छात्रों को समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रेरित कर रहा है ये ओलंपियाड
राहुल बच्चों के लिए ऐसे मौके तैयार करना चाहते थे जिससे उनके अंदर सहानुभूति, करुणा और एक्शन-ओरिएंटेड स्किल सेट विकसित हो सके। इसके लिए उन्होंने सिंपलीलर्न नाम के एक एजु-टेक स्टार्टअप में अपनी मोटी कमाई वाली नौकरी छोड़कर इंटरनेशनल चेंजमेकर ओलंपियाड (ICO) की स्थापना की।
जब 13 साल की देवांशी, साणवी, तनुश्री, अदिति और अबशाम ने अपने स्कूल के पास कुछ नेत्रहीन लड़कियों को देखा, तो उन्हें यह जानने की उत्सुकता हुई कि क्या वे उनकी मदद के लिए कुछ कर सकते हैं।
इस बारे में और अधिक जानकारी लेने के लिए वे पास में नेत्रहीन बच्चों के लिए खुले एक स्कूल में गए और वहां उनसे बातचीत की। उन्होंने पाया कि ये बच्चे अपने खाली समय में कहानियां पढ़ना चाहते हैं लेकिन वे ऐसा करने में अक्षम हैं।
स्कूल से वापस आने के बाद इन युवा बच्चों ने आपस में इस समस्या को लेकर बातचीत की और एक रचनात्मक हल ढूंढ निकाला। क्यों ना स्टोरी बुक्स को ऑडियो फॉर्मेट में नेत्रहीन बच्चों के लिए रिकॉर्ड किया जाए? उन्होंने जल्द ही अपने विचार को अमलीजामा पहनाया और कुछ कहानियों को रिकॉर्ड कर वापस स्कूल में गए।
बच्चों को कहानियां काफी पसंद आईं और जल्द ही यह छोटा सा विचार वन्स अपॉन ए टाइम नामक एक पहल में बदल गया। केवल तीन महीनों में उन्होंने 10 से अधिक स्टोरीबुक रिकॉर्ड किए और बच्चों को कहानियों की दुनिया का सुखद अनुभव लेने में मदद की। आज वे इस पहल का विस्तार करने के लिए तैयार हैं।
समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की कोशिश कर रहे युवाओं का यह बेहतरीन उदाहरण है। साथ ही यह उन एक हजार पहलों में से एक है, जिसे 25 वर्षीय राहुल अधिकारी और उनके संगठन इंटरनेशनल चेंजमेकर ओलंपियाड (ICO) ने भारत के 20 से अधिक शहरों में शुरू किया है। इस संगठन ने छात्रों के लिए समाज के विभिन्न क्षेत्रों में अगुआई करने और प्रभाव पैदा करने लायक बनाया है।
ऐसे हुई शुरुआत
राहुल अपनी स्कूली शिक्षा को याद करते हुए बताते हैं कि कैसे इसने उन्हें एक बच्चे के रूप में प्रभावित किया।
राहुल बताते हैं,
“हमारे देश का एजुकेशन सिस्टम नंबर, सर्टिफिकेट और व्यक्तिगत प्रदर्शन के आसपास केंद्रित है और यह सफलता को देखने के हमारे नजरिए पर हावी है। छात्रों को अपने शिक्षकों और माता-पिता की ओर से लगातार बताया जाता है कि वे दूसरों की तुलना में बेहतर ग्रेड प्राप्त करें, दूसरों की तुलना में बेहतर कॉलेज प्राप्त करें और दूसरों की तुलना में अधिक वेतन प्राप्त करें। लगातार दूसरों से इस तरह से प्रतिस्पर्धात्मक करते रहने से बड़े होने पर उनमे 'हम-केंद्रित' होने की जगह 'मैं-केंद्रित' की विकसित हो जाती है और वे हमेशा सिर्फ अपने फायदे के बारे में सोचते रहते हैं।"
अच्छे ग्रेड के साथ स्कूल से निकलने पर बच्चों को अच्छी नौकरी तो मिल सकती है लेकिन इसका नतीजा यह होता है की आसपास कि दुनिया के प्रति उनकी संवेदनशीलता में कमी आ जाती है। इसके चलते काफी हद तक एक उदासीन और अज्ञानी समाज बन जाता है जहां शायद ही कोई समाज के सकारात्मक योगदान या इस दिशा में कोई कदम उठाने की परवाह करता है।
