनत भी नहीं लगती और किसानों को इससे बेहतर आय मिलती है. इसमें फसलों के खराब होने की समस्या भी बहुत कम होती है. चूंकी यह एक बार लगाने के बाद 25 से 30 साल तक उसी जगह लगे रहते हैं और हर महीने उत्पादन देते हैं, यह किसानों के लिए एक अच्छा विकल्प है,” रेड्डी ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया.
क्या हो सकते हैं इसके प्रतिकूल प्रभाव
हालांकि केंद्र और राज्य सरकार ताड़ के विस्तार के लिए बढ़ते आयात पर आने वाले खर्च को कम करने, किसानों की आय बढ़ाने आदि की बात करती हैं, इसकी खेती के कुछ प्रतिकूल प्रभाव मिटटी की उर्वरता, पानी की उपलब्धता आदि पर पड़ सकते हैं.यह खेती ज़्यादातर मध्यम और बड़े किसानों की बड़ी ज़मीनों तक ही सीमित है क्योंकि छोटे किसानों के लिए शुरू के चार साल इनसे कुछ फायदा न होने के कारण नुकसान का खतरा है. इसीलिए बहुत से छोटे किसान जिनके पास 5 एकड़ से कम जमीन है, वो इसकी खेती करने से परहेज कर रहे हैं.
दूसरी समस्या इसकी पानी की अत्यधिक मांग को लेकर है अधिकांश ताड़ के किसान जिन्होंने मोंगाबे-हिन्दी से बात की अभी अपने कुएँ और बोरवेल से सिंचाई करते हैं जो भूजल का हिस्सा है क्योंकि सिर्फ वर्षा के जल से इनकी सिंचाई संभव नहीं है. कुछ किसानों ने पानी की कमी से होने वाले नुकसान की बात भी की है.
पुष्पवती शिराराव, कोदद के एक ताड़ के बागान में काम करती हैं जो कि सिंचाई के लिए पास की नहर पर निर्भर है. शिराराव ने बताया कि जब गर्मी के मौसम में पानी की कमी हो जाती है तो ताड़ के फलों को आने में समय लग जाता है और मुनाफे में कमी हो जाती है.
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इतनी महत्वाकांक्षी योजना राज्य में किसानों और कृषि के भविष्य के लिए ठीक नहीं है. रमनजनेयूलु. जी.वी हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर में एक कृषि वैज्ञानिक हैं, वह कहते हैं कि यह निर्णय जल्दबाज़ी में लिया गया है.
“तेलंगाना और केंद्र सरकार सिर्फ एक फसल पर अत्यधिक ज़ोर दे रहे हैं जो अच्छी बात नहीं है. सरकार से मिलने वाले अनुदान के कारण बहुत से किसान इसकी खेती करना चाहेंगे. लेकिन तब क्या होगा जब ऐसी सहायता सरकार से मिलनी बंद हो जाये. यह उस समय हो रहा है जब यह राज्य जो पहले सब्जियों का उत्पादन करता था वह अब इसका दूसरे राज्यों से आयात कर रहा है. यह राज्य में कृषि, किसान और पूरे क्षेत्र के लिए ठीक नहीं है,” रमनजनेयूलु ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया.
(यह लेख मूलत: Mongabay पर प्रकाशित हुआ है.)
बैनर तस्वीर: खम्मम जिले के नेलकोंडापल्ली मंडल के कोराटलागुडेम गांव में अपने ताड़ के तेल के बागान में बी. बुच्चैया. तस्वीर - मनीष कुमार / मोंगाबे