मिलें भारत के पहले हिंदी ऑनलाइन प्रोग्रामिंग लैंग्वेज प्लेटफॉर्म Kalaam.io के डेवलपर स्वानंद कदम से
स्वानंद कदम Masai School में इंस्ट्रक्टर और मेंटर हैं। उन्होंने पहला हिंदी ऑनलाइन प्रोग्रामिंग लैंग्वेज प्लेटफॉर्म Kalaam.io डेवलप किया है। इसे डेवलप करने में उन्हें सिर्फ 6 महीने लगे। इस प्लेटफॉर्म पर यूजर्स हिंदी के अलावा मराठी भाषा में भी कोडिंग कर सकते हैं।
टेक्नोलॉजी और इनोवेशन की रेस वाले इस जमाने में दुनिया की सबसे डायनेमिक इंडस्ट्री है — सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री, जहां आए दिन नई प्रोग्रामिंग लैंग्वेजेज लॉन्च हो रही है, जिनमें सॉफ्टवेयर प्रोग्राम्स के कोड लिखे जाते हैं। लेकिन इन सभी लैंग्वेजेज में सोर्स कोड अंग्रेजी में लिखे जाते हैं, जो कि भारत के ग्रामीण इलाको में रहने वाले युवाओं के लिए लगभग एक समस्या है। सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनकर देश की टेक्नोलॉजी को नई ऊंचाइयों पर ले जाना उनका सपना तो है, मगर अंग्रजी में जरा उनका हाथ कच्चा है।
इस समस्या को भांपते हुए महाराष्ट्र के यवतमाल के स्वानंद कदम, जो कि Masai School में Senior Full Stack Developer और Advanced Js instructor हैं, ने भारत का पहला हिंदी ऑनलाइन प्रोग्रामिंग लैंग्वेज प्लेटफॉर्म Kalaam.io डेवलप किया है। इसे डेवलप करने में उन्हें सिर्फ 6 महीने का समय लगा। दिलचस्प बात यह है कि इस प्लेटफॉर्म पर यूजर्स हिंदी के अलावा मराठी भाषा में भी कोडिंग कर सकते हैं।
इस प्रोग्रामिंग लैंग्वेज प्लेटफॉर्म में मॉडर्न प्रोग्रामिंग लैंग्वेजेज के सभी बेसिक फंक्शन्स मौजूद हैं। loops से लेकर while loops तक और फंक्शन्स से लेकर कंडीशनल स्टेटमेंट्स तक। स्मार्टफोन या कंप्यूटर के जरिए कोई भी व्यक्ति Kalaam में कोडिंग शुरू कर सकता है। Kalaam को अगर ग्रामीण युवाओं के लिए देसी W3Schools की संज्ञा दी जाए, तो कुछ गलत नहीं होगा।
स्वानंद कदम ने इस प्लेटफॉर्म का नाम 'Kalaam' भारत के पूर्व राष्ट्रपति और महान वैज्ञानिक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम से प्रेरित होकर रखा है।
'कलाम' के पीछे की कहानी
YourStory से बात करते हुए स्वानंद कहते हैं, "अक्टूबर 2019 में जब मैं अपने शहर गया तो मेरी मुलाकात 16 साल के विनीत से हुई। मैं जो काम कर रहा था उसके लिए वह उत्सुकता से भरा था और वह जानना चाहता था कि वेबसाइट और ऐप कैसे बनते हैं। विनीत ने केवल यह जानने के बजाय बहुत सारी रचनात्मक रुचि दिखाई। मैंने उसे प्रोग्रामिंग भाषाओं के बारे में सिखाया और कंप्यूटर के साथ डायलॉग करने के लिए उनका उपयोग कैसे किया जाता है, यह भी बताया। मैंने उसे एक समझाने के लिए सबसे सरल संभव कोड लिखकर दिखाया। वह वहीं खड़ा रहा और उसके चेहरे पर एक गंभीर भाव थे।"
उसने कहा, "मुझे अंग्रेजी नहीं आती, क्या मैं इसे हिंदी में कर सकता हूं?" लेकिन, जब मैंने ना कहा, तो मानों उसकी सारी जिज्ञासाएं फुर्र हो गई हो।"
स्वानंद आगे कहते हैं, "मेरा मानना है कि जिज्ञासा बच्चों के लिए सबसे बड़ा उपहार है। यह छात्रों को उनकी इच्छानुसार आकार देता है न कि दूसरे जो चाहते हैं। अब जबकि हमारे पास सबसे दूरस्थ शहरों में भी तकनीक उपलब्ध है, युवा यह जानने के लिए उत्सुक हैं कि यह कैसे काम करती है। वे सीखने के लिए तैयार हैं, लेकिन इकोसिस्टम में अभी भी कई बाधाएं हैं जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है।"
