मिलिए डॉ. ह्रदेश चौधरी से जिन्होंने घुमंतू जाति के बच्चों को शिक्षित करने के लिये छोड़ दी सरकारी नौकरी
ताज नगरी आगरा की रहने वाली डॉ. ह्रदेश चौधरी एक सोशल एक्टिविस्ट और लेखिका है जिन्हें यूपी सरकार और हिंदी समाचार पत्र हिंदुस्तान ने घुमंतू जाति के लोगों के बच्चों के शैक्षिक उत्थान के लिए साल 2014 में मलाला अवार्ड से सम्मानित किया है।
डॉ. ह्रदेश चौधरी खानाबदोश समुदायों के बच्चों को शिक्षित करने और शिक्षा के प्रति उन बच्चों के माता-पिता को जागरूक करने की दिशा में सराहनीय काम किया है।
डॉ. ह्रदेश चौधरी, जो कि केंद्र सरकार के शिक्षक के रूप में पेशेवर नौकरी कर रही थी, ने अपनी नौकरी छोड़ दी और गाड़िया लोहार (घुमक्कड़ / घुमंतू /खानाबदोश) जाति के बच्चों को शिक्षित करना अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया।
कौन है गाड़िया लौहार
सड़क किनारे अपनी खानाबदोश ज़िन्दगी जीने वाली इस गाड़िया लोहार जाति के बारे में किवदंती है कि इनके पूर्वज महाराणा प्रताप की सेना के लिए औजार बनाने का काम करते थे तो जब महाराणा प्रताप को जंगल की खाक छाननी पड़ी तो इन्होंने भी घर बार छोड़ दिया और आजीवन घुमन्तू जीवन जीने की सौगन्ध ली। तब से ये स्वाभिमानी कौम दो वक़्त की रोटी की जुगाड़ में यायावर ज़िन्दगी जी रही है।
कैसे आया इनकी शिक्षा का ख्याल
डॉ. चौधरी, जो कि केंद्रीय मंत्रालय द्वारा संचालित एक स्कूल में कार्यरत थी, ने साल 2011 में गर्मियों की छुट्टी के दौरान सड़क किनारे खेलते इन बच्चों को देखा। बच्चे 'गाड़िया लोहार' समुदाय से थे। डॉ. चौधरी ने तब पाया कि ये बच्चे अगर शिक्षित नहीं हुए तो ये समुदाय ऐसे ही बेरोजगारी, भूखमरी की ओर आगे बढ़ता रहेगा।
डॉ. चौधरी कहती हैं,
“शिक्षा सबका हक है ऐसे में इन बच्चों को भी शिक्षा मिलनी चाहिए। पढ़-लिखकर ये बच्चे भी बेहतर समाज और राष्ट्र का निर्माण करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।”
इसी ख्याल के साथ डॉ. ह्रदेश चौधरी ने इस समुदाय के बच्चों को शिक्षित करने की ठान ली। इसके लिये उन्हें उनके पति के एस चौधरी (डीजीएम, इंडियन ऑयल) का समर्थन मिला। साल 2013 में डॉ. चौधरी ने अपनी सरकारी नौकरी से इस्तिफा दे दिया।
आराधना संस्था, घुमंतू पाठशाला की शुरूआत
घुमंतू पाठशाला और आराधना संस्था की स्थापना डॉ. ह्रदेश चौधरी द्वारा की गई है ताकि वे खानाबदोश बच्चों को औपचारिक शिक्षा के लिए स्कूलों में भर्ती होने से पहले पढ़ा सकें। यहां खानाबदोश बच्चों को वैन के जरिए लाया जाता है और एक साल तक पढ़ाया जाता है। जैसा कि ये बच्चे एक ऐसे बैकग्राउंड से आते हैं जहाँ उन्होंने शिक्षा के बारे में न तो देखा है और न ही कुछ सुना है। उनके जीवन में शिक्षा की भूमिका और महत्व को समझने या उन्हें प्रेरित करने वाला कोई नहीं है। उनकी भटकती जीवन शैली उन्हें आधुनिक जीवन शैली की कल्पना करने के योग्य नहीं बनाती है।
एक वर्ष का यह फाउंडेशन कोर्स इन खानाबदोश बच्चों को औपचारिक स्कूलों में घटनाओं और स्थिति का सामना करने के लिए तैयार करता है। एक वर्ष के समय में, वे सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेते हैं, बुनियादी संख्याएं, टेबल, अक्षर और पढ़ना-लिखना सीखते हैं। वे ड्राइंग और लेखन कौशल विकसित करते हैं। वे अनुशासित हो जाते हैं और समय के महत्व को समझने लगते हैं। उनका दृष्टिकोण और व्यवहार बदल जाता है और वे स्वयं को अन्य बच्चों के बराबर महसूस करते हैं।
