क्‍या आपको भी है शॉपिंग की लत?

लोग आखिर क्‍यों‍ पागलों की तरह शॉपिंग करते हैं. फैशन स्‍टोर में, मॉल में सेल देखते ही मानो उनका खुद पर काबू ही नहीं रहता.

क्‍या आपको भी है शॉपिंग की लत?

Sunday November 13, 2022,

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पूरी दुनिया में 5 फीसदी लोग इस लत के शिकार हैं. उन्‍हें शॉपिंग करने की लत है. और सरल शब्‍दों में कहें तो खरीदारी का नशा. मनोविज्ञान की भाषा में कहें तो OCB यानि ऑब्‍सेसिव कंपल्सिव बाइंग. इंस्‍टीट्यूट ऑफ साइकोलॉजी, इतोवास लोरैंड यूनिवर्सिटी (Eötvös Loránd University), बुडापेस्‍ट, हंगरी और साइकॉलजी डिवीजन, नॉटिंघम ट्रेंट यूनिवर्सिटी (Nottingham Trent University) की यह वृहद स्‍टडी है, जो कह रही है कि दुनिया भर में 5 फीसदी लोग OCB के शिकार हैं.


इस लत के शिकार सबसे ज्‍यादा लोग यूएस, यूके, कनाडा में हैं. सिर्फ अमेरिका में 18 मिलियन यानी 1.8 करोड़ लोग शॉपिंग की लत के शिकार हैं.


लोग आखिर क्‍यों‍ पागलों की तरह शॉपिंग करते हैं. फैशन स्‍टोर में, मॉल में सेल देखते ही मानो उनका खुद पर काबू ही नहीं रहता. वो बस पहुंच जाते हैं अपने पैसे लुटाने और अपना घर सामानों से भर लेने के लिए. ऐसे सामान, जो शायद वो जीवन में कभी भी इस्‍तेमाल नहीं करेंगे. ऐसे सामान, जो शायद पहले से उनके पास होंगे. ऐसे सामान, जिसके बारे में उन्‍हें पता है कि उसकी उन्‍हें कोई जरूरत नहीं है. फिर भी वो खरीदते करते जाते हैं.

शॉपिंग की ये लत बना रही घर और दिमाग को कबाड़खाना

ऐसे अवांछित सामानों से क्‍या शॉपिंग ऑब्‍सेस्‍ड लोगों का घर एक बड़े से कबाड़खाने में तब्‍दील हो जाता है? नहीं, डॉ. तिमोथी जे. लेग कहते हैं कि घर नहीं, शॉपिंग एडिक्‍टेड लोगों का दिमाग कबाड़खाने में तब्‍दील हो जाता है.


आखिर कुछ लोग इतनी ज्‍यादा शॉपिंग क्‍यों करते हैं?

इस सवाल के दो तरह के जवाब हो सकते हैं. शॉपिंग कर रहे लोग कहेंगे-

1- क्‍योंकि हमें शॉपिंग करना अच्‍छा लगता है.

2- क्‍योंकि हमें शॉपिंग करने से खुशी मिलती है.

3- क्‍योंकि शॉपिंग करना हमारी जरूरत है.

4- क्‍योंकि शॉपिंग करने के लिए हमारे पास संसाधन यानि पैसे हैं.


लेकिन दरअसल बात इतनी सीधी भी नहीं है. बात सिर्फ ये नहीं है कि आपके पास पैसे हैं और आप खरीदारी कर रहे हैं. बात सिर्फ इतनी भी नहीं है कि आपको खरीदारी का शौक है. आपको खरीदारी करने से खुशी मिलती है. कोई नई चीज पाकर, खरीदकर हर किसी को अच्‍छा लगता है, कुछ लोगों को दूसरों से ज्‍यादा खुशी मिलती है, लेकिन शॉपिंग एडिक्‍शन के शिकार लोगों को उस खुशी की लत लग जाती है.

एडिक्‍शन या लत क्‍या है?

