अंतरिक्ष में जाने वाली भारत की पहली लड़की की याद में
हम बात कर रहे हैं कल्पना चावला की. आज कल्पना चावला की पुण्यतिथि है.
1 फरवरी, 2003. इन दिन का इतिहास में दर्ज होना तय था. यूं तो वह दिन था जश्न का. किसी के लौटने के जश्न का, लेकिन अंत तक आते-आते जश्न का वह दिन मातम में बदल गया. इतिहास में दर्ज तो तब भी हुआ.
अंतरिक्ष की सैर को जाने वाली पहली हिंदुस्तानी लड़की उस दिन अंतरिक्ष से धरती पर वापस लौट रही थी. वह लड़की, जिसका बचपन से ही सपना था कि वह एस्ट्रानॉट बनेगी. जो हमेशा कहती थी कि वह जमीन के लिए नहीं, आसमान के लिए बनी है.
लेकिन अंतरिक्ष की यात्रा सफलतापूर्वक पूरी कर ठीक धरती पर लौटने से पहले उनके यान कोलंबिया में कुछ तकनीकी गड़बड़ी आ गई. यान से जैसे ही धरती के वायुमंडल में प्रवेश किया, बाहरी तापमान और गर्मी से यान को प्रोटेक्ट करने वाला सिस्टम खराब हो गया. यान के भीतर अचानक तापमान बहुत ज्यादा बढ़ गया और उसमें आग लग गई.
वह लौटी तो लेकिन जिंदा नहीं लौटी.
हम बात कर रहे हैं कल्पना चावला की. आज कल्पना चावला की पुण्यतिथि है.
17 मार्च, 1962 को हरियाणा के करनाल में जन्मी एक अनोखी लड़की. पिता का नाम था बनारसी लाल चावला. पिता और घरवाले उसे प्यार से मोंटू कहकर बुलाते. चार भाई-बहनों में वह सबसे छोटी थी.
हरियाणा के माहौल के ठीक उलट कल्पना के घर का माहौल ऐसा था कि जहां बेटियों को लेकर बड़े-बड़े सपने बुने जाते. उन्हें उड़ने का आसमान दिया जाता. पिता ने भी अपनी बेटी को लेकर बड़े सपने देखे थे, लेकिन सच तो ये है कि उन सपनों की उड़ान डॉक्टर-इंजीनियर बनने तक ही सीमित थी. पिता ने जितना ऊंचा उड़ने का सपना देखा, उसे कहीं ज्यादा ऊंचे आसमान में उड़ने का ख्वाब कल्पना देख रही थी.
सातवीं क्लास में जब उन्होंने पहली बार अपने पिता से कहा कि वह बड़ी होकर एस्ट्रानॉट बनना चाहती हैं तो पिता पहले तो हंसे. लेकिन उन्होंने एक भी बार इस बात को हंसी में नहीं उड़ाया. उन्होंने पूरी गंभीरता से बेटी की हां में हां मिलाई और कहा, “जरूर बनोगी.”
शुरुआती पढ़ाई करनाल के टैगोर बाल निकेतन से करने के बाद कल्पना ने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से 1982 में ग्रेजुएशन पूरा किया. इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वह अमेरिका चली गईं और 1984 टेक्सस यूनिवर्सिटी से शिक्षा पूरी की. 1995 में वह नासा के साथ जुड़ गईं. 1998 में कल्पना को उनकी पहली उड़ान के लिए चुना गया था.
हालांकि यह मौका भी उन्हें आसानी से नहीं मिला था. वह 1990 से लगातार इसके लिए कोशिश और मेहनत कर रही थीं. 1993 में जब उन्होंने पहली बार अप्लाय किया तो उन्हें रिजेक्ट कर दिया गया था. उनकी कोशिशें जारी रहीं. उनकी लगन और मेहनत से उनके सीनियर भी प्रभावित होने से खुद को रोक नहीं पाए. लेकिन वे जानते थे कि अभी उन्हें और काम करने की जरूरत है और वह लड़की उस काम और मेहनत से पीछे हटने वाली नहीं थी.
साल 1995 में नासा ने अंतरिक्ष यात्री के तौर पर कल्पना चावला को चुन लिया. उसके बाद भी पहली यात्रा के लिए तैयारी करने में उन्हें तीन साल का समय लगा. 1998 में जब कल्पना पहली बार अंतरिक्ष में गईं तो वहां उन्होंने 372 घंटे बिताए. यह घटना भी अपने आप में इतिहास थी. भारत देश से पहली बार कोई लड़की अंतरिक्ष में गई थी. कल्पना का नाम हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज हो चुका था.
साल 2000 में वह दूसरा मौका था, जब उन्हें एक बार फिर अंतरिक्ष में जाने के लिए चुना गया था. इस मिशन की तैयारी भी तीन साल तक चलती रही और आखिरकार 2003 में वह समय आया. तारीख थी 16 जनवरी, साल 2003. कोलंबिया फ्लाइट STS 107 दूसरे अंतरिक्ष मिशन पर जाने के लिए तैयार था. कोलंबिया के अंतरिक्ष में जाने, वहां रुकने से लेकर धरती की कक्षा में लौटने तक का सफर सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद बिलकुल आखिरी क्षणों में यह सुखद कहानी दुखद अंत के साथ खत्म हो गई.
उस दिन कोलंबिया में कुल सात लोग थे. सातों दुनिया को अलविदा कह गए, लेकिन इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो गए.
Edited by Manisha Pandey