अनाथ बच्चों की जिंदगी संवार रहा शिल्पी पाहवा का अंदाज-ए-लखनऊ फाउंडेशन
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 'अंदाज-ए-लखनऊ' की फाउंडर डाइरेक्टर शिल्पी पाहवा का अनोखा मिशन है, स्वावलंबी होने के लिए अनाथालयों के बच्चों की प्रतिभाएं निखारना, उनके सामूहिक बर्थडे सेलिब्रेट करते हुए उनका सुख-दुख साझा करना और सांस्कृतिक मंचों के माध्यम से उन्हे समाज की मुख्य धारा से जोड़ना।
एसओएस चिल्ड्रेन्स विलेजेज की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हमारे देश में 18 वर्ष से कम आयुवर्ग के बच्चों की कुल 41 प्रतिशत आबादी में से चार फीसद से ज्यादा अनाथ हैं, जिनकी संख्या लगभग 2,0000000 है। उनमें एक करोड़ से अधिक अनाथ बच्चे तो सड़कों पर दिन बिता रहे हैं। ऐसे बच्चों की जिंदगी संवरनी तो दूर, उन्हे तस्करी, यौन-वृत्तियों, नशा माफिया के कारोबारों में इस्तेमाल किया जा रहा है। आजादी के पिछले छह दशकों में दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के लिए यह कितनी शर्म की बात हो सकती है कि हजारो मानवाधिकार संगठन, सैकड़ों सरकारी एजेंसियों के तामझाम, करोड़ो कवि-लेखकों, बुद्धिजीवियों की मौजूदगी में यह सब हो रहा है।
पिछले कुछ वर्षों से अनाथालयों में दिन बसर कर रहे ऐसे बच्चों के साथ अपनी संतानों के जन्मदिन मनाने का एक उदारवादी रुख सामने आया है। पिछले साल बिहार की सासाराम कोर्ट में पदस्थापित एक सिविल जज दिलीप कुमार ने भी अपनी दो वर्षीय बेटी दीपांशी को लेकर वहां के डिहरी बालगृह के बच्चों के साथ उसका जन्म दिन मनाया।
कैसी विडंबना है कि अनाथालयों के ऐसे ज्यादातर बच्चों को खुद के जन्मदिन का तो पता नहीं होता लेकिन ऐसे अवसर उन्हे कुछ एक घंटों के लिए बाकी दुनिया की खुशियों से जोड़ लेते हैं। अब यूपी की राजधानी में 'अंदाज-ए-लखनऊ' की निरालानगर निवासी संचालिका शिल्पी पाहवा विगत चार वर्षों से ऐसे बच्चों को समाज से जोड़ने, उनका दुख-सुख साझा करने के साथ ही उनकी प्रतिभा निखारने में जुटी हुई हैं। इतना ही नहीं, लोगों की मदद से वह उन बच्चों की जरूरी आवश्यकताएं भी पूरी करने का हर संभव प्रयास कर रही हैं।
'अंदाज-ए-लखनऊ' फाउंडेशन की डायरेक्टर शिल्पी पाहवा कहती हैं कि हर इंसान के जीवन में उसका जन्मदिन खास होता है, जिसका उसे बेसब्री से इंतजार रहता है। बच्चों के लिए तो खुशी का यह अवसर और भी यादगार होता है लेकिन अनाथालयों में पल रहे बच्चे अपना जन्मदिन कब और कैसे मनाएं, यह सवाल हमारी सामाजिक जड़ता के हवाले है। उन बच्चों की चिंता कौन करे। वे इस खुशी से हमेशा महरूम रह जाते हैं।
इसीलिए वह पिछले कुछ वर्षों से इन अनाथ बच्चों के जन्मदिन मना रही हैं। शिल्पी पाहवा का खास जोर उन बच्चों के सिर्फ जन्मदिन मनाना नहीं, बल्कि अपने पैरों पर खड़े होने के लिए उनकी प्रतिभाएं निखारना है। वह लगातार राजधानी के अनाथालयों में पल रहे बच्चों की एजुकेशन के लिए काम कर रही हैं। शिल्पी इस कार्यक्षेत्र में पहली बार वर्ष 2005 में 'सुप्रयास' संस्था की ट्रेनर के रूप में जुड़ी थीं। वह शहर की गरीब लड़कियों को ब्यूटीशियन का कोर्स कराने लगीं। जब उन लड़कियों को रोजगार मिलने लगा तो उन्होंने सोचा कि अब क्यों न ऐसे बच्चे-बच्चियों की जिंदगी संवारने को अपना मिशन बना लें। हुआ भी वही। उनकी कोशिखों से 'अंदाज-ए-लखनऊ' संस्था का जन्म हुआ। वह अनाथ बच्चों को मंच मुहैया कराने लगीं। उनके पति भी इस काम में सहयोग करने लगे। अब तो उनकी संस्था के साथ शहर के काफी नागरिक शिरकत करने लगे हैं।
शिल्पी बताती हैं कि उनकी कोशिश अब रंग लाने लगी है। लोग अनाथालयों के बच्चों और कर्मचारियों को अक्सर खाना-नाश्ता के साथ उनकी जरुरत की चीजें जूते, मोजे, तौलिया, साबुन्, टूथब्रुश्, तेल आदि दे जाते हैं। शिल्पी बताती हैं कि पिछले साल उन्होंने लखनऊ के अलीगंज स्थिति श्री राम औद्योगिक अनाथालय में सभी बच्चों का जन्मदिन किताब-कॉपी आदि पाठ्य सामग्री, चॉकलेट, चिप्स, बिस्किट के साथ सेलिब्रेट किया। उन मासूमों ने धूमधाम से केक काटकर खुशियां मनाईं।
उससे पहले वर्ष 2017 में उन्होंने बुद्धा रिसर्च सेंटर, गोमतीनगर में अनाथ बच्चों को सांस्कृतिक मंच से प्रस्तुत किया। उन बच्चों ने अपनी प्रस्तुतियों से लोगों को अपने आसपास की जनसमस्याओं पर सोचने के लिए मजबूर कर दिया। उनकी गीत प्रस्तुति 'इस शहर का हर शख्स परेशान सा क्यों है' सुनकर लोग उनकी प्रतिभा पर मंत्रमुग्ध हो उठे। कार्यक्रम में आशा ज्योति, चेतना और निर्वाण के 60 अनाथ बच्चों ने तालियां बटोरीं।