रेशम प्रोटीन का उपयोग कर महिलाओं के सी-सेक्शन घावों को दूर करने के लिए इस स्टार्टअप ने बनाया 'डी फाइब्रोहील स्कारलाइट', स्ट्रेच मार्क्स से मिलेगी राहत
'डी फाइब्रोहील' और इसकी रेंज विभिन्न प्रकार के तीव्र और पुराने घावों को ठीक करने के लिए रेशम प्रोटीन से बना एक प्रमुख उत्पाद है। जिसे स्टार्टअप फाइब्रोहील वाउंडकेयर ने बाज़ार में उतारा है। आपको बता दें कि फाइब्रोहील वाउंडकेयर प्राइवेट लिमिटेड एक बायोटेक स्टार्टअप है जो व्यापक घाव प्रबंधन के क्षेत्र में काम कर रहा है और विभिन्न चरणों और विभिन्न प्रकार के तीव्र और पुराने घावों को भरने में सिल्क का उपयोग करते है।
फाइब्रोहील वाउंडकेयर भारत की वह पहली कंपनी है जो रेशम और रेशम प्रोटीन की जैव सामग्री का लाभ उठाकर विभिन्न प्रकार के तीव्र और पुराने घावों को ठीक करने के लिए मेडिकल उत्पाद बनाती है। फाइब्रोहील में शीट, मेश, फोम, पाउडर, पार्टिकल्स आदि सहित कई तरह के उत्पादों की एक विस्तृत श्रृंखला है, जो पहले से ही बाजार में उपलब्ध हैं और व्यावसायीकरण कर चुकी है।
गौरतलब है, कि Fibroheal ने कुछ महीने पहले डी फाइब्रोहील “Suturedress” के लॉन्च के साथ पोस्ट ऑपरेटिव घावों की देखभाल के लिए बाजार में प्रवेश किया। "D Fibroheal SCARLITE" वो उत्पाद है, जो सी-सेक्शन यानि कि सिज़ेरियन के बाद महिलाओं के शरीर पर होने वाले विभिन्न तरह के निशानों को खत्म करता है। कंपनी का दावा है कि उनका यह नया उत्पाद महिलाओं के शरीर पर हुए अनचाहे मार्क्स को खत्म करने में काफी हद तक कारगर है। इस Gel को बनाने में कंपनी ने सिल्क प्रोटीन का विशेष रूप से इस्तेमाल किया है।
कंपनी का मुख्य कार्यालय बैंगलोर में है, जो आईआईएससी और आईआईटी जैसे प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों के साथ मिलकर काम करता है। इनकी इस यात्रा में और उद्योग की बाधा को कम ने में बहुत से छात्रों का समर्थन कर रहा है। फाइब्रोहील की स्थापना साल 2017 में विवेक मिश्रा ने, सह संस्थापक भरत टंडन और सुब्रमण्यम शिवारामण के साथ मिलकर की थी। फाइब्रोहील मनुष्य के शरीर में हुए घाव भरने के लिए रेशम की मदद से बेहतरीन मेडिकल उत्पाद बनाने का काम करती है।
फाइब्रोहील के उत्पाद बाजार में आसानी से उपलब्ध हैं, जो मौजूदा ड्रेसिंग और समाधानों की तुलना में बेहद कम दाम में आसानी से उपलब्ध हैं, जो सर्जिकल और पोस्ट ऑपरेटिव घावों को बहुत जल्दी ठीक कर सकते हैं। Fibroheal उत्पादों को बाजार में अच्छी तरह से स्वीकार किया जाता है, उपयोगकर्ता यानी डॉक्टर और भारत भर के प्रतिष्ठित अस्पतालों में प्रसिद्ध सर्जन जटिल घावों के इलाज के लिए सिल्क प्रोटीन व्युत्पन्न घाव प्रबंधन उत्पादों का उपयोग करते हैं।
फाइब्रोहील के को-फाउंडर विवेक मिश्रा कहते हैं, "हमारे उत्पादों से अब तक बड़ी संख्या में फायदा और राहत मिली है। भारत के विभिन्न अस्पतालों में हमारे उत्पादों का इस्तेमाल हो रहा है। हमारे उत्पाद चिकित्सा उपकरणों की श्रेणी में उपलब्ध अन्य आयातित उत्पादों की तुलना में 40% सस्ते और आसानी से सुलभ और किफायती हैं।"
फाइब्रोहील के उत्पाद मधुमेह के चलते हुए घाव, संक्रमित घाव, सर्जरी के बाद न भरे जा सके घाव आदि के लिए बेहद कारगर साबित हो रहे हैं। कंपनी फिलहाल कई तरह के उत्पाद बना रही है, इसमें संक्रमित और असंक्रमित घाव के लिए ड्रेसिंग, पाउडर और चोट के निशान (स्कार) में काम आने वाले उत्पाद शामिल हैं।
