ये हैं रुमा देवी, जिन्होने हैंडीक्राफ्ट के दम पर बदल दी राजस्थान की हजारों ग्रामीण महिलाओं की ज़िंदगी
राजस्थान के बाड़मेर की रहने वाली रूमा देवी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है जो आज हजारों महिलाओं के जीवन में बड़ा और सकारात्मक बदलाव ला चुकी हैं।
"रूमा देवी जब महज 17 साल की ही थीं तब उनकी शादी कर दी गई। शादी के बाद उन्हे घर की खराब आर्थिक स्थिति से जूझना पड़ा। रूमा देवी को उनके और कुछ ही समय में उन्हे यह समझ आ गया था कि अगर वह घर की चारदीवारी में घुट-घुट कर जिएंगी तो उनके लिए जीना और भी मुश्किल होता जाएगा।"
देश के तमाम कोने से महिलाएं आज आगे आकर अपनी सफलता की कहानी खुद लिख रही हैं। वो न सिर्फ खुद सफलता का स्वाद चख रही हैं बल्कि अपने साथ अन्य महिलाओं को भी सशक्त बनाने का काम कर रही हैं।
राजस्थान के बाड़मेर की रहने वाली रूमा देवी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है जो आज हजारों महिलाओं के जीवन में बड़ा और सकारात्मक बदलाव ला चुकी हैं। अपने कठिन परिश्रम और भरोसे के दम पर रूमा देवी ने यह साबित कर दिया है कि सच्ची लगन के साथ कोई भी सपना पूरा किया जा सकता है।
कठिन रहा शुरुआती जीवन
रूमा देवी बताती हैं कि जब वाह महज 4 साल की थीं तभी उनकी माँ का देहांत हो गया था, इसके उन्हे उनके मामा ने पाला-पोसा। रूमा देवी की शिक्षा भी ढंग से पूरी नहीं हो सकी और आठवीं में ही उन्हे स्कूल छोड़ना पड़ गया। इसके बाड़ रूमा देवी का समय घर के कामों को करने में जाने लगा।
रूमा देवी जब महज 17 साल की ही थीं तब उनकी शादी कर दी गई। शादी के बाद उन्हे घर की खराब आर्थिक स्थिति से जूझना पड़ा। रूमा देवी को उनके और कुछ ही समय में उन्हे यह समझ आ गया था कि अगर वह घर की चारदीवारी में घुट-घुट कर जिएंगी तो उनके लिए जीना और भी मुश्किल होता जाएगा।
यह सब रूमा देवी के लिए बिल्कुल भी आसान नहीं था। उन्हे घर के लिए पीने योग्य पानी लाने के लिए आठ किलोमीटर दूर जाना पड़ता था, जिसके लिए वह बैलगाड़ी की मदद लेती थीं। रूमा देवी अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को सुधारना चाहती थीं और इसके लिए उन्होने प्रयास करने शुरू कर दिये।
70 रुपये की पहली कमाई
रूमा देवी ने इसी सोच को ध्यान में रखने हुए कढ़ाई और बुनाई का काम सीखना शुरू किया। रूमा देवी बताती हैं कि उन्होने इसकी शुरुआत महिलाओं के लिए बैग बनाने से की थी। रूमा देवी के पास उस समय बैग की स्टिचिंग के लिए मशीन नही थी और नहीं उनके पास इतने पैसे थे कि वह वो मशीन खरीद पातीं, तब रूमा देवी ने हाथ से ही स्टिचिंग का काम शुरू किया। रूमा देवी ने अपना पहला बैग बनाया और फिर उसे 70 रुपये में बेंचा था। उस समय को याद करते हुए वह कहती हैं कि वह 70 रुपये उनके लिए बेहद खास थे।
संस्थान के जरिये बढ़े कदम
यह छोटा आइडिया रूमा को आगे बढ़ने का रास्ता दिखा रहा था। रूमा देवी इसे ही एक बड़े व्यवसाय में तब्दील करना चाहती थीं। साल 2008 के दौरान वह बाड़मेर के ‘ग्रामीण एवम चेतना संस्थान’ के संपर्क में आईं और संस्थान की सदस्य बन गईं। साल 2010 तक रूमा देवी संस्थान की अध्यक्ष बन चुकी थीं।
संस्थान के जरिये रूमा देवी के साथ करीब 10 महिलाएं जुड़ गईं और इसी के साथ उनके पास काम भी आना शुरू हो गया। रूमा देवी के अनुसार वह बड़ी संख्या में घरेलू महिलाओं की आर्थिक स्थिति को सुधारने के उद्देश्य से उन्हे अपने साथ जोड़ना चाहती थीं और इसके लिए उन्होने प्रयास शुरू कर दिये।
लंदन फैशन वीक में की शिरकत
10 महिलाओं के साथ शुरू हुए इस स्वयं सहायता समूह में आज 75 से अधिक गांवों से 22 हज़ार से अधिक महिलाएं जुड़ चुकी हैं और व्यावसायिक स्तर पर सिलाई-कढ़ाई का काम कर रही है। रूमा देवी और उनके समूह द्वारा बनये गए हैंडक्राफ्टेड उत्पादों को कई फैशन शो में प्रदर्शित किया जा चुका है।
इतना ही नहीं रूमा देवी खुद भी सिंगापुर क्राफ्ट मेला और लंदन फैशन वीक में शिरकत कर चुकी हैं। रूमा देवी अब लगातार राजस्थान के तमाम ग्रामीण और आदिवासी इलाकों से महिलाओं को अपने साथ जोड़ने और उन्हे आर्थिक रूप से सक्षम बनाने का काम कर रही हैं।
Edited by Ranjana Tripathi