तीन आंत्रप्रेन्योर ने 5 लाख की फंडिंग से टारगेट किया चार करोड़ का कारोबार
"जोधपुर (राजस्थान) में अतुल गहलोत, मृणालिनी राजपुरोहित और निखिल मेहता ने दस महीने में ही अपने 'सोलक्राफ़्ट' स्टार्टअप को 'जेनसोल प्राइवेट लिमिटेड' कंपनी में कन्वर्ट कर लिया है। फिलहाल, पांच लाख की फंडिंग के साथ 'जेनसोल' कंपनी आगामी दो वर्षों में चार करोड़ रुपए के कारोबार का लक्ष्य लेकर चल रही है।"
जोधपुर (राजस्थान) में मृणालिनी राजपुरोहित, अतुल गहलोत और निखिल मेहता का स्टार्टअप 'सोलक्राफ़्ट', इस्तेमाल हो चुकी डेनिम जीन्स को अपसाइकिल कर ज़रूरतमंद बच्चों के लिए 'विद्यालय किट' नाम से मज़बूत बैग, जूते और स्कूल किट बना रहा है। इस काम में अब तक तमाम लोगों को रोज़गार मिल चुका है। गौरतलब है कि डेनिम जीन्स गल कर डीकम्पोज़ होने में सैकड़ों साल लग जाते हैं। ऐसे पुराने डेनिम जीन्स को दोबारा इस्तेमाल में लाकर ये स्टार्टअप पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचा रहा है।
मृणालिनी फ़ैशन डिज़ाइनर हैं, जबकि अतुल गहलोत अनुभवी वस्र-व्यवसायी और निखिल मेहता युवा इंजीनियर हैं। यह स्टार्टअप फ़िलहाल बैग, चप्पल और पेंसिल बॉक्स उपलब्ध करा रहा है। आगे ट्रैवलिंग किट, चश्मे का कवर, जिम बैग, शू कवर, कार्ड होल्डर, बोतल कवर, कॉर्पोरेट गिफ्टिंग, पासपोर्ट कवर, लेपटॉप बैग, आईपेड कवर, कुर्सियों के कवर, मैट्रेसेज, एप्रिन सहित कई तरह के उत्पाद बनाने की तैयारी है। अतुल, मृणालिनी, निखिल का कहना है कि कोई भी व्यक्ति, जो 'सोलक्राफ्ट' की मदद करना चाहता है, उनकी वेबसाइट पर वॉलिंटियर्स फॉर्म भरकर जुड़ने के साथ ही प्रमोशन में भी मदद कर सकता है।
स्टार्टअप को एनजीओ से कंपनी के रूप में कन्वर्ट कर रहे सोलक्रॉफ्ट के फाउंडर सीओओ अतुल गहलोत बताते हैं कि अभी तक वे अपना प्रॉडक्ट विभिन्न स्तरों से आंगनबाड़ी की महिलाओं के माध्यम से गलियों, गांवों के बच्चों तक पहुंचाते रहे हैं लेकिन अब उसे सिस्टमेटिक लेबल पर ले जाने के लिए जिले के स्कूल-कॉलेजों से कंपनी की टीम संपर्क कर रही है। टीम के लोग इलाके के हर सरकारी स्कूल में जाकर प्रिंसिपल से अपने प्रॉडक्ट की लिस्ट साझा करते हुए एक बड़ा रिकार्ड तैयार कर रहे हैं। इस काम के लिए अब तक उन्हें पांच लाख रुपए की फंडिंग मिल चुकी है। वह आगामी दो साल के भीतर चार करोड़ रुपए के कारोबार का लक्ष्य कर चल रहे हैं। उनके एनजीओ 'सोलक्रॉफ्ट' नाम से रजिस्ट्रेशन नहीं मिला तो उनकी स्टार्टअप कंपनी 'जेनसोल प्राइवेट लिमिटेड' नाम से रजिस्टर्ड करानी पड़ी है।
