पंजाब में गिरते भूजल स्तर के बावजूद जारी है धान की खेती
धान की खेती से पंजाब में भूजल स्तर बुरी तरह प्रभावित हो रहा है. इसके बावजूद, पंजाब के किसान अच्छी आमदनी के कारण धान की खेती कर रहे हैं. पंजाब में सिंचाई के लिए बिजली फ्री है और केंद्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान की खरीद भी कर लेती है.
भूजल स्तर पर धान की खेती के असर को देखते हुए लंबे समय से पंजाब में इस बात पर चर्चा हो रही है कि धान की खेती को कम किया जाए. इसके बावजूद, ताजा आंकड़ों के मुताबिक, अभी भी पंजाब की खेती में सबसे ज्यादा हिस्सा धान की खेती का ही है. पंजाब के कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, पंजाब में खरीफ की फसल के समय (जून से अक्टूबर) होने वाली खेती के कुल क्षेत्रफल के 87 प्रतिशत हिस्से पर सिर्फ धान की खेती होती है. इन्हीं आंकड़ों की मानें तो साल 2022-23 में खरीफ के समय पंजाब में कुल 3.59 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल पर फसलों की बुवाई की गई. इसमें से धान की बुवाई 3.13 मिलियन हेक्टेयर में हुई.
लगभग 35 साल पहले साल 1986 में अर्थशास्त्री एस एस जौहल की अगुवाई में फसलों की विविधता पर तैयार की गई सरकारी रिपोर्ट में सलाह दी गई कि पंजाब में जितने क्षेत्रफल पर धान और गेहूं की खेती की जा रही है, उसमें से कम से कम 20 प्रतिशत क्षेत्रफल पर किसी और चीज की खेती शुरू की जाए. इस रिपोर्ट का मानना था कि इस तरह के बदलाव करने से पारिस्थितिक स्थिरता बनी रहेगी और तेजी से घटते भूजल स्तर को रोका जा सकेगा. इस रिपोर्ट में धान की खेती वाले इलाकों के भूजल स्तर को लेकर जो अनुमान लगाया गया था वह अब सही साबित हो रहा है. भूजल के अत्यधिक दोहन की वजह से अब पंजाब का 80 प्रतिशत इलाका रेड जोन में आ गया है.
देश में पंजाब ऐसा राज्य है जहां भूजल दोहन सबसे ज्यादा होता है. केंद्रीय भूजल प्राधिकरण की साल 2020 में आई ग्राउंड वाटर एस्टिमेशन रिपोर्ट के आंकड़ों की मानें तो पंजाब में जितना भूजल निकाला जाता है उसका 97 प्रतिशत हिस्सा सिंचाई में खर्च होता है. इसमें भी सबसे बड़ा हिस्सा धान की सिंचाई का है. पिछले साल रिटायर्ड जस्टिस जसबीर सिंह की अगुवाई में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (NGT) का एक मॉनिटरिंग पैनल बनाया गया था. इस पैनल ने अपने बयान में जो बातें कहीं उससे इस समस्या की गंभीरता समझ आती है. पैनल ने पिछले साल मई महीने में कहा था कि अगर मौजूदा रफ्तार से ही पंजाब में भूजल निकाला जाता रहा तो उसके पास सिर्फ 17 सालों के लिए यानी 2039 तक के लिए ही पानी है.
धान की खेती ऐसी है जिसे पानी की बहुत ज्यादा जरूरत होती है. एक किलो धान पैदा करने के लिए 5,000 लीटर पानी खर्च होता है. आपको बता दें कि भारत में खाद्य सुरक्षा का लक्ष्य हासिल करने के लिए केंद्र सरकार की ओर से हरित क्रांति शुरू किए जाने से पहले पंजाब में गेहूं और धान के अलावा कई अलग-अलग फसलों की खेती की जाती थी और यहां की फसलों में विविधता भी थी.
