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भारत के वो चार राष्ट्रपति जिन्होंने आधी से भी कम सैलरी ली

भारत के वो चार राष्ट्रपति जिन्होंने आधी से भी कम सैलरी ली

Tuesday July 05, 2022 , 4 min Read

आज के दौर में यह मानना मुश्किल लगता है कि देश में ऐसे लोग भी हुए हैं जो सरकारी पदों पर रहते हुए अपने वेतन का आधे से भी ज्यादा हिस्सा गरीबों की मदद या देश में राहत कार्यों के लिए दे देते थे. 


इन राष्ट्रपतियों में राजेन्द्र प्रसाद, जो कि भारत के पहले राष्ट्रपति थे, के बाद डॉ. राधाकृष्णन, नीलम संजीव रेड्डी और ए.पी. जे. अब्दुल कलाम, का नाम आता है.

राजेन्द्र प्रसाद 

राजेन्द्र प्रसाद ने राष्ट्रपति पद पर रहते हुए अपनी साधारण ज़िन्दगी और मितव्ययिता के बहुत-से उदाहरण पेश किये. वो अपनी सैलरी का ज्यादातर हिस्सा सरकारी निधि में दे देते थे. तब राष्ट्रपति का वेतन 10,000 रुपये महीना होता था. राजेन्द्र प्रसाद ने इसमें से केवल 30 प्रतिशत वेतन लेना स्वीकार किया. शेष राशि वो सरकारी निधि में दे देते थे. बाद में उन्होंने अपने वेतन में से और भी कटौती करनी शुरू कर दी और 25 फीसदी राशि लेने लगे. उनके सादा जीवन के कई किस्से मशहूर हुए. मसलन वो जब तक राष्ट्रपति भवन में रहे तब तक उन्होंने अपने व्यक्तिगत स्टाफ के तौर पर केवल एक व्यक्ति को रखा. उन्होंने राष्ट्रपति के कार्यकाल के दौरान किसी से कोई तोहफा नहीं लिया. रिटायरमेंट के बाद पटना लौटकर भी एक साधारण ज़िन्दगी ही बिताई. 

Rajendra

इमेज क्रेडिट: PIB

नीलम संजीव रेड्डी

आन्ध्र प्रदेश के नीलम संजीव रेड्डी भारत के छठे राष्ट्रपति थे. भारत के राष्ट्रपति बनने से पहले वे दो बार लोकसभा के स्पीकर भी रह चुके थे. गाँधी से प्रेरित रेड्डी ने गांधीवादी विचारों को अपनाते हुए विदेशी चीज़ों का बहिष्कार किया और आजीवन खादी पहनी. इन्हीं मूल्यों की झलक उनके राष्ट्रपति काल में भी दिखती है. 64 वर्ष की उम्र में निर्विरोध राष्ट्रपति चुने जाने के कुछ ही वक़्त के बाद उन्होंने राष्ट्रपति भवन में रहना छोड़ दिया और अपने वेतन का सिर्फ 30 प्रतिशत हिस्सा ही लेते थे. बाकी का 70 प्रतिशत ग़रीबों की मदद के लिए जाता था. 

Neelam

इमेज क्रेडिट: National Archives and Records

एस. राधाकृष्णन

तमिलनाडु में जन्मे राधाकृष्णन पहले भारत के उप-राष्ट्रपति बने और फिर दूसरे राष्ट्रपति के रूप में चुने गए. भारत के राष्ट्रपति बनने से पहले उन्होंने फलसफे की पढाई की थी और मैसूर यूनिवर्सिटी और कलकत्ता यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रहे. राधाकृष्णन 1939-48 तक बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रहे और 1953-1962 तक दिल्ली यूनिवर्सिटी के भी वाइस चांसलर रहे. 1936 में ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में उन्हें स्पाल्डिंग प्रोफेसर ऑफ़ ईस्टर्न रेलिजन एंड एथिक्स बनाया गया. इसके अलावा, ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के ही आल सोल्स कॉलेज में फेलो भी रहे. 1949 से 1952  तक रूस में UNESCO के राजदूत भी रहे. 1952 में भारत लौटने के बाद उसी साल भारत के उप-राष्ट्रपति चुने गए और फिर 1962 में भारत के दूसरे राष्ट्रपति बने. 


राधाकृष्णन साल 1962 से 1967 तक भारत के राष्ट्रपति रहे. यह वह दौर था जब भारत दो बड़े युद्धों, चीन और पाकिस्तान के साथ, का सामना कर रहा था. 


बेहद किफायती जीवन बिताने वाले राधाकृष्णन पहले राष्ट्रपति की ही तरह अपने वेतन का मात्र 25 प्रतिशत खुद के लिए रखते थे और बाकी का 75 प्रतिशत प्रधानमंत्री राहत कोष में दे दिया करते थे. सरकारी खर्चे पर विदेश यात्रा करना या सरकारी गाडी का व्यक्तिगत इस्तेमाल करना, कहें कि अपनी जरूरतों के लिए सरकारी चीज़ों को उपयोग करना, उन्हें नैतिक नहीं लगता था. 

Radha

इमेज क्रेडिट: Overman Foundation

ए. पी. जे. अब्दुल कलाम 

कलाम साल 2002 में भारत के 11वें राष्ट्रपति चुने गए और ठीक एक साल बाद 2003 में उन्होने PURA (Provision of Urban Amenities in Rural Areas) को लॉन्च किया. यह उनके ड्रीम प्रोजेक्ट की तरह था जिसका उद्देश्य गाँव में ऐसी व्यवस्था को बढ़ावा देना था जिससे सामाजिक और आर्थिक स्तर पर शहर और गाँव के बीच की खाई मिट सके. इस प्रोजेक्ट के तहत गाँवों में पानी और सैनिटाइजेशन, सड़कें, सॉलिड वेस्ट मनेजमेंट, स्किल डेवलपमेंट, टेलिकॉम, बिजली और पर्यटन की सम्भावनाओं को तलाशना इत्यादि शामिल था. 2016 में केंद्र सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूर्बन मिशन [Shyama Prasad Mukherjee Rurban Mission] की स्थापना की जिसने PURA की जगह ले ली.  

Kalam

इमेज क्रेडिट: Ministry of Home Affairs, GODL-India

“मिसाइल मैन” और “जनता के राष्ट्रपति” के रूप में याद किये जाने वैज्ञानिक, टीचर और राष्ट्रपति कलाम बेहद सादगी पसंद इंसान थे. उनके पर्सनल सामान में किताबें, एक वीणा और कुछ जोड़ी कपड़े थे. राष्ट्रपति बनने के बाद वे अपना पूरा वेतन अपने ड्रीम प्रोजेक्ट PURA को अमली-जमा पहनाना के लिए दे देते थे. उनका मानना था कि राष्ट्रपति बनने के बाद जब जब सरकार की तरफ़ से आजीवन उनकी दैनिक सुविधाओं का रखा ही जाना है, तो अपने वेतन को क्यों न बेहतर चीज़ों में लगाया जाए.