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महिलाओं के लिए पर्यटन को सुरक्षित बनाती सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व की महिला सफारी चालक

महिलाओं के लिए सुरक्षित पर्यटन की दिशा में शुरू की गई “महिलाओं हेतु सुरक्षित पर्यटन स्थल परियोजना” के अंतर्गत मध्यप्रदेश के 50 पर्यटन स्थलों पर स्थानीय समुदाय की महिलाओं को रोजगार के अवसर मुहैया कराने का लक्ष्य है.

महिलाओं के लिए पर्यटन को सुरक्षित बनाती सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व की महिला सफारी चालक

Saturday March 11, 2023 , 8 min Read

मध्यप्रदेश के सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में अलसुबह पर्यटक, देनवा नदी को पार करके मढ़ई के जंगलों में पहुँच रहे हैं और सफारी के लिए जिप्सियाँ तैयार हो रही हैं. एक-एक करके नंबर आता है, पर्यटक बैठते हैं और निकल पड़ते हैं जंगल के रोमांचकारी सफर पर.

लेकिन, भोपाल से आई पर्यटक एकता अवस्थी का रोमांच तब और बढ़ गया जब उन्हें जिप्सी चालक मिलीं वर्षा ठाकुर. एकता कहतीं हैं कि वे वर्षा को स्टीयरिंग पर देखकर एक पल को ठिठकीं, लेकिन फिर सहज हो गईं| वे कहती हैं, “हमने कभी नहीं सोचा था कि हमें जंगल के खूंखार जानवरों से रूबरू कराने कोई महिला चालक लेकर जायेंगी.”

उनके ठिठकने के बारे में एकता कहती हैं कि उन्हें ठीक-ठीक नहीं पता. “पर, शायद यह जेंडर की बदलती भूमिका है और इसे हम सहज रूप से स्वीकार नहीं कर पाते हैं,” उन्होंने कहा.

इन दिनों सतपुड़ा के जंगल जहाँ एक ओर अपने बाघों की दहाडों से गूँज रहे हैं वहीं दूसरी ओर यह महिला जिप्सी चालकों की धमक से भी गुंजायमान हैं. यहाँ पर दो नई जिप्सी चालक आई हैं जो कि अपनी उपस्थिति से महिलाओं के सुरक्षित पर्यटन की दिशा में की गई एक नई पहल को सफल बना रही हैं| इस पहल का नाम है “महिलाओं हेतु सुरक्षित पर्यटन स्थल परियोजना”.

दिल्ली के बहुचर्चित निर्भया काण्ड के बाद बने निर्भया कोष से केंद्र सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग की इस पहल में मध्यप्रदेश पर्यटन बोर्ड ने पहल करते हुए साल 2019 मध्यप्रदेश के 50 पर्यटन स्थलों में यह परियोजना शुरू की. इस परियोजना के तहत पर्यटन स्थलों के आसपास के रहवासी क्षेत्र में स्थानीय समुदाय विशेषतः महिलाओं को रोजगार के अवसर मुहैया कराना, साथ ही पर्यटन स्थलों को महिलाओं के लिए सुरक्षित स्थल बनाना मुख्य लक्ष्य है.

सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व, मढ़ई का प्रवेश द्वार। तस्वीर- प्रशांत कुमार दुबे।

सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व, मढ़ई का प्रवेश द्वार. तस्वीर - प्रशांत कुमार दुबे

भोपाल की ही एक और पर्यटक रिचा शिवहरे कहती हैं, “मेरे लिए यह एक सहज प्रसंग है, क्योंकि लडकियां नित नए सोपान गढ़ रही हैं पर निश्चित ही यह गर्व और उल्लास का विषय है|” उन्होंने आगे कहा, “हमें खुले मन से इस पहल का स्वागत करना चाहिये क्योंकि इससे इन युवतियों को बल मिलेगा और रोज़गार के नए अवसर खुलेंगे|”

शिवहरे कहती हैं, “आमतौर पर हम महिलायें, पर्यटन स्थलों पर सचेत रहती हैं लेकिन यदि इस तरह की महिला चालक मिलेंगी तो हमारा सफ़र और ये पर्यटन स्थल दोनों ही सुरक्षित हो जायेंगे.”

मध्यप्रदेश पर्यटन बोर्ड के अपर प्रबंध संचालक विवेक श्रोत्रिय (आईएएस) ने मोंगाबे इण्डिया से बातचीत के दौरान बताया कि अभी यह परियोजना अपने शुरूआती चरण में है. “हम इस परियोजना में सुरक्षा अंकेक्षण एवं अधोसंरचना विकास के साथ-साथ पर्यटन संबंधी रोजगार में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं. यह जिप्सी चालक इसी कोशिश का परिणाम हैं. यह स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्धता, महिला सशक्तिकरण, सुरक्षित पर्यटन और सामुदायिक भागीदारी का एक सटीक उदाहरण हैं,” उन्होंने बताया.

