इको फ्रेंडली और शरीर को नुकसान न पहुंचाने वाले सैनिटरी पैड्स बनाने वाले दिल्ली के दो युवा
दो दशक पहले जब अरुणाचलम मुरुगनाथम ने अपनी पत्नी और बहनों द्वारा मासिक धर्म के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले कपड़े के लिए एक सस्ता और अच्छा विकल्प खोजने की कोशिश की थी तो उन्हें भी नहीं पता रहा होगा कि एक दिन यह क्रांति का रूप ले लेगा। वाकई में आज भारत में सैनिटरी पैड्स और पीरियड्स पर पर्याप्त रूप से बात होने लगी है और इसका श्रेय अरुणाचलम को भी जाता है। भारत के 'पैडमैन' के नाम से मशहूर अरुणाचलम की वडह से भारत के ग्रामीण परिवेश में महिलाओं को सस्ते और सुरक्षित सैनिटरी पैड आसानी से उपलब्ध हो पाए।
अरुणाचलम की कहानी प्रेरणादायक होने के साथ ही अनुकरणीय भी है। उनसे प्रेरणा लेकर न जाने कितने लोगों ने इस दिशा में काम किए। दिल्ली के दो युवा शाश्वत दिएश और आकिब मोहम्मद ने एक स्टार्टअपप की शुरुआत की है जो महिलाओं को अच्छी क्वॉलिटी के ऑर्गैनिक सैनिटरी पैड्स उपलब्ध कराने दी दिशा में काम कर रहा है। इस स्टार्टअप का नाम है अज़ाह (AZAH).
दिल्ली के इन पैडमेन की कहानी उनके घघर से ही शुरू हुई। शाश्वत ने अपनी बहन के जरिए जाना कि मार्केट में उपलब्ध पैड्स सेमहिलाओं को चक्कते, टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम की समस्या से दो चार होना पड़ता है। इसके साथ ही ये पैड्स कम गुणवत्ता और रासायनिक युक्त होते हैं। यह जानकर शाश्वत हैरान थे। अपनी बहन को हो रही परेशानी से दुखी होकर उन्होंने इसका समाधन खोजने का फैसला कर लिया।
जब उन्होंने अपने दोस्त अकीब मोहम्मद से इस बारे में बात की, तो अकीब ने भी अपने जानने वाली महिलाओं - बहनों और दोस्तों से बात की। उन महिलाओं ने भी इसी तरह की चिंता जाहिर की। इसके बाद आकिब और शाश्वत दोनों ने मिलकर इसका समाधान खोजने का फैसला किया। दोनों ने मई 2018 में इस पर काम करना शुरू किया। दिलचस्प बात ये थी कि दोनों ने अरुणाचलम की कहानी पर बनी फिल्म पैडमैन से प्रेरणा ली थी।
सबसे पहले, अकीब और शशवत ने बाजार में उपलब्ध उत्पादों की उपयोगिता को समझा था और यह पता लगाने की कोशिश की कि चकत्ते, खुजली जैसी समस्याओं के पीछे कौन सी चीज जिम्मेदार थी। उन्होंने प्रतिक्रिया पाने के लिए 300 महिलाओं के बीच एक सर्वेक्षण किया। इनमें से 60 प्रतिशत महिलाओं ने माना कि बाजार में मौजूद पॉप्युलर सैनिटरी पैड्स से इस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। दोनों ने त्वचा रोग-संबंधी समस्याओं की पहचान करने के लिए स्त्री रोग विशेषज्ञों और अन्य विशेषज्ञों से भी बात की। तब जाकर कहीं उन्हें समझ आया कि इसके पीछे क्या वजहें हो सकती हैं।
शाश्वत और आकिब ने अपने बचाए हुए करीब 18 लाख रुपयों से नवंबर 2018 में अज़ाह (AZAH) की शुरुआत की। अजाह नाम रखने के पीछे वजह के बारे में बात करते हुए आकिब बताते हैं कि यह हिब्रू भाषा का एक शब्द है जिसका मतलब होता है- मजबूत और तेज तर्रार लड़की। सिर्फ तीन महीने में ही उन्होंने सैनिटरी पैड्स की 1,00,000 लाख यूनिट्स बेच दीं। बीते दो माह में 80,000 यूनिट्स बिकी हैं। अज़ाह 12, 15 और 30 पैड्स के बॉक्स में आता है।
सशक्तिकरण के लिए उद्यमिता
आरवी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से बी टेक करने वाले शाश्वत ने ओला से अपने करियर की शुरुआत की थी। वे ओला के पहले 100 कर्मचारियों में से एक थे। अपने 2.5 साल के कार्यकाल में ओला का रेवेन्यू 10,000 से 50,000 रुपये प्रतिदिन तक बढ़ाने में मदद की थी। उन्होंने ओला में काम करते हुए कई प्रॉडक्ट लॉन्च किए थे। बाद में उन्होंने स्नैपडील के साथ नौकरी शुरू की जहां उनकी मुलाकात आईआईटी रुड़की से पढ़े आकिब से हुई। आकिब स्नैपडील में कस्टमर टू कस्टमर प्लेटफॉर्म पर काम कर रहे थे।