पंजाब स्टेट फार्मर्स एंड फार्म वर्कर्स कमीशन की 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 1960-61 में पंजाब में धान की खेती जहां 0.2 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में हो रही थी, वही 1980-81 में लगभग पांच गुना बढ़कर 1.1 मिलियन हेक्टेयर तक पहुंच गई. हाल ही में नए पैनल का ऐलान किए जाने के बाद, पंजाब स्टेट फार्मर्स एंड फार्म वर्कर्स कमीशन ने इस रिपोर्ट को सार्वजनिक मंचों से हटा दिया है. एस एस जौहल की रिपोर्ट के समय यानी साल 1986 से ही पंजाब में धान की खेती का क्षेत्रफल बढ़ता गया और साल 1990-91 तक 2 मिलियन हेक्टयेर तक पहुंच गया. यानी एक दशक में लगभग 1 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल बढ़ गया.
अब 92 साल के हो चुके जस्टिस जौहल ने मोंगाबे-इंडिया से बातचीत में कहा कि उन्होंने हमेशा वैकल्पिक फसलों की वकालत की क्योंकि उन्होंने देखा कि पंजाब में भूजल स्तर तेजी से गिर रहा था और धान के खेतों की सिंचाई पूरी तरह से उसी पर निर्भर थी.
इसके उलट, पंजाब के किसानों को कुछ कारणों के चलते धान की फसल उपजाने पर प्रोत्साहन मिल रहा है. कई विशेषज्ञों और सरकारी अधिकारियों का मानना है कि लगभग 100 प्रतिशत धान की फसल को केंद्र सरकार MSP पर खरीद लेती है, अब बुवाई और कटाई काफी आसान हो गई है, खेती से जुड़ी कई सेवाएं आसान हो जाने से प्रति हेक्टेयर उत्पादन बढ़ गया है, यही वजह है कि धान की खेती कम नहीं हो रही है.
मौजूदा खरीफ सत्र (जून से अक्टूबर) में धान की खेती 3.13 मिलियन हेक्टेयर पर की गई है तो मौजूदा रबी सत्र (नवंबर से अप्रैल) में गेहूं की खेती 3.5 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल पर की गई है. इन दोनों अनाजों की फसलें पंजाब के कुल 7.8 मिलियन हेक्टेयर की खेती वाले क्षेत्रफल में से 84 प्रतिशत हिस्से पर फैली हुई हैं.
भूजल स्तर पर प्रभाव
पंजाब में गेहूं और धान की खेती का यह चक्र देश की खाद्य सुरक्षा के लिए पिछले कई दशकों से सबसे बड़ा योगदान दे रहा है. साल 2021-22 की खरीद के दौरान भारतीय खाद्य निगम (FCI) ने कुल 56.81 मिलियन टन धान की खरीद की. इसमें से लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा यानी लगभग 12.5 मिलियन टन धान सिर्फ पंजाब से आया. इसी तरह साल 2022 में सेंट्रल पूल में 53 प्रतिशत गेहूं सिर्फ पंजाब से आया.
हालांकि, धान की ज्यादा खेती के साथ ही भूजल स्तर भी काफी तेजी से कम होता जा रहा है. जनवरी महीने में सूचना के अधिकार कानून के तहत हासिल किए गए CGWA के डेटा के मुताबिक, पंजाब के 138 में 119 ब्लॉक ऐसे हैं जहां भूजल दोहन ‘हद से ज्यादा दोहन’ की कैटगरी में हो रहा है और यह चिंता का विषय है. एजेंसी के जवाब के मुताबिक, पंजाब के दक्षिणी और मध्य भाग में हालात और चिंताजनक हैं. इसमें, पटियाला, संगरूर, बरनाला, मानसा, बठिंडा, मोगा, लुधियाना और जालंधर जैसे क्षेत्र भी हैं जहां खरीफ के समय धान की खेती सबसे ज्यादा होती है. पंजाब में भूजल की औसत गहराई 70 मीटर से भी नीचे चली गई है यानी 200 फीट से भी नीचे जाने पर ही पानी मिलता है. पिछले दशक में (2011-2020) भूजल स्तर में 2 से 4 मीटर की गिरावट हुई है.
