जयपुर का यह स्टार्टअप कचरे से बनाता है प्रॉडक्ट, स्वच्छता के साथ-साथ देता है रोजगार
जब साल 2014 में पीएम मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की थी। उस समय उनका लक्ष्य भारत को कचरा मुक्त साफ देश बनाने में योगदान देने के लिए हर नागरिक को प्रेरित करना था। उनकी इस मुहिम को कई लोगों ने समझा और कई लोग, संगठन और संस्थाएं कचरे को समाप्त करने के नए-नए आइडिया के साथ आए। इनमें अंगराज स्वामी, उत्सव गोयल, गौरव संघाई और नितिन सागर भी हैं। इन चारों ने साथ मिलकर कचरे के ठीक से निस्तारण और पुर्नपयोग के उद्देश्य से इकोरैप (Ecowrap) की स्थापना की।
इकोरैप का पूरा नाम इको, वेस्ट ऐंड रिसोर्सेज ऐक्शन प्रोग्राम है। जयपुर आधारित यह स्टार्टअप लोगों में कचरा या अवशिष्ट पदार्थों का पृथ्कीकरण (अलग-अलग) करने, उनको रीसाइकल करके नए उत्पाद बनाने के बारे में जागरुकता पैदा करता है। इसके अलावा यह डिजाइनिंग के छात्रों और स्थानीय शिल्पकारों को रोजगार भी प्रदान करता है। यकीन नहीं हो रहा ना? हालांकि यह सच और अच्छा है। यह मई 2017 में लोगों के बीच कचरे के प्रबंधन को लेकर जागरुकता फैलाने शुरू किया गया था। अब इकोरैप उन जगहों पर काम कर रहा है जहां अधिक मात्रा में कचरा उत्पादन है। इस समय यह जयपुर की लगभग 40 Oyo प्रॉपर्टियों के साथ काम करा है। ओयो के अलावा यह बार्बिक्यू, बीकानेर वाला और कबाब ऐंड करीज जैसे बड़े नामों के साथ मिलकर काम कर रहा है।
बीकानेर वाला के मैनेजर आनंद उपाध्याय ने बताया, 'हम इकोरैप के साथ 4 महीने से अधिक समय से काम कर रहे हैं। वे हमें कचरे के प्रबंधन, पृथ्कीकरण से लेकर रीसाइकलिंग की मात्रा बढ़ाने के अवसरों को लेकर सलाह देते रहते हैं।' इकोरैप ने लोगों में डस्टबिन के उपयोग की आदत को बढ़ावा देने के साथ-साथ पृथ्कीकरण के बारे में जागरुकता फैलाने के लिए शुरुआत में लोगों को डस्टबिन बांटे। लोगों में इस आदत को बढ़ावा देने के लिए इकोरैप ने वेस्ट मोनेटाइजेशन स्कीम (यानी खराब कचरे के बदले पैसे का भुगतान योजना) शुरू की। इकोरौप के को फाउंडर अंगराज के मुताबिक, 'हम इनऑर्गेनिक कचरे (ग्लास, पेपर, प्लास्टिक और धातु) के लिए लोगों को भुगतान करते हैं और ऑर्गनिक कचरे के लिए लोगों से पैसे लेते हैं।'
यह नया स्टार्टअप 1 किलो ग्लास के कचरे के लिए 4 रुपये, 1 किलो प्लास्टिक कचरे के लिए 10 रुपये और 1 किलो पेपर के कचरे के लिए 11 रुपये का भुगतान करता है। इसके अलावा ऑर्गेनिक कचरा देने पर यह स्टार्टअप लोगों से 3 रुपये/किलो के हिसाब से शुल्क लेता है। साथ ही यह ऐल्युमिनियम फॉइल और मेटल कचरा देने पर 40 रुपये प्रति किलो और बियर व सॉफ्ट ड्रिंक कैन देने पर 60 रुपये प्रति किलो के हिसाब भुगतान करता है। यह शहर की ऑटोमोबाइल्स दुकानों से खराब टायर भी इकठ्ठे करता है। इकोरैप के पास अपना खुद का लॉजिस्टिक सिस्टम है। इसमें 4 छोटे ट्रक शामिल हैं जिनमें ये शहर से कचरा इकठ्ठा करते हैं।
इकठ्ठा करने के बाद ये कचरे को रीसाइकलिंग के लिए प्लान्ट में लेकर जाते हैं। कचरे को दो भागों में बांटा जाता है। मेटल, पेपर और प्लास्टिक को रीसाइकल करने के लिए जयपुर में इकोरैप ने जयपुर में कुछ कंपनियों से साझेदारी की है। वहीं, टायर और ग्लास के कचरे को भांकरोटा स्थित इकोरैप के खुद के रीसाइकल प्लांट ले जाया जाता है। अंगराज ने बताया कि टायर के लिए वे 6 रुपये प्रति किलो के हिसाब से शुल्क लेते हैं। आमतौर पर टायर्स से सोफा और कुर्सियों के लिए सीट बनाई जाती हैं। ग्लास के कचरे से लैंप बनाए जाते हैं।
फर्नीचर और लैंप के डिजाइन बनाने के लिए इकोरैप स्थानीय शिल्पकार और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ क्राफ्ट डिजाइनिंग से छात्रों को इंटर्नशिप के लिए भर्ती करते हैं। अंगराज ने बताया कि कई बार अगर ग्राहक की इच्छा होती है तो वे ग्राहकों को कचरे के बदले कैश की बजाय रीसाइकल प्रॉडक्ट देते हैं। इकोरैप के ग्राहकों में मल्टिनेशनल प्रॉफेशनल सर्विस फर्म अर्नेस्ट ऐंड यंग (EY) भी शामिल है। अंगराज ने बताया कि ईवाई ने हाल ही में उनसे 4 पुनर्निमित (दोबारा बनाए गए) सोफे खरीदे हैं। साथ ही इकोरैप ने शहर के कुछ सरकारी स्कूलों में टायर के कचरे से बने स्विंग (झूले) भी लगाए हैं। 27 साल के अंगराज ने दिल्ली विश्वविद्यालय से फिजिक्स की डिग्री हासिल की है। इसके अलावा दिल्ली में उनका खुद का एक पेपर बनाने का प्लांट है। वह कहते हैं, 'रोज काम से लौटते वक्त मैं दिल्ली में स्थित मुकरबा चौक (कचरे का मैदान) को देखकर सोचता था कि मैं इसे बदलने के लिए क्या करूं?'
