सरोजिनी नायडू को गांधीजी प्यार से ‘मिकी माउस’ कहते थे
स्वतंत्रता सेनानी और भारत की पहली महिला राज्यपाल सरोजिनी नायडू के जन्मदिन पर विशेष.
वह छह साल की उम्र से कविताएं लिखती थी. 12 साल की उम्र में उसने एक नाटक लिखा, जिसके कारण उसे दुनिया भर में पहचान मिली. वह 16 साल की थी, जब उसने लंदन पढ़ने के लिए स्कॉलरशिप मिली. 1917 में वह 15 औरतों की टीम को लेकर देश भर में घूमी. उसकी मांग थी कि आजाद भारत में औरतों को भी मर्दों के बराबर वोटिंग का अधिकार मिलना चाहिए. वह लड़की न सिर्फ आजादी की लड़ाई में शामिल हुई, बल्कि आजाद भारत में उत्तर प्रदेश की राज्यपाल भी बनी.
गांधीजी उन्हें प्यार से ‘मिकी माउस’ कहकर बुलाते थे. हम बात कर रहे हैं सरोजिनी नायडू की. आज उनकी जयंती है.
13 फरवरी, 1979 को हैदराबाद के एक मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी सरोजिनी, जिनके पिता चाहते थे कि वह वैज्ञानिक बनें. लेकिन उनकी दिलचस्पी तो कहानियों और कविताओं में थी. पिता अघोरनाथ चट्टोपाध्याय हैदराबाद के निजाम कॉलेज में केमेस्ट्री के प्रोफेसर थे.
आज सरोजिनी नायडू के जन्मदिन पर आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़े वह तथ्य, जो अपेक्षाकृत कम ज्ञात हैं.
पांच साल की उम्र से कविताओं की ओर रूझान
सरोजिनी की बचपन से ही किस्से-कहानियों में बड़ी दिलचस्पी थी. वह 12 साल की थीं, जब उन्होंने पहला नाटक लिखा. नाम था- "माहेर मुनीर." इस नाटक ने उन्हें खूब ख्याति दिलाई.
16 साल की उम्र में मिली स्कॉलरशिप
यूं तो पिता चाहते थे कि बिटिया विज्ञान पढ़े और वैज्ञानिक बने. लेकिन बिटिया का पहला और आखिरी प्रेम था लिटरेचर. पढ़ने में शुरू से मेधावी और कक्षा में अव्वल आने वाली सरोजिनी 16 साल की थी, जब उसे हैदराबाद के निज़ाम से स्कॉलरशिप मिली. इस स्कॉलरशिप पर वह लंदन के किंग्स कॉलेज पढ़ने गईं. हैदराबाद के निजाम भी उनकी प्रतिभा से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके थे.
पहली मुहब्बत
लंदन में ही सरोजिनी नायडू की मुलाकात पदिपति गोविंदराजुलु नायडू से हुई. तब सरोजिनी कॉलेज में पढ़ ही रही थीं. गोविंदराजुलु पेशे से डॉक्टर थे और ब्राम्हण भी नहीं थे. सरोजिनी को प्यार हो गया और वह उनसे शादी करना चाहती थीं. हालांकि उनके प्रेम के रास्ते में जाति की दीवार भी आई, लेकिन लड़की तो शुरू से ही विद्रोहिणी थी. प्यार के सामने दुनिया के नियमों और बंधनों की क्या मजाल.
सरोजिनी सिर्फ 19 साल की थीं, जब उन्होंने गोविंदराजुलु से विवाह किया. हैदराबाद में यह अपनी तरह का पहला अंतर्जातीय विवाह था, जिसके लेकर शहर में खूब चर्चे और विवाद दोनों हुए. लेकिन दोनों परिवार इस शादी के लिए खुशी-खुशी राजी हो गए थे.
उनकी लंबी और खुशहाल शादीशुदा जिंदगी रही. उनके पांच बच्चे हुए- जयसूर्या, पद्मजा, रणधीर और लीलामन. उनकी बेटी पद्मजा ने भी आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया था.
वीमेंस इंडियन एसोसिएशन (WIA) की स्थापना
सरोजिनी नायडू के राजनीतिक जीवन की शुरुआत वर्ष 1905 में हुई. इसके पहले वह अपनी कविताओं और लेखन के जरिए काफी पॉपुलैरिटी हासिल कर चुकी थीं. उनके लेखन में देश की आजादी और महिलाओं की स्वतंत्रता और बराबरी के स्वर थे.
1906 में उन्होंने इंडियन नेशनल कांग्रेस और कलकत्ता में हुई इंडियन सोशल कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया. उनकी ओजस्वी आवाज और प्रखर बुद्धि के बड़े-बड़े नेता भी कायल हो गए. इसके बाद वह लगातार विभिन्न रूपों में स्वतंत्रता आंदोलन के साथ जुड़ी रहीं. उन्होंने सामाजिक न्याय और महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए काम किया.
1917 में सरोजिनी नायडू ने वीमेंस इंडियन एसोसिएशन (WIA) की स्थापना की. 1925 में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं. उन्होंने नमक सत्याग्रह में भी हिस्सा लिया और जेल भी गईं.
पहला कविता संग्रह
1905 में सरोजिनी नायडू का पहला कविता संग्रह प्रकाशित हुआ. नाम था- 'द गोल्डन थ्रेशहोल्ड.' 1961 में उनकी बेटी पद्मजा नायडू ने उनका दूसरा कविता संग्रह प्रकाशित करवाया, जिसका नाम था 'द फेदर ऑफ द डॉन.'
आजाद भारत की पहली महिला राज्यपाल
सरोजिनी नायडू भारत की पहली महिला राज्यपाल थीं, जो 1947 से लेकर 1949 तक संयुक्त प्रांत आगरा और अवध की राज्यपाल रहीं.
सरोजिनी नायडू की स्मृति और सम्मान में देश में कई बड़े संस्थानों, स्कूल, कॉलेज और अस्पतालों का नाम उनके नाम पर रखा गया है.
आजादी के सिर्फ दो साल बाद 2 मार्च, 1949 को लखनऊ में हार्ट अटैक अरेस्ट के कारण उनका निधन हो गया. वह 70 वर्ष की थीं.
Edited by Manisha Pandey