सफ़ल कम्यूनिकेशन के लिए वियतनामी मंक थिच न्हात हान के 8 सूत्र उनकी किताब 'द आर्ट ऑफ कम्यूनिकेशन' से
थिच न्हात हान वियतनामी मंक हैं जिन्होंने विश्व में बौद्ध धर्म को एक नया आयाम दिया. वे हमारे समय के महान बौद्ध शिक्षकों में से एक, आध्यात्मिक विचारक, कवि तथा शांति कार्यकर्ता रहे हैं. उन्हें ‘बौद्ध धर्म की समाजिक संलग्नता आन्दोलन’ का जनक भी कहा जाता हैं. 95 वर्ष के अपने जीवनकाल में उन्होंने 130 पुस्तकों की रचना की जिनका देश-दुनिया के अनेक भाषाओं में अनुवाद किया जा चूका है. मैडिटेशन पर सरल शिक्षाओं से लेकर बच्चों की किताबों, कविता और ज़ेन अभ्यास (प्रैक्टिस), प्रकृति से प्रेम आदि उनके लेखनी का क्षेत्र रहा है. उनकी प्रसिद्ध पुस्तकों में ‘द मिरेकल ऑफ़ माइंडफुलनेस’, ‘पीस इज़ एव्री स्टेप’, ‘हाउ टू लव’, ‘लव लेटर टू द अर्थ’, ‘द सन माय हार्ट’, ‘द आर्ट ऑफ़ लिविंग’, ‘एट होम इन द वर्ल्ड’ आदि हैं.
‘द आर्ट ऑफ कम्यूनिकेशन’ में थिच न्हात हान, जिन्होंने वर्षों तक मेडिटेशन और सायलेंस की तपस्या की है, ने अच्छी कम्यूनिकेशन की कला और फायदे पर यह किताब लिखी है. यह किताब आपको अपने ज़िन्दगी के सबसे महत्ववपूर्ण इंसान के साथ कम्यूनिकेट करने के गुर सिखाता है- और वो इंसान हैं आप खुद.
आपने यह महसूस किया होगा कि अच्छी मंशा होने के बावजूद दूसरों के साथ हमारी बात चीत अक्सरहां मुकम्मल नहीं होती है. हम एक दुसरे को ग़लत समझ बैठते हैं. क्या वजह होती है इसकी? ये ग़लतफहमियाँ आती कहां से है? अगर आपको यह सब समझाना है तो यह किताब आपके लिए मददगार साबित हो सकती हैथिक न्हात हान किताब की शुरुआत में ही यह मंत्र दे देते हैं कि हमें दूसरों को अच्छी तरह से समझने के लिए ज़रूरी है कि पहले हम खुद को अच्छे से समझें और जानें. दूसरों तक का रास्ता खुद से होकर जाता है. किसी भी कम्यूनिकेशन में मिसअंडरस्टेंडिंग तब पैदा होती है जब हम फ़र्क करना भूल जाते हैं कि हम जो सोच रहे हैं वो उस मुद्दे को लेकर हमारा परसेप्शन है, न की असलियत में वही चीज़ हो रही है. क्या हमारा परसेप्शन सच में ठीक है? यह समझदारी लाने के लिए मेडिटेशन जरुरी है. और दूसरी जरुरी बात है खुद को समझाने की. तभी हम यह बता पाएंगे कि इस पुरे मुद्दे में हावी हो रही चीज़ मेरा परसेप्शन है या कुछ और?
अब सवाल है खुद को कैसे सुने और समझे?
थिच न्हात हान लिखते हैं कि जैसे हम इस बात को लेकर सजग रहते हैं कि हमारे पेट के अन्दर क्या जा रहा है वैसे ही हमें अपने विचारों को लेकर भी सजग रहने की जरुरत है कि हम क्या सोच रहे हैं और क्या बोल रहे हैं. हमारे विचार, थॉट्स हमारे खाने की तरह होते हैं, जैसा विचार आप खुद (inner self) के लिए रखेंगे वैसे ही विचार हमें दूसरों के लिए आयेंगे. यह पाने के लिए माइन्डफुल रहना होगा. अगर आप माइन्डफुल या अवेयर रहते हैं तो आप इस बात से भी अवेयर रहते हैं कि अगर सामने वाला शख्स गुस्सा कर रहा है तो यह उसके दुःख से आता है. जैसे आप इस बात को अपने ख्याल में लाते हैं आपका गुस्सा कम हो जाता है. यही मतलब है करुनामय होने का. और उस स्थिति में अगर आप उस शख्स से अच्छे से बात करते हैं तो न सिर्फ उसकी मदद होती है बल्कि आप भी अपने बारे में बहुत अच्छा फील करते हैं.
