अमेरिका को मिली GDP से जुड़ी गुड न्यूज, तो क्या अब नहीं आएगी मंदी? यहां समझिए
पिछली दो तिमाही में अमेरिका की जीडीपी निगेटिव रही है. अब तीसरी तिमाही में जीडीपी पॉजिटिव हो गई है. तो क्या अब अमेरिका में मंदी नहीं आएगी या अभी भी कुछ चिंताए हैं?
Friday October 28, 2022 , null min Read
ग्लोबल मंदी (Global Recession) की आहट के बीच अमेरिका की दहलीज पर एक बड़ी खुशखबरी ने दस्तक दी है. ताजा आंकड़ों के अनुसार तीसरी तिमाही में अमेरिकी की जीडीपी (US GDP) की रफ्तार 2.6 फीसदी रही है. यह आंकड़े इसलिए अमेरिका के लिए अच्छे हैं, क्योंकि पिछली दो तिमाही में अमेरिका की इकनॉमी की ग्रोथ रेट निगेटिव रही थी. बता दें कि अमूमन उस देश को मंदी का शिकार माना जाता है, जिसकी जीडीपी दो बार लगातार निगेटिव रहती है. लोग भी यही मानने लगे थे कि अमेरिका में मंदी ने दस्तक दे दी है. इस तिमाही में आंकड़े पॉजिटिव होने के चलते अब ये भी अनुमान लगाया जाने लगा है कि क्या अमेरिका मंदी से उबरने लगा है? क्या अब अमेरिका में महामंदी नहीं आएगी? क्या इससे ग्लोबल मंदी टल सकती है?
ब्यूरो इकनॉमिक एनालिसिस के अनुसार जीडीपी के आंकड़े दिखाते हैं कि अमेरिका के एक्सपोर्ट में इजाफा हुआ है. इतना ही नहीं, कंज्यूमर स्पेंडिंग बढ़ी है और नॉन रेसिडेंशियल फिक्स्ड इन्वेस्टमेंट भी पहले की तुलना में बेहतर हुआ है. इसके अलावा फेडरल गवर्नमेंट और स्टेट गवर्नमेंट के खर्चों में भी इजाफा देखने को मिला है. इन दिनों पूरी दुनिया ग्लोबल मंदी की आहट से डरी हुई है, जबकि अमेरिका की जीडीपी के आंकड़े राहत देने वाले हैं.
तो क्या अब ग्लोबल मंदी नहीं आएगी?
अमेरिका में तीसरी तिमाही के नतीजों ने ये तो साफ कर दिया है कि वहां अभी मंदी नहीं है. हालांकि, इससे ये नहीं कहा जा सकता है कि ग्लोबल मंदी टल गई है. दरअसल अमेरिका की जीडीपी में तेजी का पूरा क्रेडिट जाता है अमेरिका के व्यापार घाटे में आई गिरावट को. इसी की वजह से जीडीपी में थोड़ा सुधार देखने को मिल रहा है, लेकिन कंज्यूमर डिमांड अभी भी बहुत कमजोर है. इसकी वजह है ऊंचीं दरें, फेडरल रिजर्व ने पिछले कुछ महीनों में कई बार दरें बढ़ाई हैं. फेड रिजर्व ने तो यहां तक कहा है कि महंगाई का दौर 2023 के अंत तक जारी रह सकता है और उसकी तरफ से दरों को बढ़ाते-बढ़ाते 9 फीसदी तक किया जा सकता है. अमेरिका में मार्च 2022 में ब्याज दरें जीरो के करीब थीं, जो अब बढ़कर 3 से 3.25 फीसदी तक पहुंच चुकी हैं.
ऊंची ब्याज दरों की वजह से एक तो चीजें महंगी हो गई हैं दूसरी लोगों की पर्चेजिंग पावर घर गई है. तगड़ी महंगाई की वजह से डिमांड बहुत ज्यादा कमजोर है. ऐसे में तमाम अर्थशास्त्री अमेरिकी की जीडीपी में आई तेजी से ज्यादा उत्साहित नहीं हैं. महंगाई को काबू में रखने के लिए फेड रिजर्व के लिए ब्याज दरें बढ़ाना जरूरी है, लेकिन उसका बुरा असर ये हो रहा है कि लोगों ने सामान खरीदना कम कर दिया है, जिससे मंदी की आशंका अभी भी बनी हुई है. 1 और 2 नवंबर को फिर से अमेरिकी फेड की बैठक होनी है. डर है कि इसमें फिर से फेडरल रिजर्व ब्याज दरें बढ़ाएगा, जिसे लेकर चिंताएं जारी हैं.
भारत पर मंदी का कितना होगा असर
जब कभी दुनिया मंदी की शिकार होती है तो उसका असर भारत पर भी होता ही है. अगर अमेरिका में मंदी आएगी तो उसका भारत पर तगड़ा असर देखने को मिलेगा. हालांकि, अमेरिका में मंदी जितनी जल्दी आकर खत्म होगी, भारत के लिए उतना ही अच्छा है. ये मंदी का दौर जितना लंबा खिंचेगा, रुपया उतना ही टूटेगा और भारत को उतना ही ज्यादा नुकसान होगा.
एक बार ये भी समझ लीजिए कि जीडीपी होती क्या है
जीडीपी यानी ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट किसी भी देश में उत्पादन की जाने वाले सभी प्रोडक्ट और सेवाओं का मूल्य होता है, जिन्हें किसी के द्वारा खरीदा जाता है. इसमें रक्षा और शिक्षा में सरकार की तरफ से दी जाने वाली सेवाओं के मूल्य को भी जोड़ते हैं, भले ही उन्हें बाजार में नहीं बेचा जाए. यानी अगर कोई शख्स कोई प्रोडक्ट बनाकर उसे बाजार में बेचता है तो जीडीपी में उसका योगदान गिना जाएगा. वहीं अगर वह शख्स प्रोडक्ट बनाकर उसे ना बेचे और खुद ही इस्तेमाल कर ले तो उसे जीडीपी में नहीं गिना जाएगा. जानकारी के लिए बता दें कि कालाबाजारी और तस्करी जैसी चीजों की भी गणना जीडीपी में नहीं होती.
जीडीपी से दिखती है देश की अर्थव्यवस्था
अगर किसी देश की जीडीपी बढ़ रही है, मतलब उस देश की अर्थव्यवस्था बढ़ रही है. जीडीपी की गणना के वक्त महंगाई पर भी नजर रखी जाती है. इससे सुनिश्चित होता है कि बढ़ोतरी असर में उत्पादन बढ़ने से हुए है, ना कि कीमतें बढने से. जीडीपी बढने का मतलब है कि आर्थिक गतिविधियां बढ़ गई हैं. ये दिखाता है कि रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं.
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