आज के समय में ऐसी बहुत सारी महिलाएं हैं, जो प्रेगनेंसी के बाद होने वाले मार्क्स से इतनी डरी हुई होती हैं, कि कंसीव करने से भी डरती हैं ऐसे में फाइब्रोहील का 'डी फाइब्रोहील स्कारलाइट' एक चमत्कार की तरह साबित हो सकता है। इसका इस्तेमाल करना बेहद आसान है और सबसे खास बात यह है, कि यह Gel एक खास तरह की पट्टी में लगा हुआ होता है, जिसे सी-सेक्शन के कुछ दिन बाद स्कार मार्क्स के आसपास चिपकाना होता है।
कंपनी ने कस्टमर की सहूलियत का खयाल रखते हुए इसे ऐसा बनाया है कि नहाते वक्त या किसी भी तरह के पानी का इस्तेमाल करते हुए स्कार पर पानी की एक बूंद भी नहीं जा सकती। ऐसे में इसका परिणाम भी जल्दी ही देखने को मिलता है, कि दवाई के इस्तेमाल से मार्क्स पर कोई असर हुआ या नहीं।
आपको बता दें कंपनी फाइब्रोहील Idea2POC कार्यक्रम के तहत 2019 में कर्नाटक सरकार के प्रतिष्ठित ELEVATE 100 के विजेताओं में से एक थी। और साथ ही बेंगलुरु टेक समिट 2020 के दौरान स्मार्ट बायो अवार्ड्स के तहत “Startup of the year” का विजेता रहा। फाइब्रोहील वाउंडकेयर प्राइवेट लिमिटेड भी "नेशनल स्टार्टअप अवार्ड्स 2020" के फाइनलिस्ट में से एक था। फाइब्रोहील वाउंडकेयर प्राइवेट लिमिटेड 2020 में स्टार्टअप श्रेणी के तहत "राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी पुरस्कार" का विजेता भी था और साथ ही कंपनी भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक सांविधिक निकाय, प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड द्वारा आयोजित "राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी पुरस्कार 2020" के विजेताओं में से एक थी।
सितंबर 2021 में, Fibroheal ने KITVEN – KARNATAKA सूचना प्रौद्योगिकी वेंचर फंड – कर्नाटक सरकार की वेंचर फंड शाखा से धन जुटाया, साथ ही कंपनी ने मौजूदा प्रमोटर्स CCAMP (सेलुलर और आणविक प्लेटफार्मों के लिए केंद्र) और तेलमा इन्वेस्टमेंट से भी धन जुटाया है।
Fibroheal Woundcare Pvt Ltd रेशम उगाने वाले किसानों की मूल्य श्रृंखला में काम करता है और एक आर्थिक गुणक बनने की क्षमता रखता है और यह "वोकल फॉर लोकल" और "स्थानीय का उपयोग करना और इसे वैश्विक बनाना" में अच्छी तरह से फिट बैठता है।
विवेक कहते हैं, "हम कटे या टूटे हुए कोकूनों का उपयोग करते हैं जो किसानों द्वारा उगाए जाते हैं और यदि यह उद्योग गति पकड़ता है, तो यह रेशम उगाने वाले किसानों के लिए एक अतिरिक्त लाभ भी हो सकता है।"
साथ ही विवेक कहते हैं, "हमारे उत्पाद इस तरह के हैं, जिनका इस्तेमाल करना बेहद आसान और बाज़ार में मौजूद उत्पादों की तुलना में सस्ते हैं। जिसकी वजह से मरीजों के इलाज की लागत में कमी आएगी और इनके स्तेमाल फायदा हो सकता है। हम सिल्क की प्रोटीन से कई तरह के घाव भरते हैं। भारत में 33 हज़ार मीट्रिक टन सिल्क का उत्पादन होता है। सिल्क की मदद लेते हुए हम इलाज पर आने वाले खर्चों को कम कर सकते हैं। सिल्क के जरूरी प्रोटीन अलग करने के लिए हम विशेष तरह की तकनीक का उपयोग करते हैं।"