एडिक्‍शन या लत आखिर है क्‍या ? डॉ. गाबोर माते एडिक्‍शन को कुछ इस तरह परिभाषित करते हैं, “कोई भी ऐसी आदत या गतिविधि, जो तात्‍कालिक खुशी देती है, लेकिन लंबे समय में नुकसादायक, शरीर और दिमाग को क्षति पहुंचाने वाली होती है और उस नुकसान की चेतना होने के बावजूद व्‍यक्ति उसे नियंत्रित कर पाने में खुद को अक्षम पाता है, उसे एडिक्‍शन कहते हैं.”

एडिक्‍शन शब्‍द का इस्‍तेमाल हमेशा सिगरेट, शराब, ड्रग्‍स या सब्‍सटेंस अब्‍यूज के संदर्भ में ही होता है, इसलिए हम जीवन की अन्‍य ऑब्‍सेसिव, कंपल्सिव और नुकसानदायक आदतों को एडिक्‍शन की श्रेणी में रखकर नहीं देख पाते. लेकिन डॉ. माते कहते हैं कि हर तरह का ऑब्‍सेसिव, कंपल्सिव व्‍यवहार एडिक्‍शन ही है. जैसेकि खाने की लत, शॉपिंग की लत, वर्कहॉलिज्‍म यानी काम करते जाने की लत, सेक्‍स, डेटिंग आदि की लत.

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मेडिकल साइंस की सीमित सोच

अमेरिकन साइकिएट्रिक एसोसिएशन शॉपिंग एडिक्‍शन को ऑफिशियली एक एडिक्‍शन की श्रेणी में नहीं रखता. पूरी दुनिया में इस बात को लेकर मेडिकल साइंस में काफी मतभेद हैं कि सब्‍सटेंस अब्‍यूज के अलावा बाकी चीजों की लत को भी बीमारी की तरह देखा और ट्रीट किया जाना चाहिए या नहीं.


डॉ. माते कहते हैं, मेडिकल साइंस की दिक्‍कत ही यही है कि वह शरीर और मन, दोनों को दो अलग-अलग इंटिटी मानता है, जिसका आपस में कोई कनेक्‍शन नहीं है. आप शरीर की किसी तकलीफ लेकर डॉक्‍टर के पास जाइए तो वो आपके मन को समझने की कोशिश नहीं करेगा, जो वास्‍तव में शरीर में पनप रही बीमारी की जड़ है.

एडिक्‍शन यानी खुशी की, प्‍यार की, सुख की तलाश

शॉपिंग की लत उसी वजह से लगती है, जिस वजह से सिगरेट, शराब या ड्रग्‍स की लत लगती है. कोई भी एडिक्‍शन हमारे शरीर में दो काम करता है. पहला वो हैपी हॉर्मोन्‍स डोपामाइन, सेरेटोनिन, एंडॉर्फिंन और ऑक्सिटोसिन (Dopamine, Serotonin, Endorphins, Oxytocin) को एक्टिवेट करता है, जिससे हमें राहत और खुशी का एहसास होता है. और दूसरा ये कि वह स्‍ट्रेस हॉर्मोन कॉर्टिसोल को कम करता है.


डॉ. माते कहते हैं कि एडिक्‍शन का संबंध खुशी से है. हम कोई भी काम कंपलसिवली इसलिए करते हैं क्‍योंकि ऐसा करने से हमें खुशी और राहत का एहसास होता है. एडिक्‍शन से जुड़े अपने हर लेक्‍चर में वो ऑडियंस से एक ही सवाल पूछते हैं. जब आप अपने जीवन में एडिक्‍शन के शिकार हैं (वो एडिक्‍शन किसी भी चीज का हो सकता है- सब्‍सटेंस या नॉन सब्‍सटेंस) तो ऐसा करने से आपको क्‍या महसूस होता है.

 

और लोगों का जवाब होता है कि ऐसा करके उन्‍हें खुशी मिलती है, स्‍ट्रेस कम होता है, रिलैक्‍स फील होता है, तकलीफ कम हो जाती है, शांति और राहत महसूस होती है, आनंद मिलता है.


