Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

कैसे हिमालय में हो रही अवैध वन्यजीव तस्करी का पता लगाने में मदद कर रही है सिटीजन साइंस

वन्य जीवों की स्थिति और उनके अवैध तस्करी व्यापार संबंधी जानकारी के लिए नागरिक रिपोर्टिंग महत्वपूर्ण डेटा हासिल करा सकता है और अवैध रूप से वन्यजीव की तस्करी की रोक में मदद मिल सकती है. ऐसे बहुत से नागरिक/सिटीजन एप्स मौजूद हैं, इनमे से कुछ एक वैज्ञानिक संस्थानों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं.

कैसे हिमालय में हो रही अवैध वन्यजीव तस्करी का पता लगाने में मदद कर रही है सिटीजन साइंस

Tuesday June 28, 2022 , 11 min Read

नए आंकड़ों के अनुसार ऐसे सिटीजन एप्स जो आमतौर पर स्मार्टफोन की मदद से बासिन्दों का डेटा एकत्र करने में मदद करते है, सूचना के फासले को कम करने और जैव विविधता से समृद्ध हिमालय में अवैध वन्यजीव तस्करी को पता लगाने में मदद कर सकते हैं.

हिमालयी राज्य उत्तराखंड के कुमाऊं विश्वविद्यालय और सिडनी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की ट्रीज, फारेस्ट एंड पीपल नामक जर्नल में छपी एक रिपोर्ट बताती है कि नागरिक रिपोर्टिंग उपकरण में निवेश करने से प्रजातियों की स्थित और उनके वाणिज्यक उत्पादों के व्यापार से महत्वपूर्ण डेटा हासिल करने में मदद मिल सकती है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि पारिस्थितिक रूप से समृद्ध हिमालय “जैव विविधता हानि के लिए विशेष रूप से अतिसंवेदनशील” हैं. क्योंकि एक तरफ जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक खटारें हैं तो दूसरी तरफ इसकी पर्वत श्रृंखला में पड़ने वाले कई देशों की वजह से शासन की विभिन्न प्रणाली है.

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पारिस्थितिक रूप से समृद्ध हिमालय की कई पर्वत श्रृंखला विभिन्न देशों के अंदरूनी और बाहरी हिस्से में स्थित हैं. उनसे जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक खतरों को नुकसान पहुंचता रहता है.

इस रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि सिटीजन रिपोर्टिंग उपकरण, वन्यजीवों से जुड़ी जानकारी को साझा करने तथा वन्यजीव व्यापार रूपी प्रबंधन में सुधार करने में, मदद कर सकता है. इसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि “नागरिक रिपोर्टिंग उपकरणों में निवेश, मौजूदा प्रजातियों की आबादी और इनके व्यावसायिक उत्पादों की तस्करी और व्यापार का उपलब्ध डेटा सुधार सकता है.”

नए अध्ययन इसको लेकर एक मजबूत और ठोस सुबूत पेश करते हैं. लेखक भी एप्स के इस्तेमाल के जरिए इन चुनौतियों को उजागर करने को लेकर बहुत आशान्वित है.” बेंगलुरू स्थित अशोक ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकोलॉजी एंड द एनवायरनमेंट (ATREE) के अध्यक्ष कमल बावा और बोस्टन स्थित, मैसाचुसेट्स विश्वविद्यालय के जानेमाने प्रोफेसर एमेरिटस ने मोंगाबे-इंडिया से बात करते हुए कहा कि कि “प्राकृतिक आधार पर आधारित आजीविका के लिए लोगों को लाभान्वित करने और अपनी धरती को संतुलित और ठीक रखने के लिए इस तरह के एप्स की ज़रूरत है.”

