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यह कंपनी अपने खास सिस्टम से भारत में बचा रही टॉइलट में बर्बाद होने वाला 90% पानी

यह कंपनी अपने खास सिस्टम से भारत में बचा रही टॉइलट में बर्बाद होने वाला 90% पानी

Friday May 24, 2019 , 7 min Read

सांकेतिक तस्वीर

भारत इस समय सबसे भयंकर जल संकट का सामना कर रहा है। नीति आयोग का एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस समय देश की करीब आधी आबादी (60 करोड़ लोग) पानी की कमी की समस्या से जूझ रही है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि देश के 75% घरों को पीने का साफ पानी नहीं मिल रहा है। वहीं ग्रामीण इलाकों के 84% परिवारों को पाइपों द्वारा साफ पानी नहीं मिल पा रहा है। वॉटर क्वॉलिटी इंडेक्स की बात करें तो भारत का विश्व में 122 में से 120वां स्थान है। भारत में 70% पानी दूषित है और इसे पीने के कारण हर साल 2 लाख लोगों की मौत होती है।


जल संसाधनों की कमी एक प्रमुख मुद्दा है। हालांकि इसमें टॉइलट फ्लश करने से व्यर्थ होने वाले पानी को एक कारण के रूप में नहीं माना गया है। लेकिन पानी बचाने के तौर तरीके सिखाने वाले एक संगटन कन्जर्व एच2ओ के मुताबिक एक बार फ्लश में 1.6 लीटर पानी व्यर्थ होता है। पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय ने हाल ही में कहा था कि 89% (107 करोड़) भारतीयों तक शौचालय की पहुंच है। यह देखते हुए कि एक औसत भारतीय व्यक्ति दिन में सात बार शौचालय का उपयोग करता है। उस हिसाब से रोज 118 करोड़ लीटर पानी व्यर्थ हो रहा है। 


वैश्विक सफाई और स्वच्छता कंपनी डाइवर्सी अपने नए अभियान फ्लश मी नॉट की सहायता से पानी बचाने का प्रयास कर रही है। इसमें पानी रहित यूरिनल सिस्टम के तौर पर काम करता है। यह ना केवल शौचालयों में पानी के उपयोग में कमी कर रहा है बल्कि दुर्गंध को नियंत्रित करने में भी मदद करता है। फ्लश मी नॉट 2014 में अस्तित्व में आई थी। इसका इस्तेमाल मुंबई के छत्रपति शिवाजी महाराज इंटरनेशनल एयरपोर्ट और कश्मीर में वैष्णो देवी मंदिर के आसपास के सार्वजनिक शौचालयों में पहले से ही हो रहा है। फास्ट फूड चेन मैक डॉनल्ड्स के कई सारे में रेस्टोरेंट्स और दिल्ली पब्लिक स्कूल (डीपीएस) के कुछ ब्रांच में इस सुविधा का प्रयोग किया जा रहा है।


आज कुप्रबंधन के कारण पानी भारत में सबसे दबाव वाला संसाधन है। फ्लश मी नॉट का मकसद पानी के उचित प्रयोग को प्रोत्साहित करना है। डाइवर्सी के प्रेसिडेंट (एपीएसी क्षेत्र) हिमांशु जैन ने योर स्टोरी को बताया, 'होटल, एयरपोर्ट और सार्वजनिक शौचालयों में रोज अधिक संख्या में लोग आते हैं। इसके कारण वहां पानी का प्रयोग अधिक मात्रा में होता है। एक बार फ्लश करने पर 1.5 लीटर पानी बर्बाद होता है। हमारा समाधान इस तरह व्यर्थ होने वाले पानी में 90% की कमी करने में मदद करता है।' 


