इन वैज्ञानिकों ने बनाया ब्रेस्ट कैंसर की पहचान करने वाला ब्रा, राष्ट्रपति ने किया सम्मानित
भारत में कैंसर पीड़ितों की संख्या भारी तादाद में है, लेकिन सबसे ज्यादा घटनाएं स्तन कैंसर की होती हैं। अगर डेटा पर यकीन करें तो हर 22 में से एक महिला में स्तन कैंसर की संभावना विकसित हो सकती है। यह बेहद अफसोस और दुख की बात है कि स्तन कैंसर से पीड़ित दो महिलाओं में से एक की मृत्यु हो जाती है। दुनियाभर के विपरीत भारत में काफी कम उम्र की महिलाएं स्तन कैंसर की बीमारी से पीड़ित हैं। अब भारत के शहरी और ग्रामीण दोनों इलाकों में 30-40 उम्र की महिलाओं में स्तन कैंसर की पहचान हुई है।
बड़ी संख्या में स्तन कैंसर की बीमारी होने के बावजूद इसके इलाज के लिए उपलब्ध ढांचागत सुविधाओं में काफी कमी है। स्तन कैंसर का पता लगाने से लेकर उसके निदान और उपचार के लिए काफी कम संसाधन उपलब्ध हैं। इसके साथ ही लोगों में जागरूकता की भारी कमी भी है। स्तन कैंसर की पहचान के लिए सबसे पहले मैमोग्राम करने की जरूरत होती है, लेकिन उसमें रेडियेशन का खतरा होता है। इसलिए डॉक्टर 50 की उम्र पार करने वाली महिलाओं को ही मैमोग्राम की सलाह देते हैं।
इसके साथ ही मैमोग्राम टेस्ट हर किसी के लिए आर्थिक रूप से व्यवहार्य विकल्प भी नहीं है। क्योंकि इस टेस्ट की लागत काफी ज्यादा (1,500 से 8,000 रुपये के बीच) होती है। इन सारी दिक्कतों को देखते हुए केरल के वैज्ञानिकों ने एक आसान और सस्ता रास्ता खोज निकाला है। वर्षों के रिसर्च के बाद एक ऐसा प्रॉडक्ट खोज निकाला गया है जो स्तन कैंसर का पता लगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
इलेक्ट्रॉनिक्स प्रौद्योगिकी केंद्र (सी-मेट) की त्रिशूर शाखा की एक टीम ने एक पहनने योग्य उपकरण का आविष्कार किया जो सेंसर के साथ एम्बेडेड है और स्तनों में कैंसर कोशिकाओं का पता लगाने के लिए थर्मल इमेजिंग का इस्तेमाल करता है। टीम का नेतृत्व डॉ. ए सीमा ने किया जिन्हें हाल ही में इस क्रांतिकारी उपकरण के लिए भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रतिष्ठित नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
सीमा ने कहा, 'इस ब्रा को विकसित करने का आइडिया 2014 में आया था जब मालाबार कैंसर सेंटर, कन्नूर के निदेशक ने हमसे मुलाकात की। इश प्रॉजेक्ट में वे हमारे मेडिकल पार्टनर थे। उन्होंने सामुदायिक स्तर पर स्तन कैंसर का पता लगाने के तरीकों पर विचार किया। सबसे पहले मैमोग्राम टेस्ट की बात आई, लेकिन ये हमारे देश के सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में उपलब्ध नहीं है। उनके दिमाग में एक ऐसी पोर्टेबल डिवाइस बनाने का आइडिया था जिसे सामुदायिक स्तर पर लागू किया जा सकता था। इस विचार ने हमें थर्मल इमेजिंग तकनीक के माध्यम से एक पहनने योग्य डिवाइस बनाने के लिए प्रेरित किया।
इसके बाद चार सालों तक इस अनोखे ब्रा को विकसित करने में पूरी टीम लगी और कई सारे ट्रायल्स के बाद इसे संभव कर दिखाया गया। डॉ. सीमा कहती हैं कि इस ब्रा में लगे सेंसर त्वचा का तापमान मापते हैं और स्तन में किसी भी तरह के दबाव का भी पता लगाते हैं। सबसे अच्छी बात ये है कि इसमें मैमोग्राम टेस्ट की तरह कोई रेडिएशन या दर्द नहीं होता है। यह डिवाइस इतनी पोर्टेबल बनाई गई है कि गांव की आशा वर्कर भी इसे फील्ड विजिट के दौरान अपने साथ ले जा सकती हैं।
सीमा कहती हैं कि इस डिवाइस से किसी भी इंसान की प्राइवेसी सुरक्षित रहती है क्योंकि परीक्षण के दौरान इसे कपड़े पहन कर कर सकता है। यह काफी महत्वपूर्ण बात है क्योंकि अधिकांश महिलाएं अपने सामाजिक और सांस्कृतिक वजहों की वजह से मैमोग्राम जैसी किसी भी क्लिनिकल स्क्रीनिंग से बचती हैं। इसे 15 से 20 साल की लड़कियों पर भी किया जा सकता है। वहीं मैमोग्राम के लिए कम से कम 40 वर्ष की उम्र का होना जरूरी है। जहां एक तरफ मैमोग्राम मशीन की कीमत 3.5 करोड़ के आसपास होती है वहीं इस पहनने वाली डिवाइस की कीमत सिर्फ 400-500 रुपये होती है। सीमा कहती हैं कि आने वाले समय में इसकी कीमत और भी कम होती जाएगी।
डॉ. सीमा कहती हैं कि यह एक व्यक्तिगत परियोजना नहीं थी और इसके पीछे उनकी टीम की सामूहिक कठिन मेहनत भी लगी थी। इस अमूल्य योगदान के लिए वे अपनी टीम को सारा श्रेय देती हैं। उनकी टीम में आरती के, रेनजिथ, दीपक, हसीना, ईवा इग्नेशियस, श्रीलक्ष्मी के साथ वैज्ञानिक मुरलीधरन शामिल हैं, जबकि कोर प्रोजेक्ट टीम के रूप में सनी और श्रीधर कृष्ण जैसे तकनीकी कर्मचारी शामिल हैं। डॉ. सीमा को उनके इस योगदान के लिए नारी शक्ति पुरस्कार के अलावा पिछले साल राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
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