वीडियो, ऑडियो और भौगोलिक जानकारी को सटीक तौर पर रिकॉर्ड करने के लिए, नागरिक वैज्ञानिक सब जगह स्मार्टफ़ोन का इस्तेमाल करते हैं. जबकि नागरिकों के द्वारा डेटा इकट्ठा करने की यह कोशिश स्वैच्छिक और अवैतनिक होती है. नागरिकों के द्वारा रिकॉर्ड किये गए ऐसे डेटा अक्सर असामान्य होते हैं. ऐसे में इस डेटा का विश्लेषण पेशेवर शोधकर्ताओं की देखरेख में किया जाता है.

Plantix एप का स्क्रीनशॉट।

Plantix एप का स्क्रीनशॉट

यह व्यवस्था शोधकर्ताओं को कम लागत पर बड़ी मात्रा में डेटा को इकठ्ठा करने में सक्षम बना देती है. साथ ही विज्ञान से जुड़े मुद्दों पर जनता को भी शामिल करती है. ऐसे बहुत से नागरिक एप्स मौजूद हैं, इनमें से कुछ एप्स वैज्ञानिक संस्थाओं के साथ काम कर रहे हैं. उदहारण के लिए - Plantix app, यह एप्प किसानों को उन फसल की बीमारियों की पहचान करने में सक्षम बनाता है, जिन्हें भारत के कृषिविदों की मदद से शुरुआती डेटाबेस और एप्प से जुड़े गहरे नेटवर्क का प्रशिक्षण करने में मदद करता है.

इस बीच में, iNaturalist एप्स का डेटा ग्लोबल बायोडायवर्सिटी इंफॉर्मेशन फेसिलिटी में चला जाता है.

iSpot, CitSci, Cybertracker और eBird जैसे दूसरे लोकप्रिय एप्स भी हैं परन्तु सोशल मीडिया एप्स पर उनके मेटाडेटा के माध्यम से पोस्टिंग की जा सकती है. eBird एप्प दुनिया का सबसे बड़ा नागरिक विज्ञान का समूह बन गया है, इस एप्प के माध्यम से महाद्वीप पर प्रवास करने वाले पक्षियों के बारे में पता चलता है.

iBats एप्प चमगादड़ की आवाजों की निगरानी करता है जबकि Leafsnap एप पेड़ों की पत्तियों का पता लगाता है.

हिमालय क्षेत्र में वन्यजीव की तस्करी

भारत वन्यजीव अपराध को खत्म करने की दिशा में प्रयासरत है. मार्च 2021 में, हिमालय क्षेत्र के अन्दर वन्यजीव की तस्करी को रोकने के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान, वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो और ट्रैफिक (TRAFFIC) के द्वारा वन्यजीव प्रवर्तन एजेंसी के अधिकारियों का प्रशिक्षण कराया गया था.

जैव विविधता से भरपूर हिमालय में, भारतीय क्षेत्र में पाए जाने वाले कुल फूल के पौधों और पक्षियों का लगभग आधा (50%) मौजूद है; इसके अलावा लगभग दो-तिहाई (65%) स्तनधारी प्रजातियां भी यहां पर हैं; देश के एक तिहाई से अधिक सरीसृप (रेप्टाइल्स) (35%) और उभयचर (अम्फिबिंस) (36%) और 17% मछलियां भी इसी क्षेत्र में पाई जाती हैं.

हिमालय के क्षेत्रों से आमतौर पर की जाने वाली जानवरों की तस्करी निम्न है- हिम तेंदुए और सामान्य तेंदुए के खाल, हड्डियां , और शरीर के अंग; हिमालय क्षेत्र में रहने वाले भूरे भालू और एशियाई काले भालू का पित्ताशय; अलग-अलग प्रजातियों के पाए जाने वाले कस्तूरी मृग की कस्तूरी फली, भेड़िए और तेंदुए के बाल (फर). इसके अलावा विभिन्न प्रकार के तीतर जैसे कि पश्चिमी ट्रैगोपन और हिमालयी मोनाल की भी अवैध रूप से तस्करी की जाती है.

