समाज की बेड़ियों को तोड़ घुमक्कड़ों को सैर करा रहीं ये महिला गाइड्स
बुजुर्ग टूर गाइड रमा बेन और युवा महिला गाइड झलक पटेल की जिंदगियों के ढर्रे तो अलग-अलग हैं लेकिन अभिरुचि एक जैसी। रमा बेन आजाद हिंद फौज में लेफ्टिनेंट रहने के बाद आगरा में गाइड बन गईं तो झलक इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर गुजरात में पर्यटकों को राज्य के प्रसिद्ध स्थलों के रोचक किस्से सुनाती है।
ख़्वाज़ा मीर की लाइनें हैं- 'सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ, ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ'। कुछ इसी अंदाज में हमारे देश के महापंडित राहुल सांकृत्यायन 'अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा' नाम से पर्यटन पर एक पूरी किताब ही लिख डालते हैं, जिसमें वह बताते हैं कि 'प्रथम श्रेणी के एक घुमक्कड़ को पैदा करने के लिए हजार द्वितीय श्रेणी के घुमक्कड़ों की आवश्यथकता होगी। द्वितीय श्रेणी के एक घुमक्कड़ के लिए हजार तृतीय श्रेणी के। इस प्रकार घुमक्कड़ी के मार्ग पर जब लाखों की संख्या में लोग चलेंगे तो कोई-कोई उनमें आदर्श घुमक्कड़ बन सकेंगे।'
घुमक्कड़ी यानी पर्यटन की बात पर गौरतलब है कि हमारे देश में आम महिलाओं की इज्जत-आबरू की घटनाएं तो शर्मसार करती ही हैं, महिला पर्यटकों के साथ होने वाली हरकतें भी भारत की प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाती हैं। ऐसे में महिला टूर गाइड का महत्व अपने आप बढ़ जाता है। टूरिस्ट उनके साथ अपने को ज्यादा सुरक्षित और प्रसन्नचित्त महसूस करते हैं। ऐसी ही हैं गुजरात की एक महिला टूर गाइड झलक पटेल, जो पर्यटकों को बड़े दिलचस्प अंदाज़ में राज्य के रोचक-रोमांचक संस्मरण सुनाती-रिझाती रहती हैं। उन्होंने पढ़ाई तो इंजीनियरिंग में की है लेकिन इतिहास की किताबें पढ़ते-पढ़ते वह टूर गाइड में गहरी दिलचस्पी लेने लगीं और एक दिन वह टूरिस्टों को गाइड करने चल पड़ीं। झलक इस तरह से गाइडों को अपने राज्य के ऐतिहासिक स्थलों के किस्से सुनाती हैं, जिससे उनकी गुजरात में घुमक्कड़ी की दिलचस्पी और बढ़ जाती है।
तालाला (गुजरात) के गिर पर्यटन स्थल पहुंचने वाले पर्यटकों के लिए यह खुशखबरी है कि सासण में महिला गाइड सिंह दर्शन कराएंगी। अभी पिछले महीने ही वन्य प्राणी विभाग ने तीस महिलाओं को गाइड की ट्रेनिंग देकर उन्हें स्वावलम्बी बनाने की दिशा में एक रोचक पहल की है। एक जानकारी के अनुसार इन महिला गाइड्स को हिंदी, अंग्रेजी और गुजराती भाषाओं की जानकारी है। इसके अलावा वे शेर, उसकी आदतें, वनों में मिलने वाली औषधि, वहां के वृक्षों की पूरी जानकारी रखती हैं। पर्यटकों के लिए यह एक अद्भुत अनुभव है। इन महिला गाइड्स की ट्रेनिंग पूरी हो चुकी है। अब वे पर्यटकों को गिर के जंगलों में सिंह के दर्शन करा रही हैं।
इन महिला गाइड्स के मुस्कुराते चेहरे अलग की आकर्षण का केंद्र बने रहते हैं। महिला टूर गाइड की बात करें तो लगता है कि कुछ स्त्रियां कुछ अलग ही करने के लिए पैदा होती हैं। लीक से हटकर करने का उनका ये जज्बा दूसरी महिलाओं के लिए मिसाल बन जाता है। देशभर में कई महिलाएं अलग-अलग सेक्टर से जुड़ी हैं, उन्हीं में एक हैं आगरा में सक्रिय नब्बे साल की बुजुर्ग रमा सत्येंद्र खंडवाला, जिन्हे देश की सबसे बुजुर्ग ट्रैवल गाइ़ड का दर्जा हासिल है। लोग प्यार से उनको रमा बेन भी कहते हैं। आगरा में वह काफी मशहूर हैं। इस उम्र में भी वह बतौर ट्रैवल गाइड काफी सक्रिय रहती हैं और हर सप्ताह नए नए असाइनमेंट लेती रहती हैं। पिछले कई दशकों का अनुभव और कई भाषाओं पर उनकी पकड़ भी उनको एक बेहतरीन पर्यटक गाइड बनाती है।
रमा बेन जापानी, हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं में पारंगत हैं। उनका जन्म म्यांमार के रंगून में हुआ था। उस जमाने में उनके पिता की महात्मा गांधी से अच्छी खासी पहचान थी। शुरुआत से ही भारत की आजादी के लिए उनके परिवार में खूब जज्बा था जिसका असर रमा बेन पर भी पड़ा। सुभाषचंद्र बोस के रंगून दौरे के वक्त रमा बेन की मुलाकात नेताजी से हुई। वह नेताजी के विचारों से काफी प्रभावित हुईं और उन्होंने आजाद हिंद फौज में शामिल होकर फौज के झांसी रेंज में बतौर सेकेंड लेफ्टिनेंट बन गईं। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान उनका परिवार म्यांमार से भारत आकर मुंबई में बस गया। शुरू में वह नर्सिंग का काम करने के दौरान भाषा अनुवादक भी बन गईं।
उसके बाद उन्होंने भारत सरकार की एक ट्रैवल गाइड स्किल प्रोग्राम में हिस्सा लिया, जिसमें उनको दुनिया को समझने का मौका मिला। रमा बेन कहती हैं कि ट्रैवल गाइड, अनऑफिशियल तौर पर किसी भी देश के प्रतिनिध होते हैं। उनके हर एक व्यवहार का असर देश की इमेज बनाता है, ऐसे में गाइड्स को सतर्क और संवेदनशील होना चाहिए। रमा बेन बताती हैं कि ट्रैवल गाइड के प्रोफेशन में सिर्फ अठारह प्रतिशत ही महिलाएं हैं, उन्हें ज्यादा से ज्यादा इस प्रोफेशन से जुड़ना चाहिए।
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