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दोस्त की तकलीफ़ से लिया सबक, बनाई इंसानी पैर जैसी बैसाखी

दोस्त की तकलीफ़ से लिया सबक, बनाई इंसानी पैर जैसी बैसाखी

Wednesday June 26, 2019 , 5 min Read

Flexmotiv Co-founders

Flexmotiv Co-founders

क्या आप अपनी या अपने किसी करीबी की समस्या को देखकर यह अंदाज़ा लगा पाते हैं कि वैसी ही समस्या बहुत से लोगों को हो सकती है और फिर क्या आप यह विचार करते हैं कि इस समस्या को सुलझाने का कोई उपाय ढूंढा जाए? आमतौर पर लोग ऐसा नहीं करते या कर पाते और यही बात कुछ लोगों को जो अपनी निजी समस्या से ऊपर उठकर एक बड़े वर्ग की सहूलियत के बारे में सोचते हैं, उन्हें ख़ास बनाती है और हम सभी के सामने एक उदाहरण पेश करती है।


आज हम बात करने जा रहे हैं तेलंगाना के श्रीनिवास अड़ेपु की, जो ऐसा ही उदाहरण ऑन्त्रप्रन्योर्स के समुदाय और पूरे समाज के सामने पेश करते हैं। श्रीनिवास मैकेनिकट डिज़ाइन में पोस्ट ग्रैजुएशन के पहले सेमेस्टर में थे, जब उनके दोस्त को खेलते हुए एड़ी में चोट लग गई। 25 वर्षीय श्रीनिवास बताते हैं, "मेरा दोस्त बड़ी परेशानी से गुज़र रहा था और बाज़ार में उपलब्ध क्रचेज़ (बैसाखियां) से उसको दिक्कत हो रही थी और उनके साथ वह ठीक से चल भी नहीं पा रहा था।"


श्रीनिवास बताते हैं कि ये सब देखने के बाद उन्होंने फ़ैसला लिया कि वह अपने दोस्त और ऐसी ही समस्या से गुज़रने वाले अन्य लोगों की मदद करेंगे और उनके लिए ख़ास तरह के क्रचेज़ तैयार करेंगे। वह बताते हैं कि उनके दिमाग़ में आइडिया आया कि क्यों न क्रचेज़ के निचले हिस्से में पैर की बनावट और ग्रिप वाली टिप लगाई जाए, जैसा कि प्रॉसथेटिक लेग्स में होता है, जिनका इस्तेमाल रनर्स और पर्वतारोहियों द्वारा किया जाता है।


इस क्रम में ही उन्होंने अपने कॉलेज के दोस्त अरविंद सुरेश अंबलापुझास (28 साल) के साथ मिलकर 2017 में फ़्लेक्समोटिव की शुरुआत की। फ़्लेक्समो एक ऐसा क्रच है, जिसे हर तरह की ज़मीन पर आसानी के साथ इस्तेमाल किया जा सकता है, फिर चाहे वह बर्फ़ीली या गीली ज़मीन ही क्यों ने हो। क्रच का डिज़ाइन इंसानी पैर जैसा बनाया गया है, जो यह सुनिश्चित करता है कि इस्तेमाल करने वाले के फिसलने और गिरने का ख़तरा न हो।


यह स्टार्टअप आईआईटी, दिल्ली के इनक्यूबेशन सेंटर का हिस्सा है। यह इनक्यूबेशन सेंटर इनोवेशन और टेक्नॉलजी ट्रांसफ़र के लिए बना एक फ़ाउंडेशन है।


हाल में, फ़्लेक्सोमोटिव का मैनुफ़ैक्चरिंग सेंटर इंदौर (मध्य प्रदेश) में है और वे एक स्ट्रैटजिक पार्टनर के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। स्टार्टअप ने पहले चरण के क्लिनिकल ट्रायल्स भी पूरे कर लिए हैं। अभी तक, 120 यूज़र्स प्रोडक्ट को टेस्ट कर चुके हैं और स्टार्टअप को उम्मीद है कि इस साल अगस्त तक प्रोडक्ट को लॉन्च कर दिया जाएगा।


