मिलिए 17 साल के अर्जुन से, जो ऑनलाइन फ़ार्मेसी-मेडिकल मॉल्स के दौर में छोटे रीटेलर्स की 'डूबती नैय्या' को लगा रहे पार
महज़ 14 साल की उम्र तक अर्जुन देशपांडे अपनी मां के साथ 20 से ज़्यादा प्लान्ट्स का दौरा कर चुके थे। उनकी मां फ़ार्मा ट्रेड में ही कार्यरत थीं। इन दिनों अर्जुन को कंप्यूटर और उससे जुड़ी चीज़ों में बहुत दिलचस्पी थी। उनकी मां अक्सर उनसे भारत में स्थापित मेडिसिन बिज़नेस के बारे में चर्चा करती रहती थीं। उन्होंने जल्द ही इस बात को समझ लिया था कि भारत उन चुनिंदा देशों में से एक है, जहां पर जेनरिक दवाइयां, ब्रैंडेड दवाइयों जितनी ही महंगी थीं।
इसकी दो वजहें थींः पहला तो यह कि लोगों में जागरूकता की कमी थी और दूसरा यह कि छोटे रीटेलरों से होलसेल इंडस्ट्री अधिक मार्जिन या मुनाफ़ा कमाती थी और इस वजह से उपभोक्ताओं या ग्राहकों के लिए दाम बढ़ जाते थे। अर्जुन ने इन बातों को समझने के बाद तय किया कि वह देश में लोगों को किफ़ायती क़ीमतों में दवाइयां उपलब्ध करवाएंगे।
2018 में अर्जुन ने ठाणे से ही जेनरिक आधार नाम के एक फ़ार्मा स्टार्टअप की शुरुआत की, जो नामी फ़ार्मा कंपनियों की अच्छी जेनरिक दवाइयों को आम जनता तक लगभग 80 प्रतिशत तक कम क़ीमतों में पहुंचाते हैं। स्टार्टअप, सरकार द्वारा प्रमाणित मैनुफ़ैक्चरिंग यूनिट्स में तैयार होने वालीं ब्रैंडेड, जेनरिक, होम्योपथी और आर्युवेदिक सभी तरह की दवाइयां उपलब्ध कराता है।
17 वर्षीय अर्जुन कहते हैं,
"हमारे देश में जेनरिक दवाइयों को बाज़ार में ब्रैंडेड दवाइयों की तरह से प्रचारित किया जाता है और उन्हें महंगी क़ीमतों में बेचा जाता है। ब्रैंड प्रमोशन और प्रचार की लागत की वजह से दवाइयों के दाम बढ़ा दिए जाते हैं और इसका ख़ामियाज़ा ग्राहकों को भुगतना पड़ता है।"
14 साल की उम्र में अपना स्टार्टअप शुरू करने के बाद आने वाले तीन सालों में उन्होंने जेनरिक आधार को आगे बढ़ाने के लिए अपने परिवार से 15 लाख रुपए लिए। हाल में स्टार्टअप, मुंबई में 25 से ज़्यादा स्टोर्स के साथ मिलकर काम करता है। स्टार्टअप सीधे डब्ल्यूएचओ जीएमपी-प्रमाणित फ़ैक्ट्रियों से दवाइयां लेता है और ग्राहकों को बाज़ार से सस्ती क़ीमतों में उपलब्ध कराता है। इसकी बदौलत छोटे मेडिकल स्टोर मालिकों जेनरिक आधार की ब्रैंडिंग के अंतर्गत दवाइयां बेचकर अधिक मुनाफ़ा भी मिल पाता है। इस तरह से ग्राहकों के साथ छोटे-छोटे व्यापारियों को भी फ़ायदा होता है।
आपको बता दें कि जेनरिक दवाइयां, ब्रैंडेड दवाइयों की तरह होती हैं, जैसे कि एक ही जैसे डोज़, प्रभाव-दुष्प्रभाव, जोख़िम, सुरक्षा आदि। दोनों ही दवाइयों के फ़ार्मा संबंधी गुणों में भी समानता पाई जाती है। जेनरिक दवाइयां सस्ती इसलिए होती हैं क्योंकि निर्माताओं को नई दवाई को तैयार करने में और उसकी ब्रैंडिंग में होने वाला खर्च नहीं वहन करना पड़ता। जैसे ही जेनरिक दवाइयों के पेटेंट की वैधता समाप्त होने का समय पूरा होने वाला होता है, जेनरिक दवाइयों के निर्माता उन्हें बनाने और बेचने की अनुमति के लिए आवेदन दे सकते हैं। भारत में, 80 से 90 प्रतिशत तक जेनरिक दवाइयां मार्केट में हैं और इन्हें बहुत ही कम लागत के साथ तैयार किया जाता है, लेकिन इसका फ़ायदा ग्राहकों तक नहीं पहुंच पाता।
अपनी कंपनी की शुरुआत करने से पहले ही अर्जुन को अपने शुरुआती क्लाइंट्स मिल गए थे और ये क्लाइंट्स थे, उनकी दादी और उनकी दादी की दोस्त। अर्जुन की दादी को डायबिटीज़ (मधुमेह) की बीमारी थी और वह एक ब्रैंडेड दवाई का सेवन करती थीं, जिसकी 10 गोलियों की क़ीमत 335 रुपए थी। उन्हें जल्द ही इस बात का एहसास हो गया कि इन दवाइयों की क़ीमतें और भी बढ़ जाएंगी और उन्होंने अपने परिवार को इस बात के लिए मनाया कि वे उन्हें 15 लाख रुपए का फ़ंड मुहैया कराएं ताकि वह अपना स्टार्टअप शुरू कर सकें।
परिवार से फ़ंडिंग जुटाने के बाद उन्होंने औपचारिक रूप से अप्रैल, 2019 में अपने ब्रैंड को लॉन्च किया। जेनरिक आधार, मेडिकल मॉल्स और ऑनलाइन फ़ार्मेसियों के इस ज़माने में संघर्ष कर रहे छोटे मेडिकल स्टोर्स को पर्याप्त मुनाफ़ा कमाने में मदद देता है। अर्जुन का स्टार्टअप रीटेलर्स को तकनीकी सहायता भी मुहैया कराता है ताकि उन्हें बेहतर बिज़नेस मिल सके।
अर्जुन हाल में 10 निर्माता कंपनियों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं और वह उन्नत तकनीक की मदद से अपने डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क को बढ़ाना चाहते हैं। अर्जुन की योजना है कि आने वाले तीन सालों में उनका स्टार्टअप 1 हज़ार से ज़्यादा फ़ैमिली-ओन्ड स्टोर्स तक अपना नेटवर्क फैला सके।
जेनरिक आधार स्टार्टअप, बीटूबी और बीटूसी दोनों ही तरह के बिज़नेस मॉडलों का अनुसरण करता है। स्टार्टअप सीधे निर्माताओं, ब्रैंड्स और फ़्रैचाइजी ड्रग स्टोर्स से माल ख़रीदता है। इसकी बदौलत इनवेन्टरी को बनाए रखने का जिम्मा पार्टनर स्टोर का होता है। जेनरिक आधार की योजना है कि अगले एक साल में, 200 से ज़्यादा स्टोर्स और ऑनलाइन फ़ार्मा स्टोर्स को अपने साथ जोड़ा जाए।
अर्जुन कहते हैं,
"भारत में 10 लाख से भी ज़्यादा ऑनलाइन फ़ार्मेसी या रीटेलर्स हैं और ये सभी हमारा मार्केट हैं।"