फिर उनका अगला सवाल होता है कि खुशी, रिलेक्‍सेशन, राहत, शांति, आनंद, सुख आदि पाने और महसूस करने की इच्‍छा क्‍या गलत है? जाहिर है, इस इच्‍छा में कुछ भी बुरा नहीं. आनंद, सुख, खुशी और राहत की तलाश करने, उसे पाने के लिए एडिक्‍शन का शिकार होने का अर्थ है कि हम खुश नहीं है. राहत वह ढूंढेगा तो जो तनाव में है. सुख वह ढूंढ रहा है, जो दुखी है. खुशी उसे चाहिए, जो नाखुश है.

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असली परेशानी एडिक्‍शन नहीं, बल्कि मन का दुख है

डॉ. माते कहते हैं कि असली दिक्‍कत और परेशानी ये सारे तकलीफदेह इमोशंस हैं, जो इंसान महसूस कर रहा है और उन परेशानियों का हल वह एडिक्‍शन में ढूंढ लेता है. लेकिन एडिक्‍शन की दिक्‍कत ये है कि यह परेशानी से तात्‍कालिक राहत तो देता है, लेकिन लंबे समय में इसके परिणाम खतरनाक और नकारात्‍मक ही होते हैं.


शॉपिंग की लत का शिकार कोई व्‍यक्ति चीजें खरीदने के प्रति वैसा ही व्‍यवहार करता है, जैसा शराब की दुकान पर लाइन में खड़ा कोई शराबी करेगा. वह मुश्किलें झेलकर, अतिरिक्‍त कीमत चुकाकर, तकलीफें उठाकर भी वो हासिल करने की कोशिश करेगा, जो उसे चाहिए. फिर चाहे वह व्हिस्‍की की बोतल हो, सिगरेट का डिब्‍बा या किसी खास ब्रांड की ड्रेस, जूता या जूलरी. वो ऐसा इसलिए कर रहा है क्‍योंकि ये करने से उसे खुशी, थ्रिल, एक्‍साइटमेंट और राहत का एहसास हो रहा है. 

एडिक्‍शन तकलीफों का शॉर्ट टर्म इलाज

आपकी तकलीफ ये है कि आप जीवन से खुश नहीं. जो खुशी कोई सब्‍सटेंस अब्‍यूज में ढूंढता है, वो आप शॉपिंग में ढूंढ रहे हैं. तकलीफ दूर तो हो रही है, खुशी मिल तो रही है, लेकिन वो बस थोड़ी देर की है. जैसेकि हर नशे के साथ होता है. एक सिगरेट से मिलने वाली खुशी ज्‍यादा देर नहीं रहती और जल्‍द ही दूसरी सिगरेट जलाने की जरूरत महसूस होने लगती है. एक बार की शॉपिंग की खुशी भी ज्‍यादा देर नहीं टिकती. जल्‍द ही फिर से शॉपिंग की जरूरत महसूस होती है ताकि आप फिर से खुशी महसूस कर सकें. फिर से हैपी हॉर्मोन आपको राहत और सुख का एहसास दे सकें.


दुनिया के बाकी सभी एडिक्‍शंस की तरह इस एडिक्‍शन का भी इलाज मुमकिन है. लेकिन वो दरअसल दवाओं में नहीं है, बल्कि काउंसिलिंग और ट्रॉमा थैरेपी में है. बकौल डॉ. माते अगर आप किसी भी तरह के आब्‍सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर के शिकार हैं, जिसके नजीते नकारात्‍मक हैं तो आपको अपने उस व्‍यवहार के बुनियादी कारण को समझने और उस कारण को दूर करने की जरूरत है.


एडिक्‍शन तकलीफ नहीं, बल्कि उस तकलीफ का आपका खोजा हुआ शॉर्ट टर्म हल है. तकलीफ कुछ और है. उस तकलीफ को जानने, समझने और उसे दूर करने की जरूरत है.


Edited by Manisha Pandey