अतुल गहलोत ने बताया कि वह पिछले पांच वर्षों से निजी कारोबार के रूप में इस तरह के प्रॉडक्ट का कारोबार करते आ रहे हैं, इसलिए इस काम में उनका पुराना अनुभव भी काम आ रहा है। फैशन डिजाइनिंग करने के बाद मृणालिनी कोई सोशल वर्क करना चाहती थीं, इसलिए वह भी टीम की फाउंडर बन गईं। इस समय उनकी कंपनी 100 तरह के प्रोडक्ट बनाने के साथ कई बड़ी कंपनियों से भी टाइअप करने में जुटी है।
अब सुशील शर्मा और देवेश राकेचा भी कंपनी की कोर टीम का हिस्सा बन चुके हैं। उनकी कंपनी जो किट्स बच्चों तक पहुंचा रही है, उसमें पंद्रह से बीस परसेंट तक मॉर्जिन लेकर चलना पड़ता है ताकि आर्थिक दिक्कतें आड़े न आएं। उनकी कंपनी से अब तक जोधपुर के लगभग सौ ऐसे दुकानदार जुड़ चुके हैं, जो उन्हे कच्चा माल मुहैया कराने के साथ ही प्रॉडक्ट बेचने को तैयार हैं।
मृणालिनी राजपुरोहित बताती हैं कि डिग्री मिलने के बाद उनके सामने एक सवाल था- अब क्या करें? उलझन में कुछ वक़्त गुजर जाने के बाद उन्हे 'सोलक्राफ्ट' स्टार्टअप का आइडिया मिला, जिसे उन्होंने टीम मेम्बर के तौर पर अपने दोस्तों अतुल गहलोत और निखिल मेहता से साझा किया। वे भी सहमत हो गए। उसके बाद इन तीन दोस्तों की फाउंडर टीम ने तय किया कि अब वे पुराने पड़े डेनिम जीन्स जुटाकर गरीब और जरूरतमंद बच्चों के लिए स्कूल किट तैयार करेंगे। तीनों ने आपस में मिलकर पहले कुछ धनराशि इकट्ठी की और इस तरह जोधपुर में उनका स्टार्टअप शुरू हो गया।
'सोलक्राफ्ट' अब तक अपने दस माह के कार्यकाल में एक हजार से अधिक स्कूली बच्चों तक अपना उत्पाद पहुंचा चुका है। फाउंडर्स के अनुसार,
"इस काम में पांच कारीगरों को बीस-बीस हजार हर माह का रोजगार भी मिला हुआ है। गरीब बच्चों के लिए सस्टेनेबल फैशन, यह हमारा टैगलाइन है। हमने पुरानी और काम में नहीं आ रही जीन्स पेंट्स और डेनिम को टारगेट किया है। किसी भी जींस या डेनिम को लोग कुछ साल से ज्यादा इस्तेमाल नहीं करते हैं। उसकी खासियत ये होती है कि बहुत बार पहने जाने के बाद भी यह फटता, घिसता नहीं और मजबूत बना रहता है। हमने तय किया कि जब डेनिम को पहनना छोड़ दिया जाता है, तब क्यों न हम उसे आम बच्चों के इस्तेमाल लायक बनाएं।"
‘सोलक्राफ्ट’ के मेंटर एडवाइजर देवेश राखेचा का कहना है,
"गाँव के बच्चों के पास पहनने के लिए उनकी साइज की चप्पल तक नहीं है। वे बहुत छोटी या फिर किसी बड़े की चप्पल पहनकर टेढ़े-मेढ़े पथरीले रास्तों से गुजरते हैं। यदि हम इस तरह के बच्चों की कुछ मदद कर पाते हैं, उनकी जिंदगी को संवार पाते हैं, तो हमारी एक बड़ी सोशल कामयाबी होगी।"
ये कंपनी एक लाख से ज्यादा बच्चों तक अपने किट पहुंचाने का टारगेट लेकर चल रही है। एक किट की कीमत 399 रुपए है। एक लाख किट तैयार करने के लिए 10 टन डिस्कार्ट डेनिम जींस को अपसाइकिल किए जाने का लक्ष्य है।