'वेस्ट टू वेल्थ' भारत में स्टार्टअप्स के लिए एक नए अवसर के रूप में उभर रहा है: डॉ. जितेंद्र सिंह
केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने शनिवार को जम्मू में कहा कि 'अपशिष्ट से सम्पदा (Waste to Wealth) भारत में स्टार्टअप्स के लिए एक नए अवसर के रूप में उभर रहा है.
सिंह 'एक काम देश के नाम' कार्यक्रम के तहत आयोजित 'अपशिष्ट से सम्पदा' पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे. इसमें केरल से हरियाणा और गुजरात से लेकर ओडिशा तक, पूरे भारत के उद्योग जगत के नेताओं को स्टार्टअप्स के लिए व्यवसाय, आजीविका और नए अवसर पैदा करने के लिए अपशिष्ट को सम्पदा में रूपांतरित करने के लिए नवीनतम तकनीकों का उपयोग करने में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के लिए सम्मानित किया गया. आयोजन दल का नेतृत्व दिल्ली भाजपा के उपाध्यक्ष राजीव बब्बर, पूर्व वरिष्ठ सेवानिवृत्त नौकरशाहों, वैज्ञानिकों और कार्यकर्ताओं के एक समूह ने किया.
डॉ. जितेंद्र सिंह ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अमृत काल के संदर्भ को दोहराते हुए कहा कि अगले 25 वर्षों में भारत की अर्थव्यवस्था में अचानक उछाल आएगा और यह उन संसाधनों के उपयोग के माध्यम से होगा जो या तो अतीत में अनदेखे रह गए हैं अथवा जिनका अपशिष्ट उत्पादों के पुन: उपयोग के लिए तब प्रौद्योगिकी की अनुपलब्धता के कारण उपयोग नहीं किया जा सका है.
अपने स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में प्रधानमंत्री के 'स्वच्छता' के आह्वान और जलवायु संबंधी चिंताओं से संबंधित सभी अंतरराष्ट्रीय अभियानों में श्री मोदी की अग्रणी भूमिका का उल्लेख करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि अपशिष्ट से सम्पदा बनाने की प्रक्रिया न केवल पर्यावरण को स्वच्छ रखने के दोहरे उद्देश्य को पूरा करती है बल्कि उन तत्वों से भी धन भी सृजित करती है जो अन्यथा पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं. गांधी जयंती के अवसर पर पिछले साल अक्टूबर में आयोजित स्वच्छता अभियान के दौरान हुई आय के बारे में उन्होंने एक दिलचस्प खुलासा कियाI उस समय नई दिल्ली में भारत सरकार के कार्यालयों की सफाई और बाद वहां से हटाए गए बेकार मोबाइल फ़ोनों, कंप्यूटरों आदि से निकले इलेक्ट्रॉनिक स्क्रैप के निपटान से 62 करोड़ रूपये से अधिक का राजस्व तब हुआ था जब उसे बाजार में ले जाया गया.
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि ऐसे कई अपशिष्ट उत्पादों के बारे में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है जो बिना अधिक प्रयास के आय उत्पन्न कर सकते हैं और इस संबंध में उन्होंने रसोई से खाना बनाने के बाद बच जले तेल के उपयोग का उल्लेख किया जिसे उन उद्योगों को लगभग 20 रुपये प्रति लीटर की दर से बेचा जा सकता है जिनके पास इसे वैकल्पिक ईंधन में बदलने की तकनीक है. इसी तरह उन्होंने कोयले के दहन से उत्पन्न फ्लाई ऐश का उल्लेख किया, जिसका उपयोग भवन निर्माण आदि के लिए ईंट बनाने के लिए किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि ये सभी अपशिष्ट उत्पादों के इष्टतम उपयोग के माध्यम से आजीविका के नए संसाधन थे.
डॉ. जितेंद्र सिंह ने सतत स्टार्टअप सुनिश्चित करने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान के साथ उद्योग के घनिष्ठ एकीकरण पर जोर दिया. उन्होंने आज इस कार्यक्रम के माध्यम से किए गए उन प्रयासों की सराहना की जिसमें उद्योग के प्रतिनिधियों के साथ-साथ वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR), विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के वरिष्ठ वैज्ञानिकों के साथ-साथ युवा छात्रों और संभावित स्टार्टअप्स ने भाग लिया.