इत्तेफ़ाक़ से दोस्त बने अरविंद और श्रीनिवास ने साथ मिलकर Tech4Raj और आईआरडी (इंडस्ट्रियल रिसर्च डिपार्टमेंट) द्वारा आयोजित प्रतियोगताओं में हिस्सा लिया और दोनों में जीत हासिल की। आपको बता दें कि Tech4Raj, INVENT (इनवेन्ट) द्वारा आयोजित एक इवेंट है। इनवेस्ट, एक सोशल ऑन्त्रप्रन्योरशिप प्रोग्राम है, जिसकी शुरुआत टेक्नॉलजी डिवेलपमेंट बोर्ड (टीडीबी), भारत सरकार ने डिपार्टमेंट फ़ॉर इंटरनैशनल डिवेलपमेंट (डीएफ़आईडी), यूके और विलग्रो के साथ मिलकर की थी। इस प्रतियोगिता का इनामी राशि 50 हज़ार रुपए थी। वहीं आईआरडी द्वारा आयोजित प्रतियोगिता की इनामी राशि 1 लाख रुपए थी।

Flexmo

फ़्लेक्समोटिव के तीसरे और सबसे युवा को-फ़ाउंडर गिरीश यादव (23 साल) ने भी आईआईटी दिल्ली से बीटेक की डिग्री ली है। उनकी मुलाक़ात श्रीनिवास और अरविंद से एक प्रोफ़ेसर जितेंद्र खतैत के माध्यम से हुई। गिरीश ने जनवरी, 2018 में फ़्लेक्समोटिव जॉइन किया।


अरविंद बताते हैं कि उनकी टीम प्रोटोटाइप लेकर एम्स, दिल्ली पहुंची। वहां के डॉक्टरों ने उनके प्रोटोटाइप की काफ़ी तारीफ़ की, लेकिन कोई भी मरीज़ प्रोटोटाइप टेस्ट करने के लिए तैयार नहीं था, कोई उनका प्रोडक्ट नया था और इस वजह से मरीज़ों को लगता था कि कहीं उनकी तकलीफ़ और न बढ़ जाए। लेकिन बिहार से दिल्ली एम्स इलाज कराने आईं 15 साल की इंदुकुमारी ने उनपर भरोसा जताया और कुछ समय तक प्रोटोटाइप इस्तेमाल करने के बाद कुछ सुधार भी बताए, जिन्हें आगे चलकर टीम ने अपने प्रोटोटाइप में लागू किया।


श्रीनिवास बताते हैं कि बाज़ार में आमतौर पर उपलब्ध क्रचेज़ मुख्य रूप से चीन और ताइवान से मंगाए जाते हैं। श्रीनिवास आगे कहते हैं कि ये क्रचेज़ हर तरह की जमीन पर चलने के लिए उपयुक्त नहीं होते और इसलिए ज़्यादातर लोग वॉकर या व्हीलचेयर लेकर चलते हैं। साथ ही, उनका कहना है कि अगर कोई इंसान पोलियो से पीड़ित है और उसका क्रच या बैसाखी ठीक नहीं है तो एक पैर की वजह से दूसरा पैर भी ख़राब हो सकता है।


स्टार्टअप ने तय किया कि अगस्त में लॉन्च के बाद प्रोडक्ट को 2,999 रुपए के रीटेल दाम पर बेचा जाएगा और यह प्रोडक्ट गैर-सरकारी संगठनों में कम दामों में उपलब्ध होगा। अरविंद ने जानकारी दी कि सशस्त्र बलों के साथ भी प्रोडक्ट मुहैया कराने के संबंध में बातचीत चल रही है।


अगस्त में प्रोडक्ट को गैर-सरकारी संगठनों के लिए विशेष रूप से लॉन्च किया जाएगा और इसके बाद 3 दिसंबर को इंटनैशनल डे ऑफ़ डिसऐबल्ड पर्सन्स के मौक़े पर इसे दोबारा लॉन्च किया जाएगा। इसके बाद ही प्रोडक्ट रीटेल मार्केट में उपलब्ध होगा। स्टार्टअप ने नैशनल और इंटरनैशनल डिज़ाइन पेटेन्स के लिए आवेदन दे दिया है।


स्टार्टअप को बायोटेक्नॉलजी इंडस्ट्रियल रिसर्च असिस्टेन्ट काउंसिल की ओर से बायोटेक्नॉलजी इगनिशन ग्रान्ट भी मिल चुका है। इसके बाद कंपनी को 45 लाख रुपए के तीन और इंडीपेन्डेन्ट ग्रान्ट्स के लिए स्वीकृति भी मिल चुकी है। 


दिल्ली के इस स्टार्टअप को उम्मीद है कि अलगर उन्हें कोई अतिरिक्त फ़ंडिंग नहीं मिलती है तब भी 18 महीनों के भीतर वे ब्रेक-इवन की स्थिति में आ जाएंगे और अगर चीज़े बेहतर रहीं तो यह लक्ष्य इससे आधे समय में भी हासिल किया जा सकता है।