2019 में यूनाइटेड नेशनस एनवायरनमेंट प्रोग्राम (यूएनईपी) ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि भारत में, अवैध रूप से वन्यजीव का व्यापार “यह तेज विस्तार उन दुर्लभ प्रजातियों के लिए है, जिनकी पालतू बाजार में मांग और साथ ही साथ जिन्हें औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है.” यह कहा जाता है कि चीन और दक्षिण पूर्वी एशिया इसके मुख्य बाज़ार हैं, परन्तु जिंदा जानवरों और शरीर के हिस्से रूप में इन्हें तस्करी करके खाड़ी, यूरोप और उत्तरी अमेरिका के देशों में भी ले जाकर बेचा जाता है. यूएनईपी की रिपोर्ट बताती है कि भारत से परे, मुख्य रूप से ट्रांजिट देश नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, श्रीलंका और म्यांमार हैं.

यूएनइपी के अनुसार, आमतौर पर तस्करी की जाने वाली भारतीय वन्यजीव प्रजातियों और उत्पादों में बाघ और तेंदुए की खाल, उनकी हड्डियां और शरीर के दूसरे अंग शामिल हैं. गैंडे के सींग और हाथी दांत की भी तस्करी की जाती है. कछुओं की प्रजातियाँ, समुद्री घोड़े, सांप का जहर, नेवले का बाल, सांप की खाल, टोके गेको, समुद्री केकड़े, चिरू ऊन, कस्तूरी की फली, भालू का पित्त, औषधीय पौधे, लाल चंदन की लकड़ी और पिंजरे में बंद पक्षी जैसे तोते, और मैना की भी तस्करी की जाती है.

2020 की विश्व वन्यजीव अपराध रिपोर्ट में पता चलता है कि लुप्तप्राय हो चुकी प्रजातियों के खतरे के साथ-साथ वन्यजीव अपराध और प्रकृति का विध्वंस करने वाले कारक जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा दे सकता है. इसके साथ ही ज़ूनोटिक (पशुजन्य) रोग संचरण के कारण सार्वजनिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाल सकता है.

सिटीजन एप्प पर प्रकाशित नयी रिपोर्ट में बताया गया है कि बेहतर डेटा अपराध से जुड़े समुदायों को पहचानने में और अवैध तस्करी से जोड़ने में मदद करेगा.

जैव विविधता से समृद्ध हिमालयी क्षेत्र। तस्वीर– ईश्वरी राय/विलीमेडिया कॉमन्स।

जैव विविधता से समृद्ध हिमालयी क्षेत्र. तस्वीर – ईश्वरी राय/विलीमेडिया कॉमन्स.

सिटीजन ऐप्स पर नई रिपोर्ट में कहा गया है कि बेहतर डेटा के जरिए समुदायों की पहचान करने और अवैध व्यापार से जुड़ने में मदद मिलेगी.

एप को सक्षम बनाने के लिए, डेटा संग्रह को बहुभाषी, समुदायों में विभिन्न व्यापार की संरचनाओं के अनुकूल, और विभिन्न पारिस्थितिक जीवों (बायोम) के लिए प्रासंगिक होना चाहिए.

उत्तर प्रदेश के शहर नोएडा में स्थित, भारत के वन्यजीव ट्रस्ट के निदेशक राहुल कौर के कथनानुसार, नागरिक विज्ञान नया नहीं है. वह बताते हैं कि यूनाइटेड किंगडम स्थित संगठन नागरिक विज्ञान का इस्तेमाल साधारण पक्षी की प्रजातियों की गणना को करने के लिए कई दशकों से किया जाता रहा है. “पहले यह मैन्युअली किया जाता था लेकिन अब आपके के पास एक एप्प है, जहां आप अपनी सूचना को जमा कर सकते हैं.”