फाइब्रोहील के उत्पाद मधुमेह के घाव, संक्रमित घाव, सर्जरी के बाद न भरे जा सके घाव आदि के लिए बेहद कारगर साबित हो रहे हैं। कंपनी फिलहाल कई तरह के उत्पाद बना रही है, इसमें संक्रमित और असंक्रमित घाव के लिए ड्रेसिंग, पाउडर और चोट के निशान (स्कार) में काम आने वाले उत्पाद शामिल हैं।
इस बारे में बात करते हुए विवेक बताते हैं, “आमतौर पर बाज़ार में घाव भरने के लिए जो भी दवाएं मौजूद हैं वे घाव को बढ़ने से रोंकती हैं, जबकि घाव भरने का काम खुद शरीर करता है, लेकिन हमारा उत्पाद मानव शरीर द्वारा घाव भरने की प्रक्रिया के साथ भी सक्रिय तौर पर भाग लेता है। गौरतलब है कि यदि हमारे सिल्क से बने उत्पाद सफल होते हैं, तो इससे किसानों का भी फायदा मिलता है, जो इसकी खेती कर रहे हैं। साथ ही मेडिकल क्षेत्र और मरीज़ों का भी भला होगा। ऐसे में हम इन तीनों आयामों को ध्यान में रखकर आगे बढ़ रहे हैं, ताकि की समाज में रोज़गार के अवसर भी पैदा कर सकें।"
फाइब्रोहील ने अपने शुरुआती चरण में बूटस्ट्रैप किया, इसी के साथ भारत सरकार के डिपार्टमेन्ट ऑफ बायोटेक्नालजी की तरफ से भी कंपनी को शुरुआती निवेश भी मिला था। स्टार्टअप कर्नाटक के कई हिस्सों से सिल्क का आयात करता है और साथ ही सिल्क बोर्ड से भी मदद लेता है।
कंपनी के भविष्य को लेकर विवेक कहते हैं,“देश में ऐसी बायोटेक कंपनियाँ बेहद कम ही हुईं हैं, जिन्होने वैश्विक स्तर पर अपनी छाप छोड़ी है। हम वैश्विक स्तर पर बायोटेक के क्षेत्र में एक अग्रिणी कंपनी बनना चाहते हैं।"
भारत में 85% से अधिक चिकित्सा उपकरणों का आयात किया जाता है।भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा रेशम उत्पादक देश है। अकेले कर्नाटक देश के कुल शहतूत रेशम का लगभग 70% उत्पादन करता है। रेशम उत्पादन से कर्नाटक में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 10.6 लाख लोगों को रोजगार मिलता है। कर्नाटक में 1.2 लाख से अधिक परिवार रेशम उत्पादन और शहतूत की खेती पर निर्भर हैं। यह पूरे भारत में 52,360 गांवों में प्रचलित है। लेकिन मूल्य श्रृंखला में रेशम की एक बड़ी मात्रा रीलिंग से बुनाई तक बर्बाद हो जाती है जिसका उपयोग बायोमेडिकल उपयोग के लिए उत्पादों को विकसित करने के लिए किया जा सकता है। 80 लाख से अधिक परिवार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रेशम पर निर्भर हैं।
यदि देखा जाए तो फाइब्रोहील द्वारा विकसित उत्पादों के इस्तेमाल से भारी आर्थिक प्रभाव पड़ सकता है, साथ ही आयात में भी कमी आ सकती है। उत्पाद का प्रदर्शन मौजूदा आयातित और विपणन उत्पादों से काफी बेहतर है और रोगियों के लिए लागत प्रभावी और किफायती भी है।
फाइब्रोहील के उत्पाद रोगियों के लिए अस्पताल में भर्ती होने की लागत को कम करते हैं, साथ ही किसी भी तरह के इलाज के बाद अस्पताल में रहने की अवधि को भी कम करते हैं। न्यूनतम ड्रेसिंग परिवर्तन की आवश्यकता होती है, जिससे नर्सिंग स्टाफ/डॉक्टरों का समय और अस्पतालों पर भार कम होता है। रोगियों के जीवन की गुणवत्ता और दीर्घायु को बढ़ाता है।
फाइब्रोहील खुद की तकनीक को विकसित कर वैश्विक स्तर के मेडिकल उत्पाद बनाने की ओर अपने कदम बढ़ा रहा है, साथ ही कंपनी सरकार के कई टेंडरों के साथ भी जुड़ी हुई है। फाइब्रोहील देश के कई राज्यों जैसे महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल और असम में अपने उत्पाद के दम पर मेडिकल क्षेत्र में अपनी जगह पुख्ता कर रहा है।