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जिन्हें कभी 15 हजार रुपये में बेच दिया गया था आज वो खुद बचा रहे है दुसरे बच्चों की जिंदगियां, चाइल्ड राइट्स एंबेसडर वशिष्ट सम्राट की कहानी

वशिष्ट सम्राट, जिन्हें बचपन में मात्र 15 हजार रुपये में बेचकर बाल मजदूर बना दिया गया। वशिष्ट को नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने एक रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान बाल मजदूरी के चंगुल से मुक्त कराया। आज वशिष्ट, कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन्स फाउंडेशन के चाइल्ड राइट एंबेसडर हैं।

जिन्हें कभी 15 हजार रुपये में बेच दिया गया था आज वो खुद बचा रहे है दुसरे बच्चों की जिंदगियां, चाइल्ड राइट्स एंबेसडर वशिष्ट सम्राट की कहानी

Tuesday September 01, 2020 , 6 min Read

साल 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, भारत में बाल श्रमिकों की संख्या 10.1 मिलियन है, जिनमें 5.6 मिलियन लड़के हैं और 4.5 मिलियन लड़कियां हैं। इसके अलावा, भारत में 42.7 मिलियन से अधिक बच्चे स्कूलों से बाहर हैं।


हालाँकि, अच्छी खबर यह है कि 2001 से 2011 के बीच भारत में बाल श्रम की घटनाओं में 2.6 मिलियन की कमी आई है। और इस कमी को लाने का पूरा श्रेय जाता है वशिष्ट सम्राट जैसे बाल रक्षकों को।


वशिष्ट सम्राट जो स्विट्ज़रलैंड की राजधानी जिनेवा में साल 1998 में आयोजित ILO (International Labour Organization) सम्मेलन 182 का हिस्सा रहे हैं, गोल्ड मेडलिस्ट, चाइल्ड राइट्स एंबेसडर, पीएचडी रिसर्चर हैं और वे आईएएस की तैयारी भी कर रहे हैं। लेकिन इन सब खिताबों के धनी वशिष्ट का जीवन बेहद मुश्किल भरा रहा है।


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वशिष्ट सम्राट (L), नोबेल पीस प्राइज विजेता कैलाश सत्यार्थी और उनकी पत्नी सुमेधा सत्यार्थी के साथ वशिष्ट

(फोटो साभार: वशिष्ट सम्राट)


वशिष्ट सम्राट ने योरस्टोरी से बातचीत करते हुए बताया कि उनका जन्म बिहार के मधेपुरा जिले के मुरहू नाढ़ी गांव में हुआ था। उन्हें बचपन में महज 15 हजार रुपये के लिये बेच दिया गया था। जिसके बाद उन्हें एक घर में बाल मजदूरी करनी पड़ी। उस घर के मालिक-मालकिन वशिष्ट को अनेक तरह की यातनाएं देते और प्रताड़ित करते थे, जैसा कि आमतौर पर सभी बाल मजदूरों के साथ किया जाता है।


बचपन के बाल मजदूरी के दर्दभरे एक घटनाक्रम को याद करते हुए वशिष्ट बताते हैं,

उस वक्त मेरी उम्र 8 साल थी। जिस घर में मैं काम करता था, वहां कुछ मेहमान आए थे। उन मेहमानों को चाय देते समय मैंने अपनी मालकिन को भूलवश शक्कर (चीनी) वाली चाय का कप दे दिया, जबकि वह बिना शक्कर वाली चाय पिया करती थी। मालकिन ने उसी वक्त चाय का पूरा गर्म कप मेरे ऊपर उड़ेल दिया। यह भयानक मंजर याद करके मुझे आज भी उतनी ही वेदना महसूस होती है।

इतना ही नही उन्हें अलग-अलग जगह पर कई बार बेचा गया, ढ़ाबे पर काम किया, मालिक ने तेज़ाब तक फेंका पर उन्होंने हार नहीं मानी।

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आईएएस ऑफिसर इरा सिंघल के साथ वशिष्ट सम्राट (फोटो साभार: वशिष्ट सम्राट)

नोबेल विजेता कैलाश सत्यार्थी ने दी नई जिंदगी

वशिष्ट सम्राट को समाजसेवी कैलाश सत्यार्थी, जिन्हें साल 2014 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है, ने बचपन बचाओ आंदोलन के तहत एक रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान पुलिस के साथ मिलकर उस घर से छुड़ाया और बाल मजदूरी के चंगुल से मुक्त कराकर एक नई जिंदगी दी।


28 वर्षीय सम्राट बताते हैं,

मुझे समाजसेवी कैलाश सत्यार्थीजी ने एक रेस्क्यू ऑपरेशन के जरिए बाल मजदूरी की उन बेड़ियों से आज़ाद करवाया और दिल्ली स्थित मुक्ति आश्रम लेकर गए। कैलाशजी ने मुझे आगे पढ़ाई करने के लिये कहा और कुछ किताबें और अन्य जरूरी सामग्री दिलवाई।

वशिष्ट सम्राट मुक्ति आश्रम में मन लगाकर पढ़ने लगे। उसके करीब दो साल बाद कुदरत का करिश्मा देखिए, वशिष्ट के माता-पिता का पता चल गया और जल्द ही उन्हें उनके सुपुर्द कर दिया गया।

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बाल मजदूरी के खिलाफ भारत यात्रा के दौरान वशिष्ट (फोटो साभार: वशिष्ट सम्राट)