वह बताते हैं कि भारत के पास भी ऐसे कई नागरिक विज्ञान के तरीक़े हैं. उदहारण के लिए, मध्य-शीतकालीन जलपक्षियों की गणना नागरिक विज्ञान आधारित अनुमान था. लेकिन इसे जमीन से जुड़े लोगों के द्वारा एक बड़े समूह का इस्तेमाल करके कराया जाता था.

राहुल बताते हैं, “अब इसके ऑनलाइन होने से बड़ी संभावनायें खुल चुकी हैं. “हम इबर्ड (eBird) के इस्तेमाल के दौरान पहले ही देख चुके हैं जहां प्रयोगकर्ता (यूजर) अपनी सूचना को लॉग इन कर सकता है और प्रयोगकर्ताओं के समूह द्वारा दी गयी सूचना के साथ सूचना दिखाई देने लगती है. बेशक, दिखाई देने वाली सूचना को जितना संभव हो बेहतरीन तरीके से सत्यापित किया जाता है. इस तरह से प्राप्त असंख्य डेटा इस्तेमाल में लाने के योग्य हो जाता है. यह राजनैतिक सीमाओं से परे है और समय व गतिविधियों की निगरानी रख सकता है.

रिपोर्ट के लेखक बताते हैं कि बहुत से नागरिक विज्ञान के प्रोजेक्ट एशियाई देशों में भी शुरू किये जा चुके है और इसमें कुछ डेटा हिमालयी इलाके के भी शामिल हैं. वे बताते हैं कि हालांकि, हमारी जानकारी के मुताबिक ऐसी कोई परियोजना शुरू नहीं की गयी है जिसका उद्देश्य लुप्त हो चुकी या हो रही हिमालयी प्रजातियों के व्यापार का दस्तावेजीकरण करती हो.

बहुत सी भारतीय परियोजनाएं हिमालय की जैव विविधता की निगरानी करती हैं. भारतीय हिमालयी क्षेत्र में कार्यरत वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया, वाइल्डलाइफ वाच पारिस्थितिक और सामाजिक-आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण प्रजातियों के बारे में जागरूकता अभियान चलाकर समुदाय की जागरूकता को सुधारने का काम करते हैं.

रिपोर्ट में वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फण्ड के द्वारा नेपाली स्वयं सेवकों को दिया गए प्रशिक्षण के उदाहरण को भी जगह दी गयी है. जिसमें इन स्वयंसेवकों को जीपीएस जैसे बुनियादी डेटा संग्रह उपकरण भी प्रदान किया गया था. हिमालयी बर्फीले तेंदुए की निगरानी करने के लिए वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फण्ड और नेपाली सरकार ने ‘साइबर ट्रैकर’ परियोजना की शुरुआत की है. परियोजना ने स्थानीय लोगों के लिए साधारण कंप्यूटर के साथ मोबाइल को इस तरह विकसित किया है जिसके जरिए बर्फीले तेंदुए, उनके शिकार और उनके रहने के स्थानों की निगरानी की जा सके.

चीन में शान शुई की चाइना नेचर वाच परियोजना को वन्यजीव संरक्षण के लिए समुदाय का सहयोग हासिल है. इससे कड़े कानूनों को लागू करने में मदद मिली है. चाइना वॉच, वन्यजीवों के देखने या तस्वीरें साझा करने के लिए वीचैट (एक सोशल नेटवर्क) के माध्यम से व्यक्तियों और सामाजिक संगठनों को जोड़ता है.

क्षमतावान एप्प

बावा और कौल भविष्य में एप्स को प्रभावी मानते हैं.

कौल बताते हैं, बहुत से समूह इ-प्लेटफार्म पर सहयोग करने के लिए सक्रिय हैं. “इस तरह का अभियान सोशल मीडिया का रूप ले सकता है, पर जरूरी नहीं कि वह इसी रूप में हो. लेकिन हां, यह बड़ी संख्या में लोगों तक पहुंचने और अपना संदेश पहुंचाने का बहुत ही सुविधाजनक माध्यम है.”