पंजाब के पूर्व कृषि सचिव के एस पन्नू ने मोंगाबे इंडिया को बताया, “दक्षिण पंजाब के जिलों में कई ऐसे इलाके हैं जहां 150 से 200 मीटर (450 से 600 फीट) तक जाने पर भी पानी नहीं मिलता है.” उनका कहना है कि अगर इस ट्रेंड को आने वाले समय में बदला नहीं गया तो पंजाब में इतना पानी भी नहीं बचेगा कि वह अपनी फसलों की सिंचाई कर सके. के एस पन्नू आगे कहते हैं, “अगर अगले 18 से 20 सालों में जल स्तर 300 मीटर के नीचे चला जाता है तो पानी काफी दूषित हो जाएगा और वह न तो पीने के लिए ठीक रहेगा और न ही सिंचाई के लिए ठीक रहेगा. यहां तक कि इतनी गहराई से पानी निकालने का खर्च भी काफी बढ़ जाएगा.”
साल 2020 में भूजल पर आई CGWA की रिपोर्ट का हवाला देते हुए के एस पन्नू समझाते हैं कि पंजाब हर साल 14 बिलियन क्यूबिक मीटर (BCM) से ज्यादा अतिरिक्त पानी निकाल रहा है. पंजाब में बारिश और अन्य स्रोतों से हर साल 20 BCM भूजल रीचार्ज होता है लेकिन पंजाब में हर साल 34 BCM पानी जमीन से निकाला जा रहा है यानी 14 BCM पानी का अतिरिक्त दोहन हो रहा है.
पंजाब में धान की खेती जारी रखने की वजह
मोंगाबे-इंडिया ने एक सवाल पूछा था कि भूजल स्तर पर बुरे प्रभावों के बावजूद पंजाब में धान की खेती कम क्यों नहीं हो रही है? इस सवाल के जवाब में पंजाब के कृषि विभाग के निदेशक गुरविंदर सिंह कहते हैं कि धान की खेती जारी रखने का सबसे बड़ा कारण है कि केंद्र सरकार MSP पर धान की खरीद कर लेती है और किसानों को लगातार अच्छे पैसे मिलते रहते हैं.
साल 2022-23 में धान की खरीद का डेटा अभी तक मौजूद नहीं है. साल 2021-22 में केंद्र सरकार ने 75 मिलिटन टन धान खरीदने के लिए 1.45 ट्रिलियन रुपये खर्च किए. साल 2021-21 में 89 मिलियन टन धान की खरीद के लिए केंद्र सरकार ने 1.69 ट्रिलियन रुपये खर्च किए.
गुरविंदर सिंह ने कहा कि साल 2018 और 2019 के फसली सत्र में कृषि विभाग ने कुछ उन जिलों के किसानों को वैकल्पिक खेती के लिए राजी किया जहां भूजल संकट सबसे ज्यादा था. इन किसानों ने धान की जगह मक्का की खेती की. मक्का की खेती पर MSP नहीं मिलता इसी वजह से अगले सीजन में किसानों ने फिर से धान की खेती शुरू कर दी. वह कहते हैं, “अगर सरकार MSP पर मक्का या अन्य फसलों की खरीद शुरू भी कर दे, तब भी वह पर्याप्त नहीं होगा क्योंकि यह धान से होने वाली कमाई के बराबर नहीं होगा.” गुरविंदर समझाते हैं कि मौजूदा समय में धान की खेती से प्रति एकड़ कमाई 45 से 50 हजार रुपये है. वहीं, दालों या मक्का पर MSP मिलने के बावजूद किसानों की कमाई 30 से 35 हजार तक ही रहती है. वह आगे कहते हैं, “कमाई में इस अंतर का कारण यह है कि वैकल्पिक फसलों का उत्पादन कम होता है और इन फसलों की कटाई और मड़ाई की तकनीक उतनी विकसित भी नहीं है.”
इसका एक और अप्रत्यक्ष कारण यह है कि धान की फसल के लिए भारी मात्रा में जरूरी पानी फ्री में मिल जाता है. साल 1977 से ही पंजाब की सरकार खेती के लिए मुफ्त में बिजली भी देती है. इससे, पंजाब के किसान ट्यूबवेलों का इस्तेमाल करके जितना चाहते हैं उतना पानी निकाल लेते हैं. पंजाब के इलेक्ट्रिसिटी कॉर्पोरेशन इंजीनियर्स असोसिएशन के डेटा से पता चला है कि पिछले दो दशकों में पंजाब में कृषि क्षेत्र में बिजली की खपत दोगुनी हो गई है. साल 1997-1998 में जहां 6,049 मिलियन यूनिट बिजली खर्च होती थी वहीं 2018-19 में यह खपत 11,226 मिलियन यूनिट तक पहुंच गई. इसके चलते पंजाब सरकार का सब्सिडी पर खर्च 1997-98 में 6.58 बिलियन रुपये से बढ़कर 2022-23 में 72 बिलियन रुपये तक पहुंच गया. इस वित्त वर्ष में यह खर्च 75 बिलियन रुपयों तक पहुंच सकता है.
