National Vaccination Day: क्या हम एक और महामारी के लिए तैयार हैं?
वैक्सीनेशन या टीकाकरण (vaccination) शरीर को रोगों और वायरस से होने वाली समस्याओं के खिलाफ इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है. टीके सुरक्षा बनाने के लिए हमारे शरीर की प्राकृतिक रक्षा प्रणाली के साथ काम करके बीमारी होने के जोखिम को कम करते हैं. जब हम कोई टीका लगवाते हैं, तो इम्युनिटी वायरस या जीव के खिलाफ ढाल बन जाती है, जो हमारे सिस्टम को मजबूत और सुरक्षित बनाती है. डब्ल्यू एच ओ (WHO) के अनुसार यदि सही ढंग से टिकाकरण किया जाए तो विश्व भर में लगभग 15 लाख बच्चों को मृत्यु से बचाया जा सकता है. और कोविड-19 पैंडेमिक (Covid-19) के बाद वैक्सीनेशन का महत्त्व बताने की जरुरत नहीं है.
टीकाकरण मनुष्यों के लिए कोई नई बात नहीं है. साक्ष्य इस बात की ओर इशारा करते हैं कि चीन में 1000 ई. से चेचक के टीकाकरण का प्रयोग किया जा रहा है. अफ्रीकी और तुर्की लोगों ने भी इसके यूरोप और अमेरिका में फैलने से पहले इसका अभ्यास किया था.
कब बनी पहली वैक्सीन?
एडवर्ड जेनर को वैक्सीनेशन का जनक माना जाता है. चेचक (Small pox) के लिए इम्यून सिस्टम बनाने के लिए 1796 में एक बच्चे को वैक्सीनिया वायरस से टीका लगाया. इसके बाद, दुनिया भर में चेचक के टीकाकरण का उपयोग शुरू हुआ, और धीरे-धीरे दुनिया से चेचक ख़त्म हुआ.
1897 में लुई पाश्चर ने एंथ्रेक्स के टीके से हैजा (Cholera) रोकने का टीका लगाने की शुरुआत की. 20वीं शताब्दी तक वैज्ञानिक खोज और रीसर्च इतनी विकसित हो चुकी थी कि जीवन-रक्षक टीकों के क्षेत्र में काफी उन्नति हुई. ऐसा ही एक विकास पोलियो वैक्सीन था, जिसे स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक महान विकास माना गया.
'राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस' क्यों मनाया जाता है?
साल 1995 में भारत में 16 मार्च को ‘पल्स पोलियों अभियान’ के तहत पहली बार ओरल पोलियो वैक्सीन यानी कि मुंह के माध्यम से पोलियो वैक्सीन दी गई. यह वह दौर था जब देश में पोलियो के मामले तेजी से बढ़़ रहे थे, जिसपर नियंत्रण पाने के लिए सरकार ने पोलियो टीकाकरण की शुरुआत की थी. और जब से हर साल पूरे देश में 16 मार्च को ‘राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस’ मनाया जाने लगा. भारत सरकार हर साल देश के लोगों को टीकाकरण का महत्व बताने के लिए राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस मनाती है.
वैक्सीनेशन का महत्त्व बताने और इसकी जरुरत के बारे में लोगों को शिक्षित करने की जरुरत इसलिए भी है क्योंकि टीकाकरण को लेकर कई मिथक हैं. कोविड-19 के दौरान लोगों में वैक्सीनेशन लगाए जाने की झिझक को तोड़ना सरकार के लिए एक बड़ा चैलेन्ज बन कर उभरा था.
क्या अब हम किसी महामारी से निपटने में सक्षम हैं?
पिछले दो दशकों में टीकाकरण में बड़े पैमाने पर प्रगति करने के बाद भी 2020 में COVID-19 के वैश्विक खतरे से विश्व के देशों को गंभीर रूप से चुनौती मिली थी. वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं के टूटने से हमारी ग्लोबली कन्नेकटेड दुनिया की कमजोरियों उजागर हो गईं थी. दुनिया भर के संस्थान महामारी की तैयारी के मुद्दे से निपटने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था, स्वास्थ्य से जुड़े शोधकार्य, आपूर्ति-श्रंखला के खस्ताहाल होने की वजहों से महामारी से निपटने में देरी हुई.
