एक समझौता और वेदांता के निवेशकों की हो गई चांदी, सस्ते हो सकते हैं मोबाइल-लैपटॉप
दरअसल वेदांता और फॉक्सकॉन ने गुजरात सरकार के साथ एक एमओयू साइन किया है.
अनिल अग्रवाल (Anil Agarwal) की अगुवाई वाली डायवर्सिफाइड मेटल कंपनी वेदांता लिमिटेड (Vedanta Limited) के निवेशकों की इस वक्त बल्ले-बल्ले है. वजह है एक समझौता, जिसकी वजह से कंपनी के शेयर को पंख लग गए हैं. बुधवार को वेदांता का शेयर BSE पर 10 प्रतिशत से ज्यादा उछाल के साथ 305.45 रुपये पर बंद हुआ, वहीं NSE पर शेयर 9.87 प्रतिशत की बढ़त के साथ 304.95 रुपये पर बंद हुआ. वहीं गुरुवार को भी कंपनी का शेयर दोपहर 12 बजे के करीब 320.90 रुपये चल रहा था. वेदांता लिमिटेड का मार्केट कैप 1,15,233.10 करोड़ रुपये पर जा पहुंचा है.
दरअसल वेदांता और फॉक्सकॉन (Foxconn) ने गुजरात सरकार के साथ एक एमओयू (Memorandum of Understanding) साइन किया है. यह एमओयू एक सेमीकंडक्टर व डिस्प्ले एफएबी मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटी लगाने को लेकर है. एमओयू साइन होने के बाद वेदांता के शेयरों में तेजी आई है. वेदांता और ताइवान की इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी फॉक्सकॉन 1.54 लाख करोड़ रुपये के निवेश के साथ गुजरात में देश का पहला सेमीकंडक्टर संयंत्र स्थापित करेगी. 94,000 करोड़ रुपये डिस्प्ले विनिर्माण इकाई की स्थापना में खर्च होंगे, 60,000 करोड़ रुपये सेमीकंडक्टर विनिर्माण संयंत्र के लिए निवेश किए जाएंगे. इससे एक लाख रोजगार के अवसरों का सृजन होने की बात कही जा रही है.
कारों से लेकर मोबाइल फोन और ATM कार्ड तक में इस्तेमाल
सेमीकंडक्टर या माइक्रोचिप्स का इस्तेमाल कई डिजिटल उपभोक्ता उत्पादों में आवश्यक टुकड़े के रूप में होता है. इसका इस्तेमाल कारों से लेकर मोबाइल फोन और एटीएम कार्ड तक के उत्पादन में किया जाता है. भारतीय सेमीकंडक्टर बाजार वर्ष 2021 में 27.2 अरब डॉलर का था. इस क्षेत्र के 19 प्रतिशत की सालाना वृद्धि दर के साथ वर्ष 2026 तक 64 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है. हालांकि, इनमें से कोई भी चिप्स अब तक भारत में निर्मित नहीं है. पिछले साल सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखला में भारी कमी ने इलेक्ट्रॉनिक्स और वाहन समेत कई उद्योगों को प्रभावित किया. सरकार, ताइवान और चीन जैसे देशों से आयात पर निर्भरता कम करने के लिए देश में सेमीकंडक्टर्स के विनिर्माण के लिए प्रोत्साहन से जुड़ी वित्तीय योजना लेकर आई है. इस कड़ी में वेदांता-फॉक्सकॉन सेमीकंडक्टर्स के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के सफल आवेदकों में से एक है.
1000 एकड़ क्षेत्रफल में स्थापित की जायेगी इकाई
वेदांता-फॉक्सकॉन के संयुक्त उद्यम की डिस्प्ले एफएबी विनिर्माण इकाई, सेमीकंडक्टर असेंबलिंग और टेस्टिंग इकाई राज्य के अहमदाबाद जिले में 1000 एकड़ क्षेत्रफल में स्थापित की जायेगी. इस संयुक्त उद्यम में दोनों कंपनियों की हिस्सेदारी क्रमश: 60 और 40 प्रतिशत होगी. वेदांता के चेयरमैन अनिल अग्रवाल ने गुजरात सरकार के साथ समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर करने के बाद पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘संयंत्र दो साल में उत्पादन शुरू कर देगा. गुजरात में यह सबसे बड़ा निवेश है. देश में हमारा यह पहला सेमीकंडक्टर संयंत्र होगा. चिप्स के स्थानीय निर्माण से लैपटॉप और टैबलेट की कीमतों में कमी आएगी.’’ अनिल अग्रवाल ने हाल ही में सीएनबीसी-टीवी18 के साथ एक इंटरव्यू में कहा है कि आज एक अच्छे लैपटॉप की कीमत करीब 1 लाख रुपये है. ग्लस व सेमीकंडक्टर चिप भारत में बनने लगने के बाद ऐसे लैपटॉप की कीमत 40000 रुपये या उससे भी कम हो सकती है.
"भारत की अपनी सिलिकॉन वैली अब एक क़दम और क़रीब आ गई है. भारत न केवल अब अपने लोगों की डिज़िटल ज़रूरतों को पूरा कर सकेगा बल्कि दूसरे देशों को भी भेज सकेगा. चिप मंगाने से चिप बनाने तक की यह यात्रा अब आधिकारिक तौर पर शुरू हो गई है."
अर्थव्यवस्था और नौकरियों को बढ़ावा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समझौता ज्ञापन की सराहना करते कहा कि यह अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देगा और रोजगार पैदा करेगा. मोदी ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘कुल 1.54 लाख करोड़ रुपये का निवेश अर्थव्यवस्था और नौकरियों को बढ़ावा देने की दिशा में महत्वपूर्ण है. यह सहायक उद्योगों के लिए एक बड़ा पारिस्थितिकी तंत्र भी बनाएगा और हमारे एमएसएमई की मदद करेगा.’’
दो और प्लांट के लिए इन कंपनियों ने भी किए हैं समझौते
वेदांता के अलावा दुबई की कंपनी नेक्स्टऑर्बिट और इजराइल की प्रौद्योगिकी कंपनी टॉवर सेमीकंडक्टर के एक संघ ने मैसूर में एक संयंत्र के लिए कर्नाटक सरकार के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. वहीं, सिंगापुर की आईजीएसएस वेंचर ने अपनी सेमीकंडक्टर इकाई के लिए स्थान के रूप में तमिलनाडु को चुना है.
अभी चीन, हॉन्गकॉन्ग, ताइवान और दक्षिण कोरिया ही दुनिया के तमाम देशों को चिप और सेमीकंडक्टर की सप्लाई करते हैं. भारत सेमीकंडक्टर का 100% आयात करता है. यानी भारत सालाना 1.90 लाख करोड़ रुपये के सेमीकंडक्टर दूसरे देशों से मंगाता है. दुनिया में इस्तेमाल होने वाले सभी चिप का 8 प्रतिशत ताइवान में बनता है. इसके बाद चीन और जापान का स्थान है. भारत के लिए माइक्रोचिप के क्षेत्र में दूसरे देशों पर निर्भरता कम करना कोई छोटी बात नहीं है. यह प्रोजेक्ट भारत के इलेक्ट्रॉनिक बाज़ार की ज़रूरतों को तो पूरा करेगा ही, चिप्स का निर्यात भी होगा.