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सन सत्तावन के विद्रोह की प्रेरणा से खिला था भारत का राष्ट्र गीत “वन्दे मातरम्”

भारत के राष्ट्र गीत ‘वन्दे मातरम्’ को प्रसिद्ध बांग्ला लेखक बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने 1870 में लिखा था. यह 1882 में सार्वजनिक जीवन में आया जब बंकिम ने उसे अपने उपन्यास ‘आनंदमठ’ में शामिल किया.

सन सत्तावन के विद्रोह की प्रेरणा से खिला था भारत का राष्ट्र गीत “वन्दे मातरम्”

Sunday August 14, 2022 , 5 min Read

सन 1857 के विद्रोह को भारतीय स्वतंत्रता की सबसे पहली लड़ाई माना जाता है. मंगल पांडे, बख़्त खान, बेगम हजरत महल, नाना साहब, रानी लक्ष्मीबाई और तात्या तोपे इस विद्रोह के अगुआ थे. इस विद्रोह को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने 1 लाख से ज्यादा भारतीयों को मारा था. ब्रिटिश औपनिवेशिक इतिहास का यह सबसे बड़ा जनसंहार था.


विद्रोह कुचल दिया गया लेकिन विरोध का बीज अंकुरित हो रहा था. 1857 में ही मेरठ से दूर बंगाल में बंकिमचंद्र नामक एक युवा ने कलकत्ता (अब कोलकाता) के प्रेसीडेंसी कॉलेज से बी.ए. पास किया. बंकिम प्रेसीडेंसी कॉलेज से बीए की डिग्री पाने वाले पहले भारतीय थे. 1869 में उन्होंने कानून की डिग्री ली जिसके बाद डिप्टी मजिस्ट्रेट पद पर नियुक्त हुए. यह गांधी के जन्म का भी साल है.


उधर विद्रोह के एक साल बाद, 1 नवम्बर 1858 को ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया ने कंपनी के अधिकारों को समाप्त कर शासन की बागडोर सीधे तौर पर अपने हाथों में ले ली थी. अब भारत पर ब्रिटिश हुकूमत थी. ब्रिटिश हुक्मरानों ने ब्रिटेन के गीत 'गॉड! सेव द क्वीन' को हर समारोह में गाना अनिवार्य कर दिया था.


कुछ इतिहासकारों का मत है कि बंकिमचंद्र इससे आहत थे और उसके प्रतिरोध में उन्होंने यह गीत लिखा जो 1876 में “बंगदर्शन” नामक एक पत्रिका में 'वन्दे मातरम्' शीर्षक के साथ प्रकाशित हुआ. कुछ इतिहासकार मानते हैं कि अंग्रेजों द्वारा किये गए निजी अपमान की प्रतिक्रिया में उन्होंने अपनी पीड़ा और देश की गुलामी के दर्द को अभिव्यक्त करते हुए यह गीत लिखा था.

वजह जो भी रही हो, लेकिन बंकिम का यह गीत आगे चलकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भारतीय प्रतिरोध का प्रतीक बनने वाला था.

बीज 1857 में पड़ चुका था.

बंग-भंग, टैगोर और वन्दे मातरम्

वन्दे मातरम् को सबसे पहले गाया ‘गीतांजलि’ के लेखक रबिन्द्रनाथ टैगोर ने. उन्होंने 1894 में इसके लिए एक खूबसूरत धुन की रचना की और दो साल बाद 1896 में कांग्रेस के अधिवेशन में गाया. 1904 में इसे रिकॉर्ड भी किया गया. बंगाल विभाजन के ठीक एक साल पहले ज़मीन तैयार थी.


सन 1905 में लार्ड कर्ज़न ने बंगाल-विभाजन का एलान किया. बंग-भंग के खिलाफ प्रतिरोध से जो धक्का अंग्रेजी हुकूमत को लगा उसकी धमक सिलसिलेवार ढंग से आगे कई सालों तक सुनाई देनी थी. बंग-भंग को रद्द करने की टैगोर की मांग आगे चलकर स्वराज के संघर्ष की मशाल बनी.