पुणे के दिल्ली पब्लिक स्कूल में इस समाधान को 3 साल से भी अधिक समय से अपनाया जा रहा है। पानी बचाने के साथ-साथ छात्रों में भी इस समाधान को लेकर जागरूकता बढ़ाई जा रही है। दिल्ली पब्लिक स्कूल के फैसिलिटी मैनेजर सुमति अरोड़ा बताते हैं, 'हम कैंपस के सभी 54 यूरिनल्स में डायवर्सी के सॉल्यूशन का उपयोग का रहते हैं। यहां 1,500 से ज्यादा पढ़ते हैं। अगर वे लोग औसतन दिन में एक बार भी रेस्टरूम का इस्तेमाल करते हैं तो हम रोजाना करीब 2,000 लीटर पानी बचा रहे हैं। यह काफी बड़ी बात है। हम फ्लश मी नॉट के जरिए पानी बचाने के अभियान के बारे में कई माध्यमों से छात्रों को जागरुक करते रहते हैं।'


फ्लश मी नॉट का छत्रपति शिवाजी महाराज इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर भी इस्तेमाल होता है। फ्लश मी नॉट को छत्रपति शिवाजी महाराज अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर भी शुरू किया था। असोसिएशन ऑफ प्राइवेट एयरपोर्ट ऑपरेटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस एयरपोर्ट पर यात्रा करने वाले यात्रियों की संख्या 4850 करोड़ है। साथ ही यहां पर बचाए गए पानी की मात्रा भी बहुत अधिक है। नाम ना बताने की शर्त पर छत्रपति शिवाजी महाराज अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के एक प्रवक्ता ने बताया, 'हमने अपनी मैनेजमेंट टीम को फ्लश मी नॉट समाधान के बारे में बताया और पानी को बचाना शुरू कर दिया। अगर ऐसा नहीं करते तो पानी नाले में बह जाता। हमारे चौकीदारों और हाउस कीपिंग स्टाफ को इसके पैकेज का उपयोग करने और मूत्रालयों को साफ रखने के लिए खासतौर पर प्रशिक्षित किया गया।'


ऐसे काम करता है फ्लश मी नॉट 

फ्लश मी नॉट के एक पैकेज में रिसाइकल पॉलिमर से बने 12 यूरिनल स्क्रीन और दुर्गंध खत्म करने के लिए 4 लीटर गाढ़ा पदार्थ होता है। डायवर्सी इंडिया के मार्केटिंग और असिस्टेंट मैनेजर ऑरोदीपा राठ ने विस्तार से बताया, 'इंस्टॉल करने से पहले यूरिनल को एसिड और टॉयलेट सैनिटाइटर से साफ करना होता है। आप इसे कुछ ही मिनट बाद ही धो सकते हैं। यूरिनल ड्रेन पर स्क्रीन रखते समय यूरिनल की वाटर सप्लाई बंद करना जरूरी होता है। आखिर में ओडोर एलिमिनेटर को सतह पर छिड़कर 30 दिनों तक छोड़ देना चाहिए। फिर स्क्रीन और गंध को खत्म करना होता है।' 


सभी बैक्टीरिया, सोडियम, यूरिया और दूसरी चीजें यूरिनल स्क्रीन में जमा हो जाती हैं। वहीं ओडोर एलिमेटर दुर्गंध को खत्म करने, यूरिनल के धब्बे को हटाता है और पूरे रेस्टरूम में शानदार खुशबू फैलता है। एक फ्लश-मी-नॉट पैकेज 6,000 रुपये का पड़ता है। अगर उत्पादकों की सलाह के हिसाब से इस्तेमाल किया जाए तो 12 यूरिनल में उपयोग करने के बाद एक महीने तक चल सकता है।


