भारत में ऐडमिशन की प्रक्रिया को 'पेपर लेस' बनाकर स्टूडेंट्स की राह आसान कर रहा यह स्टार्टअप
आज के प्रतियोगी दौर में स्कूलों और कॉलेजों में दाखिला लेना एक बेहद जटिल काम बन चुका है। चुनाव से लेकर ऐडमिशन तक की प्रक्रिया अभिभावकों और बच्चों दोनों ही के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण और थका देने वाली होती है। दिल्ली के एक स्टार्टअप ने इस समस्या का हल खोज निकाला है। एजुकेशन-टेक क्षेत्र में कार्यरत यह स्टार्टअप स्टूडेंट्स और उनके अभिभावकों को ऐडमिशन की प्रक्रिया में मदद करता है। एक और ख़ास बात यह भी है कि यह स्टार्टअप अपने यूज़र्स को मार्कशीट्स, ऐडमिशन फ़ॉर्म्स, सर्टिफ़िकेट्स आदि दस्तावेजों की पेचीदगी से भी निजात दिलाता है। इस स्टार्टअप का नाम है, नो पेपर फ़ॉर्म्स, जिसे नवीन गोयल ने शुरू किया था। नवीन, ऑनलाइन एजुकेशन पोर्टल, करियर 360 के डिजिटल विंग के इंचार्ज हुआ करते थे। फ़रवरी, 2017 में उन्होंने शिक्षण संस्थानों में दाखिले की प्रक्रिया को ऑटोमेट करने के उद्देश्य के साथ नो पेपर फ़ॉर्म्स की शुरुआत की।
नो पेपर फ़ॉर्म्स में सूरज सूपरा बतौर चीफ़ स्ट्रैटजी ऑफ़िसर काम कर रहे हैं। सूरज, पूर्व में Shiksha.com के साथ जुड़े रहे हैं। सूरज बताते हैं, "शिक्षण संस्थान अपने कोर्स और कैंपस के प्रचार के लिए पर्याप्त पैसा खर्च करते हैं। इनमें से ज़्यादातर संस्थान असंगठित डेटा पर काम करते हैं। इसके अलावा, ऐप्लिकेशन, ऐडमिशन, मार्केटिंग, कम्युनिकेशन और पोस्ट-ऐडमिशन प्रोसेस के लिए भी कई सॉफ़्टवेयर्स मौजूद हैं।"
इसके बावजूद, स्टूडेंट्स और अभिभावक ऐ़डमिशन फ़ॉर्म्स के लिए घंटों लाइन में लगे रहते हैं और उन्हें ऐप्लिकेशन प्रोसेस के दौरान कई चक्कर लगाने पड़ते हैं। ऐसे में सूरत मानते हैं कि इंडस्ट्री को एक वन-स्टॉप सॉफ़्टवेयर सल्यूशन की ज़रूरत है, जो इस जटिल प्रक्रिया को सहज बना सके।
नो पेपर फ़ॉर्म्स के लॉगिन डैशबोर्ड पर यूज़र अपने फ़ॉर्म्स जमा कर सकते हैं, पेमेंट कर सकते हैं, पेमेंट की रसीद प्राप्त कर सकते हैं, ऐडमिट कार्ड्स और ऑफ़र लेटर्स भी डाउनलोड कर सकते हैं। इस प्लेटफ़ॉर्म पर यूज़र अन्य आवेदकों के साथ चर्चा और इंटरव्यू भी कर सकते हैं।
नो पेपर फ़ॉर्म्स शिक्षण संस्थानों को भी अपनी सुविधाएं मुहैया कराता है। इन सर्विसेज़ में मार्केटिंग मैनजमेंट, ऐडमिशन मैनेजमेंट, कैंपने मैनेजमेंट और कॉल सेंटर मैनेजमेंट आदि की सुविधाएं शामिल हैं। यह सॉफ़्टवेयर ऑनलाइन पेमेंट गेटवे के ज़रिए फ़ीस कलेक्शन की सुविधा भी देता है। इतना ही नहीं, नो पेपर फ़ॉर्म्स रियल टाइम डेटा ऐनालिसिस और रिटर्न्स ऑन इनवेस्टमेंट का विश्लेषण भी करता है।