राहुल इससे परेशान थे और वह बच्चों के लिए ऐसे मौके तैयार करना चाहते थे जिससे उनके अंदर सहानुभूति, करुणा और एक्शन-ओरिएंटेड स्किल सेट विकसित हो सके। इसके लिए उन्होंने सिंपलीलर्न नाम के एक एजु-टेक स्टार्टअप में अपनी मोटी कमाई वाली नौकरी छोड़कर इंटरनेशनल चेंजमेकर ओलंपियाड (ICO) की स्थापना की। इसके पीछे उनका लक्ष्य देश भर के स्कूलों में छात्रों को वास्तविक दुनिया की चुनौतियों का आनंद लेने और अपनी क्षमताओं के जरिए उनमें बदलाव लाने का अवसर मुहैया कराना था।
बच्चों को हर तरह सशक्त बनाना
ICO स्कूलों में बच्चों को अपनी खुद की पहल शुरू करने और सामाजिक व पर्यावरणीय समस्याओं से निपटने का एक मंच मुहैया कराता है। ICO में छात्र टीम के तौर पर भाग लेते हैं, अपने घर, स्कूल या समुदाय से जु़ड़ी किसी समस्या की पहचान करते हैं, और इस समस्या को दूर करने के लिए एक समाधान विकसित करते हैं जिसे चार से पांच महीनों में लागू किया जा सकता और बढ़ाया जा सकता हो।
उदाहरण के लिए, 12-वर्ष के बच्चों की एक टीम ने 120 से अधिक लोगों को पानी की बचत करने वाले उपकरणों (एयेटर) को बेचा और उनके टैप में इसे लगाने में उनकी मदद की। इस तरह से उन्होंने करीब 81,000 लीटर पानी बचाया।
छात्रों के एक अन्य समूह ने अपने हॉस्टल मेस से रोजाना भोजन इकठ्ठा किया और इसे पास के एक अनाथालय में दान किया। इस तरह से उन्होंने 800 किलोग्राम से अधिक भोजन बर्बाद होने से बचाया। ICO का उद्देश्य छात्रों को वास्तविक दुनिया की समस्या को सुलझाने का अनुभव देना और उनके जीवन के शुरुआती चरणों के दौरान उन्हें संवेदनशील बनाना है।
राहुल का मानना है कि इंसान किसी चीज को गहराई से तभी सीखता है जब उसे अपने फैसले लेने की आजादी होती है और ICO में इसी पर काफी जोर दिया जाता है।
अपनी पहल पर काम करते समय सभी फैसले छात्रों द्वारा लिए जाते हैं। इसमें समस्या को चुनने से ठीक पहले अपनी टीम बनाने से लेकर उसे हल करने का तरीका विकसित करने तक, सभी फैसले शामिल हैं। प्रत्येक टीम को एक प्रशिक्षित मेंटर मुहैया कराया जाता है जिससे वे अपनी पहल को लागू करते समय जरूरत पड़ने पर मार्गदर्शन ले सकते हैं।
बच्चों पर गहरी छाप छोड़ना
ICO ने अब तक देश भर के 20 शहरों के 20,000 से अधिक बच्चों को सशक्त बनाया है और हजारों पहलों को शुरू करने की सुविधा प्रदान की है। यह एक इनोवेटिव मॉडल है, जहां मेंटर वीडियो/ऑडियो कॉल के जरिए बच्चों के साथ बातचीत करते हैं। इसके चलते कोई भी बच्चा, कहीं से भी ICO में भाग ले सकता है और सामाजिक समस्याओं को हल करने के लिए अपनी एक दीर्घकालिक उद्यमशीलता पहल शुरू कर सकता है।
बेंगलुरु की 15 वर्षीय छात्र कीर्ति महादेवन ने 2018 में ICO के जरिए सरकारी स्कूलों में मासिक धर्म स्वच्छता के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए “कोड रेड” नामक एक पहल शुरू की थी।
ICO के अनुभव के करीब एक साल बाद, कीर्ति ने स्वतंत्र रूप से एक एनजीओ के साथ काम करना शुरू कर दिया जो सेलेब्रल पाल्सी के बारे में जागरूकता पैदा करने की दिशा में काम करता है।