साल 2017 में पंजाब के स्टेटर फार्मर्स एंड फार्म वर्कर्स कमीशन ने सलाह दी थी कि लघु और मध्यम किसानों को दी जाने वाली फ्री बिजली योजना बंद की जाए और इन पैसों का इस्तेमाल वैकल्पिक खेती को बढ़ावा देने के लिए आय सहायता कार्यक्रम की सब्सिडी देने में खर्च किया जाए. एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगर यह कदम उठाया जाता तो राज्य सरकार का सब्सिडी पर खर्च आधा हो जाता है लेकिन ये सुझाव कभी लागू नहीं किए गए.
अर्थशास्त्री एस एस जौहल ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि फ्री बिजली सबसे अहम कारणों में से है कि पंजाब में धान की खेती कम नहीं हो पा रही है. वह कहते हैं, “इससे भूजल की बर्बादी हो रही है और इसकी खपत कई गुना बढ़ गई है. इससे पहले की काफी देर हो जाए, इसे बंद किया जाना चाहिए.”
एस एस जौहल आगे कहते हैं, “पंजाब की समस्या काफी गंभीर है. हमारे पास इस समस्या का समाधान है लेकिन हमारे पास ऐसे नेताओं की कमी है जो दूरदर्शी हों और वे इतनी हिम्मत जुटा सकें कि वे सख्त और मजबूत कदम उठा सकें.”
पुरानी नाकामियां
अक्टूबर 2002 में पंजाह सरकार ने एक कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग योजना लॉन्च की. एस एस जौहल की अगुवाई में साल 2002 में बनी एक और कमेटी के सुझावों के मुताबिक, इस योजना का मकसद फसलों में विविधता लाना और अगले पांच सालों में गेहूं-धान की खेती में से 10 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल कम करना था. पंजाब सरकार के कृषि विभाग, पंजाब एग्रो फूडग्रेन्स कॉर्पोरेशन (पीएएफसी) और निजी कंपनियों ने संयुक्त रूप से लगभग 29 हजार एकड़ गेहूं-धान की फसल की जगह पर वैकल्पिक फसलों की बुवाई के लिए पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया.
पीएएफसी ने बड़ी और नामी-गिरामी कंपनियों से खरीदे गए बीज उपलब्ध कराए और वादा किया कि वह किसानों और खरीद करने वाली एजेंसियों से एक तय कीमत पर पूरी की पूरी फसल खरीद लेगी.
इस बारे में इंडियन मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट, अहमदाबाद में कृषि विशेषज्ञ सुखपाल सिंह साल 2005 के एक रिसर्च पेपर में लिखते हैं कि जब इन कॉन्ट्रैक्टेड फसलों के तैयार होने का समय आया तो यह योजना ही गड़बड़ हो गई. खराब मौसम और खराब क्वालिटी के बीजों की वजह से मक्का की लगभग पूरी की पूरी ही खराब हो गई. किसी भी कंपनी ने तैयार फसल को नहीं खरीदा. इस नाकामी के बाद, कुछ छिटपुट प्रयास और हुए कि धान की जगह पर मक्के की फसल को बढ़ावा दिया जाए लेकिन इन प्रयासों में किसानों को आर्थिक सहायता की कोई योजना शामिल नहीं थी.
पिछले साल सितंबर महीने में पंजाब विधानसभा की एक स्पेशल कमेटी ने राज्य के भूजल को बचाने के लिए कई सारे सुझाव दिए. इसमें कहा गया कि कृषि क्षेत्रों को जोन के हिसाब से बांटा जाए और भूजल को मापा जाए, ताकि पानी बचाया जा सके. कमेटी ने यह भी सुझाव दिया कि पंजाब में नहरों की व्यवस्था को फिर से जीवित किया जाए, ताकि सिंचाई के लिए ट्यूबवेल पर निर्भरता कम की जा सके.