निरंतर बदलती टेक्नोलॉजी को लेकर बोलते हुए स्वानंद कहते हैं, "जब मैं युवावस्था में था, तो एक चीज जो मुझे सबसे ज्यादा उत्साहित करती थी — वह थी टेक्नोलॉजी। उस वक्त एक गेम वाला एक साधारण फोन ही मेरी दुनिया था। कंप्यूटर दुर्लभ थे, बहुत दुर्लभ थे। आज, चीजें बदल गई हैं। एक प्रोग्रामर के रूप में, मैं टेक्नोलॉजी से सराबोर इस इकोसिस्टम का हिस्सा हूं। मुझे नई चीजें देखने को मिलती हैं, मुझे उन्हें बनाने और समान विचारधारा वाले लोगों से मिलने का मौका मिलता है। लेकिन मैं जिस छोटे शहर में पला-बढ़ा हूं, वह इतना नहीं बदला है। हमारे पास स्मार्टफोन हैं लेकिन यह सृजन से ज्यादा खपत के बारे में है।"
Kalaam का आइडिया कैसे आया? और कैसे इसकी शुरूआत हुई?... के जवाब में YourStory को बताते हुए स्वानंद कदम कहते हैं, "विनीत ने मुझसे जो कहा, उसे मैं भूल नहीं पाया। मैंने हिंदी प्रोग्रामिंग भाषा की संभावना को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया। क्योंकि, अगर सही तरीके से किया जाए, तो प्रत्येक व्यक्ति जिसके पास स्मार्टफोन है और जो हिंदी में धाराप्रवाह (fluent) है, उसके पास कोडिंग शुरू करने का अवसर और पहुंच होगी। और उस भविष्य की संभावना ने कलाम के जरिए अपनी यात्रा शुरू करने की मेरी इच्छा को बल दिया!"
प्रोग्रामिंग में प्रवेश बाधाएं
टूल्स और लैंग्वेज — स्वानंद के अनुसार दो मुख्य बाधाएं है (ग्रामीण भारत के उभरते प्रोग्रामर्स के लिए)
स्वानंद बताते हैं, "मेट्रो शहरों में रहने वाली आबादी के लिए, अंग्रेजी आमतौर पर कभी भी मुद्दा नहीं होता है। इसके विपरीत, 65% भारतीय ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं और यहां के छात्रों के लिए, अंग्रेजी सीखना उनके शैक्षणिक जीवन का सबसे बड़ा संघर्ष हो सकता है। इसका मतलब है कि उनकी प्रतिभा, रचनात्मकता और आत्मविश्वास भाषा की बाधाओं में कैद है।"
स्वानंद अपनी बात को स्पष्टता से रखते हुए कहते हैं, "प्रोग्रामिंग एक कला है और एक कलाकार होने के लिए रचनात्मकता ही एकमात्र मापदंड होना चाहिए।"
कंप्यूटर और कोडिंग सिखाने वाले शिक्षकों तक पहुंच न होने से... यह अंतर…. और बढ़ जाता है। यह प्रतिरोध भारत को गुणवत्तापूर्ण प्रतिभा से वंचित कर देता है जो प्रोग्रामिंग जैसे माध्यम का उपयोग करके खुद को और अपने लोगों का उत्थान कर सकते हैं। प्रोग्रामिंग समस्याओं को हल करने के लिए आज हमारे पास सबसे अच्छा टूल है, लेकिन टियर 2 और टियर 3 शहरों में रहने वाली अधिकांश भारतीय प्रतिभाओं के बीच शून्य जागरूकता है।
'कलाम' का डेवलपमेंट और इम्प्लीमेंटेशन
स्वानंद बताते हैं, "मुझे वास्तव में कभी नहीं पता था कि लैंग्वेज (प्लेटफॉर्म) कैसे डेवलप किया जाता है। ऐसे में, मेरा पहला कदम उन किताबों को पढ़ना था जो प्रोग्रामिंग लैंग्वेज के मूल सिद्धांतों को कवर करती थीं। मैंने सीखा है कि एक प्रोग्रामिंग लैंग्वेज को कंप्यूटर को यह समझाने के लिए एक इंटरप्रेटर या कंपाइलर की आवश्यकता होती है कि आप इससे क्या कराना चाहते हैं। मैंने एक इंटरप्रेटर डेवलप करने का फैसला किया।"