कीर्ती बताती हैं,
“ICO के अनुभव ने इम्पैक्ट सेक्टर को लेकर मेरी आंखें खोल दीं। मुझे सामाजिक परिवर्तन के बारे में कुछ भी पता नहीं था, लेकिन जब मैंने आईसीओ में आकर अपनी पहल शुरू की, तो मुझे बस इससे प्यार हो गया और मुझे इसमें योगदान करने की अपनी क्षमता का एहसास हुआ। इसलिए मैंने अब एक और एनजीओ के साथ काम करना शुरू कर दिया है। मैं जीवन भर ऐसे ही सकारात्मक बदलाव लाना चाहती हूं।"
ICO में भाग लेने वाले लगभग अधिकतर छात्रों की यही सोच है। इन प्रतिभागियों के बीच कराए गए एक अनाम सर्वे में 91 प्रतिशत छात्रों ने कहा कि ICO के उनके अनुभव के बाद अब वे समाज के लिए कोई भी पहल शुरू करने में खुद को सशक्त महसूस करते हैं।
झारखंड के यूएचएस चेंगरबासा में स्थित एक सरकारी स्कूल ईविद्यालोक के बच्चे भी ICO से जुड़े हैं।
स्कूल की सहायक शिक्षिका अनुपमा ने बताया,
“हमारे स्कूल के 28 बच्चों ने अपने गांव की विभिन्न समस्याओं को हल करने के लिए सात पहलें शुरू की हुई हैं। इसमें सीपीआर सहित बुनियादी प्राथमिक चिकित्सा के बारे में जागरूकता बढ़ाना, खुले में शौच को रोकना और शौचालय का उपयोग करना, स्कूली बच्चों की भलाई के लिए योग कक्षाएं आयोजित करना आदि शामिल है। इसने इस सरकारी स्कूल की गुणवत्ता को इतना बढ़ा दिया है कि आसपास के गांवों के काफी बच्चों ने यहां प्रवेश के लिए आना शुरू दिया है। ”
बच्चों के लिए इस इनोवोटिव मंच को बनाने के राहुल के प्रयासों पर अब लोगों को ध्यान जाना भी शुरू हो गया है। ICO ने हाल ही में लंदन में रिइमेजिन एजुकेशन कॉन्फ्रेंस में शिक्षा का "ऑस्कर" जीत। यह अवार्ड शिक्षा में वैश्विक इनोवेशंस का जश्न मनाने और उन्हें पुरस्कृत करने के लिए दिया जाता है। आईसीओ को यूएनआई इंडिया इनक्यूबेशन प्रोग्राम के लिए भी चुना गया है जो उच्च-क्षमता वाले सामाजिक उद्यमियों और उनके संगठनों का समर्थन करने के लिए बनाया गया है।
सोच में व्यवस्थित तरीके से बदलाव लाना
राहुल इस बात से अवगत थे कि उनका संगठन सभी बच्चों को सहायता प्रदान करने में सक्षम नहीं होगा। ऐसे में उन्होंने सेक्टर के अन्य संगठनों के साथ साझेदारी करने का फैसला किया, जो अपने नेटवर्क में आईसीओ की पहलों को बढ़ावा देने और लागू करेंगी। ICO पहले ही टीच फॉर इंडिया, अशोका, ISLI, स्मार्ट विलेज मूवमेंट और ईविद्यालोका जैसे उद्यमों के साथ हाथ मिला चुके हैं। असल में, ICO में भाग लेने वाले 50 प्रतिशत से अधिक स्कूल ऐसे नेटवर्क संगठनों से आते हैं।
राहुल बताते हैं
“हमारा लक्ष्य दुनिया के हर बच्चे को सशक्त बनाना, उसे उर्जावान और दूसरों के लिए काम करने वाले व्यक्ति के रूप में बड़ा करना और एक ऐसा समाज बनाना है जहां सभी माता-पिता, स्कूल, NGO, सरकार जैसे एजुकेशन सिस्टम से जुड़े सभी संबंधित पक्ष बच्चों को इसी दिशा में ले जाने के ज्ञान और औजारों से लैस हों।"
इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए, ICO इन सभी संबंधित पक्षों के लिए ओपन-सोर्स चेंजमेकर एजुकेशन टूलकिट बनाने पर काम कर रही है, ताकि वे अपने बच्चों के लिए कार्यक्रमों को खुद लागू करने और दोहराने में सक्षम हो सकें।