नो-कॉस्ट EMI का क्या है फंडा? क्या सच में कराती है बचत?
EMI टर्म के साथ आजकल नो-कॉस्ट EMI टर्म भी चलता है.
EMI शब्द से तो आप सभी वाकिफ ही होंगे. EMI यानी इक्वेटेड मंथली इंस्टॉलमेंट, आसान भाषा में महीने की किस्त. लोन के साथ—साथ खरीदारी में भी EMI टर्म रहता है. अगर कोई किसी प्रॉडक्ट की खरीद के लिए एकमुश्त भुगतान नहीं कर पाता है तो कंपनियों और रिटेलर्स की ओर से EMI पर खरीद का विकल्प रहता है. EMI टर्म के साथ आजकल नो-कॉस्ट EMI टर्म भी चलता है. ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म या फिजिकल स्टोर्स में कई प्रॉडक्ट्स को नो-कॉस्ट EMI पर खरीदने का विकल्प रहता है. आइए जानते हैं क्या है नो-कॉस्ट EMI और यह कैसे काम करती है-
नो-कॉस्ट EMI से अर्थ
जब ग्राहक EMI यानी किस्तों पर कोई प्रॉडक्ट या सर्विस लेता है तो उसे एक तय अवधि तक, एक समान अमाउंट, एक तय वक्त पर भुगतान करना होता है. इसके साथ ब्याज भी रहता है. ब्याज का भुगतान EMI सुविधा लेने के एवज में करना होता है. उदाहरण के तौर पर अगर किसी ग्राहक ने 12000 रुपये की चीज खरीदी है और इसका पेमेंट EMI मोड से 3 महीने तक करना है तो उसे 4000 रुपये की किस्त प्लस ब्याज का पेमेंट करना होगा. अब बात करते हैं नो-कॉस्ट EMI की. इस विकल्प में ग्राहक को केवल सामान का दाम ही EMI में चुकाना होता है और कोई ब्याज नहीं लगता है.
कैसे काम करती है नो-कॉस्ट EMI?
नो-कॉस्ट EMI ग्राहकों को लुभाने का एक माध्यम है. साधारण EMI में दिए जाने वाले ब्याज की तरह कंपनियां इसमें भी ब्याज पहले से काउंट कर लेती हैं. इसके दो तरीके होते हैं. पहला तरीका यह कि कंपनियां नो-कॉस्ट EMI का ऑप्शन तो देती हैं लेकिन ग्राहक को प्रॉडक्ट एमआरपी पर ही मिलता है. काफी कम गुंजाइश होती है कि डिस्काउंट मिलेगा. अगर ग्राहक नो-कॉस्ट EMI के साथ जाता है तो उसे प्रॉडक्ट पूरी कीमत पर खरीदना होता है. दूसरा तरीका यह कि ब्याज, प्रॉडक्ट की कॉस्ट में ही शामिल कर दिया जाता है.
क्यों नो-कॉस्ट EMI वाकई में नहीं है नो-कॉस्ट?
नो-कॉस्ट EMI के वाकई में नो-कॉस्ट या ब्याज रहित न होने की एक वजह है. वह यह कि RBI की ओर से जीरो परसेंट इंट्रेस्ट को परमीशन नहीं है. यानी कोई भी EMI/लोन शून्य प्रतिशत ब्याज पर नहीं हो सकता. No Cost EMI पर रिजर्व बैंक ने 17 सितंबर 2013 को एक सर्कुलर जारी करते हुए कहा था कि, 'कोई भी लोन ब्याज मुक्त नहीं है.' जहां तक क्रेडिट कार्ड के आउटस्टैंडिंग अमाउंट की बात है तो नो-कॉस्ट EMI में ब्याज की रकम की वसूली अक्सर प्रोसेसिंग फीस के रूप में कर ली जाती है.
सरल शब्दों में नो कॉस्ट ईएमआई में कर्ज की लागत या ब्याज, ईएमआई में शामिल होते हैं. बस यह ब्रेकअप में पता नहीं चल पाता है. नो-कॉस्ट ईएमआई स्कीम चुनते समय अतिरिक्त चार्ज के बारे में भी जरूर जान लेना चाहिए. इनमें प्री-पेमेंट पेनल्टी यानी पहले भुगतान करने पर ली जाने वाली रकम से लेकर लेट पेमेंट चार्ज समेत तमाम अतिरिक्त चार्ज शामिल हैं.