'कलाम' के इम्पलीमेंटेशन के बारे में बताते हुए कदम कहते हैं, "यह सब शुरुआत में मुश्किल लग रहा था, लेकिन मुझे कहीं से शुरुआत करनी थी, इसलिए मैंने जो पहला कमांड बनाना शुरू किया, वह था प्रिंट मैकेनिज्म, ताकि मैं स्क्रीन पर "नमस्ते कलाम" आउटपुट दिखा सकूं।"
स्वानंद आगे बताते हैं, "20 दिनों में 4 वर्जन बनाए, लेकिन एक बार ऐसा करने के बाद मुझे पता था कि मैं और अधिक कठिन समस्याओं का सामना कर सकता हूँ जैसे कि — कंडीशनल स्टेटमेंट्स, लूप्स और फंक्शंस को लागू करना। इसे सभी के लिए आसानी से सुलभ बनाने के लिए, विशेष रूप से ग्रामीण भारत के लिए, मुझे यह सुनिश्चित करना था कि यह ब्राउज़र में चल सकता है। क्योंकि एक साधारण स्मार्टफोन पर एक ब्राउज़र चलाया जा सकता है और आपको कुछ भी इंस्टॉल करने की आवश्यकता नहीं है। अन्यथा, प्रोग्रामिंग लैंग्वेजेज को आमतौर पर कंप्यूटर पर कई तरह के सॉफ्टवेयर्स इंस्टॉल करने की आवश्यकता होती है।"
कदम कहते हैं, "मुझे यह भी सुनिश्चित करना था कि लैंग्वेज का इंजन यानी इंटरप्रेटर लाइब्रेरी जैसे किसी बाहरी कोड पर निर्भर न हो। इसका मतलब है कि अगर मुझे स्क्रैच से कुछ बनाना है, तो मुझे इसे भी स्क्रैच से बनाना होगा। अधिक फीचर्स का मतलब हमेशा अधिक बग होता है। हमारे पास पहले से ही एक टेस्टिंग मैकेनिज्म है, और इसने Kalaam को इसकी स्टेबिलिटी दी है।"
Kalaam मोबाइल-फ्रैंडली हैं, आपको कोई साइनअप करने की जरूरत नहीं है, आप आसानी से हिंदी या मराठी भाषाओं में कोडिंग कर सकते हैं।
Kalaam को लॉन्च हुए एक साल हो गया है। और स्वानंद को डेवलपर कम्यूनिटी से बेहद सकारात्मक प्रतिक्रिया मिल रही है। कलाम के लिंक्डइन पोस्ट पर अब तक लगभग आधा मिलियन हिट हो चुके हैं। बहुत सारे यूजर्स ने कलाम में लिखे अपने कोड स्निपेट शेयर किए हैं, जिन्हें आप उदाहरणों के रूप कलाम पर पा सकते हैं।
'कलाम' — एक ओपन-सोर्स प्रोजेक्ट
Kalaam हाल ही में 1.1.0 वर्जन के साथ ओपन-सोर्स प्रोजेक्ट बन गया है। इसका मतलब यह है कि कोडबेस को डेवलपर-फ्रैंडली होना चाहिए ताकि जो लोग इस पर कोडिंग करना चाहते हैं, वे आसानी से कोड को देख सकें, समझ सकें कि यह कैसे काम करता है और कैसे प्रोजेक्ट में योगदान देता है।
ओपन-सोर्स हो जाने के बाद से, डेवलपर्स डॉक्यूमेंटेशन बनाने, बग्स को ठीक करने, फ्रंट-एंड में बदलाव करने और फ्यूचर में बनने वाले वर्जन के लिए सुझाव साझा करने में योगदान दे रहे हैं। Kalaam का एक डिसॉर्डर सर्वर भी है जहां इस तरह के विचारों का आदान-प्रदान होता है और यह स्वानंद को इसके आसपास एक कम्यूनिटी बनाने में मदद कर रहा है।
यह कम्यूनिटी अभी शुरुआती दौर में है। स्वानंद कदम बताते हैं, "अब तक हमारे पास 10 डेवलपर हैं, जो ज्यादातर भारत से हैं और कोडबेस में योगदान दे रहे हैं। हमारे पास डॉक्यूमेंटेशन और कम्यूनिटी मैनेजमेंट की दिशा में भी समर्पित लोग है।"
'कलाम' का प्रभाव
Kalaam के प्रभाव के बारे में बताते हुए स्वानंद कहते हैं, "मुझे उम्मीद है कि Kalaam कोडिंग को भारत में लगभग सभी के लिए सुलभ बना सकता हैं। यह भविष्य की स्किल्स के बारे में युवाओं में जागरूकता ला सकता है और 21वीं सदी में हमारे योगदान पर बहुत बड़ा प्रभाव डाल सकता है।"