वह अपने होमटाउन (गृहनगर) लौटे। वहां उनकी मुलाकात प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के ग्रैजुएट छात्र नितिन (30) और गौरव (25) से हुई। दोनों ने इकोरैप शुरू करने के लिए कॉलेज छोड़ने का प्लान बना लिया था। वहीं, उत्सव (जो कि मणिपाल यूनिवर्सिटी का एक छात्र था) इकोरैप के साथ में शुरुआती इंटर्न था। अंगराज ने कहा कि हम उसकी (उत्सव की) क्षमताओं को पहचान गए थे और हमने उसे एक को फाउंडर के तौर पर इकोरैप से जुड़ने के लिए कहा।
इस समय रीसाइकलिंग प्लान्ट पर टीम में ड्राइवर, कार्यकर्ताओं सहित कुल 12 सदस्य हैं। अंगराज ने कहा कि हमने जयपुर से बाहर काम करने के बारे में सोचा था क्योंकि मेट्रो शहरों में काम शुरू करना काफी मुश्किल और महंगा होता है। देखा जाए तो जयपुर का जनसंख्या घनत्व कम है और जयपुर में कचरे को नियंत्रित करना बाकी मेट्रो शहरों की तुलना में आसान है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में एक साल में 62 मिलियन टन यानी 6 करोड़ 20 लाख टन कचरा पैदा होता है और यह आंकड़ा हर साल लगभग 4 फीसदी के हिसाब से बढ़ रहा है। कंपनी के फाउंडर ने बताया, साहस, जीरो वेस्ट, नमो ई-वेस्ट और हसीरू डाला जैसे स्टार्टअप्स कचरा प्रबंधन क्षेत्र में काम कर रहे हैं। इकोरैप का सर्कुलर इकनॉमी मॉडल ही कंपनी को बाकियों से अलग बनाता है। साथ ही अंगराज ने कहा कि औसत के तौर पर देखा जाए तो हर रोज इकोरैप हर ओयो प्रॉपर्टी से 150 किलो कचरा इकठ्ठा करता है। वहीं बार्बिक्यू से हर तीन दिन में अधिकतर मेटल वाला लगभग 60 किलो कचरा इकठ्ठा करते हैं।
रेवेन्यू की बात करें तो हमारा स्टार्टअप मेटल के कचरे को ऑटोमोबाइल और बाकी कंपनियों को बेचकर, कचरे को रीसाइकल करने वालों को बेचकर रीसाइकल प्रॉडक्ट्स को बेचकर आय कमाता है। इस साल फरवरी के महीने में हमारा स्टार्टअप अपने प्राथमिक चरण से बाहर निकलकर अब कमर्शियल स्केल पर आ गया है। अंगराज के मुताबिक, पिछले 11 महीनों में कंपनी ने 45 लाख रुपये की आय अर्जित की है। वहीं अभी तक फाउंडर्स ने स्टार्टअप में 11 लाख रुपये निवेश किए हैं।
इसके अलावा इकोरैप को हाल ही में राजस्थान सरकार की ओर से 10 लाख रुपये के लोन की स्वीकृति भी मिल गई है। स्टार्टअप अभी अपने कामों में तकनीक इस्तेमाल के बढ़ावा देने पर काम कर रहा है। अंगराज ने बताया कि उन्हें स्मार्ट सिटी प्रॉजेक्ट में शामिल होने के लिए भी निवेदन आ रहे हैं। इसके अलावा सूरत स्मार्ट सिटी प्रॉजेक्ट के लिए सूरत म्युनसिपल कॉर्पोरेशन से उनकी बातचीत अंतिम दौर में है। इसके अलावा इकोरैप चंडीगढ़, गुवाहाटी और भुवनेश्वर की नगर निकाय संस्थाओं से भी बातचीत जारी है। अंगराज ने कहा, हम जयपुर को आने वाले 10 सालों में कचरा मुक्त शहर बनाने के मिशन पर काम कर रहे हैं।
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