इसके साथ ही आकिब अपने खुद के स्टार्टअप Xolvr पर भी काम कर रहे थे, यह एक तरह का ऑनलाइन एजुकेशन मार्केटप्लेस था जिसे बाद में एडटेक कंपनी नेक्स्ट एजुकेशन इंडिया द्वारा अधिग्रहीत कर लिया। इसके बाद उन्होंने आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के कुछ स्टार्टअप्स के साथ काम किया। वहीं शाश्वत के पास बिजनेस स्ट्रैटिजी और योजना में काफी अनुभव था। आकिब कहते हैं कि कुछ काम करके आपको बेहद संतुष्टि होती है, वे ऐसी ही कुछ करना चाहते थे।
अज़ाह ने सबसे पहले अल्ट्रा सॉफ्ट ऑर्गैनिक सैनिटरी पैड मार्केट में उतारा। यह शहरी उपभोक्ताओं को ध्यान में रखकर बनाया गया था। यह पैड केमिकल फ्री है और पूरी तरह से इको फ्रेंडली होते हैं। इसके नीचे वाली परत को छोड़कर पूरा पैड कॉटन या फिर पेपर की होती है। अज़ाह का दावा है कि यह अपने वजन से हजार गुना पानी अवशोषित कर सकता है और इसमें हानिकारक तत्व जैसे क्लोरीन, डाईऑक्सिन और कृत्रिम सुगंध नहीं होते हैं। यह एफडीए द्वारा अनुमोदित भी है। इसके इस्तेमाल से चकत्ते और खुजली की समस्या से निजात पाई जा सकती है।
ये पैड्स रेग्युलर और XL साइज में उपलब्ध हैं। ये दोनों साइज एक ही पैक में भी उपलब्ध हैं। इन्हें ऑनलाइन प्लेटफॉर्म जैसे एमेजन या फिर अज़ाह की वेबसाइट पर जाकर भी खरीदा जा सकता है। आकिब बताते हैं कि अभी तक उन्होंने 2,000 पिन कोड्स तक इन प्रॉडक्ट को डिलिवर किया है। यानी कि मेट्रो शहरों के बाहर ये प्रॉडक्ट्स 30 फीसदी पहुंच चुके हैं।
औसतन एक पैड पर 10-12 रुपये खर्च होते हैं और इनकी कीमत 20 रुपये प्रति पैड होती है। अज़ाह का ध्यान बड़े शहरों की 25 से 40 साल की उम्र वाली आबादी पर है। हालांकि मेन्स्ट्रुअल कप का प्रचलन भी बढ़ रहा है और काफी संख्या में लोग इसकी तरफ आकर्षित हो रहे हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कप का इस्तेमाल नहीं करना चाहते। आकिब कहते हैं कि ऐसे लोगों की तरफ ही उनका ध्यान है।
अभी फिलहाल अज़ाह के पैड्स चीन और दक्षिण कोरिया में बनते हैं, जिनके लिए कच्चा माल जर्मनी और जापान से आता है। आकिब कहते हैं, 'हम चाहते हैं कि ये पैड्स भारत में ही बनें, लेकिन अभी भारत में अच्छी क्वॉलिटी का कच्चा माल उपलब्ध नहीं है।' अज़ाह का दावा है कि उन्हें अभी तक सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है। वे कहते हैं, 'हम इसे खुद से अनुभव नहीं कर सकते इसलिए लोगों द्वारा आने वाली प्रतिक्रियाएं बहुत महत्वपूर्ण हैं। प्रतिक्रिया के मुताबिक ही हमने कई बदलाव किए हैं और अपने प्रॉडक्ट में सुधार किया है।'
आकिब का दावा है कि 80 से 90 फीसदी ग्राहक फिर से उनके सैनिटरी पैड्स खरीदते हैं। वे कहते हैं, 'हम अगले 12 महीनों तक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर अपना ध्यान केंद्रित करेंगे। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर तेजी से प्रतिक्रियाएं मिलती हैं, इसलिए हम बाद में ऑफलाइन पर फोकस करेंगे।' यह स्टार्टअप फंडिंग के लिए एंजेल इन्वेस्टर्स की तरफ देख रहा है ताकि सप्लाई चेन मैनेजमेंट और मार्केटिंग पर और अधिक ध्यान केंद्रित किया जा सके। अज़ाह सैनिटरी पैड्स के अलावा भी महिलाओं के लिए कई प्रॉडक्ट्स बनाना चाहता है।
आकिब कहते हैं, 'हमारे पैड्स अभी 100 फीसदी बायो डिग्रेडेबल नहीं हैं, क्योंकि नीचे की परत में प्लास्टिक होती है, लेकिन हम इस पर काम कर रहे हैं।' अज़ाह की टीम 50 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रही है। बीते मार्च महीने में इसने 10 लाख रुपये का राजस्व जुटाया। हालांकि अभी उनका ध्यान फायदे की जगह विस्तार पर है, फिर भी आकिब कहते हैं कि ये कोई मुश्किल की बात नहीं है। वे कहते हैं कि एक बार 50 से 60 हजार ग्राहक प्रति माह हो जाए तो रफ्तार मिल जाएगी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, 2018 में भारत में 35.5 करोड़ मासिक धर्म वाली महिलाएं थीं। मार्केट रिसर्च फर्म IMARC ग्रुप की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय सैनिटरी नैपकिन बाजार का कारोबार 2018 में 51 करोड़ डॉलर था। इसलिए अज़ाह और उसके जैसे स्टार्टअप्स का भविष्य अच्छा कहा जा सकता है।
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