कैंसर को दी मात और अपने काम से बच्चों के लिए बन गईं 'पुलिसवाली दीदी', बड़ी साहसिक है राजस्थान की सुनीता चौधरी की कहानी
अपनी पढ़ाई के लिए संघर्ष और फिर कैंसर खिलाफ जंग जीतने वाली सुनीता बीते कई सालों से बच्चों को जागरूक करने का काम कर रही हैं।
"सुनीता चौधरी के अनुसार उनकी शादी तब करवा दी गई थी जब वह महज 3 साल की थीं। तब राजस्थान में बाल विवाह का चलन काफी आम था और उनकी शादी गाँव के एक लड़के से करवा दी गई थी। जैसे ही सुनीता 18 साल की हुईं उन्हे ससुराल भेज दिया गया। सुनीता के अनुसार उस दौर में राजस्थान में परिवारों के लिए लड़कियों की शिक्षा का कोई महत्व नहीं था।"
जिस उम्र में बच्चे ढंग से चलना भी नहीं सीख पाते हैं उस उम्र में ही सुनीता चौधरी की शादी कर दी गई थी। अपने शुरुआती जीवन में लगातार मुश्किलों का सामना करने वाली सुनीता के लिए पहले से ही यह बोझ कम ना था कि कैंसर जैसी घातक बीमारी ने उन्हे जकड़ लिया लेकिन यह सुनीता का जज्बा ही था कि उन्होने कभी हार नहीं मानी बल्कि खुद को समाज की भलाई के समर्पित कर दिया और आज उन्हे क्षेत्र में बड़े ही खास नाम से जाना जाता है।
अपनी पढ़ाई के लिए संघर्ष और फिर कैंसर खिलाफ जंग जीतने वाली सुनीता बीते कई सालों से बच्चों को जागरूक करने का काम कर रही हैं।
3 साल की उम्र में शादी
सुनीता चौधरी के अनुसार उनकी शादी तब करवा दी गई थी जब वह महज 3 साल की थीं। तब राजस्थान में बाल विवाह का चलन काफी आम था और उनकी शादी गाँव के एक लड़के से करवा दी गई थी। जैसे ही सुनीता 18 साल की हुईं उन्हे ससुराल भेज दिया गया। सुनीता के अनुसार उस दौर में राजस्थान में परिवारों के लिए लड़कियों की शिक्षा का कोई महत्व नहीं था।
सुनीता ने भी अपने पिता से स्कूल जाने की मांग की थी, हालांकि शुरुआत में उनके पिता इस बात को लेकर थोड़े असहज नज़र आए लेकिन सुनीता की लगन को देखकर वह नरम हो गए। सुनीता जब पाँच साल की थी तब उन्होने स्कूल जाना शुरू कर दिया था।
सुनीता के लिए यह शुरुआती सफर भी तमाम मुश्किलों से भरा हुआ था। दिन में खेतों में काम कर शाम को पढ़ाई की आस लगाए सुनीता को बिजली के ना होने से काफी परेशानी का सामना करना पड़ता था। सुनीता रात में लालटेन की मदद से पढ़ाई किया करती थीं।
हौसले से भरी उड़ान
पाँचवीं के बाद सुनीता को आगे की पढ़ाई के लिए गाँव से 6 किलोमीटर दूर पैदल जाना शुरू किया, ऐसे में गाँव के लोग सुनीता को यह ताना मारते थे कि उनके लिए पढ़ाई का कोई महत्व नहीं है। वह सुनीता से यह कहते थे कि पढ़ाई करना सुनीता के लिए समय बर्बाद करना है, हालांकि सुनीता ने कभी गांव वालों की बातों को गंभीरता से नहीं लिया और उन्होने अपनी पढ़ाई हर तरह के संघर्ष के बीच लगातार जारी रखी।
दसवीं की परीक्षा में डिस्टिंक्शन पाने के बाद सुनीता जोधपुर आ गईं और वहीं उन्हे पुलिस भर्ती के बारे में पता चला। सुनीता के लिए यह मानो एक नए दौर की शुरुआत का एक रास्ता था, उन्होने फौरन ही पुलिस भर्ती के लिए आवेदन कर दिया। यह सुनीता की मेहनत और लगन का नतीजा था कि परीक्षा पास करने वाले 50 आवेदकों में सुनीता सिर्फ अकेली महिला थीं।
नहीं मानी हार, बन गईं ‘पुलिसवाली दीदी’
पुलिस की नौकरी के हाथ के साथ ही उनके ऊपर मुश्किलों का एक नया पहाड़ आ गिरा। डॉक्टरों ने सुनीता को बताया कि उन्हे कैंसर है। कैंसर दूसरी स्टेज पर था, लेकिन सुनीता ने इस मुसीबत से भी हिम्मत के साथ लड़ने का फैसला किया। लगातार 6 महीनों तक कैंसर से लड़ाई लड़ने और उसे जीतने वाली सुनीता के अनुसार यह उनके जीवन का सबसे कठिन समय था।
ठीक होते ही सुनीता ड्यूटी पर वापस लौट आईं और उन्होने गरीब बच्चों को यौन शोषण और लोगों को सड़क सुरक्षा के प्रति जागरूक करना शुरू कर दिया। बच्चों के लिए लगातार प्रयास करने वाली सुनीता को उन बच्चों ने ही ‘पुलिसवाली दीदी’ नाम से संबोधित करना शुरू कर दिया और सुनीता को अब अधिकतर लोग इसी नाम से जानते हैं।
तीन साल के भीतर सुनीता एक हज़ार से अधिक बच्चों को जागरूक कर चुकी हैं और उन्हे उनके काम के चलते पुलिस आयुक्त द्वारा सम्मानित भी किया गया है।
Edited by Ranjana Tripathi