अपने कम्यूनिकेशन या स्पीच को नर्चर करने मात्र से आप करुनामय हो जाते हैं. इतनी पवार होती है हमारे शब्दों में, हमारी बातों में.
कैसे करें ये सब?
थिच न्हात हान 8 अहम् बातें लिखते हैं जो हम डे टू डे रूटीन में अप्लाय कर सकते हैं:
1. हेलो कहें. इससे आसान क्या होगा? पर इतनी आसान चीज़ काफी हेल्पफुल होगी.
2. मैं यहां आपके लिए हूं... थिच न्हात हान कहते हैं कि ये मैटर नहीं करता कि आपने किसके लिए क्या किया है बल्कि सबसे जायद ये मैटर करता है कि आप उसके लिए प्रेजेंट है कि नहीं.
3. मैं आपकी परेशानी को जानता हूं और इसलिए यहां आपके साथ हूँ..
4. मैं परेशान हूँ और मैं ये चाहता हूं कि आप ये जाने और मेरी हेल्प करें..
5. हम बहुत लकी हैं कि हम दोनों इस मोमेंट को एक साथ एन्जॉय कर रहे हैं..
6. जब दूसरा कोई आपकी बहुत तारीफ़ करे तो आपको कहना है कि आप पार्टली सही हैं..
7. हम जब परेशान होते हैं तो अक्सर हम गुस्सा रहते हैं. गुस्सा एक अर्जेंसी की तरह होता है और हम उसे रीलिज या बाहर निकालने की कोशिश करते हैं... लेकिन आप दूसरों को यह बता सकते हैं कि इससे निकलने के लिए अपना बेस्ट दे रहे हैं न की आप उनके सामने गुस्सा करें ...ऐसा करने से आपके हेल्प होने के चांसेस कहीं ज्यादा हैं.
8. एक प्यार भरे रिश्ते में तब मुश्किलें आने लगती हैं जब दूसरा इंसान आपकी परेशानी का सबब बन जाते हैं. ऐसे में हो सकता है कि आप सोचें कि दूसरा इंसान आपके पास पहले आये. पर ऐसा नहीं होगा. ऐसे में कोशिश करें की आप ही बात चीत को शुरू करें.
द आर्ट ऑफ कम्यूनिकेशन को मास्टर करने के लिए आपको सिर्फ यह याद रखना है आप और आपको सुनने वाले, दोनों के अन्दर बुद्ध हैं. किताब में एक जगह बुद्ध का ज़िक्र है जिसमे एक इंसान उनसे पूछता है कि मरने के बाद बुद्ध की आत्मा कहां जायेगी? जवाब में बुद्ध कहते हैं वो मरने के बाद कहीं नहीं जायेंगे. कुछ वक़्त बाद यही सवाल बुद्ध से कहीं और किसी दुसरे व्यक्ति ने भी पूछा, जिसके जवाब में बुध्ह ने कुछ और कहा. बुद्ध के साथ रहने वाले व्यक्ति ने उनसे पूछा कि आपने दो अलग-अलग जवाब क्यों दिए? बुद्ध ने कहा जैसे आप एक बच्चे से अलग तरह से बात करते हैं वैसे ही आपको हर व्यक्ति के हिसाब से अलग-अलग-अलग तरह से बात करनी चाहिए. क्योंकि बात-चीत में बात से ज्यादा अहम् उस बात को दुसरे व्यक्ति तक पहुंचाना होता है. अपने सामने वाले इंसान की काबिलियत को ध्यान में रखना ही उसे बुद्ध की तरह समझना कहा गया है. और जब आप उसे बुद्ध समझेंगे तभी आप पूरी तवज्जो (deep listening) के साथ उसकी बात सुनेंगे. बातचीत के दौरान उन्हें उनकी बातों के लिए कॉम्प्लीमेंट भी देते रहे. जब हम किसी की बात को ध्यान से सुनते है तो हम दोनों के बीच में प्यार पैदा होता है. प्यार से अन्डरस्टैंडिंग पैदा होती है जो किसी भी अच्छे कम्यूनिकेशन की बुनियाद तैयार करता है.