भारत एक बहुभाषी देश है। इसका मतलब है कि 'हिंदी' भी पर्याप्त नहीं है। कलाम को अभी हिंदी और मराठी का समर्थन है लेकिन जल्द ही इसे अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में भी लॉन्च किया जाएगा।
स्वानंद कदम बताते हैं, "यह फीचर मेरे लिए प्राथमिकता था, यही वजह है कि कलाम को डिजाइन करते समय मैं एक ऐसे भविष्य की ओर बढ़ रहा हूं जहां नई भाषाओं को जोड़ना कोडबेस को अस्थिर किए बिना 3 बटन क्लिक करने जितना आसान होगा। वर्तमान में, एक नई भाषा को जोड़ने में लगभग एक सप्ताह का समय लगता है। आगामी वर्जन में, हम कम से कम 2 और भाषाओं को जोड़ने की योजना बना रहे हैं। हम कलाम को तमिल, तेलुगु बोलने वालों के लिए वर्जन 2.0 में विस्तारित करने की योजना बना रहे हैं जो जुलाई के अंत तक रिलीज किया जाएगा। जब तक आप प्रोग्रामिंग को एक्सप्लोर करने के लिए उत्सुक हैं, मुझे लगता है कि कोई बाधा नहीं होनी चाहिए। कलाम के साथ, प्रोग्रामिंग एक बहुभाषी अनुभव बन जाएगा!"
'कलाम' का भविष्य
Kalaam पहले से ही Kalaam v1.2.0 के साथ अपने प्रारंभिक बीटा रिलीज से दो वर्जन आगे है। लॉन्च के बाद से, कलाम पर 50,000 से अधिक यूजर्स कोडिंग कर रहे हैं, जिनमें से 71% लोग इसे मोबाइल के माध्यम से एक्सेस कर रहे हैं।
स्वानंद कहते हैं, "आखिरकार, हम Kalaam के लिए यूज कैसे पेश करना चाहते हैं जैसे हमारे पास वेब डेवलपमेंट के लिए javascript और डेटा साइंस के लिए python है। अभी के लिए, यह एक ऐसी लैंग्वेज है जो एल्गोरिदम सीखने और बनाने के लिए सबसे उपयुक्त है।"
स्वानंद आगे बताते हैं, "हम एक ऐसे यूज केस की तलाश कर रहे हैं जो भारत-विशिष्ट हो और जरूरी नहीं कि वेबसाइट्स या ऐप्स से संबंधित हो। इसे एक यूटिलिटी कोड बनाने के लिए तैयार किया जा सकता है जिसे आप कहीं भी एम्बेड कर सकते हैं, जटिल गणित समीकरणों को हल करने के लिए इसे उपयुक्त बनाने से संबंधित कुछ भी। लेकिन हाँ, इसे अंतिम रूप देने से पहले बहुत सोच-विचार करने की आवश्यकता होगी। अगर आप विनीत हैं या विनीत जैसे किसी को जानते हैं। यहीं से इसकी शुरुआत होती है। आप Kalaam.io पर जा सकते हैं और सिर्फ एक क्लिक से कोडिंग शुरू कर सकते हैं।"
स्वानंद कदम निष्कर्ष निकालते हुए अंत में कहते हैं, "मुझे लगता है कि अगले 2 या 3 दशकों में भारत जहां खड़ा होगा, उसमें कोडिंग साक्षरता एक प्रमुख भूमिका निभाएगी। टेक्नोलॉजी हमारे विकास के लिए एक डायरेक्ट कैटेलिस्ट होने जा रही है, लेकिन जब तक हम केवल इसके कंज्यूमर हैं, हम कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं ला पाएंगे। हमें खुद को क्रिएटर के रोल में साबित करने की आवश्यकता है और मेरा मानना है कि Kalaam के जरिए उस यात्रा की ओर पहला कदम उठा सकते हैं।"
आपको बता दें कि Masai School की स्थापना IIT कानपुर के पूर्व छात्रों प्रतीक शुक्ला और नृपुल देव, ने योगेश भट्ट के साथ मिलकर जून 2019 में की थी। कंपनी की स्थापना गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच को लोकतांत्रिक (democratize) बनाने के उद्देश्य से की गई थी।
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