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आज़ादी के बाद भी क्यों लग गए दो साल राजस्थान राज्य के बनने में

आज़ादी के बाद भी क्यों लग गए दो साल राजस्थान राज्य के बनने में

Thursday March 30, 2023 , 3 min Read

हाइलाइट्स

कुल 19 रियासतों को विलय करके बना था राजस्थान

देश आज़ाद होने के बाद भी लगभग 2 साल लग गए थे राजस्थान को बनने में

राजस्थान शब्द का अर्थ है: 'राजाओं का स्थान' क्योंकि यहां अहीर,गुर्जर, राजपूत, मौर्य, मीणा, जाट ने पहले राज किया था. भारत के संवैधानिक-इतिहास में राजस्थान एक राज्य के रूप में 30 मार्च, 1949 को अस्तित्व में आया. हर साल 30 मार्च को देश में राजस्थान की स्थापना को दर्शाने के लिए ‘राजस्थान दिवस’ (Rajasthan Diwas) मनाया जाता है.


भारत के आधुनिक इतिहास में राजस्तान का निर्माण एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जाती है. ब्रिटिश शासकों द्वारा भारत को आजाद करने की घोषणा करने के बाद जब सत्ता-हस्तांतरण की जब कार्यवाही शुरू की गई, तब राजपूताना के रियासतों के राजाओं ने उनकी रियासत को 'स्वतंत्र राज्य' का दर्जा दिए जाने की मांग की. राजाओं का कहना था कि वे सालों से खुद अपने राज्यों का शासन चलाते आ रहे हैं, उन्हें इसका दीर्घकालीन अनुभव है, इसलिए उनकी रियासत को 'स्वतंत्र राज्य' का दर्जा दे दिया जाए. उस समय वर्तमान राजस्थान में कुल 19 रियासतें, 3 ठिकाने व एक केंद्र शासित प्रदेश था. केन्द्र शासित प्रदेश का नाम अजमेर मेरवाड था, जो सीधे केन्द्र यानि अग्रेजों के अधीन था. बाकी सभी रियासतों पर यहीं के राजाओं का राज था. और इन सब को स्वतन्त्र भारत में विलय करना आसान नहीं था.  


करीब एक दशक की ऊहापोह के बीच 18 मार्च 1948 को शुरू हुई राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया कुल सात चरणों में एक नवंबर 1956 को पूरी हुई. राजस्थान के एकीकरण में कुल 8 साल 7 महीने और 14 दिन लगे. इसमें भारत सरकार के तत्कालीन देशी रियासत और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल और उनके सचिव वी. पी. मेनन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी.

कैसे गठित हुआ राजस्थान?

राजस्थान के गठित होने में आज़ादी के बाद भी दो साल लग गए. यह प्रक्रिया सात चरणों में ही संभव हो पाया.


राजस्थान के निर्माण की दिशा में पहला चरण अलवर, भरतपुर, धौलपुर और करौली नामक रियासतों का विलय करना था. 18 मार्च, 1948 को इनको मिलाकर ‘मत्स्य संघ’ बनाया गया. इसकी राजधानी अलवर रखी गई थी. जब ‘मत्स्य संघ’ बनाया गया तभी विलय-पत्र में लिख दिया गया था कि बाद में इस संघ का 'राजस्थान' में विलय कर दिया जाएगा.


दूसरे चरण में बांसवाड़ा, बुंदी, डूंगरपुर, झालावाड़, किशनगढ़, कोटा, प्रतापगढ़, शाहपुर और टोंक को ‘राजस्थान संघ’ में शामिल किया गया. यह 25 मार्च 1948 को हुआ.


18 अप्रैल, 1948 को तीसरे चरण में उदयपुर रियासत का ‘राजस्थान संघ’ में विलय किया गया और इस नए संघ का नाम पड़ा 'संयुक्त राजस्थान संघ.' चौथे चरण में तत्कालीन भारत सरकार ने अपना ध्यान जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर के रियासतों पर केन्द्रित किया और इसमें सफलता भी हाथ लगी और इन चारों रियासतो का विलय करवाकर तत्कालीन भारत सरकार ने 30 मार्च, 1949 को ‘वृहत्तर राजस्थान संघ’ का निर्माण किया, जिसका उदघाटन भारत सरकार के तत्कालीन रियासती और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया था.


30 मार्च को ही ‘राजस्थान दिवस’ मनाया जाता है. हालांकि अभी कुछ और रियासतों का विलय होना बाकी था, मगर उनका विलय औपचारिक मात्र था क्योंकि जो रियासतें बची थी वे पहले चरण में ही 'मत्स्य संघ' के नाम से स्वतंत्र भारत में विलय हो चुकी थी. अलवर, भतरपुर, धौलपुर व करौली नामक इन रियासतों पर भारत सरकार का ही आधिपत्य था इसलिए इनके राजस्थान में विलय की तो मात्र औपचारिकता ही होनी थी.


पांचवा चरण मई, 1949 में संपन्न हुआ और इस दौरान ‘मत्स्य संघ’ का विलय राजस्थान में किया गया.


26 जनवरी 1950 को छठवें चरण में सिरोही रियासत का विलय भी किया गया और अंतिम यानी सातवां चरण 1 नवंबर, 1956 में हुआ, इस दौरान आबू देलवाड़ा का विलय किया गया. 


Edited by Prerna Bhardwaj