पढ़ाई में रहे अव्वल

अपने घर वापस लौटने के बाद भी वशिष्ट ने अपनी पढ़ाई निरंतर जारी रखी। उन्होंने एक घर में काम भी किया, जहां वे दिन में काम करते थे और रात को पढ़ाई करते थे। उसके बाद आठवीं बोर्ड के लिए उनका फॉर्म भरा गया। परीक्षा देने के बाद जो रिजल्ट आया उसने सबको चौंका दिया। सम्राट ने आठवीं की बोर्ड परीक्षा में जिला स्तर पर टॉप किया था।


टॉपर सम्राट बताते हैं,

आठवीं बोर्ड में जिला स्तर पर टॉप करने के बाद मुझे अगले तीन साल तक भारत सरकार द्वारा 300 रुपये महीने की स्कोलरशिप मिलने लगी, जिससे मेरी आगे की पढ़ाई की राहें थोड़ी आसान होने लगी। मैंने स्कूल से लेकर कॉलेज तक हमेशा क्लास में टॉप किया। साल 2017 में मैंने एम. ए. इकोनॉमिक्स से किया और वहां भी यूनिवर्सिटी में टॉप किया।
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बच्चों के साथ बातचीत करते हुए चाइल्ड राइट एंबेसडर वशिष्ट सम्राट (फोटो साभार: वशिष्ट सम्राट)

बाल मजदूरी के खिलाफ जंग

वशिष्ट सम्राट को जब कैलाश सत्यार्थी ने बाल मजदूरी के चंगुल से आज़ाद करवाया था, सम्राट ने तभी ठान ली थी कि आगे चलकर वह भी इसी दिशा में काम करेंगे।


वशिष्ट अब तक देशभर के अलग-अलग राज्यों में रेसक्यू ऑपरेशन के जरिए 2200 से अधिक बाल मजदूरों को बचा चुके हैं।


देश के मेट्रो सिटीज़ में उनके द्वारा चलाए गए कुछ रेस्क्यू ऑपरेशन ऐसे भी रहे हैं जहाँ उन्होंने एक बार में 70-75 बाल मजदूरों को छुड़वाया है।


उन्होंने साल 2012 में 'नॉर्थ-ईस्ट मार्च अगेन्स्ट चाइल्ड लेबर एंड ट्रेफिकिंग', गुवाहाटी से लेकर धुबरी (असम) तक, की थी। जिसे तत्कालीन चीफ़ जस्टिस ऑफ इंडिया अल्तमस कबीर ने हरी झंडी दिखाई थी।


साल 2016 में पारित किए गए चाइल्ड लेबर (प्रोहिबिशन एंड रेग्युलेशन) एक्ट, जो कि चाइल्ड लेबर को पूर्णतया प्रतिबंधित करता है, के लिए भी उन्होंने लंबी लड़ाई लड़ी।


11 हजार किलोमीटर की भारत यात्रा जिसे देशभर के 22 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में चलाया गया था, बेहद सफल रही।

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(फोटो साभार: वशिष्ट सम्राट)

उन्हें समाजसेवी नोबेल पीस अवार्ड विजेता कैलाश सत्यार्थी और नॉर्थ दिल्ली की कमिश्नर आईएएस ऑफिसर इरा सिंघल द्वारा समय-समय पर काफी सपोर्ट मिला है। इसके साथ ही भारत के वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने वशिष्ट सम्राट को सम्मानित किया है।


वशिष्ट ने कैलाश सत्यार्थी फाउंडेशन के बचपन बचाओ आंदोलन के तहत बालमित्र ग्राम पंचायत का सुझाव दिया जिसे तुरंत ही लागू किया गया। अब तक यह मुहिम 350 से अधिक गावों में चल रही है। जैसा कि नाम से ही विधित है - यह बच्चों की पंचायत है। यहां प्रधान भी बच्चे ही होते हैं। और वे चाइल्ड लेबर और ट्रेफिंकिंग के खिलाफ जागरूकता फैलाते हैं।


साल 2006 में उन्होंने शिक्षा यात्रा की थी, जो कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक चली थी। जिसमें 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा की बात कही गई थी। इसके फलस्वरूप ही शिक्षा का अधिकार लागू किया गया।


इसके बाद 'साउथ एशियन मार्च अगेन्स्ट चाइल्ड लेबर एंड ट्रेफिंकिंग' किया गया, जो कोलकाता से लेकर दिल्ली होते हुए नेपाल की राजधानी काठमांडू तक करीब 5 हजार किलोमीटर की यात्रा थी।


साल 2016 में '100 मिलियन फॉर 100 मिलियन' मुहिम शुरू की गई और उन्हें इसका लीडर नियुक्त किया गया। इस मुहिम की सराहना करते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उन्हें सम्मानित किया।


वशिष्ट सम्राट कहते हैं, ''मैं जब भी किसी बच्चे को रेस्क्यू ऑपरेशन के जरिए आजाद कराता हूँ तो मुझे लगता है जैसे मैं खुद एक बार फिर से आजाद हुआ हूँ। मुझे हर बार यही महसूस होता है। हर बच्चे की आजादी भरी मुस्कान मुझे इस मुहिम को आगे चलाते रहने के लिये हौसला देती है। मेरा अब बस एक ही सपना है - “चाइल्ड लेबर फ्री सोसाइटी”