भविष्य की महामारियों के लिए बेहतर तैयारी के लिए G7 समूह - कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यू.एस.ए. और यूनाइटेड किंगडम – ने एक समझौता किया है जिसके तहत दुनिया भर में महामारी को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक वायरोलॉजी और महामारी विज्ञान कौशल सिखाने को बढ़ावा दिया जाएगा. प्रस्ताव के तहत दुनिया भर के वैज्ञानिकों और स्वास्थ्य देखभाल कर्मचारियों को महामारी प्रतिक्रिया कौशल के एक मानक सेट के साथ प्रशिक्षित किया जाएगा ताकि एक वैश्विक नेटवर्क तैयार किया जा सके जो प्रकोप का पता लगाने और नियंत्रण में सहयोग कर सके.
भारत की क्या स्थिति है?
कुछ आंकड़ों पर नज़र डालते हैं.
2018 मेडिकल जर्नल ‘लैंसेट’ के एक अध्ययन के मुताबिक, स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और लोगों तक उनकी पहुंच के मामले में भारत विश्व के 195 देशों में 145वें पायदान पर है.
इसी साल 2018 में ‘ग्लोबल बर्डेन ऑफ डिजीज’ अध्ययन में आया कि स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच और गुणवत्ता मामले में वर्ष 1990 के बाद से भारत की स्थिति में सुधार हुए हैं. साल 2016 में स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच और गुणवत्ता के मामले में भारत को 41.2 अंक मिले थे जबकि साल 1990 में सिर्फ 24.7 अंक मिले थे.
WEF (World Economic Forum) ने 2019 में कहा कि भारत का स्वास्थ्य जीवन प्रत्याशा (healthy life expectancy) के मामले में सूचकांक काफी निराशाजनक है. इसमें भारत 109 वें स्थान पर है. इस इंडेक्स के लिए 141 देशों का सर्वे किया गया था.
आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 में कहा गया है कि सरकारी बजट में स्वास्थ्य देखभाल को प्राथमिकता देने वाले 189 देशों में भारत की रैंकिंग 179वीं है.
इन आंकड़ों से संकेत मिलता है कि भारत अपने मौजूदा बुनियादी ढांचे और स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के साथ एक महामारी से लड़ने के लिए बहुत सक्षम नहीं है और उसे अपने स्वास्थ्य क्षेत्र को मजबूत करने की आवश्यकता है.
भारत सहित अधिकांश देश भविष्य में युद्ध की तैयारी के लिए अपने डिफेंस मिनिस्ट्री को विकसित करने और मजबूत करने में अपने धन का एक बड़ा हिस्सा निवेश करते हैं. भारत में, डिफेंस मिनिस्ट्री को आवंटित धन, औसतन, स्वास्थ्य क्षेत्र को आवंटित धन का पांच गुना है.
देश की सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था ठीक और सुचारू रखने के लिए सबसे पहले देश के लोगों के लिए प्राथमिक देखभाल को दुरुस्त करने की जरुरत होती है. इसके लिए मजबूत और लचीली स्वास्थ्य प्रणालियों की आवश्यकता होती है. प्राथमिक देखभाल में, रोग के प्रकोप का पता लगाने की सुविधा, आवश्यक देखभाल प्रदान करना, और टीकों और अन्य मेडिकल जरूरतों की तैनाती जरुरी होती है. आपूर्ति-श्रृंखला के साथ-साथ आवश्यक रॉ-मैटेरियल और उपकरण की आपूर्ति और स्टोरेज को दुरुस्त करने की जरुरत पर ध्यान देने की जरुरत होती है. प्रयोगशाला क्षमता, शोधकार्य को बढ़ावा देने के साथ किसी भी तरह की महामारी की रोकथाम और तैयारियों के लिए सभी फील्ड में समन्वय के लिए आवश्यक मेकेनिज्म को डेवलप कर उसे बनाए रखना भी बहुत जरुरी है.
Edited by Prerna Bhardwaj