सरकार नौकरियां पैदा करने के लिए उद्योग संचालित स्टार्टअप्स को बढ़ावा देगी: जितेंद्र सिंह
केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि सरकार धन और रोजगार सृजित करने के लिए उद्योग संचालित स्टार्टअप्स को बढ़ावा देगी.
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी, एनआईआई, दिल्ली में मुख्य अतिथि के रूप में जैव प्रौद्योगिकी विभाग के 37वें स्थापना दिवस को संबोधित करते हुए, डॉ. जितेंद्र सिंह ने स्टार्टअप्स बूम को बरकरार रखने के लिए उद्योग द्वारा समान साझेदारी और जिम्मेदारी के साथ समान हिस्सेदारी करने का आह्वान किया.
उन्होंने कहा कि यदि उद्योग शुरू से ही थीम/विषय/उत्पाद की पहचान करेगा और सरकार के साथ समानता का निवेश करेगा, तो स्टार्ट-अप्स टिकाऊ हो जाएंगे. उन्होंने यह आश्वासन भी दिया कि देश में "नवाचार इको-सिस्टम" को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार के तहत धन की कमी नहीं रहेगी.
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आत्म-निर्भर भारत का विचार का उदाहरण दिया, जहां भारत की वैक्सीन रणनीति फार्मा, उद्योग और शिक्षा जगत को वर्तमान के साथ-साथ संभावित भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए साझेदारी में एक साथ आयी है. इस तरह की पहल के पीछे दीर्घावधि में एक स्थायी साझेदारी करना और भारत के युवाओं को आजीविका का एक स्थायी स्रोत प्रदान करना शामिल है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार हर संभव सहायता प्रदान करके औद्योगिक पहुंच को प्रोत्साहित कर रही है.
उन्होंने यह भी बताया कि पिछले साल बायोटेक शोधकर्ताओं और स्टार्ट-अप्स के लिए एकल राष्ट्रीय पोर्टल "बायोआरआरएपी" लॉन्च किया था और देश में जैविक अनुसंधान और विकास गतिविधियों के लिए विनियामक अनुमोदन चाहने वाले सभी लोगों की मांग पूरा करने के लिए एक प्रकार से "ईज ऑफ साइंस के साथ-साथ ईज ऑफ बिजनेस" के लिए एक बड़ी राहत देने की पेशकश की थी. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत ‘ग्लोबल बायो-मैन्युफैक्चरिंग हब’ बनने की ओर अग्रसर है और वर्ष 2025 तक यह दुनिया के शीर्ष 5 देशों में शामिल हो जाएगा.
डॉ. जितेंद्र सिंह ने भारत के अपने मालक्यूल के विकास का समर्थन किया और कहा कि भारतीय समस्याओं के लिए, भारतीय उपचारों को तैयार किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि जैव प्रौद्योगिकी कल की तकनीक है क्योंकि आईटी पहले ही अपने सर्वोच्च बिंदु पर पहुंच चुकी है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बायोटेक अमृत काल अर्थव्यवस्था की कुंजी होगी और भारत को विश्व में एक अग्रणी राष्ट्र बनाने में भी मदद करेगी.
डॉ. जितेंद्र सिंह ने दोहराया कि प्रधानमंत्री श्री मोदी के नेतृत्व में पिछले आठ वर्षों में भारत की जैव-अर्थव्यवस्था जो 2014 में 10 बिलियन डॉलर थी 2022 में बढ़कर 80 बिलियन डॉलर से अधिक हो गई. इसी प्रकार बायोटेक स्टार्टअप्स जो 2014 में 52 थे 2022 में 100 गुना बढ़कर 5300 से अधिक हो गए हैं. उन्होंने कहा कि 2021 में प्रतिदिन 3 बायोटेक स्टार्टअप्स शामिल हो रहे हैं और 2021 में ही 1,128 बायोटेक स्टार्टअप्स स्थापित किए गए जो भारत में इस क्षेत्र के तेजी से हो रहे विकास का संकेत देते हैं.
डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि भारत में जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र का पिछले तीन दशकों में काफी विकास हुआ है और इसने स्वास्थ्य, चिकित्सा, कृषि, उद्योग और जैव-सूचना विज्ञान सहित विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, क्योंकि इसे सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों से ही इस भारी समर्थन मिला है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र ने पिछले 9 वर्षों में बहुत तेजी से विकास किया है और अब भारत दुनिया के शीर्ष 12 जैव प्रौद्योगिकी देशों में शामिल हो गया है. उन्होंने कहा कि जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान, नवाचार और उद्यमिता में भारत को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने और आशाजनक भविष्य का मार्ग प्रशस्त करने के लिए वर्ष 2014 से पहले की तुलना में इस क्षेत्र को तीन गुना से अधिक धनराशि उपलब्ध कराई गई है.
जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डॉ. राजेश गोखले ने अपने संबोधन में कहा कि भारत को इस क्षेत्र में प्रासंगिक बने रहने के लिए 21वीं सदी की मूलभूत तकनीकियों के साथ आगे बढ़ना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि भारत सरकार विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार के माध्यम से अन्य बातों के अलावा, भारत को दुनिया की शीर्ष पांच वैज्ञानिक शक्तियों में शामिल करने की इच्छा रखता है और यह विभाग वैज्ञानिक अनुसंधान को सहायता प्रदान करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है. उन्होंने कहा कि डीबीटी देश में जैव प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने वाली एक नोडल एजेंसी है जो बुनियादी, अग्रिम और बाद में ट्रांसलेशनल अनुसंधान और उद्यमिता तथा जैव प्रौद्योगिकी के सभी क्षेत्रों की नीतियां और दिशा निर्देश का निर्माण करने के लिए एक मजबूत इको सिस्टम के सृजन द्वारा जैव प्रौद्योगिकी को पोषित करती है. यह विभाग अनुसंधान, नवाचार और प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के लिए लगातार काम कर रहा है, जिससे उत्पाद विकास, क्षमता निर्माण, मानव संसाधन और बुनियादी ढांचा दोनों के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय भागीदारी को भी बढ़ावा देता है.
स्थापना दिवस पर व्याख्यान देते हुए प्रो. ऋषिकेश टी कृष्णन निदेशक भारतीय प्रबंधन संस्थान बेंगलुरु ने कहा कि जैव प्रौद्योगिकी विभाग भारत सरकार का ऐसा एकमात्र विभाग है जिसे अंतिम उत्पाद के विकास के लिए विचार से लेकर अंतिम दृष्टिकोण प्राप्त है. उन्होंने यह भी कहा कि यह बायोटेक या गेहूं की आईआर-8 किस्म थी, जो हरित क्रांति के लिए जिम्मेदार थी. इस प्रकार यह कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दे रही थी, क्योंकि इसकी उपज सामान्य बीज की तुलना में प्रति हेक्टेयर 3 से 4 गुना अधिक थी.
प्रो. के विजयराघवन ने अपने संबोधन में कहा कि एक समय था जब यह खतरा था कि डीबीटी को किण्वन प्रौद्योगिकी के लिए गलत माना जा सकता था, लेकिन डॉ रामचंद्रन के प्रयासों के लिए हम धन्यवाद देते हैं कि यह एक अलग विशेष विधा और विभाग के रूप में विकसित हुई है. उन्होंने कहा कि डिजिटल प्रौद्योगिकी के साथ जैव प्रौद्योगिकी का जुड़ाव इस क्षेत्र के लिए विकास का मार्ग प्रशस्त करेगा.
डॉ. अलका शर्मा, वरिष्ठ सलाहकार, डीबीटी और एमडी, बीआईआरएसी (बायोटेक्नोलॉजी इंडस्ट्री रिसर्च असिस्टेंस काउंसिल) ने अपने स्वागत संबोधन में कहा कि डीबीटी ने देश में 15 विषय-आधारित स्वायत्त संस्थानों की स्थापना की है. उन्होंने यह भी बताया कि बायोलॉजिकल के निर्माण और स्टार्टअप्स नवाचार इकोसिस्टम को बढ़ावा देने और प्रेषित करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय संस्था अर्थात् नई दिल्ली सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी और दो सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम बीआईबीसीओएल और बीआईआरएसी भी स्थापित किए गए हैं.
विभाग ने जैव प्रौद्योगिकी के सभी विविध पहलुओं को मजबूत करने में योगदान दिया है. प्रमुख क्षेत्रों में कुछ प्रमुख उपलब्धियां इस प्रकार हैं: 1. प्रशासन में आसान-नीति सुधारों में जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान और नवाचार परिषद (ब्रिक) विभाग अपने 14 स्वायत्त संस्थानों को एक सर्वोच्च स्वायत्त निकाय बनाने के लिए शामिल कर रहा है. स्वस्थ भारत के लिए टीके, आत्मनिर्भर भारत 3.0 के तहत रुपये का विशेष अनुदान. कोविड-19 के ईलाज के लिए टीकों के विकास की दिशा में मिशन कोविड सुरक्षा के कार्यान्वयन विभाग को 900 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे. क्षेत्रीय उपलब्धियों में शामिल हैं (ए) जीनोमिक सीक्वेंसिंग - बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च एंड इनोवेशन काउंसिल (बीआरआईसी) एनजी फॉर ट्रैकिंग पैथोजेन्स, (बी) चिकित्सीय उपाय, (सी) विनियामक सुधारों में कानून लागू करने वाली एजेंसियों, मेडिको-लीगल एप्लिकेशन और गुणवत्ता परीक्षण के लिए जैविक अनुसंधान विनियामक अनुमोदन पोर्टल (बायोआरआरएपी) - "वन नेशन वन पोर्टल", बायोटेक-किसान, (~100/वर्ष) शामिल हैं. सीडीएफडी दुर्लभ आनुवंशिक विकारों सहित विभिन्न आनुवंशिक विकारों के लिए नैदानिक सेवाएं प्रदान करता है जो आईडीबीटी-सेंटर फॉर डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक्स (सीडीएफडी) को डीएनए फिंगरप्रिंटिंग सेवाएं प्रदान करने में मदद करता है.
Edited by रविकांत पारीक