उन्होंने बताया कि इस परियोजना को वर्ष 2021 में डब्‍ल्‍यूटीएम लंदन द्वारा ‘ONES TO WATCH’ श्रेणी का अवॉर्ड एवं वर्ष 2022 में आईसीआरटी अंतर्गत ‘गोल्‍ड’ पुरस्‍कार प्राप्‍त हुआ है.

मढ़ई में तैनात दोनों महिला चालक – वर्षा ठाकुर और संगीता सोलंकी – पास ही के सेहरा गाँव से हैं और अपनी स्नातक की पढ़ाई कर रही हैं. वर्षा और संगीता ने अक्टूबर 2022 से इस टाइगर रिज़र्व में जिप्सी चलना शुरू किया और इसके तीन महीने पहले तक न तो उनके घरों में कोई चार पहिया वाहन था और न ही उन्होंने कभी कोई वाहन चलाया था.

सुरक्षित पर्यटन परियोजना के लिए मध्यप्रदेश पर्यटन बोर्ड की सहभागी संस्था “इन्डियन ग्रामीण सर्विसेस” (आईजीएस) की स्थानीय समन्वयक अर्चना दास के साथ उनकी पहली मुलाकात के बारे में बताते हुए वर्षा और संगीता ने कहा, “सर्वेक्षण करते समय हमसे पूछा कि ड्रायवर बनना चाहोगी? यह प्रश्न और यह अवसर हमारे लिए नया सा था, लिहाजा हमने न मना किया, न हाँ किया.”

फोर्सिथ लॉज की गाडी में वर्षा डाडिबा। तस्वीर- प्रशांत कुमार दुबे

फोर्सिथ लॉज की गाडी में वर्षा डाडिबा. तस्वीर - प्रशांत कुमार दुबे

आईजीएस सतपुड़ा टाईगर रिजर्व की दोनों लोकेशन यानी मढ़ई और पचमढ़ी में काम कर रही है.

अर्चना दास ने बताया, “मैं बार-बार जाती और पूछती. मुझे यह भी पता नहीं था कि इनके मन में क्या चल रहा है, अंततः 40 लडकियां तैयार हुईं.”

अन्तिम सूची में 13 लड़कियां चुनी गईं, जिसमें से पांच लड़कियां मढ़ई और आठ पचमढ़ी से थीं.

आईजीएस के परियोजना समन्वयक सत्य प्रकाश पाण्डेय ने मोंगाबे इण्डिया को इन लड़कियों के चयन के चार मापदंडों के बारे में बताया. पहला लडकियों की आयु 18 से 40 वर्ष के बीच. दूसरा मुख्य पर्यटन स्थल के 15-20 किमी के दायरे में निवास, तीसरा इस परिवार की जंगल पर निर्भरता और चौथा अगुआई करने की क्षमता.

इस परियोजना के लिए सिर्फ आदिवासी बालिकाओं के चयन के प्रश्न पर उन्होंने कहा, “आदि जनों की जंगल पर निर्भरता अधिक है. ऐसे में इस पूरे प्रयास में जंगल संरक्षण की छिपी हुई कवायद भी शामिल है.”

एक माह के कड़े प्रशिक्षण के बाद जब यह सभी 13 चालक तैयार हुईं, तब इनकी नौकरी का यक्ष प्रश्न सामने आया.

अर्चना दास कहती हैं कि यह बड़ी चुनौती थी. “हमने अलग-अलग जगह बात करना शुरू किया और सबसे पहले वन विभाग ने अपने जिप्सी चालकों की सूची में दो चालकों को कोर क्षेत्र में जगह दी. अक्टूबर 2022 से पार्क खुलते ही वर्षा और संगीता ने पर्यटकों के प्रशिक्षु चालक के रूप में काम शुरू किया.”

मोंगाबे-इण्डिया से बात करते हुए रेंजर सुर सिंह कल्वेलिया कहते हैं, “हमें जैसे ही पता लगा कि हमारे आसपास महिला जिप्सी चालकों ने प्रशिक्षण लिया है तो हमने तुरंत ही उन्हें अपने यहाँ अवसर दिया| यह हमारी भी जिम्मेदारी है कि बदलाव की इस पहल में वन विभाग सहभागी बने. अभी हमारे यहाँ 24 जिप्सी हैं और उसमें पहले से ही हमारे पास 22 वाहन चालक थे, इसलिये हमने अभी 2 महिला चालकों को अवसर दिया| जैसे ही हमारे पास और वाहन होंगे, हम सभी प्रशिक्षित महिला चालकों को भी अवसर देंगे.”

महिला जिप्सी चालकों को लेकर कल्वेलिया कहते हैं कि इनकी एप्रोच ज्यादा मानवीय है.

रोज़गार के अन्य साधन

वर्षा डाडिबा भी सेहरा गाँव की रहने वाली हैं और वह उन पांच लड़कियों में से एक हैं जिन्हें मढ़ई से चुनकर प्रशिक्षण दिया गया था. वर्षा को फोर्सिथ लॉज (एक रिसोर्ट) ने अपने यहाँ चालक की नौकरी दी| अब वे भी अन्य दो चालकों की तरह बफर और कोर दोनों ही ईलाकों में पर्यटकों को लेकर जाती हैं.