पंजाब में भूजल बचाने के लिए समय-समय पर इसी तरह की कई स्टडी हो चुकी हैं और कई तरह के सुझाव दिए जा चुके हैं.
नई रिपोर्ट बनाने के लिए बनाया गया एक और पैनल
पंजाब में आम आदमी पार्टी ने पिछले साल मार्च में बदलाव के एजेंडा पर चुनाव जीता है. AAP की नई नवेली सरकार ने राज्य की नई कृषि नीति बनाने के लिए एक और पैनल बनाने का ऐलान किया है. 17 जनवरी को पंजाब के कृषि मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल ने मीडिया को बताया कि सरकार नई नीति बनाने पर काम कर रही है. इस नीति का लक्ष्य पंजाब के भूजल, मिट्टी की सेहत और भौगोलिक स्थिति जैसे प्राकृतिक स्रोतों को बचाना, फसलों की विविधता पर ध्यान देना और कृषि उत्पादों के निर्यात पर विशेष ध्यान देना है.
पूर्व अधिकारी के एस पन्नू सरकार के इस कदम की आलोचना करते हैं. उन्होंने मोंगाबे-इंडिया से कहा कि पंजाब को किसी और चीज से ज्यादा सही नीयत की जरूरत है. वह कहते हैं, “सुझावों की कोई कमी नहीं है. उदाहरण के लिए, नहरों से सिंचाई वाले क्षेत्रों में सुधार करके भूजल पर निर्भरता कम की जा सकती है. सरकार एक आय सहायता कार्यक्रम शुरू कर सकती है जिससे धीरे-धीरे धान की खेती को कम किया जा सकेगा. सरकार फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री से कह सकती है और इसी के साथ वह वैकल्पिक फसलों को MSP पर खरीद सकती है.”
पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला में अर्थशास्त्री केसर सिंह भांगू ने मोंगाबे-इंडिया से बातचीत में कहते हैं कि केंद्र सरकार के मजबूत सहयोग के बिना पंजाब में फसलों की विविधता सफल नहीं हो सकती है लेकिन इस समय पंजाब में धान की खेती में कमी लाना ठीक नहीं होगा. वह आगे कहते हैं, “पिछले ही साल जलवायु की स्थितियों की वजह से देश में अनाज के उत्पादन में कमी आई और सरकार को गेहूं और धान के निर्यात पर केंद्र सरकार को बैन लगाना पड़ा.”
वहीं, इस सबके उलट साल 2002 से 2007 तक पंजाब के योजना बोर्ड के उपाध्यक्ष के पद पर काम कर चुके अर्थशास्त्री एस एस जौहल का कहना है कि केंद्र सरकार को मनाया जा सकता है कि वह पंजाब में फसलों की विविधता के लिए मदद करे. उनका कहना है, “फसलों की विविधता पर साल 2002 में मेरी दूसरी रिपोर्ट के बाद मैंने केंद्रीय खाद्य मंत्रालय के साथ काम किया. मैंने उन्हें पंजाब में तिलहन फसलों की खेती के लिए राजी किया जिसके लिए शुरुआती तौर पर 1600 करोड़ रुपये का ग्रांट भी जारी किया गया लेकिन बाद में पंजाब से किसी ने इस मुद्दे को ही नहीं उठाया.”
इस सब पर किसानों के संगठनों की संस्था संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्य दर्शन पाल मोंगाबे-इंडिया से कहते हैं कि बिना किसी तय रिटर्न के बिना फसलों की विविधता की कोई योजना काम नहीं आएगी.
(यह लेख मूलत: Mongabay पर प्रकाशित हुआ है.)
बैनर तस्वीर: धान की फसल की गुणवत्ता जांचता एक किसान. पंजाब में धान की खेती ने देश को खाद्य सुरक्षा हासिल करने में बड़ी मदद की है लेकिन इसकी वजह से राज्य में भूजल स्तर में गिरावट और पराली जलाने जैसी समस्याएं भी पैदा हुई हैं. तस्वीर – सीआईएटी/नील पामर/फ्लिकर