डायवर्सी की अन्य पहल

डाइवर्सी अपनी कॉर्पोरेट सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी पहल के तौर पर कर्मचारी वॉलिंटरी, आपदा राहत और उत्पाद दान करने का काम भी करता है। इसकी सोप फॉर होप नाम की मुहिम में होटल में बचे साबुनों को नए साबुन में निर्मित करके उन्हें जरूरतमंदों तक पहुंचाने का काम किया जाता है। ऑरोदीपा ने कहा, 'हर साल 400 कमरों के एक होटल से 3.5 टन वेस्ट यानी बचा साबुन इकठ्ठा होता है। यह डंप या तो किसी कचरा क्षेत्र में डाल दिया जाता है या फिर इसे ग्लोबल रिसाइकलिंग फैसिलिटी में भेज दिया जाता है जिससे अच्छी खासी रकम मिलती है। हम सोप फॉर होप मुहिम में शामिल होकर स्वच्छता को बढ़ावा देने, वेस्ट को कम करने और हासिए पर रखे गए समुदायों को अच्छी जीवन शैली देने काम काम करते हैं। इसके लिए हम रीसाइकलिंग और प्रोसेसिंग प्रक्रिया को काम लेते हैं।' 


2016 के बाद से मुंबई, दिल्ली, चेन्नई और पटना की झुग्गियों में रहने वाले लोगों को 2.5 लाख से अधिक साबुन बांटे गए हैं। साल 2016 में लिनेन्स फॉर लाइफ लॉन्च किया गया। इसमें स्थानीय समुदायों का सशक्तिकरण किया जाता है ताकि वे होटलों द्वारा फेंके गए लिनन कपड़ों के वेस्टेज को नए प्रॉडक्ट्स में बदलकर बाद में बेचकर आजीविका कमा सकें। इस लक्ष्य को पाने के लिए ऑर्गेनाइजेशन ने कर्मचारियों वेस्टेज कपड़ों की सिलाई सिखाई ताकि इनसे तकिए के कवर और बैग बनाए जा सकें। इनमें से कुछ प्रॉडक्ट्स को रिफ्यूजी कैंप्स और प्राकृतिक आपदा से पीड़ित परिवारों को बांटे गए। 


ताज और मैरियट ग्रुप की होटलों सहित भारत भर में लगभग 142 होटल्स डाइवर्सी की इन दो पहलों का हिस्सा हैं। कंपनी ने गरिमा नाम का एक स्किल डिवेलमेंट प्रोग्राम लॉन्च किया। इसमें लोगों को साफ सफाई को प्रोत्साहन देने की ट्रेनिंग दी जाती है। हिमांशु ने विस्तार से बताया, 'हम ग्रामीण क्षेत्रों के बेरोजगार युवाओं और महिलाओं को सफाई, वेक्यूम क्लिनर और बाकी उपकरणों के उपयोग के साथ-साथ केमिकल्स के उपयोग के लिए ट्रेनिंग देते हैं। इस कोर्स को पूरा करने के बाद उन्हें हाउस कीपिंग और हॉस्पिलिटी उद्योग में रोजगार के अवसर दिए जाते हैं।'


संगठन ने इस प्रोग्राम के तहत दो साल के भीतर अभी तक 9000 लोगों की मदद की है। अगस्ट कोच और उनके बेटे हर्बर्ट कोच द्वारा चिकागो में 1923 में खोजी गई डाइवर्सी कंपनी विक्टर केमिकल वर्क्स की एक सहयोगी कंपनी है। 1950 में कंपनी ने अपने शेयरों को जनता के लिए खोल दिया और इससे वह एक एकल कंपनी के तौर पर काम करने लगी। बाद में मॉल्सन कंपनी ने इसे खरीद लिया। इसके कारण हर्बर्ट कोच ने अपने चेयरमैन पद से इस्तीफा दे दिया। कई सालों के बाद भी डाइवर्सी कंपनी का लक्ष्य अभी भी लोगों को साफ, सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण उपलब्ध कराना ही है। अभी भी कंपनी पूरी दुनियाभर में लोगों को सही तरीके से सफाई और स्वच्छता से रहने के लिए प्रेरित करने में लगी हुई है।


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