धीरे-धीरे स्कूल में बच्चों की संख्या में वृद्धि हुई और वर्तमान में नर्सरी से कक्षा 1 तक की कक्षाओं में भाग लेने वाले 200 छात्र हैं। इन बच्चों को खाना, यूनिफॉर्म, स्टेशनरी आदि सभी चीजें संस्था की ओर से बिल्कुल मुफ्त में दी जाती हैं।
ये रही चुनौतियां
डॉ. चौधरी बताती हैं,
“इन बच्चों को स्कूल तक लाना इतना आसान नहीं था। इसके लिये मैं बच्चों के माता-पिता से मिलने फुटपाथ किनारे और झुग्गी-झोंपड़ियों में जाती थी और घंटों तक उन्हें समझाती थी। लोग छींटाकशी भी करते थे। कई बार वे लोग एक बार में नहीं मानते थे, तब मैं अगले दिन फिर जाती। इस तरह मेरे बार-बार समझाने पर वे मानने लगे और अपने बच्चों को स्कूल भेजने लगे।”
डॉ. चौधरी ने आगे बताया कि अब, जब उन बच्चों के माता-पिता उन्हें पढ़-लिखता देखते हैं, अच्छे कपड़े, बोल-चाल का ढंग देखते हैं। तो वे मुझसे कहते हैं कि आपने इनका जीवन संवार दिया है।
अपने बच्चों को शिक्षा प्राप्त करते देख इन लोहारों ने शहर में रहने का फैसला किया है, हालांकि वे अपना स्थान बदलते हैं क्योंकि उनके लिए एक स्थान पर रहना मुश्किल है।
बड़े शहरों से इंटर्नशिप के लिये आते हैं छात्र
डॉ. ह्रदेश चौधरी कहती है,
“खुशी होती है जब सच्चे मन से समाज के लिए हम कुछ कर पाते है और सबको देखकर सुकून मिलता होगा कि कहीं कुछ अच्छा हो रहा है। आगरा शहर की संस्था आराधना द्वारा संचालित घुमंतू पाठशाला में जब देश के प्रमुख और प्रख्यात शिक्षण संस्थानों के स्टूडेंट्स एक-एक महीने की इंटर्नशिप करने आते है, और उन शिक्षण संस्थाओं के हेड मुझसे हर रोज अपने स्टूडेंट्स की रिपोर्ट मांगते है और इंटर्नशिप कराने के लिए अनुरोध करते है तो सच मे बहुत खुशी होती है।”
अभी हाल ही में सिम्बोसिस लॉ कॉलेज नागपुर, दून कॉलेज, NMIMS कॉलेज, मुंबई के छात्रों ने आराधना संस्था में इंटर्नशिप की थी।
'बोलती सरहदें'
'बोलती सरहदें' लेखिका एवं समाज सेविका डॉ. हृदेश चौधरी की नवीनतम कृति है। यह देश को समस्त फौजी भाईयों को समर्पित एक कविता कोष है। इस पुस्तक का विमोचन देश के प्रख्यात लोगों की उपस्थिति में हुआ, जहां प्रमुख रूप से मौजूद थे सांसद प्रो. एस पी सिंह बघेल, कुलपति डॉ. अरविंद दीक्षित, कवि विनीत चौहान, अमृत प्रकाशन के मालिक मंगल नसीम, महिला आयोग सदस्य निर्मला दीक्षित, हिंदी साहित्य के हस्ताक्षर कवि सोम ठाकुर, कवि पवन आगरी, इंजीनियर के एस चौधरी (डीजीएम इंडियन ऑयल), डॉ. अजय कुमार सिंह (प्रोफेसर दिल्ली), डॉ. दीप्ति छावड़ा (प्रोफेसर दिल्ली) आदि।
शिक्षा के जरिये बदला समाज का नजरिया
डॉ. ह्रदेश चौधरी ने गाड़िया लोहार समुदाय का नजरिया शिक्षा के प्रति बदल दिया है। इस समुदाय के लोग अब ज्यादा से ज्यादा बच्चों को स्कूल भेजने लगे हैं।
डॉ. चौधरी की संस्था के लिये उनके दोस्त, रिश्तेदार और समाज के अन्य लोग अपने जन्मदिन, शादी की सालगिरह आदि पर डोनेशन करते हैं। महत्वपूर्ण अवसरों पर खाना खिलाते हैं। कुछ लोग इन बच्चों का सालाना खर्च भी वहन करते हैं।
इसी क्षेत्र में अब अन्य संस्थाओं ने भी रूझान दिखाया है और वे समय-समय पर डॉ. चौधरी से सलाह लेने आते हैं।
डॉ. चौधरी कहती है,
“हमें मिल-जुलकर इन बच्चों का भविष्य बेहतर बनाने के लिये प्रयास करने चाहिए। किसी से भी ईर्ष्या का भाव न रखें। सुशिक्षित बच्चों से ही बेहतर समाज और राष्ट्र का निर्माण संभव है।”