इन्टरनेट के माध्यम से अवैध रूप से वन्यजीव बिक्री का पता लगाने के लिए स्वयंसेवक एकजुट हो रहे हैं. इस तरह से नागरिक वन्यजीव के खरीद-फरोख्त पर नज़र रखने और उन्हें आगे की कार्यवाही के लिए रिकॉर्ड करने में एक-दूसरे का सहयोग कर रहे हैं. इस तरह से, वन्यजीव की तस्करी की आवाजाही पर सीमाओं पर नज़र रखी जा सकती है.

हिमालय के कुल्लू घाटी का दृष्य। तस्वीर– व्याचेस्लाव अर्जेनबर्ग/विकिमीडिया कॉमन्स

हिमालय के कुल्लू घाटी का दृष्य. तस्वीर – व्याचेस्लाव अर्जेनबर्ग/विकिमीडिया कॉमन्स

सिटीजन एप्स के सिद्धांत को आगे बढ़ाने के लिए बावा कई तरह के प्रस्ताव सामने रखते हैं. वह कहते हैं कि वन्यजीव व्यापार और दूसरे प्रकार के संरक्षण तथा पर्यावरण के मुद्दे जिनमे कृषि और जनस्वास्थ शामिल है उसके लिए एप्स विकसित किये जा सकते हैं.

वह आगे कहते हैं कि वन्यजीव व्यापार के लिए एप्प पर अतिरिक्त फीचर भी जोड़े जा सकते हैं. उदाहरण के लिए, वन्यजीव व्यापार दरअसल संक्रामक रोगों के उद्भव के साथ जुड़ा हुआ है, और इसलिए, एक ऐप जो कि जूनोटिक रोगों की निगरानी करता है, इसके लिए फायदेमंद हो सकता है.

बावा सुझाव देते हैं कि डेटा को संरक्षित करने, इसे संकुचित करने और अतिरिक्त सुविधाओं (फीचर्स) को जोड़ने के लिए एक प्लेटफॉर्म की जरूरत होगी, जिसके लिए किसी ऐसे प्लेटफॉर्म वाली संस्थाओं के साथ सहयोग करना जरूरी हो जायेगा. भारत जैव विविधता पोर्टल एक ऐसा ही मंच है, लेकिन कृषि, जल और विभिन्न सामाजिक-पर्यावरणीय मानकों के लिए कई दूसरे मंच भी मौजूद हैं.

इन मंचों पर पर्यावरण और स्थिरता को बनाये रखने के लिए डिजिटल बुनियादी ढांचे में ऐप्स को विकसित करने और बढ़ावा देने के लिए, सहयोगी नेटवर्क बनाने के लिए और अधिक निवेश करने की जरूरत है.

“हमने इस मामले में जैव विविधता और मानव कल्याण को जोड़ते हुए संभावित राष्ट्रीय मिशन के लिए एक दिशानिर्देश तैयार किया है. जो कि जैव विविधता, पारिस्थितिक तंत्र सेवा, जलवायु परिवर्तन, कृषि, स्वास्थ्य, जैविक अर्थव्यवस्था और क्षमता निर्माण को जैव विविधता विज्ञान से जोड़ता है. बावा कहते हैं, “सेल फोन के व्यापक इस्तेमाल और डेटा की तत्काल जरूरत ने, संभावनाओं को अनंत बना दिया है”. ऐसे में भारत, सूचना प्रौद्योगिकी में व्यापक क्षमता और गंभीर पर्यावरण चुनौतियों के साथ, इस क्षेत्र में एक वैश्विक अगुवाई करने की क्षमता रखता है.”

(यह लेख मुलत: Mongabay पर प्रकाशित हुआ है.)

बैनर तस्वीर: हिमालयन मोनाल की अवैध तरीके से हिमालय से तस्करी की जाती है. तस्वीर – मिलदीप/विकिमीडिया कॉमन्स