आज़ादी की कहानी सुनातीं तीन अहम किताबें उर्दू में
किसी भी देश के लिए आज़ादी का दिन बेहद ख़ास, भावुकता भरा और ऐतिहासिक होता है. वैसे ही, आज़ादी की कहानी कहने वाली किताबें या अख़बार या क़िस्से-कहानियां अपने आप में ऐतिहासिक दस्तावेज़ होते हैं. आज हम नज़र डालेंगे ऐसी 3 किताबों पर जो उर्दू में हैं और आज़ादी के मौक़े पर जिन्हें पढ़ा जा सकता है.
‘इंडिया विन्स फ्रीडम’ (India Wins Freedom)- मौलाना अबुल कलाम आज़ाद
आज़ाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री अबुल कलाम आजाद प्रमुख स्वत्रंता सेनानियों में से एक थे. वह अपने राजनीतिक जीवन में शुरू से आख़िर तक कांग्रेस से जुड़े रहे और कई साल तक कांग्रेस पार्टी की अध्यक्षता भी की. 'इंडिया विन्स फ्रीडम’ मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की आत्मकथा है. इस किताब का संक्षिप्त मूल (अंग्रेजी संस्करण) 1959 में प्रकाशित किया गया था. वहीं, पूरी आत्मकथा अक्टूबर 1988 में प्रकाशित की गई यानी उनके निधन के 30 वर्षों बाद.
‘हमारी आज़ादी’ ‘इंडिया विन्स फ्रीडम’ का उर्दू अनुवाद है. यह अनुवाद प्रोफ़ेसर शमीम हनफ़ी ने किया है. ये किताब ‘तहरीक-ए-आज़ादी’ और ‘आज़ादी-की-हैसियत’ के नाम से भी छपी है.
यह किताब हिन्दुस्तान की आज़ादी और आज़ादी के प्रयासों और घटनाओं को याद करता है और उसका विश्लेषण करता है. इस किताब की ख़ास अहमियत ये है कि मौलाना आजाद ने इसमें अपने मिजाज़ के मुताबिक़ अपने-पराये का भेद रखे बगैर 1935 से 1948 के हालात और घटनाओं का जायज़ा लिया है.
इस किताब के प्रकाशन के पीछे एक किस्सा भी है. बात तब की है जब मौलाना दिल्ली स्थित अपने सरकारी बंगले में रहते थे, तब नेहरु कैबिनेट के जूनियर मंत्री हुमायूं कबीर उनसे मिलने आते थे. उनकी मुलाक़ात का एक मक़सद होता था मौलाना के आत्मकथा पर बात करनी. हुमायूं कबीर ने मौलाना आजाद के बयानों को अंग्रेज़ी में लिखा. मौलाना आज़ाद ड्राफ्ट ने एडिट किया और फिर दोनों ड्राफ्ट को मिलाया गया, इस तरह जब पूरी किताब का ड्राफ्ट तैयार हो गया तो मौलाना ने इसमें से तीस पन्ने अलग कर दिए. उन्होंने अपनी मृत्यु के बाद 30 वर्षों तक मूल सामग्री को राष्ट्रीय पुस्तकालय, कलकत्ता एंव राष्ट्रीय अभिलेखागार, नई दिल्ली में सिलबंद रखवाना बेहतर समझा. सिर्फ़ संक्षिप्त सामग्री ही प्रकाशन के लिए दी गई थी. तीस बरस के बाद मुकम्मल तौर पर (मूल टेक्स्ट) प्रकाशित किया गया है. लिहाजा ये किताब ऐसी तारीख़ बन गयी है जो आज़ादी की कहानी के साथ मौलाना आजाद की आपबीती भी है.
‘हिंदुस्तान हमारा’- जां निसार अख्तर
उर्दू और उर्दू शायरी ने हमेशा अपनी वतन से मुहब्बत का सुबूत पेश किया है. उर्दू लिटरेचर देशभक्ति से ओत-प्रोत शायरी और किस्से-कहानियों से भरा पड़ा है. हिंदुस्तान में कौमियत का जब सियासी तसव्वुर पैदा हुआ तो उर्दू शायरों के लहजे में खुद-ब-खुद बदलाव आ गया. अकबर इलाहाबादी, चकबस्त, इक़बाल, ज़फर अली खान, तिलोकचंद महरूम, जोश मलीहाबादी, एहसान दानिश और कई शायरों के नाम भी इस कड़ी में लिए जा सकते हैं. यह किताब जां निसार अख्तर द्वारा संकलित है जो दो वोल्युम्स में उपलब्ध है. पहली वॉल्यूम में हिंदुस्तान के कुदरती मंज़र और मौसम की सुन्दर छटा का उल्लेख मिलता है. यहां के सुबह-ओ-शाम, त्यौहार, शहरी और देहाती इलाके, कला और संगीत के ताल्लुक़ से नज्में हैं. जबकि दुसरे वॉल्यूम में उर्दू की वो नज्में शामिल हैं जो अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आवाज़ बुलंद करती हैं तो कहीं देशभक्ति के जज्बे के मुजाहिरा बहुत खूबसूरती से करती हैं. इस किताब में सियासी आन्दोलनों के हवाले से लिखी गई लगभग हर शायर की नज़्म को शामिल किया गया है.
इस किताब में मौजूद नज़्में शायरी के उसूलों और भाषा की उत्कृष्टता के पैमानों पर भी खरी उतरती है.
'आज़ादी की कहानी अंग्रेज़ों और अख़बारों की ज़बानी’- गुलाम हैदर
ग़ुलाम हैदर की यह किताब आज़ादी की कहानी सुनाती है, लेकिन इस किताब में यह कहानी उस दौर के अखबार और रिसाले सुना रहे हैं. यह इस किताब की खूबी है. इस किताब में आज़ादी की कहानी सुनाते समय दो चीज़ों को शामिल किया गया है. एक, खुद देश के दुश्मनों यानि अंग्रेजों द्वारा दिए गए बयानों को, और दूसरे, उस वक़्त मुल्क के अखबारों में छपी हुई खबरों का. यह कहानी बड़े दिलचस्प अंदाज़ में है और किसी फिल्म की कहानी की तरह नज़र आती है. भाषा काफी आसान और लेखन शैली काफ़ी दिलचस्प है. फिल्मों की ही तरह अलग-अलग मंज़र सामने आते हैं और कहानी आगे बढती है और जो देश के बंटवारे पर जा कर ख़त्म होती है.
लेखक का कहना है की यह किताब ख़ासकर देश के नौजवानों को ध्यान में रख कर लिखी गयी है. आज़ादी की पूरी कहानी को बहुत आसानी और सहजता से किताब की शक्ल दे दी गई है. इसके अलावा, लेखक का मकसद आज़ादी के उन मतवालों को दर्ज करना भी है जो कहीं न कहीं गुम हो गए हैं या भुला दिए गए हैं. किताब लिखने में लेखक ने उस दौर के अहम लोगों यानी स्वतंत्रता सेनानियों के लेख और किताबों से भी मदद ली है.
जैसा कि हम जानते हैं कि आज़ादी की कहानी किसी एक पार्टी, किसी एक नेता या किसी एक विचार की कहानी नहीं है. हजारों-लाखों लोगों के बलिदान से यह कहानी मुकम्मल हुई है. उसी तरह, आज़ादी की कहानियां कई में लिखी गई है. उर्दू भाषा के जरिये आज़ादी की कहानी जानने के लिए ये तीन किताबें आप पढ़ सकते हैं.