आन्दोलन का महत्व इस बात से भी समझा जा सकता है कि स्वतंत्रता संग्राम का भावी शीर्ष नायक पहले ही भविष्यवाणी कर देता है कि बंगाल विभाजन का फैसला अंग्रेजों को हर हाल में वापस लेना होगा. गांधी ने 1909 में 'हिंद स्वराज‘ लिखी. इसके दूसरे ही अध्याय में बंग-भंग और कांग्रेस की भूमिका के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में गांधी लिखते हैं, ‘बीज हमेशा हमें दिखाई नहीं देता. वह अपना काम जमीन के नीचे करता है और जब खुद मिट जाता है तब पेड़ जमीन के ऊपर देखने में आता है.’


बंगाल विभाजन के खिलाफ आन्दोलन में इस गीत के मुखड़े ने एक हथियार का काम किया. बंगाल के हिंदू-मुसलमान सबने एक सुर में 'वन्दे मातरम्' का नारा बुलंद करते हुए अंग्रेजी हुक्मरानों की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति को कड़ी चुनौती दी.


1911 में गांधी की भविष्यवाणी सही साबित हुए. जन आंदोलन के दबाव में लॉर्ड हेस्टिंग्स ने बंगाल के विभाजन को रद्द करते हुए उसे फिर से एकीकृत कर दिया.

वन्दे मातरम् क्यों नहीं बना राष्ट्र गान?

संविधान सभा ने टैगोर द्वारा लिखित “जन गण मन” को राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार कर किया और वन्दे मातरम् की लोकप्रियता और महत्त्व को देखते हुए उसे भारत का राष्ट्र गीत बनाया गया.


ऐसा क्यों किया गया?

1906 में आल इंडिया मुस्लिम लीग की नीवं पड़ी और उसे दो साल बाद हुए अधिवेशन के दौरान मुस्लिम नेता सैयद अली इमाम ने वन्दे मातरम को लेकर आपत्ति जताते हुए इसे राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार करने से इनकार कर दिया था.


बाद में 1938 में मोहम्मद अली जिन्ना ने ‘द न्यू टाइम्स ऑफ़ लाहौर’ में एक लेख लिखकर इस गीत का विरोध किया.


मुस्लिम लीग के नेताओं द्वारा गीत का विरोध कविता के आखिर के तीन छंदों में देवी दुर्गा के संदर्भों पर आधारित था.


जवाहरलाल नेहरु ने जिन्ना के विरोध के एक साल पहले 1937 में खुद टैगोर को एक ख़त के जरिये इस गीत को लेकर अपनी असहजता जताई थी. उन्होंने लिखा कि यह गीत राष्ट्र प्रतिरोध का पर्याय तो बन गया है लेकिन यह हिन्दू धर्म के धार्मिक प्रतीकों से ओत-प्रोत है. उन्होंने टैगोर से पूछा था कि मूल रूप में संस्कृत में लिखे गये इस गीत का हिंदी अनुवाद कितना सही है?

जिसके जवाब में टैगोर ने बताया कि कुल 5 छंदों के इस गीत के पहले दो छंद धार्मिक प्रतीकों से रहित हैं. तीसरे और चौथे छंद में देवी काली और देवी दुर्गा के अनेक उद्धरण हैं. जिसके तहत भारत माता की एक दैवीय मातृशक्ति के रूप में कल्पना की गयी है. जो इस्लाम समेत अन्य धर्मों के अनुयायियों को उचित नहीं लग सकता है.


मुद्दे की संवेदनशीलता को समझते हुए कांग्रेस ने 1937 में आखिर के 3 छंद को हटाते हुए, ऊपर के दो छंद जिसमें भारत की स्तुति है को अपने अधिवेशन में गाये जाने के लिए रखा.


दो साल बाद, 1939 में ‘हरिजन’ के एक लेख में महात्मा गांधी ने इस गीत को ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ देश की लड़ाई का प्रतीक मानते हुए इससे साम्प्रदायिक तनाव बढ़ सकने की चिंता व्यक्त की थी.


यह वह पृष्ठभूमि थी जिसके कारण वन्दे मातरम् को, उसके पहले दो छंदो के रूप में, राष्ट्र गान नहीं राष्ट्रगीत के रूप में स्वीकार किया गया.


1857 के ग़दर ने जो कई फूल खिलाये, उनमें से वन्दे मातरम् की सुगंध काल की सीमाओं के पार जा फैली.