इस क्षेत्र में कई आईटी फ़र्म्स ऐसी हैं, जो ऐडमिशन की विभिन्न प्रक्रियाओं के लिए ईआरपी सॉल्यूशन्स मुहैया करा रही हैं, लेकिन नो पेपर फ़ॉर्म्स का दावा है कि वह इन सभी कंपनियों से अलग है क्योंकि नो पेपर फ़ॉर्म्स के प्लेटफ़ॉर्म्स के ज़रिए शिक्षण संस्थान के चुनाव से लेकर दाखिले तक सभी चीज़ें एक ही जगह पर मौजूद हैं।
सूरज का कहना है, "शिक्षण संस्थान अन्य बिज़नेस फ़र्म्स की तरह नहीं सोचते। उनके सोचने का तरीक़ा अलग होता है। उनको नो पेपर फ़ॉर्म्स का यूज़र बनाना एक बड़ी चुनौती था, लेकिन वक़्त के साथ उनकी सोच में बदलाव आया और उन्हें नो पेपर फ़ॉर्म्स का कॉन्सेप्ट पसंद आने लगा।"
हाल ही में, नो पेपर फ़ॉर्म्स को इन्फ़ो एज से 28 करोड़ रुपए की सीरीज़ बी फ़ंडिंग मिली है। पिछले साल नवंबर में, इन्फ़ो एज ने 5.66 करोड़ रुपए का निवेश किया था। स्टार्टअप के पास फ़िलहाल 80 लोगों की टीम है और कंपनी की योजना है कि मार्च, 2019 के अंत तक टीम का और भी अधिक विस्तार किया जाए।
नो पेपर फ़ॉर्म्स को एसएएएस (सॉफ़्टवेयर एज़ अ सर्विस) सॉफ़्टवेयर के लिए सब्सक्रिप्शन आधारित मॉडल के ज़रिए रेवेन्यू मिलता है। नो पेपर फ़ॉर्म्स आवेदनों के हिसाब से शिक्षण संस्थानों से भी कमीशन चार्ज करता है। हालांकि, सूरज ने इस फ़ीस के बारे में जानकारी देने से इनकार कर दिया, लेकिन मार्केट में मौजूद ऐसे अन्य ऑटोमेशन प्लेटफ़ॉर्म हर ऐडमिशन पर 10 से 12 लाख रुपए तक चार्ज करते हैं।
नो पेपर फ़ॉर्म्स की क्लाइंट लिस्ट में 190 स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय हैं, जिनमें, एसआरएम चेन्नई, अमृता इन्स्टीट्यूट (कोयंबटूर), शिव नादर यूनिवर्सिटी, ओपी जिंदल यूनिवर्सिटी, एपीजे स्कूल और दिल्ली पब्लिक स्कूल आदि शामिल हैं। पिछले साल, इस स्टार्टअप ने 10 लाख आवेदन की प्रक्रियाएं पूरी करवाईं थी। कंपनी का लक्ष्य है कि इस साल जून तक 3 मिलियन फ़ॉर्म्स प्रोसेस कराए जाएं।
मार्केट साइज़ के बारे में बात करते हुए सूरज ने कहा, "देश में 40 हज़ार कॉलेज, 800 से ज़्यादा यूनिवर्सिटीज़ और 15 लाख स्कूल्स हैं (जिनमें से 40 प्रतिशत प्राइवेट हैं)। 2019 के जून तक हमारा लक्ष्य है कि हम क्लाइंट बेस 400 तक पहुंचा सकें।" इतना ही कंपनी की योजना है कि सरकारी परीक्षाओं से भी पेपर लेस प्रोसेस की अवधारणा को शामिल किया जा सके और इस संबंध कंपनी संबद्ध इकाईयों से बातचीत कर रही है। साथ ही, कंपनी चाहती है कि अगले साल तक दक्षिणपूर्व एशिया में भी ऑपरेशन्स किया जा सके।
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