भारत के ये युवा 'हैकिंग' सीखकर सिक्योरिटी एजेंसी की मदद से कमा रहे करोड़ों
जिस 'हैकिंग' को आमतौर से गलत माना जाता है, उसी को पेशे के तौर पर अपनाकर इंदौर (म.प्र.) के शशांक चौरे और अर्जेंटिना के सेंटियागो लोपेज़ करोड़पति बन गए, लेकिन दोनो के एथिकिस में बेसिक अंतर है। लोपेज का मकसद सिर्फ पैसा बनाना है मगर शशांक, अंकित, राहुल त्यागी, शांतनु, पारुल खन्ना जैसे हैकर इस पेशे से भारी कमाई के साथ देश की सिक्योरिटी एजेंसियों की खतरनाक हैकरों से सुरक्षा कर रहे हैं।
लगभग दो साल पहले गूगल ने करोड़पति बनने का एक शानदार मौका दिया था कि कोई व्यक्ति यदि इथिकल हैकिंग में माहिर है तो गूगल की ओर से उसको करीब 2.3 करोड़ रुपए दिए जाएंगे। गौरतलब है कि गूगल ही नहीं फेसबुक, ऐपल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियां समय समय पर इस तरह के ऑफर पेश करती रहती हैं, जिसके तहत हैकर्स को उनके किसी प्रोडक्ट को हैक करने या खामी ढूंढने का ऑफर दिया जाता है और ढूंढने पर एक खास रकम देने का ऐलान किया जाता है।
ऐसे में अर्जेंटिना के उन्नीस वर्षीय सेंटियागो लोपेज़ अपनी छोटी सी उम्र में जब इसी तरह का (हैकर का) काम कर करोड़पति बन जाते हैं, पूरी दुनिया की सुर्खियों में आ जाते हैं। भारत में इसी तरह के हैकर अंकित फाड़िया 33 साल के हैं। लोग उन्हें साइबर सिक्योरिटी का बादशाह कहते हैं। कितने अचरज की बात है कि अंकित ने चौदह वर्ष की ही उम्र में एथिकल हैकिंग पर एक किताब भी लिख डाली। उस समय वह हाई स्कूल में पढ़ रहे थे। अब तक वह एक दर्जन से अधिक ऐसी पुस्तकें लिख चुके हैं। किसी का कम्प्यूटर हैक करना आम तौर से खराब बात मानी जाती है। इस बात को ध्यान में रखते हुए सेंटियागो लोपेज़ और अंकित फाडिया के एथिक्स में किस तरह का अंतर नजर आता है, आइए, उनके कथन से ही समझने की कोशिश करते हैं।
अंकित कहते हैं, 'अच्छे उद्देश्य के लिए किसी का कंप्यूटर हैक करना गलत नहीं है। एथिकल हैकिंग से सरकारी खुफिया एजेंसियों की मदद की जा सकती है। अंकित का कहना है कि हैकिंग को कॅरिअर के तौर पर भी चुना जा सकता है क्योंकि पूरी दुनिया में साइबर सुरक्षा से जुड़े मामले बढ़ते जा रहे हैं।' वह हैकिंग के प्रति लोगों का नजरिया बदलने के लिए देश भर में वर्कशॉप भी करते रहते हैं। उनके काम से प्रभावित होकर सिंगापुर मैनेजमेंट यूनिवर्सिटी ने 'अंकित फाडिया स्टडी अवार्ड' भी शुरू कर रखा है।
पंजाब के गुरदासपुर के रहने वाले चौबीस साल के राहुल त्यागी चंडीगढ़ की साइबर सुरक्षा कंपनी टीसीआईएल-आईटी के ब्रांड एंबेसडर होने के साथ ही साइबर सिक्योरिटी एंड एंटी हैकिंग ऑर्गनाइजेशन ऑफ इंडिया में वह उपाध्यक्ष का पद भी संभाल रहे हैं। शांतनु दस साल की उम्र से ही आईटी कंपनियों और सुरक्षा वेबसाइटों को सेवाएं दे रहे हैं। इस समय वह मुंबई की आईटी सिक्यूरिटी प्रमाणपत्र कंपनी ओरचिडसेवन में सलाहकार हैं। वह साइबर कॉप बनना चाहते हैं। पुरानी दिल्ली के साहिल खान बीस साल की उम्र में हैकिंग पर आधा दर्जन किताबें लिख चुके हैं, जबकि उन्होंने कंप्यूटर की ट्रेनिंग तक नहीं ली है। ऐसे ही हैकर्स में वुप्पल विकास, हांगकांग, दक्षिण चीन और मकाऊ जैसे देशों में भी वे साइबर सुरक्षा और एथिकल हैकिंग पर विशेष ट्रेनिंग सत्र का आयोजन कर चुके पारूल खन्ना आदि सुर्खियों में हैं।
हैकिंग से करोड़पति बन चुके सेंटियागो लोपेज़ का इस पेशे को लेकर नजरिया कुछ अलग है। वह कहते हैं कि उन्हे हैकिंग से पैसा कमाना अच्छा लगता है। उनको हैकिंग और पैसा, दोनो पसंद हैं। उनको यही सबसे अच्छा कम्बिनेशन लगता है। पैसे लेकर वह मशहूर लगभग डेढ़ हजार वेबसाइट्स के बग का पता लगा चुके हैं। उन्हे एक बग का पता लगाने में हजारो डॉलर की कमाई हो जाती है। इस तरह देखें तो अंकित और लोपेज के नजरिये में उत्तर-दक्षिण का अंतर है। हैकिंग से करोड़पति बना जा सकता है लेकिन इथिकल हैकिंग गलत हरकतों को पकड़कर सुरक्षित करती है। अब तो सरकारी एजेंसियों, निजी कंपनियों में बड़ी संख्या में तैनात हैकर्स स्टॉफ उनके डाटा सुरक्षित करने में जुटा है। मुंबई की आतंकी घटना के बाद अलकायदा के एक गुप्त कोड को तोड़कर अंकित फडिया भारत की सुरक्षा एजेंसियों की मदद करते हैं लेकिन लोपेज को हैकिंग से पैसा कमाना अच्छा लगता है।
मध्य प्रदेश के इंदौर के शशांक चौरे 'करोड़पति हैकर' होने के बावजूद सिर्फ पैसा कमाने में दिलचस्पी नहीं लेते बल्कि इंदौर पुलिस के लिए साइबर सिक्योरिटी कंसल्टेंट भी रह चुके हैं। आज वह 'इंडिया इंफोटेक' नाम से अपनी स्पेशलाइज्ड ई-कॉमर्स वेबसाइट डेवलपमेंट कंपनी चला रहे हैं, जिसकी सालाना पांच करोड़ रुपये की कमाई है। प्रधानमंत्री कार्यालय में राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय में राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा समन्वयक गुलशन राय के मुताबिक, बैंकिंग सेक्टर साइबर हैकर्स के निशाने पर है। बैंकिंग प्रणाली को साइबर सुरक्षा से जुड़े खतरों एवं चुनौतियों एवं प्रौद्योगिकी में हो रहे बदलावों से निपटने के लिए खुद को तैयार रखना होगा। बैंकों के लिए जरूरी है कि वे अपने सॉफ्टवेयर को मजबूत बनाएं क्योंकि सर्वाधिक उन पर ही साइबर हमले की आशंका है।
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