मढ़ई में फिलहाल तीन महिला चालक काम करने लगीं हैं और अभी दो और काम की तलाश में हैं.

जिप्सी चालकों के अलावा मध्यप्रदेश वन विभाग ने यहाँ पर 10 महिला गाइड की भर्ती भी की है| फोर्सिथ लॉज से पहले वर्षा ने भी गाइड का काम किया और अपने अनुभव के चलते वे नेचुरलिस्ट की तरह काम करना चाहती हैं| जंगल की जानकारी के बारे में पूछने पर वर्षा चहक कर कहती हैं, “वह तो पहले से ही है न! आदिवासियों को कोई सिखाता नहीं है, यह प्रकृति के साथ पलने वाली कौम है तो हम यह सब बचपन से जानते हैं| यह हमारे लिये नया नहीं है… जानकारियाँ (प्रशिक्षण के दौरान) नई तो नहीं मिलीं बल्कि नए नाम पता चले और ज्यादातर अंग्रेजी नाम. क्योंकि पर्यटक वही समझते हैं. जैसे, अब हम सागौन को टीक कहने लगे हैं और चीतल को स्पॉटेड डियर.”

वर्षा ठाकुर के पिता सुन्दरलाल उईके और माँ ममता ऊईके सेहरा गाँव में अपने घर के बाहर। तस्वीर- प्रशांत कुमार दुबे

वर्षा ठाकुर के पिता सुन्दरलाल उईके और माँ ममता ऊईके सेहरा गाँव में अपने घर के बाहर. तस्वीर - प्रशांत कुमार दुबे

चालकों को जंगल के बारे में अलग से प्रशिक्षित करने की जरुरत के बारे में कल्वेलिया ने कहा, “आदिवासी को जंगल के बारे में कौन सिखाता है? वे तो सब बचपन से ही जानते हैं. इसलिए यह महिला जिप्सी चालक हमारे लिए गाइड भी हैं. हालाँकि हमने यहाँ 10 महिला गाइड की भी भर्ती की है जो कि महिला सशक्तिकरण की दिशा में ही एक और कदम है.”

आसान नहीं पुरुष प्रधान समाज में जगह बनाना

अपने घरों से निकलकर घने जंगलों के उबड़ खाबड़ रास्तों पर जिप्सी में पर्यटकों ले जाने तक का सफर इन लड़कियों के लिए आसान नहीं था. समाज के पारंपरिक खांचों से इतर किये गए प्रयोगों में सब कुछ इतना आसान नहीं होता है.

वर्षा ठाकुर कहती हैं कि सबसे पहले तो पुरुष चालकों ने ही मज़ाक उड़ाया. “एक-दो बार पर्यटक हमें देखते ही गाडी से उतर गए और उन्होंने कहा कि किसी दूसरे चालक के साथ जायेंगे. वन विभाग भी उन्हें दूसरी गाड़ी उपलब्ध करा देता है. पर यह रवैया बहुत निराश करता है लेकिन फिर समझ में आता है कि पारंपरिक ढर्रे में जगह बनाना, नई परिपाटी खड़ी कर देने से ज्यादा मुश्किल है,” वर्षा ने बताया. संगीता कहती हैं, “कई बार हमने पुरुष जिप्सी चालकों से यह खुसुर-फुसुर भी सुनी है कि इन्हें साईटिंग कराना नहीं आता है जबकि मैं तो अपनी पहली ही राइड में पर्यटकों को बाघ दिखा कर लाई थी.”

मोंगाबे-इंडिया से बात करते हुए एक पुरुष जिप्सी चालक हमीर सिंह कहते हैं, “हमने तो इन महिला चालकों का स्वागत ही किया है, क्योंकि यह एक शानदार पहल है. हो सकता है कि वे एकदम परफेक्ट न हों, लेकिन यह सभी के साथ होता है और सभी धीरे-धीरे सीखते हैं. लडकियां भी सीख ही लेंगी.”

सतही तौर पर तो यह परियोजना आर्थिक सशक्तिकरण की एक पहल ही दिखती है लेकिन यह सामाजिक ताने-बाने को बदलने की नींव भी रख रही है. सतपुड़ा के जंगलों का इलाका एक आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है जहां बाल विवाह का चलन है. वर्षा ठाकुर के पिता सुन्दरलाल उईके और माँ ममता ऊईके मोगांबे-इण्डिया से बात करते हुए कहते हैं कि वर्षां ने समुदाय में उनका मान बढ़ाया है. “हम गर्व से कहते हैं कि हमारी लड़की जिप्सी चलाती है.”

सबसे रोचक बात यह है कि उन्होंने वर्षा के विवाह में हड़बड़ी नहीं की बल्कि वे वर्षा और अपनी छोटी बेटी अंजू को आजीविका से जुड़ने और अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिये पर्याप्त समय दे रहे हैं.

(यह लेख मुलत: Mongabay पर प्रकाशित हुआ है.)

बैनर तस्वीर: सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व में अपनी जिप्सी पर संगीता सोलंकी और वर्षा ठाकुर. फोटो: प्रशांत कुमार दुबे